शोध का क्या अर्थ है इसके उद्देश्यों का वर्णन कीजिए? - shodh ka kya arth hai isake uddeshyon ka varnan keejie?

शोध का उद्देश्य - Purpose of Research

मनुष्य द्वारा जब कोई भी कार्य किया जाता है तो वह अवश्य ही किसी न किसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर किया जाता है। चाहे उस उद्देश्य का रूप प्रत्यक्ष हो या फिर अप्रत्यक्ष उस कार्य को करने में व्यक्ति का कोई निजी स्वार्थ व समूह हित जैसा कोई ना कोई उद्देश्य अवश्य निहित होता है जो उसके संपन्न होने में प्रेरक की भूमिका निभाता है। अब यह प्रश्न अवश्य उठता है कि सामाजिक शोध कि उद्देश्य से प्रेरित होकर किए जा रहे हैं। सामाजिक शोध की प्रकृति से यह स्पष्ट होता है कि सामाजिक शोध नए ज्ञान की प्राप्ति व पुराने ज्ञान के परिमार्जन संबंधी उद्देश्यों से प्रेरित होकर किए जाते हैं। यही वास्तविकता है कि समाज से संबंधित नवीन तथ्यों वह परिस्थितियों की खोज करने. सामाजिक घटनाओं की प्रकृति को समझने, उनके कार्य कारण और संबंधों को ढूंढने के लिए सामाजिक शोध कार्य किए जाते हैं। प्रत्येक मानवीय प्रयास के मूल में कोई न कोई प्रयोजन अथवा उद्देश्य अवश्य निहित होता है। सामाजिक शोध भी एक ऐसा ही प्रयास है जिसका उद्देश्य सामाजिक घटनाओं पर आधारित तथ्यों का संकलन, विश्लेषण, निर्वाचन, सामान्यीकरण एवं नियमों का प्रतिपादन करना है। यदि व्यापक दृष्टिकोण से देखा जाए तो पी. वी. यंग के शब्दों में कहा जा सकता है कि सामाजिक अनुसंधान का प्राथमिक उद्देश्य तत्कालीन या दीर्घकालीन सामाजिक जीवन को समझ कर उस पर अपेक्षाकृत अधिक नियंत्रण स्थापित करना है। पी. वी. यंग के अनुसार, "सामाजिक अनुसंधान का उद्देश्य अस्पष्ट सामाजिक घटनाओं को स्पष्ट रूप देना, अनिश्चित तथ्यों को निश्चित रूप प्रदान करना एवं सामाजिक जीवन की भ्रांत धारणाओं से संबंधित तथ्यों को संशोधित करना है।" सेलटिज, जहोदा एवं उनके सहयोगी के अनुसार सामाजिक शोध के दो प्रमुख उद्देश्य है- बौद्धिक तथा व्यवहारिक।

अब्दुल मातीन (2004) ने सरनताकोश की पुस्तक सोशल रिसर्च (1998) को अनुसरित करते हुए किसी सामाजिक शोध के दो प्रमुख उद्देश्य बताए हैं : 

(1) सैद्धांतिक उद्देश्य (Theoretical Purpose) : इसका तात्पर्य नए सिद्धांतों की खोज करना व नए सिद्धांतों का प्रमाणीकरण एवं पुराने ज्ञान का परिमार्जन व सत्यापन करना है।

(2) व्यावहारिक उद्देश्य (Practical Purpose): इससे तात्पर्य है सामाजिक शोध द्वारा सामाजिक व्याधिकीय समस्या का समाधान व निदान ढूंढना। सामाजिक व्यवहार एवं सामाजिक जीवन में कई ऐसी समस्याएं हैं जो समाज में विघटनकारी परिस्थितियां उत्पन्न कर देती हैं। इन समस्याओं का समाधान व निदान ढूंढना ही सामाजिक शोध का व्यावहारिक उद्देश्य है।

इसके अलावा मातीन ने सामाजिक शोध का तीसरा लक्ष्य बताया है :

