टैक्स को क्यों लगाया जाता है? - taiks ko kyon lagaaya jaata hai?

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अगर, आपकी ठीक-कमाई होती है (सालाना 2.5 लाख रुपए से अधिक) तो आपको टैक्स चुकाना पड़ सकता है। हालांकि, सरकार ने ऐसी व्यवस्था कर दी है कि 5 लाख रुपए तक की आमदनी पर टैक्स नहीं देना पड़ता। टैक्स छूट, टैक्स कटौती, टैक्स स्लैब और टैक्स रिबेट के माध्यम से आप ये सहूलियत ले पाते हैं।

बहरहाल सरकार अलग-अलग कैटेगरी के लोगों से और अलग-अलग तरह की आमदनियों पर, अलग-्अलग तरीके से टैक्स वसूलती है। इसीलिए इनके अलग-अलग नाम भी सुनने को मिलते हैं, जैसे कि इनकम टैक्स, प्राेफेशनल टैक्स, गूड्स एंड सर्विस टैक्स (जीएसटी), सेस, सरचार्ज वगैरह। इस लेख में हम जानेंगे कि टैक्स क्यों लगाया जाता है? और टैक्स कितने प्रकार के होते हैं? What are taxes ?How many types of taxes there are? 

पूरा लेख एक नजर में

  • टैक्स क्यों लगाया जाता है? why tax is imposed by the government
  • भारत में टैक्स के प्रकार | Types of Taxes In India
  • प्रमुख प्रत्यक्ष करों के नाम| Major Direct Taxes
  • प्रमुख अप्रत्यक्ष कर| Major Indirect Taxes

टैक्स क्यों लगाया जाता है? why tax is imposed by the government

सरकार को अपने विभागों और योजनाओं के संचालन के लिए पैसों की जरूरत पड़ती है। देश व राज्यों के विकास के लिए और जनता को सुविधाएं देने के लिए लोगों से टैक्स वसूलती है। ये पैसे सरकार, मुख्य रूप से टैक्सों के माध्यम से ही प्राप्त करती है।  नीचे हम कुछ ऐसे उद्देश्यों की लिस्ट दे रहे हैं, जिनके लिए सरकार को टैक्स लगाने की जरूरत पड़ती है।

बुनियादी सुविधाओं जैसे सड़क, बिजली पानी वगैरह के लिए खर्च हेतु  For funding of public infrastructure, like Road, Electricity, water etc
सरकारी कर्मचारियों की सैलरी, पेंशन, भत्ते वगैरह देने के लिए For Salaries, pension, allowance of state and government employees 
विकास और कल्याणकारी योजनाओं के लिए  For development and welfare projects
लोंगों तक स्वास्थ्य व बीमा सुविधाएं पहुंचाने के लिए For Public health and insurance
लोगों को शिक्षा व रोजगार सुविधाओं के लिए Public education and employment
वैज्ञानिक अनुसंधान और प्रशिक्षण के लिए Scientific research and Training
सैन्य व रक्षा संबंधी खर्चो के लिए For military and defence expenditure
कानून व व्यवस्था कायम रखने के लिए Law and order enforcement 
आकस्मिक व आपदा नियंत्रण संबंधी खर्चों के लिए Emergency and Tragedy Operations

भारत में टैक्स के प्रकार | Types of Taxes In India

भारत में सरकार या अधिकृत संस्थाओं की ओर से टैक्स वसूलने का सिस्टम दो कैटेगरी में बंटा हुआ है-

  • 1. प्रत्यक्ष कर | Direct Taxes : जिसमें सीधे टैक्सपेयर से सरकार टैक्स वसूलती है
  • 2. अप्रत्यक्ष कर | Indirect taxes : जिसमें सरकार किसी अन्य (जैसे कि, उत्पादक, निर्माणकर्ता, या कारोबारी) से टैक्स वसूलती है और फिर वह टैक्सपेयर्स से टैक्स की भरपाई करता है।

दोनों तरह के टैक्सों के बारे में पहले संक्षेप में इनका परिचय प्राप्त करते हैं, फिर इनके प्रमुख प्रकारों के बारे में जानेंगे।

