राज्य मंत्री परिषद में कम से कम कितने सदस्य होने चाहिए? - raajy mantree parishad mein kam se kam kitane sadasy hone chaahie?

उत्तर: 23 अगस्त, 1954 को । राज्य सभा के सभापति ने सभा में एक घोषणा की कि काउंसिल ऑफ स्टेट्स को अब हिन्दी में 'राज्य सभा' कहा जाएगा।


राज्य सभा के पहले सभापति कौन थे?

उत्तर: डा. एस. राधाकृष्णन।


राज्य सभा के पहले उप-सभापति कौन थे?

उत्तर: श्री एस. वी. कृष्णमूर्ति राव (31.5.1952 - 2.4.1956 और 25.4.1956-1.3.1962)।


राज्य सभा के कौन-कौन से सभापति लगातार दो कार्यकाल तक इस पद पर रहे?

उत्तर: डॉ. एस. राधाकृष्णन राज्य सभा के पहले ऐसे सभापति थे, जो लगातार दो बार (13.05.1952 से 12.05.1962 तक) राज्य सभा के सभापति रहे। श्री मो. हामिद अंसारी भी लगातार दो कार्यकाल के लिए (11.08.2007 से 10.08.2012 तक और 11.08.2012 से 10.08.2017 तक) भारत के उप-राष्ट्रपति रहे ।

राज्य सभा की संरचना


राज्य सभा के सदस्यों की अधिकतम संख्या कितनी है?

उत्तर: दो सौ पचास (250), जिसमें से 238 सदस्य निर्वाचित किए जाते हैं और 12 सदस्य भारत के राष्ट्रपति द्वारा नाम-निर्देशित किए जाते हैं।


राज्य सभा के सदस्यों की वास्तविक संख्या कितनी है?

उत्तर: दो सौ पैंतालीस (245), जिसमें से 233 सदस्य निर्वाचित और 12 सदस्य नाम-निर्देशित किए जाते हैं।


राज्य सभा में प्रत्येक राज्य के कितने सदस्य हैं?

उत्तर:

राज्यआंध्र प्रदेशअरुणाचल प्रदेशअसमबिहारछत्तीसगढ़गोवागुजरातहरियाणाहिमाचल प्रदेशजम्मू और कश्मीरझारखण्डकर्णाटककेरलमध्य प्रदेशमहाराष्ट्रमणिपुरमेघालयमिजोरमनागालैंडराष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्लीउड़ीसापुडुचेरीपंजाबराजस्थानसिक्किमतमिलनाडुतेलंगानात्रिपुराउत्तरांचलउत्तर प्रदेशपश्चिम बंगाल


वर्तमान में संघ राज्य क्षेत्रों से कितने सदस्य निर्वाचित होते हैं ?

उत्तर: संघ राज्य क्षेत्रों से कुल आठ सदस्य निर्वाचित होते हैं (3 दिल्ली से,1 पुडुचेरी से एबं 4 जम्मू और कश्मीर से)। अन्य संघ राज्य क्षेत्रों का राज्य सभा में प्रतिनिधित्व नहीं है।


राज्य सभा को स्थायी निकाय क्यों कहा जाता है?

उत्तर: राज्य सभा का विघटन नहीं होता है; इसके एक-तिहाई सदस्य प्रत्येक दो वर्षों में सेवा-निवृत्त हो जाते हैं।


राज्य सभा के सदस्य का कार्यकाल कितना होता है?

उत्तर: सामान्यत: एक सदस्य का निर्वाचन छ: वर्षों के लिए होता है; परन्तु किसी मध्यावधि चुनाव में निर्वाचित सदस्य सिर्फ शेष अवधि के लिए ही सेवारत रहता है।


राज्य सभा की बैठक कराने के लिए गणपूर्ति कितनी होती है ?

उत्तर: सभा के सदस्यों की कुल संख्या का दसवाँ भाग अर्थात् 25 सदस्य।


सभा में किस दल के अधिकतम सदस्य हैं?

उत्तर: भारतीय जनता पार्टी ।

राज्य सभा के अधिकारी


राज्य सभा के सभापति के रूप में कौन कार्य करता है ?

उत्तर: उप-राष्ट्रपति राज्य सभा के पदेन सभापति हैं।


भारत के उप-राष्ट्रपति का निर्वाचन कैसे होता है ?

उत्तर: उप-राष्ट्रपति का निर्वाचन संसद के दोनों सदनों से मिलकर बनने वाले निर्वाचक मंडल के सदस्यों द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा होता है।


भारत के उप-राष्ट्रपति का कार्यकाल कितना है ?

उत्तर: उप-राष्ट्रपति अपने पद ग्रहण की तारीख से पाँच वर्ष की अवधि तक पद धारण करते हैं।


इस समय राज्य सभा के सभापति कौन हैं ?

उत्तर: श्री एम. वेंकैया नायडु ।


उप-सभापति का निर्वाचन कैसे होता है?

उत्तर: उप-सभापति का निर्वाचन राज्य सभा के सदस्यों द्वारा राज्य सभा के सदस्यों में से किया जाता है।


उप-सभापति के उत्तरदायित्व क्या हैं?

उत्तर: जिस समय सभापति का पद रिक्त हो, अथवा किसी ऐसी अवधि के दौरान जब उप-राष्ट्रपति, राष्ट्रपति के रूप में कार्य कर रहे हों, अथवा राष्ट्रपति के कृत्यों का निर्वहन कर रहे हों, उस समय सभापति के पद के दायित्व उप-सभापति द्वारा निष्पादित किए जाते हैं।


इस समय राज्य सभा के उप-सभापति कौन हैं?

उत्तर: श्री हरिवंश।


सभापति और उप-सभापति, दोनों की अनुपस्थिति में राज्य सभा की कार्यवाही के दौरान कौन पीठासीन होता है?

उत्तर: राज्य सभा के प्रक्रिया तथा कार्य संचालन विषयक नियम के नियम 8 के अधीन राज्य सभा के सभापति उपसभाध्यक्ष के पैनल के लिए छ: सदस्यों को नामनिर्देशित करते हैं, जिनमें से एक सदस्य सभापति और उपसभापति दोनों की अनुपस्थिति में सभा की अध्यक्षता करता है। जब सभापति, उपसभापति और उपसभाध्यक्ष में से कोई भी अध्यक्षता करने के लिए उपस्थित नहीं होता है तब सभा किसी अन्य उपस्थित सदस्य के अध्यक्षता करने के बारे में निर्णय कर सकती है।


इस समय सभा के नेता कौन हैं?

उत्तर: श्री पीयूष गोयल


सभा के नेता के उत्तरदायित्व क्या हैं?

उत्तर: सभा के नेता सभा में सरकारी कार्य के कार्यक्रमों को तैयार करने में अहम भूमिका निभाते हैं। सामान्यतया, प्रधान मंत्री सभा के नेता के रूप में एक मंत्री, जो राज्य सभा के सदस्य होते हैं, को नामनिर्देशित करते हैं, परन्तु यदि प्रधान मंत्री स्वयं राज्य सभा का सदस्य है, तो वह सभा के नेता के रूप में कार्य करेंगे।


इस समय विपक्ष के नेता कौन हैं?

