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देवसेना जीवन के अंतिम क्षण कहाँ बिताती है?
इसे सुनेंरोकेंमेरी दर्द भरी शामें आंसू में भरी हुई और मेरा जीवन गहरे वीरान जंगल में रहा। देवसेना अपने बीते हुए जीवन पर दृष्टि डालते हुए अपने अनुभवों और पीड़ा के पलों को याद कर रही है जिसमें उसकी जिंदगी के इस मोड़ पर अर्थात जीवन की आखिरी क्षणों में वह अपने जवानी में किए गए कार्यों को याद करते हुए अपना दुख प्रकट कर रही है।
देवसेना को जीवन की विदाई के समय क्या मिला?
इसे सुनेंरोकेंमैंने भमवश जीवन संचित , मधुकरियों की भीख लुटाई ” – पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए । उत्तर – देवसेना अपने जीवन के अंतिम क्षणों में बहुत निराशा और दु:खी है। वह अपने जीवन की विफलता के विषय में कहती है कि उसने भ्रम में फंस कर परिश्रम से संचित अपने अनुभवों के अनाज की भीख को व्यर्थ में लुटा दिया।
देवसेना का गीत जयशंकर प्रसाद के कौनसे इतिहासिक नाटक से उद्धृत है?
इसे सुनेंरोकें’देवसेना का गीत’ प्रसाद कृत स्कंदगुप्त नाटक से उद्धृत है। हूणों के आक्रमण से आर्यावर्त संकट में है।
मन की लाज गवाही पंक्ति में देवसेना का क्या भाव है?
इसे सुनेंरोकेंदेवसेना कहती है कि यह संसार तुम यह अपनी धरोहर वापस लेलो मेरी करुणा हाहाकार कर रही है। यह मुझसे संभल नहीं पाएगी इसी के कारण मैंने अपने जीवन की लज्जा को गवांया है। भाव यह है कि देवसेना जीवन के संघर्ष से निराश हो चुकी है पहले स्वयं देवसेना के जीवन रथ पर सवार है।
देवसेना का भाई की मृत्यु कैसे हुई?
इसे सुनेंरोकेंउत्तर:- देवसेना मालवा के राजा बन्धुवर्मा की बहन थी देवसेना स्कंदगुप्त से प्रेम करती थी। 2. देवसेना के भाई की मृत्यु कैसे हुई? उत्तर:- जब हुणों ने आर्यावर्त पर आक्रमण किया था तब देवसेना के भाई सहित पुरे परिवार की मृत्यु हो गयी थी।
देवसेना का भाई कौन था?
इसे सुनेंरोकेंहूणों के हमले से अपने भाई और मालवा के राजा बंधुवर्मा तथा परिवार के सभी लोगों के वीरगति पाने और अपने प्रेम स्कंधगुप्त द्वारा ठुकराया जाने से टूटी देवसेना जीवन के आखिरी मोड़ पर आकर अपने अनुभवों में अर्जित दर्द भरे क्षण का स्मरण करके यह गीत गा रही है इसी दर्द को कवि देवसेना के मुख से गा रहा है।
कार्नेलिया का गीत कौन से नाटक से लिया गया है?
इसे सुनेंरोकेंजयशंकर प्रसाद द्वारा रचित नाटक ‘चंद्रगुप्त’ से यह कविता ली गई है !
देवसेना कौन थी और वह किसे चाहती थी?
इसे सुनेंरोकेंदेवसेना जो मालवा की राजकुमारी है उसका पूरा परिवार हूणों के हमले में वीरगति को प्राप्त होता है। वह रूपवती / सुंदर थी लोग उसे तृष्णा भरी नजरों से देखते थे , लोग उससे विवाह करना चाहते थे , किंतु वह स्कंदगुप्त से प्यार करती थी , किंतु स्कंदगुप्त धन कुबेर की कन्या विजया से प्रेम करता था।
देवसेना की निराशा का क्या कारण है?
इसे सुनेंरोकेंसम्राट स्कंदगुप्त से राजकुमारी देवसेना प्रेम करती थी। उसने अपने प्रेम को पाने के लिए बहुत प्रयास किए। परन्तु उसे पाने में उसके सारे प्रयास असफल सिद्ध हुए। यह उसके लिए घोर निराशा का कारण था।
स्कंद गुप्त जीवन भर कैसे रहता है?
इसे सुनेंरोकेंस्कन्दगुप्त प्राचीन भारत में तीसरी से पाँचवीं सदी तक शासन करने वाले गुप्त राजवंश के आठवें राजा थे। इनकी राजधानी पाटलिपुत्र थी जो वर्तमान समय में पटना के रूप में बिहार की राजधानी है कर लिया और फिर हूणों ने महान गुप्त साम्राज्य पर धावा बोला। परंतु वीर स्कन्दगुप्त ने उनका सफल प्रतिरोध कर उन्हें खदेड़ दिया।
देवसेना कौन थी वह किस से प्रेम करती थी?
