दक्षिण पूर्व एशिया के किस देश पर कभी भी किसी यूरोपियन शक्ति का कब्जा नहीं रहा? - dakshin poorv eshiya ke kis desh par kabhee bhee kisee yooropiyan shakti ka kabja nahin raha?

दक्षिण पूर्व एशिया या दक्षिण पूर्वी एशिया एशिया का एक उपभाग है, जिसके अन्तर्गत भौगोलिक दृष्टि से चीन के दक्षिण, भारत के पूर्व, न्यू गिनी के पश्चिम और ऑस्ट्रेलिया के उत्तर के देश आते हैं। यह क्षेत्र भूगर्भीय प्लेटों के चौराहे पर स्थित है, जिसकी वजह से इस क्षेत्र में भारी भूकम्प और ज्वालामुखी गतिविधियाँ होती हैं। दक्षिण पूर्व एशिया को दो भौगोलिक भागों में बाँटा जा सकता है: मुख्यभूमि दक्षिण पूर्व एशिया, जिसे इंडोचायना भी कहते हैं, के अन्दर कंबोडिया, लाओस, बर्मा (म्यांमार), थाईलैंड, वियतनाम और प्रायद्वीपीय मलेशिया आते हैं और समुद्री दक्षिण पूर्व एशिया, जिसमें ब्रुनेई, पूर्व मलेशिया, पूर्वी तिमोर, इंडोनेशिया, फिलीपींस, क्रिसमस द्वीप और सिंगापुर शामिल हैं।

सन्दर्भ[संपादित करें]

दक्षिण पूर्व एशिया के किस देश पर कभी भी किसी यूरोपीय शक्ति का कब्जा नहीं रहा?

Q. निम्नलिखित में से किस दक्षिण पूर्वी एशियाई देश पर कभी भी यूरोपीय शक्तियों का नियंत्रण नहीं रहा? Notes: थाईलैंड दक्षिण पूर्वी एशिया में स्थित है, इसका क्षेत्रफल 5,13,120 वर्ग किलोमीटर है। इस देश पर विभिन्न राजवंशों का शासन ही रहा है।

दक्षिण पूर्व एशिया में कौन कौन से देश आते हैं?

दक्षिण पूर्व एशिया को दो भौगोलिक भागों में बाँटा जा सकता है: मुख्यभूमि दक्षिण पूर्व एशिया, जिसे इंडोचायना भी कहते हैं, के अन्दर कंबोडिया, लाओस, बर्मा (म्यांमार), थाईलैंड, वियतनाम और प्रायद्वीपीय मलेशिया आते हैं और समुद्री दक्षिण पूर्व एशिया, जिसमें ब्रुनेई, पूर्व मलेशिया, पूर्वी तिमोर, इंडोनेशिया, फिलीपींस, क्रिसमस ...

दक्षिण पूर्व एशिया में सर्वप्रथम स्वतंत्र होने वाला देश कौन सा है?

द्वारा साझा लेख : विज्ञापन: दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों की! 1948 की शुरुआत में 4 जनवरी को बर्मा (अब म्यांमार) और 4 फरवरी को सीलोन (अब श्रीलंका) स्वतंत्र हो गया।

दक्षिण एशिया के देशों में मुख्य रूप से कौन कौन सी समस्या है?

दक्षिण एशिया में गरीबी, भूख और कुपोषण की समस्याएं बहुत बड़े पैमाने पर मौजूद हैं। सबसे बड़ी प्राथमिकता इन समस्याओं को दूर करने को मिलनी चाहिए। लेकिन तरह-तरह के तनावों, आतंकवाद की घटनाओं और युद्ध की संभावना उत्पन्न होने के कारण जो वास्तविक लड़ाई भूख और गरीबी के विरुद्ध आगे बढ़नी चाहिए, वह पीछे रह जाती हैं।

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