उत्तर: श्री मल्लिकार्जुन खरगे


इस समय राज्य सभा के महासचिव कौन हैं?

उत्तर: श्री पी. सी. मोदी


महासचिव की नियुक्ति कैसे की जाती है?

उत्तर: महासचिव की नियुक्ति राज्य सभा के सभापति द्वारा की जाती है और वह संघ सरकार के शीर्षस्थ सिविल सेवक, कैबिनेट सचिव के समकक्ष होता है।


महासचिव की भूमिका क्या है?

उत्तर: वह पीठासीन अधिकारियों को सलाह और विशेषज्ञ राय देते हुए सभा की कार्यवाही के संचालन में उनकी सहायता करते हैं। वह विधेयकों अथवा किसी अन्य मामले के बारे में लोक सभा से प्राप्त संदेशों की जानकारी देने के अलावा वाद-विवाद में भाग नहीं लेता। नियम के अधीन सभी सूचनाएं उसे संबोधित होती हैं। वह सभा के अभिलेखों का अभिरक्षक होता है। वह सभा की कार्यवाही का पूर्ण प्रतिवेदन तैयार करता है और दिन के लिए कार्यावलि भी जारी करता है। वह राज्य सभा सचिवालय का प्रशासनिक प्रमुख होता है।

राज्य सभा के सदस्य


राज्य सभा के सदस्यों का निर्वाचन कैसे होता है?

उत्तर: राज्य सभा के सदस्यों का निर्वाचन राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों की विधानसभा के निर्वाचित सदस्यों द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा किया जाता है।


राज्य सभा का सदस्य बनने के लिए क्या अपेक्षाएं होती हैं?

उत्तर: वह भारत का नागरिक और कम से कम तीस वर्ष की आयु का होना चाहिए तथा उसके पास ऐसी अर्हताएं होनी चाहिए जो संसद द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा विहित की जाएं।


क्या सदस्य को उस राज्य का अधिवासी होना चाहिए जहां से वह राज्य सभा के लिए निर्वाचित होता है?

उत्तर: नहीं। यह कतई आवश्यक नहीं है। वह भारत में किसी भी संसदीय निर्वाचन क्षेत्र का निर्वाचक हो सकता है।


क्या राज्य सभा में नाम-निर्देशित सदस्य होते हैं?

उत्तर: हां, भारत के राष्ट्रपति द्वारा ऐसे व्यक्तियों में से बारह सदस्य नाम-निर्देशित किए जाते हैं जिन्हें साहित्य, विज्ञान, कला और समाज सेवा में विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव हो।


क्या राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के निर्वाचन में नाम-निर्देशित सदस्य मतदान करते हैं?

उत्तर: जहां राज्य सभा के नाम-निर्देशित सदस्यों को भारत के उपराष्ट्रपति के निर्वाचन में मतदान करने का अधिकार है, परन्तु वे भारत के राष्ट्रपति के निर्वाचन में मतदान करने के हकदार नहीं हैं।


राज्य सभा की पहली नाम-निर्देशित महिला सदस्य कौन थी?

उत्तर: श्रीमती रुक्मिणी देवी अरुन्दले (1952-56 और 1956-62)


राज्य सभा के वर्तमान नाम-निर्देशित सदस्य कौन-कौन से हैं?

उत्तर: पांच (5) सदस्य । श्री रंजन गोगोई, श्री महेश जेठमलानी , डा. सोनल मानसिंह, श्री राम शकल और श्री राकेश सिन्हा ।


वर्तमान में राज्य सभा के कितने सदस्य मंत्री परिषद् में हैं?

उत्तर: बीस (20)। श्रीमती निर्मला सीतारमण, श्री एस. जयशंकर, श्री पीयूष गोयल, श्री धर्मेंद्र प्रधान, श्री नारायण राणे, श्री सर्बानंद सोनोवाल, श्री मुख्तार अब्बास नक़वी, श्री ज्योतिरादित्य एम. सिंधिया, श्री राम चन्द्र प्रसाद सिंह, श्री अश्वनी वैष्णव, श्री हरदीप सिंह पुरी, डा. मनसुख मांडविया, श्री भूपेन्द्र यादव, श्री परषोत्तम रूपाला, श्री रामदास अठावले, श्री राजीव चन्द्रशेखर, श्री वी. मुरलीधरन, श्री बी.एल. वर्मा, डा. भागवत कराड़ और डा. एल. मुरुगन।


क्या एक मंत्री जो लोक सभा का सदस्य है,राज्य सभा की कार्यवाही में भाग ले सकता है?

उत्तर: किसी ऐसे मंत्री को, जो लोक सभा का सदस्य है, राज्य सभा की कार्यवाही में बोलने और अन्यथा भाग लेने का अधिकार है, परन्तु उसे राज्य सभा में मतदान का अधिकार नहीं है।


वर्तमान में राज्य सभा में कितनी महिला सदस्य हैं और उनकी प्रतिशतता क्या है?

उत्तर: सत्ताईस (27), 11.73%


वर्तमान में राज्य सभा का सबसे युवा सदस्य कौन है?

उत्तर: श्री राघव चड्ढा


वर्तमान में राज्य सभा का सबसे बुजुर्ग सदस्य कौन है?

उत्तर: डा. मनमोहन सिंह।


वर्तमान में राज्य सभा में सबसे लंबे समय से सेवारत सदस्य कौन है?

उत्तर: डा. मनमोहन सिंह


राज्य सभा के वर्तमान सदस्यों में से किन के पास सबसे अधिक विधायी अनुभव है?

उत्तर: श्री एच डी. देवेगौड़ा ।

भूमिका और कार्य


राज्य सभा की विशेष शक्तियां क्या हैं?

उत्तर: राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करने वाले संघीय सदन के रूप में राज्य सभा को कतिपय विशेष शक्तियां प्राप्त हैं: इस प्रयोजनार्थ संकल्प को अंगीकार करते हुए राष्ट्रीय हित में राज्य सूची में दर्ज किसी मामले के संबंध में कानून बनाने हेतु संसद को सशक्त करना, अनुच्छेद 249 (ii) अखिल भारतीय सेवाओं का सृजन (अनुच्छेद 312) और (iii) घोषणाओं (अनुच्छेद 352 अथवा अनुच्छेद 356 अथवा अनुच्छेद 360 के तहत जारी) को अनुमोदित करना यदि लोक सभा विघटित हो जाती है अथवा लोक सभा का विघटन संसद द्वारा की गई घोषणा के अनुमोदन के लिए अनुमत अवधि के भीतर हो जाता है


लोक सभा और राज्य सभा के बीच किस प्रकार का विधायी संबंध है?

उत्तर: विधायी मामलों में, राज्य सभा के पास लगभग उतनी ही शक्तियाँ हैं जितनी लोक सभा के पास हैं, केवल धन विधेयकों के मामलों को छोड़ कर जिन में लोक सभा के पास अध्यारोही शक्तियाँ हैं। इस प्रकार के विधेयक राज्य सभा में पुर:स्थापित नहीं किए जा सकते और यदि उन्हें चौदह दिनों के भीतर लोक सभा को नहीं लौटाया जाता, तो उन्हें पारित मान लिया जाता है।


क्या दोनों सभाओं के बीच किसी प्रकार का गतिरोध संभव है?