(3) राजनीतिक उद्देश्य (Political Purpose): इससे तात्पर्य है सामाजिक शोध का उद्देश्य प्रायः सामाजिक प्रगति व विकास में सहायक योजनाओं के निर्माण एवं उनके क्रियान्वयन में सहायता करना है। इसके माध्यम से योजनाओं व कार्यक्रमों का मूल्यांकन नियोजन व पुनर्निर्माण किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, नारी सशक्तिकरण, नारी मुक्ति, बाल अपराध, गरीबी, धर्मांधता, बेकारी, बीमारी आदि जो भी समस्याएं समाज में व्याप्त हैं उनकी वास्तविक स्थिति का आंकलन कर उनसे संबंधित योजनाओं का क्रियान्वयन किस प्रकार हो रहा है, जैसे बातों का समाधान ढूंढ निकालना इस शोध का तीसरा व महत्वपूर्ण उद्देश्य है। इस प्रकार मातीन ने सामाजिक शोध के निम्नलिखित लक्ष्य बताए हैं :

(1) तथ्यों का वर्गीकरण:

(2) मानवीयता का कल्याण करना;

(3) सामाजिक जीवन का वैज्ञानिक अध्ययन करना;

(4) सामाजिक नियंत्रण को बढ़ावा देना और भविष्यवाणी करना:

(5) ज्ञान का विकास करना:

उपरोक्त उद्देश्यों के अतिरिक्त सामाजिक शोध के निम्नलिखित उद्देश्य हैं

(1) नवीन तथ्यों की खोज करना व पुराने ज्ञान का पुनः परीक्षण करना है;

(2) सामाजिक घटनाओं के कार्यक्रम संबंधों की खोज करना:

(3) सामाजिक घटनाओं से संबंधित परिस्थितियों का पता लगाना;

(4) सामाजिक तथ्यों व घटनाओं का वैज्ञानिक अध्ययन कर उनका सामान्यीकरण करना एवं वैज्ञानिक सिद्धांतों का निर्माण करना:

(5) सामाजिक समस्याओं का समाधान ढूंढना;

(6) सामाजिक तथ्यों से संबंधित भ्रांतियों को जड़ से मिटाना:

(7) सामाजिक प्रगति एवं विकास हेतु योजनाओं के निर्माण उनके क्रियान्वयन में सहयोग करना;

(8) सामाजिक नियंत्रण को बढ़ावा देना;

(9) सामाजिक संगठन दृढ़ता और स्थिरता प्रदान करना;

(10) नई-नई तकनीकी और पद्धतियों के निर्माण में सहायता प्रदान करना; इस आधार पर सामाजिक अनुसंधान के उद्देश्यों को मोटे तौर पर दो भागों में विभाजित किया जा सकता

है :

(1) सैद्धांतिक अथवा बौद्धिक उद्देश्य

(2) व्यवहारिक अथवा उपयोगितावादी उद्देश्य

(1) सैद्धांतिक अथवा बौद्धिक उद्देश्य :

सभी शोध कार्यों का मूल उद्देश्य ज्ञान की वृद्धि करना अथवा अज्ञान की जानकारी प्राप्त करना होता है। सामाजिक शोध का उद्देश्य इस दृष्टिकोण से उन सिद्धांतों का प्रतिपादन करना है जिनके द्वारा सामाजिक घटनाओं की आंतरिक प्रकृति को समझा जा सके। एक सामाजिक शोधकर्ता मुख्यतः इसलिए शोध कार्य करता है जिससे वह सामाजिक जीवन सामाजिक घटनाओं तथ्यों एवं समस्याओं से संबंधित वास्तविकताओं का ज्ञान प्राप्त कर सके। ऐसा करते समय वह यह नहीं देखता कि किसी विशेष तथ्य से समाज को लाभ हो रहा है अथवा हानि। उसका उद्देश्य इस अर्थ में केवल वैज्ञानिक होता है कि वह निष्कर्षों की चिंता किए बिना केवल ज्ञान के संचय के प्रयास में लगा रहता है। ऐसा करते समय शोधकर्ता के सामने तीन लक्ष्य प्रमुख होते हैं:

(1) अज्ञात तथ्यों की वास्तविक जानकारी प्राप्त करना,

(2) शोध द्वारा उन तथ्यों के विभिन्न पक्षों का सूक्ष्म अवलोकन करना एवं

(3) विभिन्न तथ्यों के बीच पाए जाने वाले सामान्य तत्त्वों को ढूंढकर उनकी व्यवस्थित रूप से व्याख्या करना।

