Short Note
समुद्र के तट पर बसे नगरों में अधिक ठंड और अधिक गरमी क्यों नहीं पड़ती?
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Solution
समुद्र तट के आसपास के इलाकों को पानी अपने आसपास का तापमान न अधिक बढ़ने देता है और न अधिक घटने देता हैयहाँ का तापमान समशीतोष्ण अर्थात् सुहावना बना रहता हैयही कारण है कि समुद्र तट पर बसे नगरों में न अधिक सर्दी पड़ती है और न अधिक गर्मी।
Concept: गद्य (Prose) (Class 8)
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Chapter 16: पानी की कहानी - पाठ से आगे [Page 107]
Q 3Q 2Q 4
APPEARS IN
NCERT Class 8 Hindi - Vasant Part 3
Chapter 16 पानी की कहानी
पाठ से आगे | Q 3 | Page 107
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समुद्र के तट पर बसे नगरों में अधिक ठंड और अधिक गरमी क्यों नहीं पड़ती?
समुद्र के तट पर बसे नगरों में अधिक ठंड या अधिक गर्मी नहीं पड़ती क्योंकि वहाँ के वातावरण में सदा नमी होती है।
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“पानी की कहानी” के आधार पर पानी के जन्म और जीवन-यात्रा का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
“पानी की कहानी” पाठ में बताया गया है कि पानी का जन्म हद्रजन (हाइड्रोजन) और ओषजन (ऑक्सीजन) से होता है। पहले पानी की बूँदें सूर्य के धरातल पर ही थीं। एक बार प्रचंड प्रकाश पिंड जो सूर्य से लाखों गुणा बड़ा था सूर्य के समक्ष आ गया। उसकी आकर्षण शक्ति के कारण सूर्य का एक बड़ा भाग टूटकर कई टुकड़ों में विभाजित हो गया। एक टुकड़ा पृथ्वी बन गया। पहले तो यह ग्रह आग का गोला ही था। लेकिन धीरे-धीरे यह ठंडा हो गया और अरबों वर्ष पूर्व हद्रजन और ओषजन ने अपना प्रत्यक्ष अस्तित्व गँवाकर रासायनिक क्रिया द्वारा पानी को जन्म दिया।
अब ये पानी की बूँदें निरंतर सुर्य द्वारा भाप बनकर अपना अस्तित्व खो देती हैं और फिर वर्षा के रूप में बरसकर पानी का रूप धारण करती है।
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पानी की कहानी में लेखक ने कल्पना और वैज्ञानिक तथ्य का आधार लेकर आेस की बूँद की यात्रा का वर्णन किया है। ओस की बूँद अनेक अवस्थाओं में सूर्यमंडल, पृथ्वी, वायु, समुद्र, ज्वालामुखी, बादल, नदी और नल से होते हुए पेड़ के पत्ते तक की यात्रा करती है। इस कहानी की भांति आप भी लोहे अथवा प्लास्टिक की कहानी लिखने का प्रयास कीजिए।
इसमें हमे प्लास्टिक की कहानी लिख सकते हैं इस हेतु संकेत बिंदु निम्न रूप से हैं-
● रासायनिक पदार्थोे से प्लास्टिक का बनना।
● कई प्रकार की वस्तुओं का निर्माण।
● वस्तुओं का घिस जाना।
● दुबारा पिंघलकर प्लास्टिक बनना।
● फिर से नई वस्तुओं का निर्माण।
● इस प्रकार की प्रक्रिया का निरंतर चलते रहना।
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“पानी की कहानी” पाठ में ओस की बूँद अपनी कहानी स्वयं सुना रही है और लेखक केवल श्रोता है। इस आत्मकथात्मक शैली में आप भी किसी वस्तु का चुनाव करके कहानी लिखें।
आप मिट्टी के कण की कहानी बना सकते हैं-जिसमें संकेत बिंदु इस प्रकार हैं-
1. मैं एक मिट्टी का कण।
2. हवा का चलना।
3. मेरे ऊपर मिट्टी के अनेक कणों का उड़ना।
4. आँधी पाकर आकाश की ऊँचाइयों तक जाना।
5. आकाश में विचरण करना।
6. धीरे-धीरे वापिस धरती पर आन का प्रयास।
