समाज से अंधविश्वास कैसे दूर किया जा सकता है? - samaaj se andhavishvaas kaise door kiya ja sakata hai?

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‘अंधविश्वास दूर करने के लिए वैज्ञानिक सोच के साथ जन-जागृति की जरूरत’

ग्रामीण क्षेत्रों में ग्रामवासी अंधविश्वास से प्रभावित हो जाते है, वहीं महिलाएं टोनही जैसे कुरीतियों से प्रताडि़त होती है। बैगा-गुनिया एवं जादू-टोने से झांसे में आकर जनसामान्य ठगे जाते है। रायगढ़ जिले में विगत दिनों सिद्धि के नाम पर एक बच्चे की नरबलि चढ़ाई गई। समाज में व्याप्त इन्हीं अंधविश्वास एवं कुरीतियों को दूर करने के लिए वैज्ञानिक सोच के साथ जन-जागृति की जरूरत है।

उक्त बातें गुरुवार को पुलिस महानिरीक्षक विवेकानंद सिन्हा ने धरमजयगढ़ विकास खण्ड के ग्राम-खम्हार में आयोजित अंधविश्वास निर्मूलन जागरूकता अभियान के दौरान कही। उन्होंने आगे कहा कि ढोंगी एवं पाखंडी लोग जादू-टोने के नाम पर जनसामान्य को बेवकूफ बनाते है। इसके लिए वे वैज्ञानिक तरीकों का उपयोग करते हुए कभी नीबू से खून निकालते है तो कभी आग पर चलकर जनसामान्य को अपने प्रभाव में लेते है। इन घटनाओं के पीछे वैज्ञानिक कारण होते है। जनसामान्य में इन्हीं घटनाओं को समझने के लिए वैज्ञानिक कारणों को उजागर करते हुए उनमें वैज्ञानिक सोच पैदा करने के उद्देश्य से यह आयोजन किया गया है। पुलिस अधीक्षक बीएन.मीणा ने कहा कि कई बार जनसामान्य अंधविश्वास के कारण अपराध में भी लिप्त हो जाते है। गांवों में पाखंडी लोग भोले-भाले ग्रामवासियों को अपने प्रभाव में लेकर ठगते है। हालांकि अंधविश्वास को रोकने के लिए कानून भी बने है। लेकिन जनसामान्य में वैज्ञानिक सोच एवं जागरूकता की आवश्यकता है। आज भी गंाव में ग्रामवासी कई बार बीमारियों का इलाज नहीं कराते और झाड़-फूंक में विश्वास करते है और बीमारी बढ़ जाने पर डॉक्टर के पास जाते है। उन्होंने कहा कि रायगढ़ जिला बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ जिला है। यहां टोनही जैसे अंधविश्वास एवं कुरीतियां दुखद है। टोनही के नाम पर महिलाओं पर अत्याचार एवं अपराध के रूप में कई उदाहरण सामने आते है। कुरीतियों एवं अंधविश्वास को दूर करने की जरूरत है। अखिल भारतीय अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के कार्यकारी सचिव हरिभाऊ पाथोडे ने कहा कि महिलाओं को टोनही कहकर प्रताडि़त करने तथा गांवों से बहिष्कृत कर निकालने की घटनाएं दुखद है। सभी आज मोबाइल का उपयोग तो करते है, लेकिन वैज्ञानिक सोच नहीं रखते है। पाखंडी बाबा चमत्कार कर लोगों को अपने गिरफ्त में लेकर लूटते है तथा शोषण एवं प्रताडि़त करते है, इसके लिए वे हाथ की सफाई एवं वैज्ञानिक तरीकों का उपयोग करते है। उन्होंने ग्रामवासियों से आव्हान किया कि वैज्ञानिक सोच रखे एवं अंधविश्वास से दूर रहें। उन्होंने बहुत से चमत्कार व्यवहारिक वैज्ञानिक प्रयोग के माध्यम से बताया। उन्होंने बताया कि पोटेशियम परमेग्नेट एवं ग्लिसरीन को मिलाने पर क्रिया होने पर अपने आप आग जल उठती है। चाकू पर मिथाईल आरेंज लगाकर नींबू काटने से उसका रंग खून के समान लाल हो जाता है। इस अवसर पर युवराज सिंह एवं उनकी टीम द्वारा गीत-संगीत के माध्यम से अंध विश्वास को दूर करने के लिए नुक्कड़-नाटक प्रस्तुत किया गया। इस दौरान उप पुलिस अधीक्षक यूबीएस चौहान, अखिल भारतीय अंधश्रद्धा निर्मूलन के समिति के टीम महाराष्ट्र संगठक दीपक सोलंके, रामरतन रेला सहित छात्र-छात्राएं एवं ग्रामवासी उपस्थित थे।

अंधविश्वास निर्मूलन जागरूकता अभियान कार्यक्रम में शामिल होने पहुंचे आईजी विवेकानंद सिन्हा व एसपी मीणा।

समाज में फैले अंधविश्वास को दूर करने के लिए आप क्या उपाय करेंगे?

व्याख्या :.
समाज में फैले हुए अंधविश्वास को दूर करने के लिए हमें अपनी पुरानी सोच को बदलना होगा | पुरानी सोच को खत्म करके , नया सोचना चाहिए | पुराने रीति-रिवाजों , पुरानी प्रथाओं को खत्म करना होगा |.
लड़कियों के साथ भेद-भाव को खत्म करना होगा |.
आधुनिक तकनीकों को अपनाना चाहिए |.

अंधविश्वास को कैसे दूर किया जा सकता है?

व्यक्तिगत अंधविश्वास ,स्वाध्याय , सत्संग , वैज्ञानिक सोच , जानकारी ,जागरूकता , जवाबदारी ,आदि से दूर हो सकता है । सामूहिक अंधविश्वास , के लिए प्राथमिक शिक्षा से ही पीढ़ी को वैज्ञानिक संस्कारवान बनाया जाना चाहिए ।

अंधश्रद्धा से बचने के लिए क्या करना चाहिए?

इसका मुख्य कारण शिक्षा का अभाव था। जैसे-जैसे समाज शिक्षित होता गया, वैसे-वैसे विज्ञान की प्रगति के साथ अंधश्रद्धा का स्तर घटता गया। हालाँकि आज भी हमारे समाज में अंधश्रद्धा की गिनी-चुनी कुछ वारदातें सुनने व देखने को मिलती हैं, लेकिन विज्ञान के प्रचार-प्रसार के जरिए हम इसे जड़ से खत्म कर सकते हैं।

विज्ञान अंधविश्वास से कैसे बचाता है?

विज्ञान जहां तर्क पर आधारित ज्ञान को प्रोत्साहित करता है, वहीं धर्म अनुकरण और तर्कहीनता पर बल देता है। देखा जाए तो सभी धार्मिक ग्रंथ अथवा पुस्तकें संविधान के मूल्यों की विरोधी है। एक भी धार्मिक ग्रंथ ऐसा नहीं है जो संविधान के पक्ष में खड़ा नजर आता हो, क्योंकि दोनों की प्रकृति बिलकुल भिन्न है।

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