उत्तर: हाँ। विधेयकों के मामलों में दोनों सभाओं के बीच असहमति उस स्थिति में उभर सकती है जब एक सभा द्वारा पारित किसी विधेयक को दूसरी सभा द्वारा अस्वीकृत कर दिया जाता है; अथवा दोनों सभायें विधेयक में किए जाने वाले संशोधनों के बारे में अंतिम रूप से असहमत हों अथवा दूसरी सभा द्वारा विधेयक को प्राप्त किए जाने की तारीख से छह महीने से अधिक की अवधि बीत चुकी हो और उस दौरान उसमें विधेयक पारित नहीं किया गया हो।


दोनों सभाओं के बीच गतिरोध के समाधान की प्रक्रिया क्या है?

उत्तर: इस प्रयोजन के लिए दोनो सभाओं की एक संयुक्त बैठक बुलाई जाती है। धन विधेयकों के मामले में गतिरोध का कोई प्रश्न नहीं है क्योंकि ऐसे मामलों में राज्य सभा के पास सीमित शक्तियाँ हैं। संविधान संशोधन विधेयक से संबंधित मामले में गतिरोध होने पर संयुक्त बैठक किए जाने का कोई उपबंध नहीं है।


लोक सभा और राज्य सभा की कितनी संयुक्त बैठकें अब तक आयोजित हुई हैं?

उत्तर: भारत के संसद के इतिहास में ऐसे तीन अवसर आए हैं जब संसद की दोनों सभाओं की उनके बीच विधेयकों को ले कर हुए गतिरोध के समाधान के लिए संयुक्त बैठकें बुलाई गई हैं अर्थात् दहेज प्रतिषेध विधेयक, 1959 पर 6 और 9 मई, 1961 को; बैंक सेवा आयोग (निरसन) विधेयक, 1977 पर 17 मई, 1978 को; और आतंकवाद निवारण विधेयक, 2002 पर 26 मार्च, 2002 को।


धन विधेयक के संबंध में राज्य सभा की शक्तियां क्या हैं?

उत्तर: किसी धन विधेयक को केवल लोक सभा में पुर:स्थापित किया जाता है और उस सभा द्वारा पारित कर देने के बाद इसे राज्य सभा को उसकी संस्वीकृति अथवा सिफारिश के लिए भेजा जाता है। राज्य सभा को धन विधेयक की प्राप्ति से चौदह दिनों के भीतर इसे लोक सभा को वापस करना पड़ता है। राज्य सभा प्रत्यक्षत: धन विधेयक को संशोधित नहीं कर सकती; यह विधेयक के लिए केवल संशोधनों की सिफारिश कर सकती है। लोक सभा राज्य सभा द्वारा की गई सभी अथवा किन्हीं सिफारिशों को स्वीकार अथवा अस्वीकार कर सकती है। यदि लोक सभा राज्य सभा द्वारा की गई किन्हीं सिफारिशों को स्वीकार कर लेती है, तब विधेयक को दोनों सभाओं द्वारा सिफारिश की गई और स्वीकार किए गए संशोधनों सहित पारित किया गया समझा जाता है। तथापि, यदि लोक सभा राज्य सभा की किसी सिफारिश को स्वीकार नहीं करती है, तब धन विधेयक को संसद की दोनों सभाओं द्वारा उस रूप में पारित किया गया समझा जाता है जिस रूप में इसे लोक सभा द्वारा राज्य सभा द्वारा की गई किसी सिफारिश के बिना पारित किया गया।

समितियाँ


राज्य सभा की संसदीय समितियों के विभिन्न वर्ग कौन-कौन से हैं?

उत्तर: राज्य सभा की संसदीय समितियां तदर्थ समितियों और स्थायी समितियों के रूप में वर्गीकृत की जा सकती हैं।


तदर्थ समितियां क्या हैं?

उत्तर: तदर्थ समितियाँ वे हैं जिनका गठन सभा द्वारा अथवा सभापति द्वारा अथवा दोनों सभाओं के पीठासीन अधिकारियों द्वारा संयुक्त रूप से विशिष्ट मामलों पर विचार करने और प्रतिवेदन देने के लिए किया जाता है। इन समितियों का कार्यकाल अपना काम पूरा करते ही समाप्त हो जाता है। इन समितियों को दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है:
(क) विधेयकों पर विचार करने और प्रतिवेदन देने के विशेष प्रस्ताव पर सभा(ओं) द्वारा गठित विधेयकों संबंधी प्रवर/संयुक्त समितियाँ; और
(ख) विशिष्ट विषयों की जांच करने और प्रतिवेदन देने के लिए समय-समय पर गठित समितियाँ।


स्थायी समितियाँ क्या हैं?

उत्तर: स्थायी समितियाँ वे स्थायी समितियाँ हैं जिनके सदस्य प्रतिवर्ष या समय-समय पर या तो सभा द्वारा निर्वाचित किए जाते हैं या सभापति द्वारा नाम-निर्देशित किए जाते हैं। ये हैं: कार्य मंत्रणा समिति, सामान्य प्रयोजन समिति, सरकारी आश्वासनों संबंधी समिति, आवास समिति, याचिका समिति, अधीनस्थ विधान संबंधी समिति, सभा पटल पर रखे गए पत्रों संबंधी समिति, विशेषाधिकार समिति, नियम समिति, आचार समिति, राज्य सभा के सदस्यों को कंप्यूटर का प्रावधान करने संबंधी समिति, एमपीलैड संबंधी समिति और विभाग संबंधित स्थायी समितियाँ।


विभाग-संबंधित स्थायी समितियाँ क्या हैं?

उत्तर: संसद के प्रति सरकार को और अधिक उत्तरदायी बनाने के प्रयोजन से केन्द्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों/विभागों को सौंपे गए कार्यों की संवीक्षा करने के लिए वर्ष 1993 में विभाग-संबंधित स्थायी समितियां गठित की गईं।


कितनी विभाग-संबंधित स्थायी समितियां गठित की गई हैं?

उत्तर: चौबीस विभाग-संबंधित स्थायी समितियां गठित की गई हैं जिनके इकतीस से ज्यादा सदस्य नहीं हैं, इनमें से इक्कीस सदस्य लोकसभाध्यक्ष द्वारा और दस सदस्य राज्य सभा के सभापति द्वारा नाम-निर्देशित किए जाते हैं।


विभाग-संबंधित स्थायी समितियों के मुख्य कार्य क्या हैं?

उत्तर: उत्तर:इन समितियों के निम्नलिखित कार्य हैं:
(क) संबंधित मंत्रालयों/विभागों की अनुदान मांगों पर विचार करना और उस पर प्रतिवेदन देना;
(ख) संबंधित मंत्रालयों/विभागों से संबंधित विधेयकों, जिन्हें समिति को भेजा गया है, की जांच करना और उन पर प्रतिवेदन देना;
(ग) मंत्रालयों/विभागों के वार्षिक प्रतिवेदनों पर विचार करना और उन पर प्रतिवेदन देना; और
(घ) राष्ट्रीय मूलभूत दीर्घकालिक नीतिगत दस्तावेजों पर विचार करना और उन पर प्रतिवेदन देना ।


राज्य सभा और लोक सभा के अधिकार क्षेत्र में कितनी विभाग-संबंधित स्थायी समितियां हैं?