इसे सुनेंरोकेंAnswer: सम्राट स्कंदगुप्त से राजकुमारी देवसेना प्रेम करती थी।
देवसेना किसकी बहन थी?
इसे सुनेंरोकेंउत्तर:- देवसेना मालवा के राजा बन्धुवर्मा की बहन थी देवसेना स्कंदगुप्त से प्रेम करती थी।
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स्कन्दगुप्त प्राचीन भारत में तीसरी से पाँचवीं सदी तक शासन करने वाले गुप्त राजवंश के आठवें राजा थे। इनकी राजधानी पाटलिपुत्र थी जो वर्तमान समय में पटना के रूप में बिहार की राजधानी है। हूणों ने गुप्त साम्राज्य पर धावा बोला। परंतु स्कन्दगुप्त ने उनका सफल प्रतिरोध कर उन्हें खदेड़ दिया। हूणों के अतिरिक्त उसने पुष्यमित्रों को भी विभिन्न संघर्षों में पराजित किया। पुष्यमित्रों को परास्त कर अपने नेतृत्व की योग्यता और शौर्य को सिद्ध कर स्कन्दगुप्त ने विकरमादितय कि उपाधि धारण की। उसने विष्णु स्तम्भ का निर्माण करवाया।
शासन नीति[संपादित करें]
यद्यपि स्कन्दगुप्त का शासन काल महान संक्रान्ति का युग रहा था और उसे दीर्घकाल तक उन संकटों से जूझना पड़ा| हमे ज्ञात होता है कि अपने सिंहासनारोहण के शीघ्रबाद उसने योग्य प्रान्तपतियो को नियुक्त कि जुनागढ अभिलेख से पता चलता है कि सौराष्ट्र प्रांत का शासक चुनने के लिए अनेक दिन रात उसने चिंता में बिताई अन्त में पर्न दत्त को वहाँ का गोप्ता नियुक्त किया तब उसके हृदय को शान्ति मिली एक लेखक लिखता है कि उशने शासन काल में न तो कोइ विद्रोह हुआ न कोइ बेघर हुआ।
सुदर्शन झील का निर्माण - स्कन्दगुप्त के शासन काल की सबसे मह्त्वपूर्ण घटना सुदर्शन झील के बांध को बनवाना था इस झील का इतिहास बहुत पुराना है सर्वप्रथम चन्द्रगुप्त ने एअक पर्वर्ति नदी के जल को रोककर इस झील का निर्मान लोकहित केद्रिस्ति से बनवाया बाद में सम्राट अशोक ने सिच्हाइ के लिये उसमे से नहर निकालि एअक बार १५० ई. में बान्ध टूट गया। तब रुद्रदामन ने ब्यक्तिगत कोश से उसका जिर्णोद्धार करवाया था। ४५६ ई. में उस झील का बांध फिर टूट गया जिससे सौराष्ट्र के लोगो कष्ट का सामना करना पड़ा । तब स्कन्दगुप्त ने अपने कोश से अपार धन राशि व्यय कर पुनः निर्माण करवाया इस निर्माण के साथ उसने उसी जगह विष्णुजी का एक मन्दिर बनवाया दुर्भाग्य से वह झील तथा मन्दिर वर्तमान में अवस्थित नहीं है। स्कन्दगुप्त सिंचाई के साधनों का पूरा ख्याल रखता था। स्कन्दगुप्त एक महान राजा था।
धर्म[संपादित करें]
स्कन्दगुप्त वैष्णव धर्म का था परन्तु अपने पुर्वजो की भाति उसने भी धार्मिक क्षेत्र उदारता तथा सहिविस्नुता कि नीति का पालन किया वह जॅन तिर्थकरो कि पाच पासान प्रतिमाओ का निर्मान करवाया था और वह सुर्य मन्दिर में दीपक जलाने के लिये अत्यधिक धन दान में दिया था।
साहित्य में स्कंदगुप्त[संपादित करें]
यह हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध साहित्यकार जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित नाटक 'स्कंदगुप्त' का नायक है। यह एक स्वाभिमानी, नीतिज्ञ, देशप्रेमी, वीर और स्त्रियों के सम्मान की रक्षा करने वाला शासक है।
इन्हें भी देखें[संपादित करें]
- भीतरी (गाँव)
- भुक्ति
बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]
- कुमार, प्रभात. "गुप्त राजवंश - स्कन्दगुप्त". ब्राण्डभारत. मूल से 9 मार्च 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 28 नवंबर 2017.
पूर्वाधिकारी कुमारगुप्त प्रथम | गुप्त सम्राट ४५५-४६७ ई० | उत्तराधिकारी पुरुगुप्त |