अविभाजित आंध्र प्रदेश के विभाजन से पहले तेलंगाना आधिकारिक भाषा अधिनियम 1966 की धारा दो के तहत तेलंगाना क्षेत्र के खम्माम को छोडकर कुल दस में से नौ जिलों में उर्दू को दूसरी आधिकारिक भाषा घोषित किया गया था। बयान में कहा गया कि उर्दू भाषी जनसंख्या का प्रतिशत राज्य की कुल जनसंख्या का १२.६९ है।
इसमें कहा गया कि सरकार ने तेलंगाना आधिकारिक भाषा अधिनियम 1966 की धारा दो में जरूरी संशोधन करके पूरे तेलंगान प्रदेश में उर्दू को दूसरी आधिकारिक भाषा घोषित करने का फैसला किया है। यह विधेयक इस फैसले को अमल में लाता है।
विधेयक की प्रशंसा करते हुए एमआईएम के नेता अकबरूद्दीन ओवैसी ने कहा कि इससे पहले उर्दू के साथ न्याय नहीं किया गया था। उन्होंने इस भाषा के संरक्षण के लिए अपने पिता और दिवंगत एमआईएम नेता सलाहुद्दीन ओवैसी तथा अन्य के प्रयासों को याद किया।
स्त्रोत : नवभारत टाइम्स
१० नवंबर २०१७
तेलंगाना के मुख्यमंत्री की तुष्टीकरण की राजनीति : उर्दू को दिया दूसरी आधिकारिक भाषा का दर्जा
रिपब्लिक टीवी के अनुसार, अपने संबोधन में मुख्यमंत्री केसीआर ने कहा, “लंबे समय से मांग की जा रही थी कि उर्दू को दूसरी आधिकारिक भाषा बनाई जाय। हालांकि, आंध्र प्रदेश का दृष्टिकोण तेलंगाना से अलग है। २३ जिलों में उर्दू भाषी लोग नहीं हैं, इसलिए वहां कुछ जिलों में यह लागू है और कुछ जिलों में नहीं है लेकिन हम यहां जिला स्तर पर नहीं बल्कि राज्य स्तर पर उर्दू को दूसरी आधिकारिक भाषा के रूप में अपनाने का एलान करते हैं। अब पूरे तेलंगाना में उर्दू में भी कामकाज किया जा सकेगा।”
विपक्षी बीजेपी और कांग्रेस ने मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव पर वोट बैंक के खातिर मुस्लिम तुष्टिकरण के आरोप लगाए हैं। इससे पहले अक्टूबर में भी बीजेपी और कांग्रेस ने सीएम केसीआर के उस प्रस्ताव का विरोध किया था जिसके तहत राज्य में मुस्लिमों के लिए एक्सक्लूसिव इंडस्ट्रियल एस्टेट और आईटी कॉरिडोर बनाए जाने की बात कही गई थी। विरोधी दलों ने सीएम पर तुष्टिकरण की राजनीति करने का आरोप लगाया था।
इस समाचार से यह साफ होता है कि, केसीआर अल्पसंख्यकों के तुष्टिकरण के लिए यह सब कर रहे है । भारतीय संविधान के अनुसार हिन्दी राष्ट्रभाषा होने के बाद भी उर्दू को दुसरी अधिकारीक भाषा बनाने का निर्णय लेना दुर्भाग्यपूर्ण है। इसके पहले भी तेलंगाना सरकार ने मुसलमानों को १२ प्रतिशत आरक्षण दिया है। अब उर्दू को यह दर्जा देकर हिन्दी भाषा का दमन किया जा रहा है। क्या एेसे निर्णय लेकर मुख्यमंत्री तेलंगाना को इस्लामीस्तान बना रहे है ?, एेसा विचार जनता के मन में आता है।
हैदराबाद : तेलंगाना विधानसभा ने आज उर्दू को राज्य की दूसरी आधिकारिक भाषा बनाने वाला विधेयक पारित किया. राज्य में उर्दू बोलने वालों की अच्छी खासी संख्या है जो सभी 31 जिलों में फैली हुई है. तेलंगाना आधिकारिक भाषा (संशोधन) विधेयक 2017 का सभी दलों ने समर्थन किया.
