रूपांतरित शारीरिक शिक्षा का उद्देश्य क्या है - roopaantarit shaareerik shiksha ka uddeshy kya hai

शारीरिक शिक्षा की सामग्री

शारीरिक शिक्षा (Physical education) प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा के समय में पढ़ाया जाने वाला एक पाठ्यक्रम है। इस शिक्षा से तात्पर्य उन प्रक्रियाओं से है जो मनुष्य के शारीरिक विकास तथा कार्यों के समुचित संपादन में सहायक होती हैl[1]

शारीरिक शिक्षा का परिचय[संपादित करें]

किसी भी समाज में शारीरिक शिक्षा का महत्व उसका अकटायुद्धोन्मुख प्रवृत्तियों, धार्मिक विचारधाराओं, आर्थिक परिस्थिति तथा आदर्श पर निर्भर होती है। प्राचीन काल में शारीरिक शिक्षा का उद्देश्य मांसपेशियों को विकसित करके शारीरिक शक्ति को बढ़ाने तक ही सीमित था और इस सब का तात्पर्य यह था कि मनुष्य आखेट में, भारवहन में, पेड़ों पर चढ़ने में, लकड़ी काटने में, नदी, तालाब या समुद्र में गोता लगाने में सफल हो सके। किंतु शारीरिक शिक्षा के उद्देश्य में भी परिवर्तन होता गया और शारीरिक शिक्षा का अर्थ शरीर के अवयवों के विकास के लिए सुसंगठित कार्यक्रम के रूप में होने लगा। वर्तमान काल में शारीरिक शिक्षा के कार्यक्रम के अंतर्गत व्यायाम, खेलकूद, मनोरंजन आदि विषय आते हैं। साथ साथ वैयक्तिक स्वास्थ्य तथा जनस्वाथ्य का भी इसमें स्थान है[2]। कार्यक्रमों को निर्धारित करने के लिए शरीररचना तथा शरीर-क्रिया-विज्ञान, मनोविज्ञान तथा समाज विज्ञान के सिद्धान्तों से अधिकतम लाभ उठाया जाता है। वैयक्तिक रूप में शारीरिक शिक्षा का उद्देश्य शक्ति का विकास और नाड़ी स्नायु संबंधी कौशल की वृद्धि करना है तथा सामूहिक रूप में सामूहिकता की भावना को जाग्रतv करना है। शारीरिक शिक्षा कहलाती है।[3]

इतिहास[संपादित करें]

नन्हें जिम्नास्ट का प्रशिक्षण

जिम्नास्टिक्स का प्रशिक्षण (हारलेम, 1962)

संसार के सभी देशों में शारीरिक शिक्षा का महत्व दिया जाता रहा है। ईसा से २५०० वर्ष पहले चीन देशवासी बीमारियों के निवारणार्थ व्यायाम में भाग लेते थे। ईरान में युवकों को घुड़सवारी तीरंदाजी तथा सत्यप्रियता आदि की शिक्षा प्रशिक्षणकेंद्रों में दी जाती थी। यूनान में खेलकूद की प्रतियोगिताओं का बड़ा महत्त्व होता था। शारीरिक शिक्षा से मानसिक शक्ति का विकास होता था, सौंदर्य में वृद्धि होती थी तथा रोगों का निवारण होता था। स्पार्टा में जगह जगह व्यायामशालाऍ बनी हुई थी। रोम में शारीरिक शिक्षा, सैनिक शिक्षा तथा चारित्रिक शिक्षा में परस्पर घनिष्ट संबंध था और राष्ट्र की रक्षा करना इन सबका उद्देश्य था। पाश्चात्य देशों के धार्मिक विचारों में परिवर्तन होने के कारण तपस्या तथा शारीरिक यातनाओं पर बल दिया जाने लगा। किंतु आगे चलकर खेलकूद, तैराकी, व्यायाम तथा अस्त्रशस्त्र के अभ्यास में लोगों की अभिरूचि पुन: जगी। इस काल के माइकिल ई. मांटेन, जे.जे. रूसो, जॉन लॉक, तथा कमेनियस आदि शिक्षाशास्त्रियों ने शारीरिक शिक्षा का आवाहन किया।