7. हल्के हवा के झोंके के साथ उड़ते रहना।
8. एक पेड़ के साथ चिपक जाना।
9. तेज़
हवा का चलना।
10. हवा में उड़ते-उड़ते एक नदी को पार करना।
11. हवा का बंद होना।
12. मेरा धरातल पर आ जाना।
13. चैन की साँस लेना।
14. अपने मित्रों के साथ मिट्टी में मिलना।
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पाठ के साथ केवल पढ़ने के लिए दी गई पठन-सामग्री ‘हम पृथ्वी की संतान!’ का सहयोग लेकर पर्यावरण संकट पर एक लेख लिखें।
पर्यावरण संकट
पर्यावरण अर्थात् एक ऐसा आवरण जो हम चारों ओर से ढके हुए हें। पूरी प्रकृति विशाल
पारिस्थिति की तंत्र है। मनुष्य के जीवन में धरती, आकाश, नदियाँ. पेड़-पौधे, हवा, जल, खनिज पदार्थ सभी अपना विशेष महत्व रखते हैं। लेकिन मनुष्य केवल अपने स्वार्थ से प्रेरित रहता हें। वह इन सब साधनों का प्रयोग ताे करता है लेकिन इनकी सुरक्षा व सुंदरता की और कोई कर्तव्य नहीं निभाता।
आज विश्व की सभी प्रसिद्ध नदियाँ गंगा, यमुना, नर्मदा, राइन, सीन, मास, टेम्स आदि पूर्णतया प्रदूषित हो चुकी हैं। पृथ्वी के ऊपर जोन गैस की मोटी परत जो हमारा रक्षा कवच है वह भी खतरे में पड़ी है। इसीलिए सूर्य का ताप धरती की
आेर बढ़ता जा रहा है। ग्लोबल वार्मिग (पृथ्वी का तापमान) बढ़ने से छोटे-बड़े द्वीप व महाद्वीप के तटीय क्षेत्रों के डूब जाने का खतरा बढ़ता जा रहा है। प्राकृतिक आपदाएँ जैसे भूचाल, तूफान आदि बढ़ते जा रहे हैं। बेवक्त बरसातें व गर्मियो में अधिक गर्मी, सर्दियों में अधिक सर्दी भी पर्यावरण प्रदूषण के कारण हैं।
यह पूरे विश्व हेतु चिंता का विषय है। इसलिए पूरे विश्व में वायु, ध्वनि, जल व संपूर्ण पृथ्वी को प्रदूषित होने से बचाने हेतु प्रयास जारी हें। इसी हेतु! ‘पर्यावरण दिवस’ व ‘पृथ्वी सम्मेलन’ जैसे कार्यक्रमों
का आयोजन किया जाता है जिसका मुख्य उद्देश्य है ‘पृथ्वी को बचाओ’।
आज सभी का यह कर्तव्य बनता है कि राष्ट्र सीमाओं के बंधनों में न रहकर पूरे विश्व के पर्यावरण को स्वच्छ बनाने का प्रयास किया जाए। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जीवन यापन की सभी आवश्यकताएँ यह धरती हमें प्रदान करती है। हमें आत्मरक्षा हेतु पृथ्वी की रक्षा करनी होगी। ‘भूमि माता है और हम पृथ्वी की संतान’ इस कथन को चरितार्थ करना होगा।
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पेड़ के भीतर फव्वारा नहीं होता, तब पेड़ की जड़ों से पत्ते तक पानी कैसे पहुँचता है? इस क्रिया को वनस्पति शास्त्र में क्या कहते हैं? क्या इस क्रिया को जानने के लिए कोई आसान प्रयोग है? जानकारी प्राप्त कीजिए।
पेड़ के भीतर फव्वारा नहीं होता, तब भी पेड़ की जड़ से पत्ते तक पानी पहुँचता है क्योंकि पेड़ की जड़ों व तनों में जाइलम और फ्लोएम नामक वाहिकाएँ होती हैं जो पानी को जड़ों से पत्तियों तक पहुँचाती हैं। इस क्रिया को ‘संवहन’ (ट्रांसपाइरेशन) कहते हैं।
‘संवहन’ की क्रिया को जानने का प्रयोग
निम्नलिखित है-
एक काँच का बीकर लें। उसमें लाल रंग का पानी डालें। एक छोटा-सा पौधा उसमें रख दें। थोड़ी देर के बाद हम देखेंगे कि पौधे की जड़ो के माध्यम से लाल रंग ऊपर की आेर पौधे मैं जाता दिखाई देगा अर्थात् जाइलम व फ्लोएम वाहिकाएँ उसे जड़ से तन तक ले जाने का प्रयास करेंगी। यही विधि ‘संवहन’ है।
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