प्रत्यक्ष कर | Direct Taxes

ये वो Tax होते हैं जो Government आपकी कमाई के हिस्से के रूप में सीधे आपसे वसूल लेती हैं। जैसे Income Tax, Propery Tax, Corporate Tax, Capital Gain Tax, TDS आदि । इन्हें प्रत्यक्ष कर यानी Direct Taxes इसलिए कहते हैं क्योंकि इन्हें जिस व्यक्ति पर लगाया जाता है, Direct उसी से वसूला भी जाता है। इन्हें भरने वाला आगे चलकर किसी और पर उसका भार Transfer नहीं कर सकता। टैक्स की भाषा में कहें तो कराघात (Impact of Tax) और करापात Incident of Tax दोनों समान व्यक्ति पर होता है। इनकम टैक्स और कॉरपोरेट टैक्स ऐसे ही टैक्स हैं।

अप्रत्यक्ष कर | Indirect Taxes

ये वो Tax होते हैं जिन्हें सरकार आपसे अप्रत्यक्ष तौर पर (Indirectly) वसूल करती है। मतलब यह कि Government ने किसी और से लिया, फिर उस देने वाले ने आगे चलकर किसी और से टैक्स की भरपाई कर ली। इनडायरेक्ट टैक्स वस्तुओं और सेवाओं की कीमत में शामिल करके वसूले जाते हैं। Excise Duty, Service Tax, Intertainment Tax आदि इसी Catagory के Tax हैं। हाल ही में आया GST भी इसी Catagory का Tax है। आ र्थिक भाषा में कहें  Indirect Taxes में कराघात (Impact of Tax) और करापात (Incident of Tax)  दोनों अलग-अलग व्यक्ति पर होता है।

टैक्स को क्यों लगाया जाता है? - taiks ko kyon lagaaya jaata hai?

प्रमुख प्रत्यक्ष करों के नाम| Major Direct Taxes

इनकम टैक्स | Income tax

जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि यह लोगों की Income पर लगाया जाता है। लोग जो भी कमाते हैं, उसमें से एक तय हिस्सा सरकार उनसे Tax के रूप में ले लेती है। इसे Central Government की ओर से लगाया और वसूला जाता है, लेकिन Finance Commision की सिफारिशों के अनुसार केंद्र और State Government के बीच बांटा जाता है । भारत में, बहुत कम Income वाले लोगों को Income Tax के दायरे से बाहर रखा गया है। इसके ऊपर थोड़ा  ज्यादा Income वालों से कुछ Percentage में और बहुत ज्यादा income  वालों से ज्यादा Percentage में इनकम टैक्स लिया जाता है।

किस Level की कमाई होने पर कितना हिस्सा (Percentage में) टैक्स लिया जाएगा, इसकी घोषणा सरकार हर साल Financial Year शुरू होने से पहले Budget में Tax Slab के रूप में करती है। ये Tax Slab भी अलग-अलग श्रेणी के लोगों के लिए अलग-अलग होते हैं। जैसे Senior Citizens, Companies, Firms, Organisations आदि के लिए अलग-अलग Tax Slab Rates होते हैं। Tax Slab Rates के बारे में विस्तार से जानकारी हमने अलग लेख में दी है। यहां पर हम टैक्स स्लैब से परिचित कराने के लिए, आपको वित्त वर्ष 2022-23 में सामान्य़ नागरिकों (60 वर्ष से कम उम्र वाले) पर लागू टैक्स स्लैब को दे रहे हैं-

Income Tax Slab Rate (2022-23) for Individual Below 60)

इनकम स्लैब टैक्स की दर
2.5 लाख से कम वाले हिस्से पर शून्य (NIL)
2.5 लाख से 3 लाख के बीच वाले हिस्से पर 5% (5 लाख रुपए से कम आमदनी वालों को सेक्शन 87a के तहत 12500 रुपए तक का टैक्स रिबेट मिल जाता है। यानी कि टैक्स बनने के बावजूद माफ कर दिया जाता है। इसलिए 5 लाख रुपए तक की आमदनी पर टैक्स की गणना तो आप करेंगे लेकिन, आखिरकार आपको टैक्स देना नहीं पड़ेगा।
3 लाख से 5 लाख के बीच वाले हिस्से पर
5 लाख से 7.5 लाख के बीच वाले हिस्से पर 10%
7.5 लाख से 10 लाख के बीच वाले हिस्से पर 15%
10 लाख से 12.5 लाख के बीच वाले हिस्से पर 20%
12.5 लाख से 15 लाख रुपए के बीच वाले हिस्से पर 25%
15 लाख रुपए से अधिक वाले पूरे हिस्से पर 30%