उत्तर: आठ विभाग-संबंधित स्थायी समितियां राज्य सभा के सभापति के नियंत्रण और निदेश के अधीन कार्य करती हैं जबकि ऐसी सोलह समितियां लोकसभाध्यक्ष के नियंत्रण और निदेश के अधीन कार्य करती हैं।


राज्य सभा के अधीन कौन-कौन सी विभाग-संबंधित स्थायी समितियां हैं और उनके कार्यक्षेत्र के अधीन कौन-कौन मंत्रालय/विभाग हैं?

उत्तर:














क्र. सं.समिति का नाममंत्रालय/विभाग1.वाणिज्य संबंधी समितिवाणिज्य और उद्योग2.गृह कार्य संबंधी समिति(1) गृह
(2) उत्तर-पूर्वी क्षेत्र विकास
3.शिक्षा, महिला, बाल, युवा और खेल संबंधी समिति(1) शिक्षा
(2) युवक कार्यक्रम और खेल
(3) महिला एवं बाल विकास
4.उद्योग संबंधी समिति(1) भारी उद्योग
(2) सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई)
5.विज्ञान और प्रौद्योगिकी, पर्यावरण और वन संबंधी समिति

(1) विज्ञान और प्रौद्योगिकी
(2) अन्तरिक्ष
(3) परमाणु ऊर्जा
(4)पर्यावरण और वन
(5)पृथ्वी विज्ञान


6.परिवहन, पर्यटन और संस्कृति संबंधी समिति(1) नागर विमानन

(2)सड़क परिवहन और राजमार्ग
(3) पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग

(4) संस्कृति
(5)पर्यटन

7.कार्मिक, लोक शिकायत, विधि और न्याय संबंधी समिति(1)विधि और न्याय
(2)कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन,8.स्वास्थ्य और परिवार कल्याण संबंधी समितिस्वास्थ्य और परिवार कल्याण
(2) आयुष


राज्य सभा की समितियों की अध्यक्षता से संबंधित ब्यौरा क्या है?

उत्तर: राज्य सभा के सभापति कार्य मंत्रणा समिति, सामान्य प्रयोजन समिति और नियम समिति के अध्यक्ष हैं। उपसभापति विशेषाधिकार समिति के अध्यक्ष हैं। अन्य स्थायी समितियों यथा याचिका समिति, सरकारी आश्वासनों संबंधी समिति, अधीनस्थ विधान संबंधी समिति, सभा पटल पर रखे गए पत्रों संबंधी समिति और आवास समिति के मामले में, सभा में संख्या के अनुपात में सत्तारूढ़ दल और विपक्षी दल दोनों का साझा सभापतित्व होता है। राज्य सभा के सभापति संबंधित दलों/समूहों के नेताओं के साथ परामर्श कर समितियों के अध्यक्ष की नियुक्ति करते हैं। विपक्षी दलों को आवंटित समितियों का सभापतित्व उनमें आपस में बारी-बारी से हो सकता है।


आचार समिति के क्या कार्य हैं?

उत्तर: राज्य सभा के प्रक्रिया और कार्य-संचालन विषयक नियमों के नियम 290 के अन्तर्गत आचार समिति के निम्नलिखित कार्य हैं:-
1. सदस्यों के सदाचार और नैतिक आचरण पर ध्यान रखना,
2. सदस्यों के लिए आचार संहिता तैयार करना और राज्य सभा को प्रतिवेदन के रूप में आचार संहिता में समय-समय पर संशोधन या परिवर्तन करने के लिए सुझाव देना;
3. सदस्यों के कथित आचरण और अन्य दुराचरण से संबंधित मामलों अथवा सदस्यों द्वारा आचार संहिता का उल्लंघन किए जाने की जांच करना;
4. स्वप्रेरण से अथवा विशिष्ट अनुरोध प्राप्त होने पर समय-समय पर आचार विषयक मानदण्डों से संबंधित प्रश्नों पर सदस्यों को सलाह देना।


आचार समिति कौन-कौन से प्रतिबंध लगा सकती है?

उत्तर: समिति निम्नलिखित प्रतिबंधों में से एक या एकाधिक प्रतिबंधों को लगाए जाने की सिफारिश कर सकती है:
(क) निंदा;
(ख) फटकार;
(ग) किसी विशेष अवधि के लिए सभा से निलंबन; और
(घ) समिति द्वारा निर्धारित कोई अन्य प्रतिबंध जो उचित समळाा जाए।


क्या आचार समिति द्वारा सदस्यों के लिए कोई ऐसी आचार संहिता परिगणित की गई है जो राज्य सभा द्वारा गृहीत की गई हो?

