सूरसागर
सूरसागर, ब्रजभाषा में महाकवि सूरदास द्वारा रचे गए कीर्तनों-पदों का एक सुंदर संकलन है जो शब्दार्थ की दृष्टि से उपयुक्त और आदरणीय है। इसमें प्रथम नौ अध्याय संक्षिप्त है, पर दशम स्कन्ध का बहुत विस्तार हो गया है। इसमें भक्ति की प्रधानता है। इसके दो प्रसंग "कृष्ण की बाल-लीला' और "भ्रमर-गीतसार' अत्यधिक महत्त्वपूर्ण हैं। सूरसागर में लगभग एक लाख पद होने की बात कही जाती है। किन्तु वर्तमान संस्करणों में लगभग पाँच हजार पद ही मिलते हैं। विभिन्न स्थानों पर इसकी सौ से भी अधिक प्रतिलिपियाँ प्राप्त हुई हैं, जिनका प्रतिलिपि काल संवत् १६५८ वि० से लेकर उन्नीसवीं शताब्दी तक है इनमें प्राचीनतम प्रतिलिपि नाथद्वारा (मेवाड़) के सरस्वती भण्डार में सुरक्षित पायी गई हैं। दार्शनिक विचारों की दृष्टि से "भागवत' और "सूरसागर' में पर्याप्त अन्तर है। सूरसागर की सराहना करते हुए डॉक्टर हजारी प्रसाद द्विवेदी ने लिखा है - .
11 संबंधों: नंददुलारे वाजपेयी, भ्रमरगीत, भ्रमरगीत सार, रास पंचाध्यायी, शबरी, सूरदास, सूरदास मदनमोहन, हिन्दी पुस्तकों की सूची/श, हिन्दी ग्रन्थों की सूची, हिन्दी की सौ श्रेष्ठ पुस्तकें, गीतावली।
नंददुलारे वाजपेयी
नन्ददुलारे वाजपेयी (१९०६ - २१ अगस्त, १९६७ उज्जैन) हिन्दी के साहित्यकार, पत्रकार, संपादक, समीक्षक और अंत में प्रशासक भी रहे। इनको छायावादी कविता के शीर्षस्थ आलोचक के रूप में मान्यता प्राप्त है। हिंदी साहित्य: बींसवीं शताब्दी, जयशंकर प्रसाद, प्रेमचन्द, आधुनिक साहित्य, नया साहित्य: नये प्रश्न इनकी प्रमुख आलोचना पुस्तकें हैं। वे शुक्लोत्तर युग के प्रख्यात समीक्षक थे। .
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भ्रमरगीत
भ्रमरगीत भारतीय काव्य की एक पृथक काव्यपरम्परा है। हिन्दी में सूरदास और जगन्नाथदास रत्नाकर ने भ्रमरगीत की रचना की है। .
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भ्रमरगीत सार
भ्रमरगीत सार आचार्य रामचन्द्र शुक्ल द्वारा सम्पादित हिन्दी ग्रन्थ है। उन्होने सूरसागर के भ्रमरगीत से लगभग 400 पदों को छांटकर उनको 'भ्रमरगीत सार' के रूप में संग्रह किया था। .
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रास पंचाध्यायी
रास पंचाध्यायी रास पंचाध्यायी मूलत: भागवत पुराण के दशम स्कंध के उनतीसवें अध्याय से तैंतीसवें अध्याय तक के पाँच अध्यायों का नाम है। यह संस्कृत का कोई स्वतंत्र ग्रंथ नहीं है। किंतु हिंदी में रास पंचाध्यायी नाम से स्वतंत्र ग्रंथ लिखे गए और यह नाम अत्यंत प्रसिद्ध हो गया। भागवत पुराण के इन पाँच अध्यायों की इस पुराण का प्राण माना जाता है क्योंकि इस अध्यायों में श्रीकृष्ण की दिव्य लीला के माध्यम से प्रेम और समर्पण की प्रतिष्ठा की गई है। इस लीला का उपास्य काम विजयी माना जाता है अत: जो कोई भक्त इस लीलाप्रसंग को पढ़ता या दृश्य रूप में देखता है वह कामजय की सिद्धि प्राप्त करता है। .
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शबरी
श्रीराम को फल अर्पण करते हुए शबरी शबरी एक भिलनी थी.
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सूरदास
सूरदास का नाम कृष्ण भक्ति की अजस्र धारा को प्रवाहित करने वाले भक्त कवियों में सर्वोपरि है। हिन्दी साहित्य में भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य उपासक और ब्रजभाषा के श्रेष्ठ कवि महात्मा सूरदास हिंदी साहित्य के सूर्य माने जाते हैं। हिंदी कविता कामिनी के इस कमनीय कांत ने हिंदी भाषा को समृद्ध करने में जो योगदान दिया है, वह अद्वितीय है। सूरदास हिंन्दी साहित्य में भक्ति काल के सगुण भक्ति शाखा के कृष्ण-भक्ति उपशाखा के महान कवि हैं। .
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सूरदास मदनमोहन
सूरदास मदनमोहन की गौड़ीय सम्प्रदाय के प्रमुख भक्त कवियों में गणना की जाती है। //hindisahityainfo.blogspot.in/2017/05/blog-post_9.html .
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हिन्दी पुस्तकों की सूची/श
संवाद शीर्षक से कविता संग्रह-ईश्वर दयाल गोस्वाामी.