इनकम टैक्स में शामिल Income Sources: इनकम टैक्स की गणना करते वक्त निम्नलिखित Sources से हुई आय को आपकी कुल Income में शामिल किया जाता है।

  • सैलरी के रूप में हुई आमदनी| Income from Salary
  • हाउस प्रॉपर्टी से हुई आमदनी  (किराया के रूप में)|Income from House Property
  • बिजनेस या किसी प्रोफेशन से होने वाला लाभ|Profits and Gains of Business or Profession
  • कैपिटल गेन्स के रूप में हुई आमदनी| Capital Gains Income
  • अन्य स्रोतों हुई आमदनी| Income from Other Sources

Note :

  • Income Tax की गणना के पहले आपकी कई प्रकार की Incomes पर छूटों (पूरी तरह टैक्स मुक्त) और कटौतियों (कमाई के तय हिस्से पर छूट) का फायदा मिलता है।
  • सालाना 50 लाख रुपए से ज्यादा आमदनी कमाई होने पर 10-37% तक सरचार्ज भी लगाया जाता है।
  • आप पर जितना भी Tax बन रहा है उस पर Tax की मात्रा का 4% Health and Educational Cess भी लगाया जाता है। Education Cess सभी Taxpayers पर बराबर लगता है, भले ही वह किसी भी टैक्स स्लैब में आते हों।

टीडीएस | Tax Deduction at Source-TDS

Income के कुछ तरीके ऐसे होते हैं, जिनमें Payment पहले से तय होता है, जैसे सैलरी, Contract Payment आदि। ऐसे मामलों में सरकार Salary देने वाले या Contract Payment करने वाले को ही Payment से पहले ही टैक्स काटकर जमा करने का जिम्मा सौंपती है। इस प्रक्रिया में चूंकि आमदनी देने वाले स्रोत से ही टैक्स कटौती कर ली जाती है, इसलिए इसे स्रोत पर कर कटौती Tax Deduction at Source या टीडीएस कहा जाता है।

For Example: अगर आप किसी संस्थान के Salaried कर्मचारी हैं और आपकी सैलरी टैक्सेबल है तो कंपनी तनख्वाह देने से पहले TDS काट लेती है। बचा हिस्सा ही आपके Account में जमा करती है। TDS काटने वाला इसका Certificate भी देता है।

  • विस्तार से जानें: टीडीएस क्या है? फुल फॉर्म और नियम

प्रोफेशनल टैक्स | Professional Tax

अगर आप कमाऊ professional हैं तो आप जिस राज्य की सीमा में काम कर रहे हैं, वहां की राज्य सरकार आप पर यह टैक्स लगा सकती है। देश के ज्यादातर राज्यों में यह टैक्स लगता है। Private organizations में काम करने वाले हर इस Catagory के व्यक्ति को यह Tax देना पड़ता है। यह आपके Employer की ओर से हर महीने काट लिया जाता है और State Government या नगर निगम के पास जमा कर दिया जाता है। income tax की ही तरह यह टैक्स भी अनिवार्य है। हर राज्य में इसकी दर अलग-अलग हो सकती है। Professional Tax लगाने वाली सरकारेें बाकायदा इसके टैक्स स्लैब जारी करती हैं। आप जिस स्लैब में आते हैं, उसके अनुसार आपको ये टैक्स भरना पड़ता है। फिलहाल Professional Tax ज्यादा से ज्यादा 2500 रुपए ही लगाया जा सकता है।

और पढ़ें – राज्यों में प्रोफेशनल टैक्स के रेट

सुविधाओं पर टैक्स | Perquisite Tax

Employer की ओर से अपने  Staff को Salary के अलावा दी जाने वाले पर्क्स (अतिरिक्त सुविधाओं) पर Perquisite Tax लगता है। उदाहरण के लिए, आपकी कंपनी आपको Salary के अलावा जो कार-ड्राइवर, आवास, क्लब मेंबरशिप, Employee stock ownership plan-ESOP आदि की सुविधाएं देती है उन पर Perquisite Tax देना पडता है। इस Tax के अंतर्गत यह देखा जाता है कि क्या Company द्वारा दी गई सुविधा का वास्तविक फायदा Staff को हो रहा है कि नहीें।

