त्रिपिंडी श्राद्ध कौन कर सकता है? - tripindee shraaddh kaun kar sakata hai?

पितृपक्ष की प्रतिपदा पर गया तीर्थ की मान्यता वाले पिशाचमोचन कुंड पर त्रिपिंडी श्राद्ध की परंपरा निभाई गई। मंगलवार को अस्सी से लेकर राजघाट के बीच के कई घाटों पर श्रद्धालु प्रतिपदा का श्राद्ध करते हुए नजर आए। गंगा के बढ़े हुए जलस्तर के कारण सावधानी के साथ ही नेमियों ने पितरों के श्राद्ध व तर्पण की प्रक्रिया को पूर्ण किया।

पिशाचमोचन कुंड पर सुबह से शुरू हुआ त्रिपिंडी श्राद्ध का सिलसिला देर शाम तक चलता रहा। कुछ पुरोहितों ने मोबाइल व वीडियो कॉल के जरिए अपने यजमानों के प्रतिप्रदा के श्राद्ध को संपन्न कराया। सुबह से ही गंगा के घाट पर स्नान करने के बाद लोगों ने अपने पितरों को पिंड दान करने में लगे रहे।

श्राद्ध क्या है, क्यों आवश्यक है
काशी विद्वत परिषद के संगठन मंत्री पंडित दीपक मालवीय ने बताया कि श्रीमद्भागवत गीता में उल्लेख है कि संकरो नरकायैव कुलघ्नानां कुलस्य च। पतन्ति पितरो हैषां लुप्त पिंडोदकक्त्रिस्या। अर्थात लुप्त पिंड, तर्पण क्रिया और वर्णसंकरों, कुलघातियों से उनके पितर नरक में गिरते हैं तथा श्राप देते हैं। जिससे उनकी पीढ़ी में कोई आपदा, आर्थिक, मानसिक, परेशानियां उत्पन्न होने लगती हैं और व्यक्ति पितृऋ ण का दोषी हो जाता है। इस हेतु पितरों का पूजन श्राद्ध आदि करने चाहिए।
श्राद्ध के प्रकार
श्राद्ध दो प्रकार के होते हैं
1-पिंड क्रिया- यह प्रश्न स्वाभाविक है कि श्राद्ध में दी गई अन्न सामग्री पितरों को कैसे मिलती है। वायु पुराण के अनुसार, नाम गौत्रं च मंत्रश्च दत्तमन्नम नयन्ति तम। अपि योनिशतम प्राप्तान्सतृप्तिस्ताननुगच्छन्ति। श्राद्ध में दिए गए अन्न को नाम, गोत्र, हृदय की श्रद्धा, संकल्पपूर्वक दिए हुए पदार्थ भक्तिपूर्वक उच्चारित मंत्र उनके पास भोजन रूप में उपलब्ध होते हैं।

2- ब्राह्मण भोजन
मनुस्मृति के अनुसार, निमन्त्रितान हि पितर उपतिष्ठन्ति तान द्विजान। वायुवच्चानुगच्छन्ति तथासिनानुपासते। अर्थात श्राद्ध में निमंत्रित ब्राह्मण में पितर गुप्त रूप से प्राणवायु की भांति उनके साथ भोजन करते हैं। मृत्यु के पश्चात पितर सूक्ष्म शरीरधारी होते हैं, इसलिए वह दिखाई नहीं देते हैं। शतपथ ब्राह्मण में कहा गया है कि तिर इव वै । पितरो मनुष्येभ्य। अर्थात सूक्ष्म शरीरधारी पितर मनुष्यों से छिपे होते हैं।