इसका तात्पर्य यह है कि सामाजिक शोध का उद्देश्य केवल नए सिद्धांतों का निर्माण करना ही नहीं होता बल्कि पुराने सिद्धांतों का नई परिस्थितियों में सत्यापन करना भी होता है। इसके अतिरिक्त, सैद्धांतिक उद्देश्य का तात्पर्य यह भी है कि शोधकर्ता द्वारा विभिन्न सामाजिक घटनाओं और तथ्यों के बीच पाए जाने वाले प्रकार्यात्मक संबंधों की खोज की जाए और उन स्वाभाविक नियमों को ढूंढ निकाला जाए जिनके द्वारा सामाजिक घटनाएं निर्देशित एवं नियंत्रित होती हैं। इस दृष्टिकोण से यह नहीं लिखा है कि सामाजिक शोध का एक उद्देश्य अनुभव सिद्ध तथ्यों के आधार पर वैज्ञानिक अवधारणाओं को प्रस्तुत करना और उन्हें विकसित करना है। उदाहरण के लिए, जब हम जाति व्यवस्था से संबंधित वर्तमान प्रक्रियाओं का अध्ययन करके उन के आधार पर संस्कृतिकरण, आधुनिकीकरण तथा प्रभु जाति जैसी अवधारणाओं को प्रस्तुत करते हैं तो यह कार्य सामाजिक शोध के सैद्धांतिक उद्देश्य को ही स्पष्ट करता है। 

(2) व्यवहारिक अथवा उपयोगितावादी उद्देश्य :

सामाजिक शोध का दूसरा प्रमुख उद्देश्य व्यवहारिक अथवा उपयोगितावादी है। इस उद्देश्य का संबंध मनुष्य की उस स्वाभाविक इच्छा से है जिसके द्वारा वह उपयोगी ज्ञान का संचय करके अपने कार्यों को अधिक कुशलता पूर्वक पूरा कर सके। इसका तात्पर्य है कि एक शोधकर्ता सामाजिक जीवन और सामाजिक घटनाओं को समझने के लिए केवल सिद्धांत ही प्रस्तुत नहीं करता बल्कि इसे सुझाव भी प्रस्तुत करता है जिनके द्वारा सामाजिक जीवन को अधिक स्वस्थ बनाया जा सके। वास्तविकता यह है कि कोई भी वह ज्ञान व्यर्थ है जिसका व्यवहारिक उपयोग न किया जा सके। एकॉफ ने लिखा है कि जो व्यक्ति शोध से प्राप्त निष्कर्षों को अपने तक ही सीमित रखता है. वास्तव में वैज्ञानिक नहीं होता। विज्ञान अनिवार्य रूप से सार्वजनिक होता है। इसका तात्पर्य यह है कि वैज्ञानिक ज्ञान केवल तभी सार्थक हो सकता है जब वह उपयोगितावादी हो अथवा इससे दूसरे लोग लाभ उठा सकें। आधुनिक समय में जबकि सामाजिक परिवर्तन की त्रीवता के कारण अधिकांश समाजों में विघटनकारी प्रक्रियाएं क्रियाशील हो रही हैं, यह आवश्यक हो गया है कि शोध के द्वारा उन तथ्यों की खोज की जाए जिनकी सहायता से सामाजिक समस्याओं का निराकरण किया जा सके। इस दृष्टिकोण से सामाजिक शोध का उद्देश्य विभिन्न सामाजिक समस्याओं की विस्तृत जानकारी प्राप्त करके उनके निराकरण के लिए उपयोगी सुझाव प्रस्तुत करना है। केवल इसी दृष्टिकोण से सामाजिक शोध के द्वारा विभिन्न प्रकार के सामाजिक संघर्षों, तनावों, अपराधों एवं अन्य समस्याओं को सुलझाने में सहायता मिल सकती है। एक शोधकर्ता ग्रामीण विकास कार्यक्रमों से संबंधित समस्याओं को समझ कर ही ऐसे सुझाव दे सकता है जिनसे विभिन्न कार्यक्रमों को अधिक प्रभावशाली बनाया जा सके। इसी प्रकार सामाजिक शोध के द्वारा अपराध संबंधी उपयोगी सिद्धांतों का निर्माण करके जेल व्यवस्था, कानूनी एवं दंड व्यवस्था में सुधार किया जा सकता है। सामाजिक शोध द्वारा सामाजिक घटनाओं में व्याप्त कार्य-कारण संबंध को ज्ञात करके यह पता लगाया जा सकता है कि किसी विशेष घटना के घटित होने का वास्तविक कारण क्या है। यह ज्ञान समाज सुधारकों एवं प्रशासकों को कार्य करने की एक नई दिशा दे सकता है। इस दृष्टिकोण से "एक सामाजिक शोधकर्ता का प्राथमिक उद्देश्य, चाहे वह दूरदर्शी हो अथवा तत्कालिक, सामाजिक व्यवहारों और सामाजिक जीवन को समझ कर उन पर अधिक से अधिक नियंत्रण स्थापित करना है।"