उत्तर: हाँ, आचार संहिता निम्नानुसार है: राज्य सभा के सदस्यों को जनता द्वारा उनमें व्यक्त किए गए विश्वास को बनाए रखने की अपनी जिम्मेदारी को स्वीकार करना चाहिए और जन सामान्य के कल्याण के लिए उनको दिए गए अधिदेश का निर्वहन करने हेतु कर्मठतापूर्वक कार्य करना चाहिए। उन्हें संविधान, कानून, संसदीय संस्थाओं और सबसे बढ़कर आम जनता के प्रति गहरा सम्मान रखना चाहिए। संविधान की प्रस्तावना में निहित आदर्शों को वास्तविकता में बदलने के लिए उन्हें निरंतर प्रयास करना चाहिए। निम्नलिखित सिद्धान्तों को उन्हें अपने व्यवहार में अपनाना चाहिए:
1. सदस्यों को कुछ भी ऐसा नहीं करना चाहिए जिससे संसद की मान-मर्यादा को ठेस पहुँचे और उनकी विश्वसनीयता पर आंच आए।
2. सदस्यों को लोगों के सामान्य कल्याण के लिए, संसद सदस्य के रूप में अपनी स्थिति का अवश्य ही उपयोग करना चाहिए।
3. यदि अपने संव्यवहार के दौरान सदस्य यह देखते हैं कि उनके निजी हितों और लोगों द्वारा उनमें व्यक्त विश्वास के बीच कोई टकराव है तो उन्हें ऐसे टकराव का समाधान इस रूप में करना चाहिए कि उनके निजी हित उनके लोक-कर्त्तव्य के सामने गौण हो जाएं।
4. सदस्यों को सदैव यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके निजी वित्तीय हित और उनके आसन्न पारिवारिक सदस्यों के निजी वित्तीय हितों का लोक हित के साथ टकराव न हो और यदि ऐसा कोई टकराव उत्पन्न होता है तो उन्हें उसका समाधान इस रूप में करना चाहिए कि लोक हित पर कोई आँच न आए।
5. सदस्यों को सभा में उनके द्वारा दिए गए मत के लिए, किसी विधेयक के पुर:स्थापन के लिए, किसी संकल्प का प्रस्ताव प्रस्तुत करने या उसे प्रस्तुत करने से हटने के लिए, कोई प्रश्न पूछने या नहीं पूछने के लिए या सभा अथवा संसदीय समिति की विचार-विमर्श में भाग लेने के लिए किसी शुल्क, पारिश्रमिक या लाभ की न तो आशा करनी चाहिए और न ही उसे स्वीकार करना चाहिए।
6. सदस्यों को ऐसा कोई उपहार स्वीकार नहीं करना चाहिए जो उनके सरकारी कर्तव्यों के ईमानदारी एवं निष्पक्षता से निर्वहन में आड़े आता हो। तथापि, वे प्रासंगिक उपहार अथवा सस्ते स्मृति चिह्न तथा पारम्परिक मेजबानी स्वीकार कर सकते हैं।
7. सरकारी पदों पर आसीन सदस्यों को जन संसाधनों का इस प्रकार प्रयोग करना चाहिए कि उससे जनता का कल्याण हो।
8. यदि संसद सदस्य अथवा संसदीय समितियों के सदस्य की हैसियत से सदस्यों के पास गोपनीय सूचना हो तो अपने निजी हितों की पूर्ति के लिए उन्हें ऐसी सूचना को प्रकट नहीं करना चाहिए।
9. सदस्यों को ऐसे किसी व्यक्ति और ऐसे संस्थानों को, जिनके बारे में उनके पास व्यक्तिगत रूप से जानकारी न हो और जो तथ्यों पर आधारित न हो, प्रमाण पत्र देने से बचना चाहिए।
10. सदस्यों को किसी ऐसी बात का तुरंत समर्थन नहीं करना चाहिए जिसके बारे में उन्हें कोई भी जानकारी न हो या थोड़ी जानकारी हो।
11. सदस्यों को उन्हें प्रदत्त सुविधाओं तथा प्रसुविधाओं का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए।
12. सदस्यों को किसी भी धर्म का अपमान नहीं करना चाहिए और उन्हें धर्मनिरपेक्ष मूल्यों के संवर्धन के लिए काम करना चाहिए।
13. सदस्यों को संविधान के भाग IV ए में दिए गए मूल कर्त्तव्यों को सर्वोपरि समळाना चाहिए।
14. सदस्यों से सार्वजनिक जीवन में नैतिकता, मर्यादा, शालीनता और मूल्यों के उच्च मानदंडों को बनाए रखने की अपेक्षा है।


राज्य सभा (आस्तियों तथा देयताओं की घोषणा) नियम, 2004 के अनुपालन में, सदस्यों द्वारा राज्य सभा के सभापति को कौन-सी सूचना दी जानी आवश्यक है?

उत्तर: राज्य सभा (आस्तियों तथा देयताओं की घोषणा) नियम, 2004 के नियम 3 के अन्तर्गत, राज्य सभा के प्रत्येक निर्वाचित सदस्य से अपने शपथ/प्रतिज्ञा लेने की तारीख से 20 दिन के भीतर राज्य सभा के सभापति को निम्नलिखित सूचना देनी अपेक्षित है:-
जंगम और स्थावर संपत्ति जिसका वह, उसका पति/उसी पत्नी और उस पर आश्रित बच्चे संयुक्त अथवा पृथक रूप से स्वामी अथवा लाभभोगी हों ;
किसी सरकारी वित्तीय संस्था के प्रति उसकी देयताएं; और
केन्द्र सरकार अथवा राज्य सरकारों के प्रति उसकी देयताएं।


आचार समिति द्वारा चिह्नित आर्थिक हित तथा उनके संघटक कौन से हैं, जिनके संबंध में सदस्यों द्वारा सूचना दी जानी होती है?

उत्तर:

उत्तर:आचार समिति ने निम्नलिखित पाँच अर्थिक हितों तथा उनके संघटकों की पहचान की है जिनके संबंध में राज्य सभा के प्रक्रिया तथा कार्य-संचालन विषयक, नियमों के नियम 293 के उप-नियम (1) के अन्तर्गत 'सदस्यों के हित संबंधी रजिस्टर' में दर्ज किए जाने के लिए सदस्यों द्वारा सूचना दी जानी होती है:-

    • लाभप्रद निदेशकत्व
    • कंपनी का नाम और पता
    • कंपनी के कारोबार का स्वरूप
    • वेतन/शुल्क/भत्ते/लाभ अथवा कोई अन्य प्राप्तियां जो कर योग्य (प्रति वर्ष) हैं।
  1. सतत् लाभप्रद कार्यकलाप
    • स्थापना का नाम तथा पता
    • कारोबार का स्वरूप
    • धारित पद
    • प्राप्त लाभ की राशि (प्रति वर्ष)
  2. नियंत्रक प्रकृति की शेयरधारिता
    • कंपनी का नाम और पता
    • कंपनी के कारोबार का स्वरूप
    • धारित शेयरों का प्रतिशत
  3. प्रदत्त परामर्श
    • परामर्श का स्वरूप
    • उस संगठन के कारोबार संबंधी कार्यकलाप जहां परामर्शदाता के रूप में कार्यरत है
    • परामर्श से प्राप्त लाभ का कुल मूल्य
  4. वृत्तिक कार्य
    • विवरण
    • उससे अर्जित शुल्क/प्रतिफल (प्रति वर्ष)

क्या देश से बाहर सदस्यों के आर्थिक हित इसके क्षेत्राधिकार के अन्तर्गत आते हैं?

उत्तर: हाँ, उक्त नियम के अन्तर्गत, सदस्य जो सूचना देते हैं, वह उनके आर्थिक हितों के संबंध में होनी चाहिए, चाहे वे देश के भीतर या बाहर से संबंधित हों।

विधान


विधेयक क्या है?

उत्तर: विधेयक सभा के समक्ष उसके अनुमोदनार्थ लाया गया एक विधायी प्रस्ताव है।


विधेयक कितने प्रकार के होते हैं?

उत्तर: मंत्रियों द्वारा लाए गए विधेयक सरकारी विधेयक कहलाते हैं और ऐसे सदस्यों द्वारा, जो मंत्री नहीं हैं, पुर:स्थापित विधेयक गैर-सरकारी विधेयक कहलाते हैं। विधेयकों की विषय-वस्तु के आधार पर विधेयकों को मोटे तौर पर निम्निलिखित वर्गों में भी विभाजित किया जा सकता है:
(क) मूल विधेयक, जो नये प्रस्तावों से संबंधित होते हैं,
(ख) संशोधनकारी विधेयक, जिनका आशय मौजूदा अधिनियमों का संशोधन करना होता है,
(ग) समेकन विधेयक, जिनका आशय किसी खास विषय पर विद्यमान कानूनों का समेकन करना होता है,
(घ) किसी निर्दिष्ट तिथि को समाप्त हो रहे कानूनों को जारी रखने के लिए विधेयक
(ड़) निरसनकारी विधेयक
(च) अध्यादेशों को प्रतिस्थापित करने के लिए विधेयक
(छ) धन और वित्त विधेयक तथा
(ज) संविधान संशोधन विधेयक।


विधेयक और अधिनियम में क्या अंतर है?