For Example:  अगर आपको Company सिर्फ कंपनी के Business संबंधी कार्यों के लिए कार उपलब्ध कराती है तो उस पर आपको Tax नहीं देना होगा। इसके विपरीत, अगर वही Car आपको घर से आने-जाने और अन्य निजी कार्यों के लिए भी उपलब्ध कराई जाती है तो इस पर इस पर होने वाले खर्च पर Perquisite Tax लगेगा। अगर दोनों तरह के कामों में यही Car लगाई जाती है तो भी यह Tax लगेगा।

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कैपिटल गेन्स टैक्स| Capital Gains tax

Property, Gold, Jwellery, Shares  और B0nds  वगैरह को बेचने से होने वाले लाभ को Capital Gain कहा जाता है। सरकार Capital Gain पर भी टैक्स लेती है। Capital Gain दो प्रकार के होते हैं-long Term Capital Gain और Short Term Capital Gain।  हर पूंजी पर Long Term और Short Term की गणना और उस पर Tax का Rate अलग-अलग होता है।

  • Real Estate यानी घर, दुकान, Office आदि को खरीदने के दो साल बाद बेचा जाता है तो इस पर मिलने वाले लाभ को long Term Capital Gain कहा जाता है। इन्हें  खरीदने के दो साल के अंदर बेचा जाता है तो उस पर मिलने वाले लाभ को Short Term Capital Gain कहा जाता है।
  • Gold, Jwellery, सिक्के आदि  के लिए लॉन्ग टर्म तीन साल का होता है।
  • शेयर मार्केट में Stocks और Mutual Funds की खरीद-बिक्री के संबंध में 1 साल के उपर की अवधि को Long Term कहा जाता है, जबकि 1 साल से कम की अवधि को Short Term की श्रेणी में रखते हैं।

विस्तार से जानें:कैपिटल गेन्स टैक्स क्या है?

प्रॉपर्टी टैक्स| Property Tax/Municipal Tax

अगर आप किसी बडे़ शहर में निवास कर रहे हैं, जहां Municipal Corporation है तो आपको अपनी प्रॉपर्टी पर property tax या Municipal Tax भी देना पड़ता है। आपकी प्रॉपर्टी में आपके आवासीय भवन, Office, फैक्टरी बिल्डिंग, गोदाम, Flat, दुकान वगैरह हो सकती हैं। Property Tax उस टैक्स से अलग होता है जो आपको Income Tax  के अंतर्गत Property से होने वाली आमदनी पर देना पड़ता है। इसे सिर्फ Property  पर आपके मालिकाना हक होने के कारण देना पड़ता है।  दरअसल Property Tax नगर निगम तमाम सुविधाओं के बदले में लेता है, जैसे कि सडकें, सीवेज सिस्टम, बिजली, पार्क आदि।

गिफ्ट टैक्स | Gift Tax

भारत में अगर आप 50 हजार रुपए से अधिक का Gift प्राप्त करते हैं तो आपको सरकार को उस पर Tax देना पड़ता है। यह Tax अन्य स्रोतों से आमदनी शीर्षक के तहत गिना जाता है। अगर यह आपके Family के किसी सदस्य या नजदीकी Relative की ओर से दिया गया है जैसे कि माता-पिता, पति-पत्नी, भाई-बहन आदि तो इसे Tax से मुक्त रखा गया है। स्थानीय अधिकारियों से मिला Gift भी टैक्स से छूट प्राप्त होता है। शादी के वक्त मिले गिफ्ट पर भी टैक्स नहीं लगता है।

  • गिफ्ट पर इनकम टैक्स के नियम

कॉर्पोरेट टैक्स | Corporate Tax

कोई कंपनी यदि भारत में कारोबार करती है तो उस पर Corporate Tax लगाया जाता है। दरअसल जिस तरह हम लोगों की कमाई पर इनकम टैक्स लगता है उसी तरह कंपनियों की कमाई पर कॉरपोरेट टैक्स लगता है। फिलहाल 400 करोड़ से कम टर्नओवर वाली कंपनियों पर 22% टैक्स लगता है। उस पर सेस और सरचार्ज मिलाकर कुल 25.17% बैठता है।

