सूर्य देव हर सुबह अपने रथ पर सवार होकर पूर्व दिशा से दिन का प्रकाश लेकर आते हैं। पुराणों में बताया गया है कि सूर्य देव के रथ के सारथी अरुण हैं। अरुण भगवान विष्णु के वाहन गरुड़ के भाई हैं।
ऋग्वेद में कहा गया है कि 'सप्तयुज्जंति रथमेकचक्रमेको अश्वोवहति सप्तनामा' यानी सूर्य चक्र वाले रथ पर सवार होते हैं जिसे सात नामों वाले घोड़े खींचते हैं।
पुराणों में उल्लेख मिलता है कि सूर्य के रथ में जुते हुए घोड़े के नाम हैं 'गायत्री, वृहति, उष्णिक, जगती, त्रिष्टुप, अनुष्टुप और पंक्ति।' यह सात नाम सात छंद हैं। यानी सात छंत हैं जो अश्व रुप में सूर्य के रथ को खींचते हैं।
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शुभ मंगल सावधान: 7 घोड़ों की सवारी क्यों करते हैं सूर्य देव?
सूर्य भगवान 7 घोड़ों द्वारा चलाए जा रहे रथ पर सवार होते हैं. इन घोड़ों की लगाम अरुण देव के हाथ में होती है और स्वंय सूर्य देवता पीछे रथ पर सवार होते हैं. लेकिन सूर्य देव द्वारा सात घोड़ों की ही सवारी क्यों की जाती है? क्या इस 7 संख्या का कोई अहम कारण है? देखें- 'शुभ मंगल सावधान' का ये पूरा वीडियो.
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दरअसल भगवान सूर्य जिस सात घोड़े वाले रथ पर सवार रहते हैं उसके संबंध में धार्मिक ग्रंथों में कई पौराणिक कहानियां प्रचलित हैं। सूर्यदेव के रथ को संभालने वाले इन सात घोड़ों के नाम- गायत्री, भ्राति, उष्निक, जगती, त्रिस्तप, अनुस्तप और पंक्ति हैं।
नई दिल्ली
April 30, 2019 3:48:35 pm
भगवान सूर्य को नवग्रह का राजा कहा जाता है। इन्हें आदित्य, भानु और रवि जैसे कई नामों से पुकारा जाता है। कहते हैं कि सूर्यदेव ही एकमात्र ऐसे देवता हैं जो अपनी रोशनी से सारे संसार को उजाला करते हैं। साथ ही इनके दर्शन भी साक्षात होते हैं। साथ ही भगवान शिव सात घोड़ों से सुशोभित सोने के साथ पर रहते हैं। इनके रथ में लगे सात घोड़ों की कमान अरुण देव के हाथ में होती है। परंतु क्या आप जानते हैं कि भगवान सूर्य जिस रथ पर सवार रहते हैं उसमें सात घोड़े ही क्यों लगे होते हैं? यदि नहीं तो आगे इसे जानिए।
दरअसल भगवान सूर्य जिस सात घोड़े वाले रथ पर सवार रहते हैं उसके संबंध में धार्मिक ग्रंथों में कई पौराणिक कहानियां प्रचलित हैं। सूर्यदेव के रथ को संभालने वाले इन सात घोड़ों के नाम- गायत्री, भ्राति, उष्निक, जगती, त्रिस्तप, अनुस्तप और पंक्ति हैं। इसके बारे में मान्यता है कि यह सात घोड़े सप्ताह के अलग-अलग दिनों को दर्शाते हैं। इसके अलावा वैज्ञानिक दृष्टि से भी रथ के सात घोड़े सात रोशनी को दर्शाते हैं। जो स्वयं सूर्यदेव की किरणों से उत्पन्न होती है। साथ ही सूर्यदेव के इन सात घोड़ों को इंद्रधनुष के सात रंगों से जोड़कर देखा जाता है। क्योंकि अगर ध्यान से देखा जाए तो इन सातों घोड़ों के रंग एक दूसरे से अलग होते हैं और ये सभी घोड़े एक दूसरे से अलग नजर आते हैं। लेकिन ये सभी घोड़े स्वयं सूर्य की रोशनी का प्रतीक है।
भगवान सूर्य के सात घोड़े वाले रथ पर सवार होते हैं और इसी से प्रेरणा लेकर सूर्यदेव के कई मंदिरों में उनकी कई मूर्तियां स्थापित की गई है। इसमें खास बात ये है कि उनकी सारी मूर्तियां उनके रथ के साथ ही बनाई गई है। इसका सबसे अच्छा उदाहरण कोणार्क मंदिर में देखने को मिलता है। जहां विशाल रथ और साथ में उसे चलाने वाले सात घोड़े और सारथी अरुणदेव के साथ रथ पर विराजमान सूर्यदेव की प्रतिमा है। कहते हैं कि इस प्रसिद्ध कोणार्क मंदिर में भगवान सूर्य और उनके रथ को अच्छे से दर्शाया गया है। इन पौराणिक तथ्यों और और धार्मिक मान्यताओं से यह साबित होता है कि भगवान सूर्यदेव के रथ में लगे सात घोड़े सप्ताह के दिनों को दर्शाते हैं जबकि रथ में लगा एक पहिया 1 साल को और पहिए में बनी 12 लाइनें 12 महीने को दर्शाती है।
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