उत्तर: संसद की दोनो सभाओं द्वारा पारित कोई विधेयक राष्ट्रपति द्वारा उस पर अपनी अनुमति दिए जाने के पश्चात् ही अधिनियम बनता है।


किसी विधेयक के पारण की प्रक्रिया के विभिन्न चरण क्या हैं?

उत्तर: किसी विधेयक को उस पर विचार किए जाने के दौरान संसद की प्रत्येक सभा में तीन चरणों से होकर गुजरना पड़ता है। प्रथम चरण में विधेयक को पुर:स्थापित किया जाता है जो किसी मंत्री या किसी सदस्य द्वारा उपस्थित किए गए प्रस्ताव पर किया जाता है।
द्वितीय चरण में, निम्नलिखित में से कोई भी प्रस्ताव उपस्थित किया जा सकता है कि विधेयक पर विचार किया जाए; अथवा कि इसे राज्य सभा की प्रवर समिति को सौंपा जाए; अथवा कि इसे दोनों सभाओं की संयुक्त समिति को सौंपा जाए; अथवा इस पर राय जानने के लिए इसे परिचालित किया जाए। तत्पश्चात्, विधेयक पर पुर:स्थापित रूप में अथवा प्रवर/संयुक्त समिति द्वारा प्रतिवेदित रूप में खंडश: विचार किया जाता है।
तृतीय चरण इस प्रस्ताव पर चर्चा तक सीमित होता है कि विधेयक को पारित किया जाए और विधेयक मतदान द्वारा अथवा ध्वनि मत द्वारा पारित अस्वीकृत किया जाता है, अथवा धन विधेयक के मामले में, लोक सभा को लौटा दिया जाता है।


क्या सभापति को मतदान करने का अधिकार है?

उत्तर: पक्ष-विपक्ष को समान मत मिलने की स्थिति में सभापति को निर्णायक मत देने का अधिकार है।


राज्य सभा में मतदान करने का तरीका क्या है?

उत्तर: राज्य सभा में मतदान के लिए सामान्यत: चार तरीके अपनाए जाते हैं: ध्वनि मत, मतों की गिनती, स्वचालित मत रिकार्डर द्वारा मत विभाजन और लॉबियों में जाकर मत विभाजन।


राज्य सभा के कार्य पर लोक सभा के विघटन के क्या प्रभाव पड़ते हैं?

उत्तर: क. राज्य सभा में उद्भूत होने वाले विधेयक, जो इस सभा में अभी भी लंबित हैं, लोक सभा के विघटन पर व्यपगत नहीं होते।
ख. राज्य सभा में उद्भूत होने वाले विधेयक, जो इस सभा द्वारा पारित कर दिए गए हैं और लोक सभा को भेजे गए हैं और वहां लंबित हैं, लोक सभा के विघटन पर व्यपगत हो जाते हैं।
ग. लोक सभा में उद्भूत होने वाले विधेयक, जो इस सभा द्वारा पारित कर दिए गए हैं और राज्य सभा को भेजे गए हैं और वहां लोक सभा के विघटन की तारीख तक अभी भी लंबित हैं, व्यपगत हो जाते हैं।
घ. राज्य सभा में उद्भूत होने वाले विधेयक जो लोकसभा द्वारा संशोधनों के साथ राज्य सभा को लौटा दिए गए हैं और लोक सभा के विघटन की तारीख तक वहां अभी भी लंबित हैं, व्यपगत हो जाते हैं।
ड. जिस विधेयक पर सभाओं में असहमति है और राष्ट्रपति ने विघटन से पहले विधेयक पर विचार करने के लिए सभाओं की संयुक्त बैठक आहूत करने का अपना आशय अधिसूचित कर दिया है, वह लोक सभा के विघटन पर व्यपगत नहीं होता।
च. संसद की दोनों सभाओं द्वारा पारित और अनुमति के लिए राष्ट्रपति के पास भेजा गया विधेयक लोक सभा के विघटन पर व्यपगत नहीं होता।
छ. सभाओं के पुनर्विचार के लिए राष्ट्रपति द्वारा राज्य सभा को लौटाया गया विधेयक तब व्यपगत नहीं होता जब विधेयक पर सभाओं द्वारा विचार किए गए बिना लोक सभा का विघटन हो जाता है।

लोक हित के मामलों को उठाने संबंधी प्रक्रिया


ध्यान दिलाना क्या होता है?

उत्तर: राज्य सभा के प्रक्रिया और कार्य संचालन विषयक नियमों के नियम 180 में यह उपबंध है कि कोई सदस्य सभापति की पूर्व अनुज्ञा से अविलम्बनीय लोक महत्व के किसी विषय पर मंत्री का ध्यान दिला सकेगा और संक्षिप्त वक्तव्य दे सकेगा या बाद के किसी समय या तिथि को वक्तव्य देने के लिए समय मांग सकेगा। 'ध्यान दिलाना' संसदीय प्रक्रिया में एक नई भारतीय पहल है।


विशेष उल्लेख क्या होता है?

उत्तर: नियम 180क-180ड. के अधीन कोई सदस्य सभा में लोक महत्व के किसी विषय का उल्लेख कर सकता है, उसे 250 से अनधिक शब्दों में उल्लेख किए जाने वाले विषय के पाठ सहित लिखित रूप में एक सूचना देनी होती है। किसी भी सदस्य को एक सप्ताह के दौरान एक से अधिक विशेष उल्लेख करने की अनुमति नहीं होती।


प्रस्ताव क्या होता हैं?

उत्तर: राज्य सभा के प्रक्रिया तथा कार्य संचालन विषयक नियमों के नियम 167-174 में यह उपबंध है कि सभापति की सहमति से किए गए प्रस्ताव के बिना सामान्य लोकहित के विषय पर कोई चर्चा नहीं होगी। संसदीय शब्दावली में 'प्रस्ताव' शब्द का अर्थ है-ऐसा कोई प्रस्ताव जो सभा का निर्णय जानने के उद्देश्य से प्रस्तुत किया जाता है। इसे ऐसी अभिव्यक्तियों के साथ तैयार किया जाता है कि, यदि यह पारित हो जाता है, तो यह सभा की इच्छा व्यक्त करने का अभिप्राय रखेगा।


प्रस्ताव कितने प्रकार के होते हैं?

उत्तर: प्रस्तावों को मूल या सहायक प्रस्तावों के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है। मूल प्रस्ताव किसी ऐसे विषय के संदर्भ में उपस्थित किया गया एक स्वत: पूर्ण प्रस्ताव होता है जो प्रस्तावकर्ता प्रस्तुत करना चाहता है। सहायक प्रस्ताव, जैसा कि इसका नाम इंगित करता है, मूल प्रस्ताव से संबंधित होता है।


अनियत दिन वाला प्रस्ताव क्या होता हैं?

उत्तर: यदि सभापति किसी प्रस्ताव की सूचना को गृहीत करता है और ऐसे प्रस्ताव पर चर्चा के लिए कोई तारीख नियत नहीं है, तो इसे तत्काल 'अनियत दिन वाले प्रस्ताव' शीर्षक के अधीन समाचार भाग-II में अधिसूचित किया जाता है। सभा के समक्ष कार्य की स्थिति पर विचार करने के उपरांत सभा के नेता के परामर्श से सभापति द्वारा ऐसे प्रस्तावों पर चर्चा के लिए तारीख और समय आबंटित किया जाता है।


संकल्प क्या होता है?