लेकिन नई कंपनियों को बढ़ावा देने के लिए 1st October 2019 या उसके बाद शुरू की गई कंपनियों के लिए कार्पोरेट टै्क्स की दर सिर्फ 15% रखी गई है। सेस और सरचार्ज मिलाकर यह 17.01% पड़ता है। विदेशी कंपनियों पर 40 प्रतिशत Corporate Tax लगता है। हालांकि यह उस देश के साथ Trade संधियों पर भी निर्भर करता है।

डिविडेंड डिस्ट्रीब्यूशन टैक्स| Dividend Distribution Tax (DDT)

कंपनियां अपने मुनाफे को दो तरीके से इस्तेमाल करती हैं। पहला  मुनाफे को आने वाले दिनों या विस्तार के लिए अपने पास रख लेना। दूसरा मुनाफे को कंपनी के मालिक और शेयरहोल्डरों के बीच डिविडेंड के तौर पर बांट देना। जब मुनाफे का इस्तेमाल पहले तरीके से होता है तो उसे कॉरपोरेट टैक्स या MAT देना होता है। लेकिन अगर मुनाफा का हिस्सा शेयरहोल्डरों को Dividend के तौर पर दिया जाए तो उस पर डिविडेंड डिस्ट्रीब्यूशन टैक्स लगता है। कंपनी इस टैक्स को काटकर ही डिविडेंड बांटती है। यानी हमें आपको शेयर पर जो डिविडेंड मिलता है उस पर पहले से टैक्स कट चुका होता है। और इसीलिए डिविडेंड की कमाई पर इनकम टैक्स नहीं लगता है। फिलहाल Dividend Distribution Tax करीब 20% है।

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सिक्योरिटीज ट्रांजैक्शन टैक्स | Securities Transaction Tax

टैक्स को क्यों लगाया जाता है? - taiks ko kyon lagaaya jaata hai?

आप Stock Exchange में जो शेयर की खरीद-बिक्री करते हैं, उस पर मिलने वाले लाभ पर तो Capital Gain Tax देना ही पड़ता है  इसके पहले भी जब आप शेयर बाजार में Share आदि का सौदा कर रहे होते हैं, उसी समय उस खरीद या बेच पर भी Tax देना पडता है। इसे Securities Transaction Tax कहते हैं। यह Equity Shares,  derivative instruments, equity oriented Mutual Funds आदि की खरीदारी करने और बेचने, दोनों पर लगता है। वैसे इसकी मात्रा इतनी कम होती है कि Tax देने वाले को इसका भार ज्यादा प्रभावित नहीं करता।


प्रमुख अप्रत्यक्ष कर| Major Indirect Taxes

जीएसटी | Goods And Services Taxes-GST 

GST यानी माल एवं सेवा कर देश भर में 1 जुलाई 2017 से लागू हुआ है। इसे इसके पहले केंद्र और राज्य सरकारों की ओर से लागू तीन दर्जन से ज्यादा Indirect Taxes को हटाकर लागू किया गया है। मतलब यह कि वस्तुओं और सेवाओं पर अब पहले लगने वाले ढेरों Taxes  की बजाय अब अकेला GST टैक्स लगना है। GST में जो टैक्स मिलाए गए हैं, उनमें से प्रमुख Taxes के नाम हम नीचे सारणी में दे रहे हैं।

