ठोसों की अपेक्षा द्रवों में विसरण की दर अधिक क्यों होती है Why is the rate of Diffusion is higher in liquid than in? - thoson kee apeksha dravon mein visaran kee dar adhik kyon hotee hai why is thai ratai of diffusion is highair in liquid than in?

Haryana State Board HBSE 9th Class Science Notes Chapter 9 बल तथा गति के नियम Notes.

Haryana Board 9th Class Science Notes Chapter 9 बल तथा गति के नियम

→ बल एक सदिश राशि है।

→ गैलीलियो का जन्म 15 फरवरी, 1564 में इटली के पीसा नामक शहर में हुआ।

→ गति के पहले नियम को जड़त्व का नियम भी कहते हैं।

→ संवेग की SI इकाई किलोग्राम-मीटर प्रति सेकंड (kgm/s) होती है।

→ संवेग परिवर्तन की दर, वस्तु पर लगने वाले बल के समानुपाती होती है।

→ किसी वस्तु में उत्पन्न त्वरण, उस पर लगे बल के समानुपाती होता है।

→ संवेग एक सदिश राशि है।

→ गति के द्वितीय नियम से हमें किसी वस्तु पर लगने वाले बल को मापने की विधि मिलती है।

→ बल को वस्तु में उत्पन्न त्वरण तथा वस्तु के द्रव्यमान के गुणनफल से प्राप्त किया जाता है।

→ किसी विलगित निकाय का कुल संवेग संरक्षित रहता है।

→ घर्षण बल सदैव वस्तु की गति का प्रतिरोध करता है।

→ सभी ठोस सतहें, उनके संपर्क में गतिशील वस्तुओं पर घर्षण बल आरोपित करती हैं।

→ सभी द्रव व गैसीय सतहें, उन पर या उनसे होकर जाने वाली वस्तुओं पर घर्षण बल आरोपित करती हैं।

→ जब कोई वस्तु किसी दूसरी वस्तु के ऊपर खिसकती है तो उन दोनों के बीच के घर्षण को सी घर्षण कहते हैं।

→ रोलरों पर गति करने वाली वस्तुओं की स्थिति में घर्षण को लोटनिक घर्षण कहते हैं।

→ घर्षण उन दो सतहों के चिकनेपन अथवा खुरदरेपन पर निर्भर करता है, जो परस्पर संपर्क में हैं।

→ किसी दी हुई वस्तु के लिए सी घर्षण सदैव लोटनिक घर्षण से अधिक होता है।

→ घर्षण के अवांछनीय प्रभावों को कुछ सीमा तक नियंत्रित किया जा सकता है।

→ जो उल्का पृथ्वी की सतह तक पहुँच जाती हैं, उसे उल्का पिंड कहते हैं।

→ घर्षण कम करने के लिए मशीनों में प्रायः बॉल-बेयरिंगों का उपयोग किया जाता है।

→ बल-बल वह बाह्य कारक है, जो किसी वस्तु की स्थिति में परिवर्तन करता है या करने की चेष्टा करता है।

→ गति का प्रथम नियम-वस्तु अपनी विरामावस्था अथवा सरल रेखा के अनुरूप एकसमान गति की अवस्था में तब तक बनी रहती है, जब तक कि उस पर कोई असंतुलित बल कार्य न करे।

→ जड़त्व-वस्तुओं द्वारा अपनी गति की अवस्था में परिवर्तन का प्रतिरोध करने की प्रवृत्ति को जड़त्व कहते हैं।

→ द्रव्यमान-किसी वस्तु का द्रव्यमान उसके जड़त्व की माप है। इसका SI मात्रक किलोग्राम (kg) है।

→ गति का द्वितीय नियम-वस्तु का संवेग उसके द्रव्यमान व वेग का गुणनफल होता है और उसकी दिशा वही होती है, जो वस्तु के वेग की है अर्थात् p = mv

→ एक न्यूटन-एक न्यूटन (N) वह बल है, जो एक किलोग्राम द्रव्यमान वाली वस्तु में एक मीटर प्रति वर्ग सेकंड का त्वरण उत्पन्न करता है।

→ गति का तृतीय नियम प्रत्येक क्रिया के लिए उसके बराबर व विपरीत प्रतिक्रिया होती है और यह दो भिन्न-भिन्न वस्तुओं पर कार्य करती है।

→ संतुलित बल यदि किसी वस्तु पर क्रिया कर रहे विभिन्न बलों का परिणाम शून्य हो तो ऐसे बलों को संतुलित बल कहते हैं।

→ असंतुलित बल-यदि वस्तु पर क्रिया कर रहे विभिन्न बलों का परिणामी बल शून्य न हो तो, ऐसे बलों को असंतुलित बल कहा जाता है।

Haryana State Board HBSE 9th Class Science Notes Chapter 8 गति Notes.