उन्नीसवीं शताब्दी में पेस्टोलोजी और फ्रोवेल ने एक स्वर से बतलाया कि छोटे बच्चों की शिक्षा में खेलों का प्रमुख स्थान है।

जर्मनी में जोहान क्रिस्टॉफ फ्रीड्रिक गूट्ज (Johann Christoph Guts Muths) ने शारीरिक शिक्षा में दौड़, कूद, प्रक्षेप, कुश्ती आदि प्रक्रियाओं के साथ साथ यांत्रिक व्यायामों का प्रचार किया। फ्रीडरिक लूडविक जान (Friedrich Ludvig John) के नेतृत्व में लोकप्रिय व्यायामशालाओं की स्थापना संबंधी आंदोलन का सूत्रपात हुआ और यह आंदोलन शीघ्र विभिन्न देशों में व्यापक हो गया। वास्तव में वर्तमान शारीरिक शिक्षा का आंदोलन सन् १७७५ ई. में जर्मनी में ही प्रारंभ हुआ।

डेनमार्क में फ्रांज नाख्तिगाल (Franz Nachtegall) ने शारीरिक शिक्षा के क्षेत्र में अगला कदम बढ़ाया। आपकी विचारधारा जर्मनी की विचारधारा से बहुत कुछ मिलती जुलती थी और आपके ही सहयोग से सन् १८१४ ई. में स्कूलों के लिए शारीरिक शिक्षा का कार्यक्रम निर्धारित किया गया।

स्वीडन देश में शारीरिक शिक्षा का श्रेय पर हैनरिक लिंग (Per Henrik Ling) को प्राप्त हुआ। आप शारीररचना तथा शरीर-क्रिया-विज्ञान के विद्यार्थी थे। आपने एक व्यायामपद्धति निकाली जिसने बाद में चलकर चैकित्सिक व्यायाम की संज्ञा पाई। सन् १८१४ में आपने स्टाकहोम में रॉयल जिम्नास्टिक सेंट्रल इंस्टीट्यूट की स्थापना की। इस संस्था के अनुसंधान कार्य शारीरिक जगत् में विख्यात हैं।

जर्मनी, स्वीडन तथा डेनमार्क देशों के शारीरिक शिक्षापद्धति के सिद्धांत हॉलैंड, बेल्जियम, स्विटजरलैंड आदि देशों में भी पहुँचे। किंतु इन देशों में समुचित नेतृत्व के अभाव से उन सिद्धांतों का पूर्ण रूप से कार्यान्वयन न हो सका। ग्रेट ब्रिटेन में आर्चिबाल्ड मेकलारेन (Archibald Maclaren) ने अपने यहाँ के स्कूलों के कार्यक्रम में स्वीडन के जिमनास्टिक्स तथा अन्य खेलों का समावेश करवाया।

अमरीका में शारीरिक शिक्षा का इतिहास सन् 1820 से प्रारंभ होती है। इसी वर्ष जर्मनी के दो शरणार्थी जिनके नाम चार्ल्स बेक (harles Beck) और चार्ल्स फोलेन (Charles Follen) थे, अमरीका पहुंचे ओर वहाँ व्यायामशिक्षक नियुक्त हुए। इन्हीं के प्रयासों द्वारा सन् १८५० ई. में 'अमरीकन टरनरबंड' संगठन की स्थापना हुई। सन् १८६० ई. में डॉ॰ डीओ लिविस (Dio Lewis) के प्रयत्न से अमरीका के स्कूलों के पाठ्यक्रम में शारीरिक शिक्षा को स्थान प्राप्त हुआ।