Central Taxes Those Replaced By GST
केंद्र के वो टैक्स जिनकी जगह जीएसटी लेगा
State Taxes those Replaced By GST
राज्यों के वो टैक्स जिनकी जगह जीएसटी लेगा
  • केंद्रीय उत्पाद शुल्क Central Excise Duty
  • Duties of Excise (Medical and Toilet Preparations)
  • विशेष महत्व वाली वस्तुओं पर अतिरिक्त केंद्रीय उत्पाद शुल्क Additional Duties of Excise
  • वस्त्र एवं वस्त्र उत्पादो पर अतिरिक्त केंद्रीय उत्पाद शुल्क  Additional Duties of Excise (Textiles and textile products)
  • कस्टम शुल्क Duties of Customs (CVD)
  • Special Additional Duty of Customs (SAD)
  • सर्विस टैक्स उपकर एवं अधिभार Service Tax Cesses and surcharges
  • प्रादेशिक कर State VAT
  • केंद्रीय विक्री कर Central Sales Tax
  • क्रय कर Purchase Tax
  • विलासिता कर Luxury Tax
  • प्रवेश कर Entry Tax (all forms)
  • मनोरंजन कर Entertainment Tax (स्थानीय निकाय से अलग)
  • विज्ञापन कर Taxes On Advertisements
  • लॉटरी, सट्टा, जुएं आदि पर टैक्स Taxes on lotteries, Betting and Gambling
  • प्रादेशिक उपकर एवं अधिभार State cesses and surcharges

तीन प्रकार के जीएसटी | Three Forms Of GST
कहने को तो जीएसटी एक टैक्स है, लेकिन इसको तीन रूपों में लगाया गया है।

  1. CGST यानी केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर| Central Goods And Services Tax
    किसी राज्य के अंदर, उसी राज्य के दो पक्षों के बीच सौदा होने पर केंद्र सरकार की ओर से CGST यानी केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर वसूला जाएगा। Tax का यह Amount केंद्र सरकार को मिलेगा।
  2. SGST यानी प्रादेशिक वस्तु एवं सेवा कर| State Goods And Services Tax
    किसी राज्य के अंदर, उसी राज्य के दो पक्षों के बीच सौदा होने पर वहां की राज्य सरकार की ओर से SGST यानी प्रादेशिक वस्तु एवं सेवा कर वसूला जाएगा। Tax  का यह Amount राज्य सरकार को मिलेगा। केंद्र शासित राज्यों के मामले में SGST की जगह पर इसका नाम UTGST हो जाता है।
  3. IGST यानी एकीकृत प्रादेशिक वस्तु एवं सेवा कर | Integrated Goods And Services Tax
    दो अलग-अलग राज्यों के दो पक्षों के बीच सौदा होने पर केंद्र सरकार की ओर से IGST यानी एकीकृत प्रादेशिक वस्तु एवं सेवा कर वसूला जाएगा। Tax का यह Amount आगे चलकर केंद्र और राज्य सरकार बीच बंट जाएगा।

जीएसटी की दरें | Rates Of GST

GST Council ने अलग-अलग प्रकार की वस्तुओं के लिए जीएसटी के कुल पांच रेट तय किए हैं-

  • 00% GST : जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक वस्तुओं एवं सेवाओं पर, जैसे कि अनाज, नमक, गुड़, ताजी सब्जियां वगैरह।
  • 05% GST : सामान्य आवश्यक वस्तुओं एवं सेवाओं पर, जैसे कि चीनी, तेल, मसाले, चाय, काफी वगैरह।
  • 12% GST :  रोजमर्रा काम आने वाली वस्तुओं एवं सेवाओं पर, जैसे कि नमकीन, दंतमंजन, छाता, दवाइयां, वगैरह।
  • 18% GST :  थोड़ा कम अनिवार्यता वाली वस्तुओं, जैसे कि चॉकलेट, मिनरल वाटर, आइसक्रीम, शैंपू, रेफ्रिजरेटर वगैरह।
  • 28% GST : विलासी और हानिकारक श्रेणी में आने वाली वस्तुओं एवं सेवाओं पर, जैसे कि- पान मसाला, ऑटोमोबाइल, फाइव स्टार होटल में ठहरना वगैरह।
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  • जीएसटी में डेबिट नोट और क्रेडिट नोट क्या होते हैं?

