समुद को देखकर आपके मन में क्या भाव उठते हैं? लगभग 200 शब्दों में लिखें।
समुद्र को देखकर हमारे मन में अनेक भाव उठते हैं। समुद्र का आकार विशालता का अहसास कराता है। समुद्र की गहराई को मापना आसान काम नहीं है। समुद्र के जल की व्यर्थता देखकर लगता है कि यदि जल पीने के उपयोग में लाया जा सकता है तो संसार को पर्याप्त मात्रा मैं पेय-जल मिल जाता, तब जल-संकट नाम की कोई चीज न रहती। समुद्र का जल उठता-गिरता रहता है। कभी-कभी यह भीषण गर्जना भी करता है। वैसे शांत सागर का सौंदर्य मन को लुभाता है। समुद्र-तट पर नहाने तथा अंदर तक जाने का मन करता है। अनेक समुद्र-तटों की सुंदरता देखते ही बनती है। हाँ, ये समुद्र जलयानों के लिए आवश्यक है। समुद्र के जल पर यात्रा करना निश्चय ही एक रोमांचकारी अनुभव है।
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आशय स्पष्ट करें-
सस्मित-वदन जगत का स्वामी मृदु गति से आता है।
तट पर खड़ा गगन-गंगा के मधुर गीत गाता है।
‘सस्मित-वदन’ से आशय है चेहरे पर मुस्कराहट लिए हुए। रात्रि के शांत वातावरण में जगत का स्वामी परमात्मा धीमी गति से आता जान पड़ता है। वह समुद्र-तट पर आकाश गंगा के गीत गाता प्रतीत होता है। कवि को इस प्रकार का आभास होता है।
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सूर्योदय वर्णन के लिए किस तरह के बिंबों का प्रयोग हुआ है?
सूर्योदय के वर्णन के लिए कवि ने कई दृश्य-बिंबों का प्रयोग किया है-
-वह सूर्योदय के एक बिंब में इसे कमला के कंचन-मंदिर का कांत कँगूरा बताता है।
-दूसरे बिंब में वह इसे लक्ष्मी की सवारी के लिए समुद्र द्वारा बनाई स्वर्ण-सड़क बताता है।
-एक अन्य बिंब में सूर्य के सम्मुख वारिद-माला थिरकती दर्शायी गई है।
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आशय स्पष्ट करें-
कैसी मधुर मनोहर उज्ज्वल है यह प्रेम-कहानी।
जी में है अक्षर बन इसके बनूँ विश्व की बानी।
समुद्र-तट पर प्रकृति का दृश्य इतना मनोहारी दै कि यह एक प्रेम-कहानी के समान प्रतीत होता है। सारा वातावरण रोमांटिक है। कवि भी इसका एक अभिन्न अंग बनना चाहता है। यहाँ से प्रेरणा लेकर वह काव्य-रचना करना चाहता है। यहाँ से प्रेरणा लेकर वह काव्य-रचना करना चाहता है। वह विश्व की वाणी बनना चाहता है।
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कविता में कई- स्थानों पर प्रकृति को मनुष्य के रूप में देखा गया है। एसे उदाहरणों का भाव स्पष्ट करते हुए लिखो।
कविता में कई स्थानों पर प्रकृति को मनुष्य के रूप में देखा गया है। इसे मानवीकरण कहा जाता है। ऐसे कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं-
(1) प्रतिदिन नूतन वेश बनाकर, रंग-बिरंग निराला।
रवि के सम्मुख थिरक रही है नभ मैं वारिद-माला।
(प्रकृति नित्य नए-नए करंग-बिरंगेरूप में दिखाई देती है। ’रवि के सम्मुख वारिद-माला का थिरकना’ में भी मानवीकरण है।)
(2) ‘रत्नाकर गर्जन करता है’ -(समुद्र का जल भयंकर आवाज करता है।)
(3) लाने को निज पुण्य भूमि पर लक्ष्मी की असवारी।
रत्नाकर ने निर्मित कर दी सस्वर्ण-सड़कअति प्यारी। (समुद्र का सड़क बनाना-मानवीकृत कार्य है। आशय है- समुद्र-तट पर सूर्य का सुनहरा प्रकाश फैल जाना)
(4).‘नभ में चंद्र विहँस देता है’ -चंद्रमा का हँसना-चंद्रमा की कलाओं का बिखरना है।
(5) ‘वृक्ष विविध पत्तों-पुष्पों से तनु को सजा लेता हैं-वृक्ष पर काफी सुंदर फूल-पत्ते आ जाते हैं।
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पथिक का मन कहाँ विचरना चाहता है?
पथिक का मन बादलों पर बैठकर नीलगगन में विचरने को करता है। वह विशाल सागर की लहरों पर बैठकर भी विचरना चाहता है।
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