काशी को मोक्ष की नगरी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि यहीं से भगवान शिव ने सृष्टि रचना का प्रारम्भ किया था। कहते हैं यहां जो इंसान अंतिम सांस लेता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है इसीलिए कई लोग अपने अंतिम समय में काशी में ही आकर बस जाते हैं। मोक्ष नगरी काशी में चेतगंज थाने के पास पिशाच मोचन कुंड है। ऐसी मान्यता है कि यहां त्रिपिंडी श्राद्ध करने से पितरों को प्रेत बाधा और अकाल मृत्यु से मरने के बाद व्याधियों से मुक्ति मिल जाती है। इसीलिये पितृ पक्ष के दिनों में पिशाच मोचन कुंड पर लोगों की भारी भीड़ उमड़ती है। श्राद्ध की इस विधि और पिशाच मोचन तीर्थस्थली का वर्णन गरुण पुराण में भी मिलता है।

पिशाचमोचन पर पितृ पक्ष में हर साल हजारों लोगों की भीड़ उमड़ती है। इस बार तीर्थ पुरोहितों ने पितृपक्ष में सामूहिक त्रिपिंडी श्राद्ध ऑनलाइन ही कराने की व्यवस्था की है। तीर्थ पुरोहितों ने फेसबुक पेज पर श्राद्ध संबंधित कर्मकांड में सहायता के लिए नि:शुल्क हेल्पलाइन शुरू करने की तैयारी की है। गूगल मीट और जूम के माध्यम से पुरोहित अपने यजमानों की शास्त्रीय, सामाजिक और व्यावहारिक जिज्ञासा शांत करेंगे। 

पिशाचमोचन नाम से फेसबुक पेज बनाया जा रहा है। इस पेज पर श्राद्ध का महात्म्य, इसके विधान, तिथिवार विवरण के साथ अपलोड उपलब्ध कराया जाएगा। पेज पर पिशाचमोचन से जुड़े पुरोहितों, कर्मकांडी ब्राह्मणों के फोन नंबर भी रहेंगे।

फेसबुक पेज पर दिए हेल्पलाइन नंबर पर संपर्क करने पर नि:शुल्क परामर्श मिलेगा। तीर्थ पुरोहित पं. आलोक भट्ट ने बताया कि श्राद्ध करने वालों की सुविधा के लिए जूम और गूगल मीट के माध्यम से ऑनलाइन श्राद्ध कराने की भी तैयारी की जा रही है। फेसबुक लाइव के माध्यम से लोग प्रतिदिन पुरोहितों के साथ तर्पण भी कर सकते हैं। तीर्थपुरोहित पं. आदित्य शंकर भट्ट ने बताया कि गया में पितृपक्ष मेला स्थगित होने के बाद स्वाभाविक रूप से काशी और प्रयाग में भी पिंडदान नहीं किया जा सकेगा। 

पिशाच मोचन में प्रतिवर्ष देश-विदेश के 18 से 20 लाख लोग गया श्राद्ध के निमित्त आते हैं। विधान के अनुसार उन्हें प्रयाग और काशी में भी श्राद्ध करना होता है। तीर्थपुरोहित पं. जगदीश मिश्र ने स्थानीय लोगों से भी अनुरोध किया है कि कोरोना संक्रमण को ध्यान में रखते हुए वे अपने घरों में ही तर्पण का विधान पूर्ण करें। 

पं. बंडुल दीक्षित ने बताया कि पिशाचमोचन तीर्थ पर अश्वदान की निराली परंपरा है। यह विधान न तो प्रयाग और न ही श्राद्ध भूमि गया में ही है। काशी में भी अश्व दान का स्थान निर्दिष्ट है। श्राद्ध कर्म के दौरान यह दुर्लभ दान है। अश्वदान के बाद व्यक्ति प्रेतकुंड में पिंड डालने का अधिकारी होता है।