स्टांप शुल्क , रजिस्ट्री फीस, ट्रांसफर टैक्स

अगर आप कोई अचल संपत्ति खरीदते हैं तो आपको उसकी कीमत तो उसके पुराने मालिक को देनी पड़ती है। उस कीमत का कुछ प्रतिशत आपको Stamp Duty, Registration Fees के रूप में भी देना पड़ता है।  ऐसा आपके नाम प्रॉपर्टी के legal document तैयार करने के लिए किया जाता है। अलग-अलग तरह की Property पर उसके स्थान व स्वरूप के मुताबिक ये शुल्क अलग-अलग हो सकते हैं। इसके अलावा अगर प्रॉपर्टी को अगर बेचा नही गया है और ट्रांसफर के माध्यम से आपके नाम किया गया है तो भी Transfer Tax देना पड़ता है।

स्टांप डयूटी property के सहमति मूल्य या circle rate (राज्य सरकार द्वारा तय ​Property की न्यूनतम खरीद दर) पर लगता है। दोनों में जो भी ज्यादा होगा, उसका एक तय प्रतिशत Stamp Duty के रूप में देना पड़ता है। Stamp Duty  के अलावा सौदे की रकम का 1 प्रतिशत Registration Charge के रूप मेें भी देना पड़ता है। कुछ राज्यों में महिलाओं के नाम प्रॉपर्टी खरीदने पर कम स्टांप शुल्क लगता है।

Note: GST लागू होने के बाद भी ये शुल्क जारी रहने हैं। क्योंकि सरकार ने इन्हें GST Act में नहीं लिया है। वैसे 13 वें Finance Commission में जीएसटी पर बनाई गई टास्क फोर्स ने Stamp Duty को भी जीएसटी के तहत लाने की सिफारिश की थी, लेकिन फिलहाल इसे इससे बाहर ही रखा गया है।

मंडी शुल्क| Mandi Shulk

देश भर में 1 जुलाई 2017 से GST लगने के बाद ज्यादातर Indirect Taxes खत्म हो गए हैं, लेकिन मंडियों में के कृषि उपज की बिक्री पर लगने वाला मंडी शुल्क अब भी बरकरार है। कोई भी किसान किसी मंडी में जब अपना माल बेचने जाता है तो उस पर मंडी शुल्क लगता है। मंडी शुल्क की दरें देश के अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग हैं। अधिकांश राज्यों में यह डेढ़ से 2 प्रतिशत है, हरियाणा-पंजाब में 4 प्रतिशत भी है। हालांकि कुछ विशेषज्ञ मंडी शुल्क को Tax की कैटेगरी में नहीं मानते। उनके मुता​बिक मंडी शुल्क से प्राप्त होने वाली धनराशि किसी राज्य सरकार के खजाने में नहीं जाती, बल्कि इसका इस्तेमाल मंडियों के रख-रखाव, प्रबंधन और कर्मचारियों आदि के लिए किया जाता है। इस कारण इसे टैक्स नहीं माना जा सकता।

तो दोस्तों ये थी टैक्स के प्रमुख प्रकारों पर जानकारी। रुपयो-पैसों से जुड़ी अन्य उपयोगी जानकारियों के लिए देखें हमारे लेख-

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टैक्स क्या है और क्यों लगाया जाता है?

कर करदाता द्वारा किया जाने वाला ऐसा अनिवार्य अंशदान है जो कि सामाजिक उद्देश्य जैसे आय व संपत्ति की असमानता को कम करके उच्च रोजगार स्तर प्राप्त करने तथा आर्थिक स्थिरता व वृद्धि प्राप्त करने में सहायक होता है। कर एक ऐसा भुगतान है जो आवश्यक रुप से सरकार को उसके बनाए गए कानूनों के अनुसार दिया जाता है।

टैक्स क्या है टैक्स के प्रकार?

भारत में करों के प्रकार प्रत्यक्ष कर माल और सेवा कर प्रतिभूति लेनदेन कर कॉर्पोरेट टैक्स.
अप्रत्यक्ष कर बिक्री कर सेवा कर मूल्य वर्धित कर (वैट) सीमा शुल्क टोल टैक्स.

भारत में सबसे ज्यादा टैक्स कौन करता है?

TCS ने सबसे ज्यादा 11536 करोड़ का टैक्स जमा किया BSE की वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के मुताबिक, 31 मार्च 2022 को समाप्त वित्त वर्ष में टीसीएस ने 11536 करोड़ का टैक्स जमा किया. उसके बाद टाटा स्टील ने 11079 करोड़, JSW स्टील ने 8013 करोड़, एलआईसी ने 7902 करोड़ और रिलायंस ने 7702 करोड़ का टैक्स जमा किया है.

टैक्स का हिंदी में क्या होता है?

Toxic का मतलब जहरीला होता है.