सोवियत संघ में छोटे बच्चों को बचपन में ही आग, पानी तूफान से बचने की शिक्षा दी जाती थी। १२ वर्ष तक केवल शारीरिक शिक्षा पर अधिक बल दिया जाता था। उसके उपरांत कुल ऐसी व्यावहारिक कसरतें भी कराई जाती हैं जो उनके लिए भविष्य में टैंक, ट्रैक्टर तथा इंजन आदि के चलाने में उपयोगी हों। चुवकों को पुष्ट और सशक्त बनाने के लिए जिम्नास्टिक का आधार लिया जाता था और खेलकूद की प्रतियोगिता के लिए सुगठित किया जाता था।

भारतवर्ष में शारीरिक शिक्षा के क्षेत्र में भारतीय व्यायामपद्धति का प्रमुख स्थान है। यह विश्व की सबसे पुरानी व्यायाम प्रणाली है। जिस समय यूनान, स्पार्टा ओर रोम में शारीरिक शिक्षा के झिलमिलाते हुए तारे का अभ्युदय हो रहा था उस समय भी भारतवर्ष में वैज्ञानिक आधार पर शारीरिक शिक्षा का ढाँचा बन चुका था ओर उस ढाँचे का प्रयोग भी हो रहा था। आश्रमों तथा गुरुकुलों में छात्रगण तथा अखाड़ों और व्यायामशालाओं में गृहस्थ जीवन के प्राणी उपयुक्त व्यायाम का अभ्यास करते थे। इन व्यायामों में दंड-बैठक, मुगदर, गदा, नाल, धनुर्विद्या, मुष्टी, वज्रमुष्टी, आसन, प्राणायाम, भस्त्रिका प्राणायाम, सूर्यनमस्कार, नवली, नेती, धौती, वस्ती, इत्यादि प्रक्रियाएँ प्रमुख थीं।[4]

भारतीय व्यायामपद्धति में सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इस पद्धति के द्वारा ध्यान को एकाग्र करना, चित्तवृत्ति का निरोध करना तथा स्मरण शक्ति आदि की वृद्धि करना सुगमतया संभव है। इसी विशेषता से आकर्षित होकर अन्य देशों में इन व्यायामों का बड़ी तीव्र गति से प्रचार और प्रसार हो रहा है। यही नहीं, कहीं कहीं पर तो इन व्यायामों के विभिन्न अनुसंधान केंद्र स्थापित कर दिए गए हैं।

मनोविज्ञान के युग का प्रारम्भ होते ही शारीरिक शिक्षा के कार्यक्रम तथा संगठन में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का समावेश हुआ। फलत: बच्चों की अभिरुचि, प्रवृत्ति, उम्र तथा क्षमता को ध्यान में रखकर शारीरिक शिक्षा के पाठों का निर्माण हुआ।

शैशव काल में ड्रिल को हटाकर छोटे छोटे यांत्रिक खेल तथा कसरतों पर अधिक बल दिया गया। इसके बाद जिमनास्टिक्ल की ओर युवकों को आकर्षित किया गया। सारी कसरतें संगीत की लय पर युवकों में अधिक सुखद और रुचिकर बनानने के प्रयास हुए। शारीरिक शिक्षा का क्षेत्र बहुत विस्तृत बना दिया गया। आज यह विषय अंतरराष्ट्रीय आदान प्रदान का एक सुलभ साधन हो गया है। शारीरिक शिक्षा का क्षेत्र बहुत विस्तृत बना दिया गया। आज यह विषय अंतरराष्ट्रीय आदान प्रदान का एक सुलभ साधन हो गया है। शारीरिक शिक्षा सामाजिक सुधार के लिए अत्यंत उपयोगी समझी जाती है। इसके द्वारा पारस्परिक सहयोग तथा ऊँच नीच का भेदनिवारण संभव माना जाता है। संवेगनियंत्रण के सक्रिय पाठ पढ़ने का अवसर भी प्राप्त होता है। इसी कारणवश बच्चों की शिक्षा को शारीरिक शिक्षा के आधार पर ही निर्धारित करना उचित समझा जाता है। शारीरिक शिक्षा के क्षेत्र में युवतियों का प्रमुख स्थान होता जाता है।