उत्तर: सभा अपने संकल्पों द्वारा अपनी राय और प्रयोजनों की घोषणा करती है। प्रत्येक प्रश्न, सभा द्वारा सहमति दिए जाने पर, एक संकल्प या आदेश का रूप धारण कर लेता है। संकल्पों को गैर सरकारी सदस्यों के संकल्प (जो किसी मंत्री द्वारा नहीं बल्कि सदस्य द्वारा उपस्थित किए जाते हैं), सरकारी संकल्प (जो मंत्रियों द्वारा उपस्थित किए जाते हैं) और सांविधिक संकल्प (जो संविधान अथवा संसद के किसी अधिनियम में अंतर्विष्ट किसी उपबंध के अनुसरण में उपस्थित किए जाते हैं) के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है ।


राष्ट्रपति का अभिभाषण क्या होता है?

उत्तर: भारत का राष्ट्रपति नई लोक सभा के गठन के पश्चात् पहले सत्र के आरंभ में तथा प्रत्येक वर्ष के प्रथम सत्र के प्रारंभ में संसद की दोनों सभाओं की संयुक्त बैठक को संबोधित करता है। दोनों सभाओं को संबोधित राष्ट्रपति के अभिभाषण में उल्लिखित मामलों पर किसी सदस्य द्वारा उपस्थित किए गए और किसी अन्य सदस्य द्वारा समर्थित धन्यवाद प्रस्ताव में चर्चा की जाती है।


औचित्य का प्रश्न क्या होता है?

उत्तर: औचित्य का प्रश्न प्रक्रिया विषयक नियमों अथवा संविधान के ऐसे अनुच्छेदों की, जो सभा के कार्य का विनियमन करते हैं, व्याख्या या प्रवर्तन से संबंधित प्रश्न होता है और यह सभापीठ के निर्णय हेतु प्रस्तुत किया जाता है। राज्य सभा में प्रक्रिया और कार्य संचालन विषयक नियमों का नियम 258 किसी सदस्य को औचित्य का प्रश्न उठाने के लिए सक्षम बनाने का उपबंध करता है। कोई भी सदस्य किसी भी समय सभापति के निर्णय के लिए औचित्य का प्रश्न प्रस्तुत कर सकता है, परंतु ऐसा करते हुए, वह स्वयं को प्रश्न को कहने तक सीमित रखेगा। सभापति उठाए जाने वाले औचित्य के सभी प्रश्नों के संबंध में निर्णय लेगा, और उसका निर्णय अंतिम होगा।


विलम्बकारी प्रस्ताव क्या होता है?

उत्तर: राज्य सभा के प्रक्रिया तथा कार्य-संचालन विषयक नियमों के नियम 230 में विलम्बकारी प्रस्ताव की व्याख्या की गई है। किसी प्रस्ताव के किए जाने के बाद किसी समय कोई सदस्य यह प्रस्ताव उपस्थित कर सकता है कि प्रस्ताव पर वाद-विवाद को स्थगित कर दिया जाए। यदि सभापति की राय हो कि वाद-विवाद के स्थगन का कोई प्रस्ताव राज्य सभा के नियमों का दुरुपयोग है तो वह उस पर या तो सभापीठ से तुरंत मत ले सकता है या प्रस्ताव को उपस्थित किए जाने से इंकार कर सकता है।


अल्पकालिक चर्चा क्या होती है?

उत्तर: राज्य सभा के प्रक्रिया तथा कार्य-संचालन विषयक नियमों के नियम 176-179 में अल्पकालिक चर्चा की व्याख्या की गई है। यदि सभापति का, सूचना देने वाले सदस्य से और मंत्री से ऐसी जानकारी मांगने के बाद जिसे वह आवश्यक समळो, समाधान हो जाए कि विषय अविलम्बनीय है और राज्य सभा में जल्दी ही किसी तिथि को उठाए जाने के लिए पर्याप्त लोक महत्व का है तो वह सूचना गृहीत कर सकेगा और राज्य सभा के नेता के परामर्श से ऐसी तिथि निश्चित कर सकेगा जब ऐसा विषय चर्चा के लिए लिया जा सके और चर्चा के लिए उतने समय की अनुमति दे सकेगा जितना कि वह परिस्थितियों में उचित समळो और जो ढाई घंटे से अधिक न हो।


राज्य सभा में कोई सदस्य कोई प्रश्न किस प्रकार पूछता है?

उत्तर: उसे जिस तारीख को प्रश्न पूछना है, उससे कम से कम 15 दिन पहले विहित प्रपत्र में इसकी सूचना देनी होती है।


तारांकित और अतारांकित प्रश्न क्या है?

उत्तर: ऐसा प्रश्न जिसके लिए किसी सदस्य द्वारा मौखिक उत्तर दिए जाने की अपेक्षा की गई हो, उसे तारे का चिह्न लगाकर अलग से दर्शाया जाता है और उसे तारांकित प्रश्न कहा जाता है। ऐसा प्रश्न जिसमें तारे का चिह्न नहीं लगाया गया हो उसे अतारांकित प्रश्न कहा जाता हैं और उसे लिखित उत्तरों के लिए स्वीकार किया जाता है।


प्रश्नों की ग्राह्यता का निर्णय कौन करता है?

उत्तर: राज्य सभा का सभापति निर्णय करता है कि कोई प्रश्न या उसका कोई भाग ग्राह्य है अथवा नहीं। यदि उसकी राय में यह प्रश्न करने के अधिकार का दुरुपयोग है या सभा की प्रक्रिया को बाधित अथवा प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर सकता है अथवा राज्य सभा के प्रक्रिया और कार्य संचालन विषयक नियमावली के नियमों का उल्लंघन है तो वह किसी प्रश्न या उसके किसी भाग को अस्वीकृत कर सकता है। सभापति यह भी निदेश दे सकता है कि किसी प्रश्न को किसी सदस्य द्वारा अपनी सूचना में उल्लिखित तिथि के बाद की तिथि के लिए उत्तर हेतु प्रश्नों की सूची में शामिल किया जाए, यदि उसकी राय में उस प्रश्न की ग्राह्यता के संबंध में निर्णय के लिए अधिक अवधि आवश्यक है।


किसी दिन विशेष के लिए ग्राह्य प्रश्नों की कुल संख्या की सीमा क्या है?

उत्तर: किसी एक दिन के लिए उत्तरों हेतु गृहीत किए जाने वाले प्रश्नों की कुल संख्या 175 होगी जिनमें से 15 मौखिक उत्तरों के लिए और 160 लिखित उत्तरों के लिए होंगे।

संसदीय विशेषाधिकार


संसदीय विशेषाधिकार क्या होते है?

उत्तर: संसद की दोनों सभाओं को सामूहिक रूप से और संसद सदस्यों को व्यक्तिगत रूप से, कतिपय शक्तियां और विशेषाधिकार प्राप्त हैं जिनके बिना वे अपने कर्तव्यों का निर्वहन कुशलतापूर्वक और प्रभावपूर्ण ढंग से नहीं कर सकते। संविधान के अनुच्छेद 105 में संसद सदस्यों की इन शक्तियों, विशेषाधिकारों और उन्मुक्तियों का उल्लेख है।


क्या भारत में संसदीय विशेषाधिकारों को कूटबद्ध किया गया है?