अविभाजित आंध्र प्रदेश के विभाजन से पहले तेलंगाना आधिकारिक भाषा अधिनियम 1966 की धारा दो के तहत तेलंगाना क्षेत्र के खम्माम को छोड़कर (कुल दस में से) नौ जिलों में उर्दू को दूसरी आधिकारिक भाषा घोषित किया गया था. वर्ष 2014 में तेलंगाना प्रदेश के गठन के बाद दस जिलों को पिछले साल 31 जिलों में पुनर्गठित किया गया. बयान में कहा गया कि उर्दू भाषी जनसंख्या का प्रतिशत राज्य की कुल जनसंख्या का 12.69 है.
इसमें कहा गया कि सरकार ने तेलंगाना आधिकारिक भाषा अधिनियम 1966 की धारा दो में जरूरी संशोधन करके पूरे तेलंगान प्रदेश में उर्दू को दूसरी आधिकारिक भाषा घोषित करने का फैसला किया है. यह विधेयक इस फैसले को अमल में लाता है.
विधेयक की प्रशंसा करते हुए एमआईएम के नेता अकबरूद्दीन ओवैसी ने कहा कि इससे पहले उर्दू के साथ न्याय नहीं किया गया था. उन्होंने इस भाषा के ‘‘संरक्षण’’ के लिए अपने पिता और दिवंगत एमआईएम नेता सलाहुद्दीन ओवैसी तथा अन्य के प्रयासों को याद किया.
हैदराबाद। Telangana Telugu Language तेलंगाना सरकार ने इस शैक्षणिक सत्र (2022-2023) की शुरुआत से पहली से दसवीं कक्षा तक केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई), इंडियन सर्टिफिकेट आफ सेकंडरी एजुकेशन (आईसीएसई), आईबी और अन्य बोर्ड से संबद्ध स्कूलों के विद्यार्थियों के लिए तेलुगू को दूसरी भाषा के रूप में अनिवार्य कर दिया है।
इस विषय में एक परिपत्र हाल ही में स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा जारी किया गया, जो राज्य सरकार के तेलंगाना (स्कूलों में अनिवार्य रूप से तेलुगू का शिक्षण) अधिनियम 2018 को चरणबद्ध तरीके से 2018-19 से लागू करने के हिस्से के रूप में आया है। अधिनियम के अनुसार, तेलुगू को कक्षा पहली से दसवीं तक अनिवार्य कर दिया गया था, चाहे स्कूल किसी भी बोर्ड से संबद्ध हों। परिपत्र के अनुसार, ‘‘सभी प्रबंधन और विभिन्न बोर्ड से संबद्ध स्कूलों (सीबीएसई, आईसीएसई, आईबी और अन्य बोर्ड) के लिए शैक्षणिक सत्र 2022-23 से पहली से दसवीं कक्षा तक अनिवार्य विषय के रूप में तेलुगू को लागू करने के नियमों का उल्लंघन तेलंगाना राज्य में गंभीरता से देखा जाएगा और तेलंगाना राज्य सरकार द्वारा दिए गए अधिनियम और दिशानिर्देशों के अनुसार आवश्यक कार्रवाई की जाएगी।’’
विभाग ने तेलुगू की दो पाठ्यपुस्तकें तैयार की हैं। एक तेलुगू भाषी विद्यार्थियों के लिए और दूसरी उन बच्चों के लिए जिनकी मातृभाषा तेलुगू नहीं है। राज्य सरकार ने यह भी आगाह किया कि नियम का पालन न करने से उन स्कूलों को जारी अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) पर गंभीर असर पड़ेगा।