देश में केवल यहीं होता है त्रिपिंडी श्राद्ध

भारत में सिर्फ पिशाच मोचन कुंड पर ही त्रिपिंडी श्राद्ध होता है। जो पितरों को प्रेत बाधा और अकाल मृत्यु की बाधाओं से मुक्ति दिलाता है। इस कुंड के बारे में गरुड़ पुराण में भी बताया गया है। काशी खंड की मान्यता के अनुसार पिशाच मोचन मोक्ष तीर्थ स्थल की उत्पत्ति गंगा के धरती पर आने से भी पहले से है। पिशाच मोचन कुंड में ये मान्यता है कि हजार साल पुराने इस कुंड किनारे बैठ कर अपने पितरों जिनकी आत्माए असंतुष्ट हैं उनके लिए यहा पितृ पक्ष में आकर कर्म कांडी ब्राम्हण से पूजा करवाने से मृतक को प्रेत योनियों से मुक्ति मिल जाती है।

यहां कुंड के पास एक पीपल का पेड़ है। इसको लेकर मान्यता है कि इस पर अतृप्त आत्माओं को बैठाया जाता है। इसके लिए पेड़ पर सिक्का रखवाया जाता है ताकि पितरों का सभी उधार चुकता हो जाए और पितर सभी बाधाओं से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त कर सकें और यजमान भी पितृ ऋण से मुक्ति पा सके। प्रेत बधाएं तीन तरीके की होती हैं। इनमें सात्विक, राजस, तामस शामिल हैं। इन तीनों बाधाओं से पितरों को मुक्ति दिलवाने के लिए काला, लाल और सफेद झंडे लगाए जाते हैं। 

इसको भगवान शंकर, ब्रह्म और कृष्ण के ताप्‍तिक रूप में मानकर तर्पण और श्राद का कार्य किया जाता है। प्रधान तीर्थ पुरोहित के अनुसार, पितरों के लिए 15 दिन स्वर्ग का दरवाजा खोल दिया जाता है। यहां के पूजा-पाठ और पिंड दान करने के बाद ही लोग गया के लिए जाते हैं। उन्‍होंने बताया कि जो कुंड वहां है वो अनादि काल से है भूत-प्रेत सभी से मुक्ति मिल जाती है।

त्रिपिंडी श्राद्ध कितनी बार करना चाहिए?

त्रिपिंडी श्राद्ध अनुष्ठान, तीन पीढ़ियों से पहले के पूर्वजों को शांत करती है और केवल तीन पीढ़ियों (यानी, पिता, दादा और उनके पिता) तक ही सीमित है। तो यह आग्रह है कि इस पवित्र संस्कार को कम से कम हर बारह साल में एक बार किया जाए।

त्रिपिंडी श्राद्ध करने से क्या फायदा होता है?

ऐसी मान्यता है कि यहां त्रिपिंडी श्राद्ध करने से पितरों को प्रेत बाधा और अकाल मृत्यु से मरने के बाद व्याधियों से मुक्ति मिल जाती है। इसीलिये पितृ पक्ष के दिनों में पिशाच मोचन कुंड पर लोगों की भारी भीड़ उमड़ती है। श्राद्ध की इस विधि और पिशाच मोचन तीर्थस्थली का वर्णन गरुण पुराण में भी मिलता है।

त्रिपिंडी श्राद्ध कब किया जाता है?

त्रिपिंडी श्राद्ध ये एक काम्य श्राद्ध है, जो अपने मृत पूर्वजो के याद में अर्पित किया जाता है। अगर तीन वर्षों तक, वंशजों द्वारा पूर्वजो के आत्माओ के शांति मिलने के लिए त्रिपिंडी श्राद्ध नहीं किया गया, तो मृत हिंसक हो जाते है, इसलिए उन्हें शांत करने के लिए पिंड दान विधि की जाती है।

त्रिपिंडी श्राद्ध कैसे किया जाता है?

त्रिपिंडी श्राद्ध में ब्रम्हा, विष्णु तथा महेश की प्रतिमाओं की प्राण प्रतिष्ठा करके पूजन करने का विधान है। हमें जो आत्मा परेशान करती है उसके लिए अनदिष्ट गोत्र शब्द का प्रयोग किया जाता है क्योंकि वह अज्ञात होती है। प्रेतयोनि प्राप्त उस जीवात्मा को संबोधित करते हुए यह श्राद्ध किया जाता है।

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