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हिन्दी ग्रन्थों की सूची
रामचरितमानस - गोस्वामी तुलसीदास सूरसागर - सूरदास साखी - कबीरदास सतसई - बिहारी गोदान - मुंशी प्रेमचन्द कामायनी - जयशंकर प्रसाद प्रिय प्रवास - अयोध्यासिंह उपाध्याय हरिऔध रश्मिरथी - रामधकठपुतलियों का दौर - शिवकुमार श्रीवास्तव ारी सिंह दिनकर .
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हिन्दी की सौ श्रेष्ठ पुस्तकें
चित्र:|350px|हिन्दी की सौ श्रेष्ठ पुस्तकें जयप्रकाश भारती की रचना है। इसमें सौ श्रेष्ठ हिन्दी पुस्तकों का प्रत्येक के लिये तीन-चार पृष्ठों में सकारात्मक परिचय दिया गया है। किताब में विवेचित अधिकतर पुस्तकें पुरस्कृत हैं और अपने विषय और प्रस्तुति में अनूठी हैं। इसमें स्वाधीनता से पहले की चौबीस और बाद की चौहत्तर पुस्तकों की चर्चा है। इस पुस्तक में हिन्दी के बाइस काव्यों और पच्चीस उपन्यासों पर चर्चा है। पुस्तक में रचनाओं का परिचय देते हुए लेखक की शब्द-संपदा, शैली और भाषा प्रवाह की झलक के लिए जहां-तहां उनकी कुछ पंक्तियां उद्धृत की हैं। हर पुस्तक का प्रथम प्रकाशन-वर्ष भी दिया है और पुस्तक को प्राप्त प्रमुख पुरस्कार-सम्मान का उल्लेख भी है। कृति-विशेष का परिचय देने के बाद लेखक की कुछ अन्य पुस्तकों का उल्लेख भी अंत में किया गया है। .
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गीतावली
गीतावली गोस्वामी तुलसीदास की काव्य कृति है। गीतावली तुलसीदास की प्रमाणित रचनाओं में मानी जाती है। यह ब्रजभाषा में रचित गीतों वाली रचना है जिसमें राम के चरित की अपेक्षा कुछ घटनाएँ, झाँकियाँ, मार्मिक भावबिन्दु, ललित रस स्थल, करुणदशा आदि को प्रगीतात्मक भाव के एकसूत्र में पिरोया गया है। ब्रजभाषा यहाँ काव्यभाषा के रूप में ही प्रयुक्त है बल्कि यह कहा जा सकता है कि गीतावली की भाषा सर्वनाम और क्रियापदों को छोड़कर प्रायः अवधी ही है। 'गीतावली' नामकरण जयदेव के गीतगोविन्द, विद्यापति की पदावली की परम्परा में ही है जो नामकरण मात्र से अपने विषयवस्तु को प्रकट करती है। गीतावली में संस्कृतवत तत्सम पदावली का प्रयोग सूरदास की लोकोन्मुखी ब्रजभाषा की तुलना में न केवल अधिक है बल्कि तुलसी के भावावेगों के व्यक्त करने में वह सहायक सिद्ध हुई है। रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार हृदय के त्रिविध भावों की व्यंजना गीतावाली के मधुर पदों में देखने में आती है। रामचन्द्र शुक्ल ने ‘हिन्दी साहित्य का इतिहास’ में लिखा है ‘गीतावली’ की रचना गोस्वामी जी ने सूरदास के अनुकरण पर ही की है। बाललीला के कई पद ज्यों के त्यों सूरसागर में भी मिलते हैं, केवल ‘राम’ ‘श्याम’ का अन्तर है। लंकाकाण्ड तक तो मार्मिक स्थलों का जो चुनाव हुआ है वह तुलसी के सर्वथाअनुरूप है। पर उत्तरकाण्ड में जाकर सूरपद्धति के अतिशय अनुकरण के कारण उनका गंभीर व्यक्तित्व तिरोहित सा हो गया है, जिस रूप में राम को उन्होंने सर्वत्र लिया है, उनका भी ध्यान उन्हें नहीं रह गया। सूरदास में जिस प्रकार गोपियों के साथ श्रीकृष्ण हिंडोला झूलते हैं, होली खेलते हैं, वही करते राम भी दिखाये गये हैं। इतना अवश्य है कि सीता की सखियों और पुरनारियों का राम की ओर पूज्य भाव ही प्रकट होता है। राम की नखशिख शोभा का अलंकृत वर्णन भी सूर की शैली में बहुत से पदों में लगातार चला गया है। ‘गीतावली’ मूलतः कृष्ण काव्य परम्परा की गीत पद्धति पर लिखी गयी रामायण ही है। गीतावली का वस्तु-विभाजन सात काण्डों में हुआ है। किन्तु इसका उत्तरकाण्द अन्य ग्रन्थों के उत्तरकाण्ड से बहुत भिन्न है। उसमें रामरूपवर्णन, राम-हिण्डोला, अयोध्या की रमणीयता, दीपमालिका, वसन्त-बिहार, अयोध्या का आनन्द, रामराज्य आदि के वर्णन में माधुर्य एवं विलास की रमणीय झाँकियाँ प्रस्तुत की गयीं हैं। .
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यहां पुनर्निर्देश करता है:
सूरदास के पद।