रामचंद्र शुक्ल के पिता का तबादला जब हमीरपुर से मिर्जापुर हुआ तब शुक्ल की उम्र कितनी थी - raamachandr shukl ke pita ka tabaadala jab hameerapur se mirjaapur hua tab shukl kee umr kitanee thee

मिर्जापुर ने आचार्य रामचंद्र शुक्ल को दिया आकार

नि:संदेह डॉ. रामचंद्र शुक्ल का जन्म 04 अक्तूबर 1882 को उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में हुआ था, लेकिन उनको आचार्य का आकार मिर्जापुर में मिला। मिर्जापुर के पुस्तकालयों में जाकर उन्होंने जो शोधकार्य किए...

1/ 2नि:संदेह डॉ. रामचंद्र शुक्ल का जन्म 04 अक्तूबर 1882 को उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में हुआ था, लेकिन उनको आचार्य का आकार मिर्जापुर में मिला। मिर्जापुर के पुस्तकालयों में जाकर उन्होंने जो शोधकार्य किए...

2/ 2नि:संदेह डॉ. रामचंद्र शुक्ल का जन्म 04 अक्तूबर 1882 को उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में हुआ था, लेकिन उनको आचार्य का आकार मिर्जापुर में मिला। मिर्जापुर के पुस्तकालयों में जाकर उन्होंने जो शोधकार्य किए...

Newswrapहिन्दुस्तान टीम,वाराणसीSat, 05 Oct 2019 06:32 PM

नि:संदेह डॉ. रामचंद्र शुक्ल का जन्म 04 अक्तूबर 1882 को उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में हुआ था, लेकिन उनको आचार्य का आकार मिर्जापुर में मिला। मिर्जापुर के पुस्तकालयों में जाकर उन्होंने जो शोधकार्य किए उसी के आधार पर वृहद साहित्य संसार रचा। वह संस्कार की दृष्टि से सच्चे वैष्णव थे।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल की 135वीं जयंती पर शुक्रवार को रवींद्रपुरी स्थित पं. गोकुलचंद्र शुक्ल स्मृति सभागार में आयोजित गोष्ठी में ये बातें बीएचयू के हिन्दी विभाग के प्रो. अवधेश प्रधान ने कहीं। उन्होंने कहा कि आचार्यजी में सूर, तुलसी और जायसी की भांति निष्पक्ष, मौलिक और विद्वत्तापूर्ण आलोचना की प्रकृति-प्रवृत्ति का विकास मिर्जापुर के पुस्तकालयों में संवेदनशीलता के साथ किए गए अध्ययन के दौरान ही हुआ। उन्होंने शब्दों की मर्यादा तय की। उनके सदुपयोग, उपयोग, दुरुपयोग और प्रतिबंध की सीमाएं भी तय कीं। उनके पिता की चली होती तो वह भी वकील होते, लेकिन साहित्य के प्रति उनके समर्पण ने वकालत की पढ़ाई में मन नहीं लगने दिया।

मुख्य अतिथि समीक्षक डॉ. जितेंद्रनाथ मिश्र ने कहा कि आचार्य शुक्ल के पिता पं.चंद्रबली शुक्ल कानूनगो बनकर परिवार के साथ मिर्जापुर आ गए। मिर्जापुर में अध्यापन कार्य करते हुए आचार्य शुक्ल ने विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के लिए लिखना शुरू किया। उनकी प्रखरता ने नागरी प्रचारिणी सभा से जुड़े विद्वानों को न सिर्फ आकर्षित किया अपितु बहुत शीध्र ही उन्हें बतौर सहायक संपादक प्रचारिणी के साथ जोड़ भी लिया।

मेजबान आचार्य रामचंद्र शुक्ल साहित्य शोध संस्थान की अध्यक्ष डॉ. मुक्ता ने आगतों का अभिनंदन करते हुए आचार्य शुक्ल के जीवन के कई अनछुए पहलुओं को याद किया। आभार ज्ञापन में संस्थान के मंत्री प्रो. मंजीत चतुर्वेदी ने कहा कि आचार्यवर भौतिक दृष्टि से साहित्य को समाज का वस्तुगत उत्पाद मानते थे। वहीं दार्शनिक दृष्टि से वह बुद्धिवादी नहीं चैतन्यवादी प्रतीत होते हैं। गोष्ठी में प्रो. सदानंद शाही, डॉ. रचना श्रीवास्तव, डॉ. सुभाषचंद्र यादव, डॉ. अत्रि भारद्वाज, भगवंती देवी, किरन पाठक, शशिकला पांडेय आदि ने भी विचार व्यक्त किए।