सभी प्रगतिशील देशों में इस शिक्षा के कार्यक्रमों की अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं तथा समारोहों की संख्या दिनों दिन बढ़ती जा रही है। इस विषय में प्रशिक्षण देने के लिए शारीरिक शिक्षा महाविद्यालय खुले हैं जहाँ पर अध्यापक तथा अध्यापिकाएँ प्रावधान के अनुसार तीन वर्ष दो वर्ष या एक वर्ष का प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं। शारीरिक-परिपक्वता परीक्षा वर्तमानकालीन शारीरिक शिक्षा का प्रमुख विषय है और इसके लिए वय के अनुसार विभिन्न स्तर बनाए गए हैं।

विभिन्न स्तरों पर शारीरिक शिक्षा के संवर्धन के लिए संघ तथा संस्थाएँ स्थापित की गई हैं। ये संस्थाएँ समय समय पर प्रादेशिक, राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताएँ भी आयोजित करती हैं। इन प्रतियोगिताओं में भाग लेने के लिए प्रतियोगियों को विशिष्ट प्रशिक्षण दिया जाता है। यही कारण है कि विश्व की प्रतियोगिताओं में दिनोंदिन प्रगति होती जाती है।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • खेल

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

  • शारीरिक शिक्षा

संदर्भ[संपादित करें]

  1. "Physical training in schools should be compulsory, says leading head". www.telegraph.co.uk. अभिगमन तिथि 2021-09-28.
  2. Wong, Alia (2019-01-29). "Gym Class Is So Bad, Kids Are Skipping School to Avoid It". The Atlantic (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2021-09-28.
  3. "Physical training in schools should be compulsory, says leading head". www.telegraph.co.uk. अभिगमन तिथि 2021-09-28.
  4. "National Physical Education Standards-SHAPE America Sets the Standards". www.shapeamerica.org. अभिगमन तिथि 2021-09-28.

रूपान्तरित शारीरिक शिक्षा क्या है?

रूपांतरित शारीरिक शिक्षा की अवधारणा व सिद्धांत : ऐसे बच्चे जिनमें अनेक प्रकार की समर्थताएँ व अयोग्ताएँ जैसे मानसिक दुर्बलता, बहरापन, अन्धापन, भाषा-असक्षमता होती है। इनके लिए विशेष कार्यक्रम आयोजित करने चाहिए, जिससे उनमें शारीरिक व गामक पुष्टि, ज्ञानात्मक, सामाजिक, भावानात्मक विकास किया जा सके ।

शारीरिक शिक्षा का मुख्य उद्देश्य क्या है?

शारीरिक शिक्षा का मुख्य लक्ष्य शारीरिक शिक्षा का अभ्यास करने और उन्हें बढ़ावा देने का मुख्य लक्ष्य उन साक्षर व्यक्तियों का विकास करना है जिनके पास शारीरिक रूप से जीवन भर स्वस्थ गतिविधियों का आनंद लेने के लिए उचित कौशल और ज्ञान है ।

शारीरिक शिक्षा का उद्देश्य क्या है pdf?

शारीरिक शिक्षा का कार्य क्षेत्र व्यक्तित्व का सम्पूर्ण विकास करना है । जे. एफ. विलियम्स के अनुसार “शारीरिक शिक्षा व्यक्ति को उन परिस्थितियों में कुशल नेतृत्व प्रदान करता है जिसके द्वारा एक व्यक्ति शारीरिक रूप से स्वस्थ, मानसिक रूप से सजग तथा सामाजिक जीवन में परिस्थितियों के अनुरूप कार्य कर सके।

अनुकूलित शारीरिक शिक्षा का क्या अर्थ है?

अनुकूलित शारीरिक शिक्षा एक सावधानीपूर्वक तैयार की गई शारीरिक शिक्षा के विकास, कार्यान्वयन और निगरानी की कला और विज्ञान है। ... अनुकूलित शारीरिक शिक्षा आम तौर पर 3-21 आयु वर्ग के छात्रों के लिए स्कूल-आधारित कार्यक्रमों को संदर्भित करती है। संघीय कानून अनिवार्य करता है कि विकलांग छात्रों को शारीरिक शिक्षा प्रदान की जाए।

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