वास्तव में, सामाजिक शोध के सैद्धांतिक तथा व्यवहारिक उद्देश्य एक दूसरे से पृथक ना होकर एक दूसरे से घनिष्ठ रूप से संबंधित हैं। इसका तात्पर्य है कि शोध का उद्देश्य चाहे सैद्धांतिक हो अथवा व्यवहारिक, प्रत्येक शोध कार्य मानव कल्याण में वृद्धि करता है। पी. वी. यंग ने लिखा है कि जीवशास्त्री जो सैद्धांतिक उद्देश्य को लेकर किसी औषधी की खोज नहीं करता बल्कि केवल मानव कोशाणुओं की संरचना. इनके संवर्धन के नियमों, स्वास्थ्य तथा रोग से संबंधित नियमों की व्याख्या करता है, वह भी उन व्यक्तियों के कार्य में अत्यधिक सहायक होता है जो स्वास्थ्य में वृद्धि करने के लिए उपयोगी औषधियों का निर्माण करने में रूचि रखते हैं। इसी तरह प्रत्येक सामाजिक शोध के द्वारा आधारभूत नियमों एवं प्रक्रियाओं को समझा जा सकता है जिनका सामाजिक जीवन स्वस्थ बनाने में विशेष योगदान है। दूसरे शब्दों में, व्यवहारिक उद्देश्य की पूर्ति भी सैद्धांतिक उद्देश्यों में ही निहित रहती हैं। इस प्रकार स्पष्ट होता है कि सामाजिक शोध के सैद्धांतिक तथा व्यवहारिक उद्देश्यों में से किसी को भी दूसरे की अपेक्षा अधिक अथवा कम महत्वपूर्ण नहीं कहा जा सकता।

शोध क्या है इसके उद्देश्य?

नवीन वस्तुओं की खोज और पुरानी वस्तुओं एवं सिद्धान्तों का पुनः परीक्षण करना, जिससे कि नए तथ्य प्राप्त हो सकें, उसे शोध कहते हैं। शोध के अंतर्गत बोधपूर्वक प्रयत्न से तथ्यों का संकलन कर सूक्ष्मग्राही एवं विवेचक बुद्धि से उसका अवलोकन-विश्लेषण करके नए तथ्यों या सिद्धांतों का उद्घाटन किया जाता है।

शोध क्या है इसके महत्व की व्याख्या करें?

शोध एक तर्कपूर्ण तथा वस्तुनिष्ठ प्रक्रिया है। इससे प्राप्त निष्कर्ष तार्किक तथा वास्तविक आँकड़ों पर आधारित होते हैं तथा व्यक्तिगत पक्षपात से मुक्त होते हैं। शोध द्वारा किसी नए तथ्य, सिद्धांत, विधि या वस्तु की खोज की जाती है अथवा किसी प्राचीन तथ्य, सिद्धांत, विधि या वस्तु को परिवर्तित किया जाता है।

शोध का शाब्दिक अर्थ क्या है?

शोध का अर्थ है खोज करना या पता लगाना और फिर सेजाांच करना। यह नया ज्ञान प्राप्त करनेकी प्रफिया है। शोध को अनुसन्धान भी कहा जाता है। शोध केवल नई वस्तुओ को खोज ननकालनेका एक प्रयास है।

सामाजिक शोध का मुख्य उद्देश्य क्या है?

(2) - सामाजिक शोध का उद्देश्य किसी घटना के सम्बन्ध या व्यक्तियों के पारस्परिक सम्बन्धों में नवीन तथ्यों एव नियमों की खोज करना है। इन नवीन तथ्यों की खोज द्वारा सामाजिक शोध सामाजिक सम्बन्धों द्वारा निर्मित संरचना एवं संगठन को भी समझने एवं इनका स्पष्टीकरण करने में सहायता देता है।