‘आत्मकृत दंड ने कराया नवीन नाट्य शिल्प से परिचय

प्रथम विश्व युद्ध के भूमिका काल में रूस का चेहरा दिखाने वाली रशियन साहित्यकार अंतोन पावलीय चेखव की कहानी ‘एक क्लर्क की मौत पर आधारित मंचन से नाट्यप्रेमी न्यूनतम बजट नाटक के शिल्प से परिचित हुए। आचार्य रामचंद्र शुक्ल की जयंती पर गोष्ठी के बाद मंचित ‘आत्मकृत दंड में नाटक की प्रॉपर्टी के नाम पर कलाकारों के बदन पर कपड़े और सभागार की कुछ कुर्सियां ही थीं। प्रो. मंजीत चतुर्वेदी के नाट्य रूपांतरण के दौरान कई अनकहे हालात अभिनय के माध्यम से जीवंत हुए। संवादों के समानांतर चल रहा अनकहा कथानक भी दर्शकों तक पहुंचता रहा।

इस नाटक में प्रथम विश्व युद्ध से पहले रुस के हालात को दर्शाया गया था। उस समय के माहौल में लोगों के मन में भय था। वे डरे हुए थे। उन्हें हमेशा लगता था कि थोड़ी सी चूक उनके लिए भारी पड़ सकती है। नाटक की शुरुआत ओपेरा संगीत के दृश्य हुई। एक वरिष्ठ अधिकारी बैठा हुआ है। उसके बगल में क्लर्क भी बैठा था। गलती से वह उनके ऊपर छींक देता है। इस गलती से उसे लगता है उसने बहुत बड़ा अपराध कर दिया। अब उसका कॅरियर समाप्त हो जाएगा। वह काफी घबड़ाया हुआ था। अधिकारी के माफ करने के बाद वह लगातार क्षमा याचना करता रहा। अंतत: वही छीक उसके मौत का कारण बनती है।

नाटक में बालमुकुंद त्रिपाठी, शैज खान, बहादुर प्रताप, सुरभि और मुस्कान ने प्रमुख भूमिकाएं निभाईं। वरिष्ठ निर्देशक अरुण श्रीवास्तव ने कहा कि उन्होंने एक ऐसे नाट्य शिल्प को आकार देने का प्रयास किया है, जिसके माध्यम से कम से कम संसाधनों में बेहतर से बेहतर मंचन किया जा सके। बीस मिनट के पूरे नाटक में प्रकाश के लिए मात्र दो फ्लड लाइट का ही उपयोग किया गया। इस शिल्प के लिए ‘आत्मकृत दंड जैसे नाटक सबसे उपयुक्त हैं। प्रथमिक स्तर पर इस प्रयोग की सफलता ने इसे बड़े फलक पर आजमाने के लिए प्रेरित किया है।

रामचन्द्र शुक्ल के पिता का तबादला जब हमीरपुर से मिर्जापुर हुआ तब शुक्ल की उम्र कितनी थी?

आचार्य रामचंद्र शुक्ल के पिता चंद्रबली शुक्ल वर्ष 1893 में हमीरपुर से स्थानांतरित होकर मिर्जापुर तहसील में कानूनगो पद पर आए। उस समय आचार्य की अवस्था नौ वर्ष की थी

रामचंद्र शुक्ल जी के पिता जी का क्या नाम था?

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का जन्म सन् 1884 ईस्वी में बस्ती जिले के अगोना नामक गांव में हुआ था। इनकी माता जी का नाम विभाषी था और पिता पं॰ चंद्रबली शुक्ल की नियुक्ति सदर कानूनगो के पद पर मिर्जापुर में हुई तो समस्त परिवार वहीं आकर रहने लगा।

रामचंद्र शुक्ल के पिता रात को प्रायः कौन सी पुस्तक पढ़ा करते थे?

शुक्ल जी के बचपन का साहित्यिक वातावरण शुक्ल जी को बचपन से घर में साहित्यिक वातावरण मिला क्योंकि उनके पिता फारसी भाषा के अच्छे ज्ञाता थे तथा पुरानी हिन्दी कविता के प्रेमी थे। वे प्रायः रात्रि में घर के सब सदस्यों को एकत्रित करके 'रामचरित मानस' तथा 'रामचंद्रिका' को पढ़कर सुनाया करते थे

आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जन्म कहाँ हुआ था?

बस्ती, भारतआचार्य रामचन्द्र शुक्ल / जन्म की जगहnull

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