उत्तर: प्रत्येक सभा और इसके सदस्यों और उनकी समितियों को प्राप्त शक्तियों, विशेषाधिकारों और उन्मुक्तियों को परिभाषित करने के लिए संसद (और राज्य विधानमण्डलों) द्वारा अब तक कोई विधि अधिनियमित नहीं की गई है।


'विशेषाधिकार भंग' और 'सभा की अवमानना' में क्या अंतर है?

उत्तर: जब व्यक्तिगत रूप से संसद सदस्यों की अथवा सामुहिक रूप से सभा के किसी विशेषाधिकार का किसी व्यक्ति अथवा प्राधिकरण द्वारा अनादर किया जाता है अथवा उसका अतिक्रमण किया जाता है तो इस अपराध को 'विशेषाधिकार भंग' कहते हैं। सभाओं अथवा इनके सदस्यों के समुचित कर्तव्य निर्वहन में उनके सामने उत्पन्न की गई कोई बाधा अथवा अड़चन अथवा ऐसे परिणाम देने की प्रवृत्ति 'सभा की अवमानना' है।


विशेषाधिकार के प्रश्न संबंधी प्रक्रिया क्या है?

उत्तर: विशेषाधिकार के प्रश्न संबंधी प्रक्रिया राज्य सभा के प्रक्रिया तथा कार्य-संचालन विषयक नियमों के नियम 187-203 में निर्धारित की गई है। विशेषाधिकार के प्रश्न पर विचार और निर्णय या तो स्वयं सभा द्वारा किया जाता है अथवा सभापति इसे जांच, संवीक्षा और प्रतिवेदन के लिए विशेषाधिकार समिति को सौंप सकता है।

मीडिया और राज्य सभा


क्या राज्य सभा की कार्यवाही का टेलीविजन पर प्रसारण होता है?

उत्तर: हाँ, राज्य सभा के अपने ही चैनल राज्य सभा टेलीविजन (आर.एस.टी.वी.) के जरिए सभा की कार्यवाही का प्रसारण किया जाता है।

सूचना का अधिकार और राज्य सभा सचिवालय


क्या राज्य सभा सचिवालय का कार्यकरण सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के दायरे में आता है?

उत्तर: हां, राज्य सभा सचिवालय का कार्यकरण सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के दायरे में आता है। सूचना चाहने वाले किसी भी व्यक्ति को सुविधाजनक रूप से सूचना प्रदान करते हेतु राज्य सभा के सभापति ने इस अधिनियम की धारा 28 के अनुसार सचिवालय हेतु नियम बनाए हैं।


इस संबंध में किन व्यक्तियों से संपर्क किया जा सकता है और उनके विवरण क्या हैं?

उत्तर: सूचना के अधिकार अधिनियम के अधीन सूचना पाने के संबंध में जिन अधिकारियों से संपर्क किया जा सकता है, उनका ब्यौरा निम्नानुसार है:-
श्री संजीव चन्द्र
निदेशक (सभा पटल पर रखे गए पत्रों संबंधी समिति) तथा केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी
013, ए-ब्लॉक, संसदीय सौध विस्तार, नई दिल्ली-110001
दूरभाष: 011-23035448
श्री अरुण शर्मा
संयुक्‍त सचिव (सी.ओ.एस.एल.) और (राज्य सभा सचिवालय में अपीलीय प्राधिकारी)
125, प्रथम तल, संसदीय सौध, नई दिल्ली-110001
दूरभाष सं. 011-23034018,23793243

राज्य सभा से संपर्क


राज्य सभा के सदस्यों के संबंध में हमें और जानकारी कहां से प्राप्त हो सकती है?

उत्तर: राज्य सभा वेबसाइट : //rajyasabha.nic.in में सदस्यों के बारे में एक खण्ड है जिसमें सदस्यों के संबंध में जानकारी प्राप्त करने के लिए एक सर्च फॉर्म है।


हम राज्य सभा के किसी सदस्य से संपर्क कैसे कर सकते हैं?

उत्तर: राज्य सभा वेबसाइट: //rajyasabha.nic.in में राज्य सभा के सदस्यों के पते और ई-मेल की एक सूची दी गई है।


राज्य सभा के सत्रों के संबंध में हमें जानकारी कहां से प्राप्त हो सकती है?

उत्तर: राज्य सभा वेबसाइट: //rajyasabha.nic.in में विधान के बारे में एक खण्ड है जिसमें सत्र संबंधी जानकारी उपलब्ध है।


क्या राज्य सभा की वेबसाइट हिन्दी में उपलब्ध है?

उत्तर: हां, इसका पता है-//rajyasabhahindi.nic.in


राज्य सभा के वेबसाइट का अनुरक्षण कौन करता है और हम कोई फीडबैक कैसे दे सकते हैं?

उत्तर: राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केन्द्र (एन आई सी), संसद सूचना प्रभाग राज्य सभा सचिवालय के लिए राज्य सभा वेबसाइट का अभिकल्पन और अनुरक्षण करता है। इस वेबसाइट में वेबसाइट संबंधी फीडबैक भेजने की सुविधा उपलब्ध है।

भारत के मंत्री परिषद का गठन कैसे होता है?

अनुच्छेद 74: राष्ट्रपति को सहायता और सलाह देने के लिए मंत्रिपरिषद का गठन।.
अनुच्छेद 75: राष्ट्रपति के द्वारा प्रधानमंत्री की नियुक्ति की जाएगी और प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करेंगें।.
अनुच्छेद 77: भारत सरकार के कार्यों का संचालन।.

राजस्थान में मंत्रियों की न्यूनतम संख्या कितनी हो सकती है?

मूल संविधान में मंत्रिपरिषद के आकार का उल्लेख नहीं लेकिन 91वें संविधान संशोधन(2003) के अनुसार मुख्यमंत्री सहित मंत्रिपरिषद का आकार विधानसभा की कुल सदस्य संख्या का 15 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकता। न्यूनतम 12 सदस्य। वर्तमान में राजस्थान विधानसभा के अंदर 200 सीटें हैं।

मन के अनुसार मंत्रिपरिषद में कितनी संख्या होनी चाहिए?

मनु मंत्रियों की संख्या के विषय में कोई स्पष्ट संख्या निर्धारित नहीं करते, लेकिन साधारणतया वह सात मंत्री रखने का समांतर समर्थन करते थे। उन्होंने मंत्रिपरिषद के सदस्यों की संख्या को 7 या 8 रखने का समर्थन किया है।

राज्य मंत्री परिषद में अधिकतम सदस्य संख्या कितनी होती है?

सही उत्तर राजस्थान विधानसभा की शक्ति का 15% तक है। संविधान के अनुसार, मंत्रिपरिषद विधायकों की कुल संख्या का 15% (91 वां संशोधन) बनाती है। राजस्थान में मंत्रियों की अधिकतम संख्या 30 है जो 200 का 15% है।

Toplist

नवीनतम लेख

टैग