Haryana Board 9th Class Science Notes Chapter 8 गति

→ स्थिति में परिवर्तन एक गति है।

→ गति की व्याख्या तय की गई दूरी या विस्थापन के रूप में की जा सकती है।

→ सभी सजीव वस्तुएँ चाहे वे पौधे हों या जंतु, किसी-न-किसी प्रकार की गति करती हैं।

→ पौधों की तुलना में जंतुओं की गति का प्रेक्षण करना आसान होता है।

→ निर्जीव वस्तुओं को गति में लाने के लिए किसी बाहरी कारक की आवश्यकता होती है।

→ दूरी एक अदिश राशि है।

→ विस्थापन एक सदिश राशि है।

→ चाल का SI मात्रक मीटर प्रति सेकंड (ms-1) है। अन्य मात्रक सेंटीमीटर प्रति सेकंड (cms-1) व किलोमीटर प्रति घंटा (kmh-1) है।

→ यदि कोई वस्तु । समय में s दूरी तय करती है तो उसकी चाल (v) निम्न होगी

→ वायु में ध्वनि की चाल 346ms-1 है।

→ यदि त्वरण वेग की दिशा में हो तो उसे धनात्मक लिया जाता है तथा यदि त्वरण वेग की विपरीत दिशा में हो तो उसे ऋणात्मक लिया जाता है।

→ त्वरण का SI मात्रक ms-2 है।

→ स्वतंत्र रूप से गिर रही वस्तु की गति एकसमान त्वरित गति का उदाहरण है।

→ दूरी-समय ग्राफ में समय को X-अक्ष और दूरी को Y-अक्ष पर प्रदर्शित किया जाता है।

→ एकसमान चाल के लिए, समय के साथ तय की गई दूरी का ग्राफ एक सरल रेखा होता है।

→ एक सरल रेखा में चल रही वस्तु के वेग में समय के साथ परिवर्तन को वेग-समय ग्राफ द्वारा दर्शाया जाता है।

→ वेग-समय ग्राफ में समय को X-अक्ष पर और वेग को Y-अक्ष पर दर्शाया जाता है।

→ एकसमान त्वरण से चल रही एक वस्तु की गति की व्याख्या तीन समीकरणों के माध्यम से की जा सकती है। वे हैं

  • v = u + at,
  • s = ut + \(\frac{1}{2}\)at2
  • 2as = v2 – u2

→ यदि कोई एथलीट। त्रिज्या वाले वृत्तीय पथ का एक चक्कर लगाने में 1 सेकंड का समय लेता है तो वेग (v) = \(\frac{2 \pi \mathrm{r}}{\mathrm{t}}\)

→ चाल-प्रति इकाई समय में वस्तु के द्वारा तय की गई दूरी वस्तु की चाल कहलाती है।

→ वेग–प्रति इकाई समय में हुआ विस्थापन वस्तु का वेग कहलाता है।

→ दूरी-किसी वस्तु द्वारा तय किया गया वास्तविक पथ दूरी कहलाता है।

→ विस्थापन-किसी वस्तु की प्रारंभिक व अंतिम स्थिति के बीच की न्यूनतम दूरी को वस्तु का विस्थापन कहते हैं।

→ मूल बिंदु-किसी वस्तु की स्थिति को बताने के लिए हमें एक निर्देश बिंदु की आवश्यकता होती है, जिसे मूल बिंदु कहा जाता है।

→ एकसमान गति-यदि कोई वस्तु समान समयांतराल में समान दूरी तय करे, तो उसकी गति को एकसमान गति कहते हैं।

→ असमान गति-यदि कोई वस्तु समान समयांतराल में असमान दूरी तय करे, तो उसकी गति को असमान गति कहते हैं।

→ औसत चाल-किसी वस्तु द्वारा तय की गई कुल दूरी और कुल समय के अनुपात को औसत चाल कहते हैं।
अर्थात्

→ औसत वेग-यदि किसी वस्तु का वेग समान रूप से परिवर्तित होता हो तो प्रारंभिक वेग और अंतिम वेग के अंकगणितीय माध्य को औसत वेग कहते हैं। अर्थात्

→ त्वरण-किसी वस्तु का त्वरण प्रति इकाई समय में उसके वेग में होने वाला परिवर्तन है। अर्थात्

→ एकसमान त्वरण-यदि बराबर समयांतराल में किसी वस्तु के वेग में बराबर परिवर्तन हो, तो वस्तु एकसमान त्वरण से गतिशील कहलाती है।

→ असमान त्वरण-यदि किसी वस्तु का वेग असमान रूप से बदलता हो तो उसे असमान त्वरण कहते हैं।

→ एकसमान वृत्तीय गति-यदि एक वस्तु वृत्तीय रास्ते पर एकसमान चाल से चलती है तो उसकी गति को एकसमान वृत्तीय गति कहा जाता है।

Haryana State Board HBSE 10th Class Maths Solutions Chapter 1 Real Numbers Ex 1.3 Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Maths Solutions Chapter 1 Real Numbers Exercise 1.3

Question 1.
Prove that √5 is an irrational.
Solution :
Let us assume, that √5 is a rational. It can be expressed in the form of \(\frac{a}{b}\), where a and b are coprime positive integers and b ≠ 0.
∴ √5 = \(\frac{a}{b}\) (Where a and b are coprime ∴ HCF of a and b is 1)
Squaring on both sides
5 = \(\frac{a^2}{b^2}\)
5b2 = a2 ………….(i)
Therefore, 5 divides a2. It follows that 5 divides a . [By theorem 1.3]
Let a = 5c and put this value in equation (i)
[Where c is any positive integer]
5b2 = (5c)2
5b2 = 25c2
⇒ \(\frac{25}{5}\) c2 = b2
⇒ 5c2 = b2 ……….(ii)
It means b2 is divisible by 5. It follows that b is divisible by 5 [By theorem 1.3]
From equations (i) and (ii) we say that 5 is a common factor of both a and b. But this contradicts the fact that a and b are coprime so, they have no common factor. So, our assumption that √5 is a rational number is wrong.
Therefore, √5 is an irrational number.

Question 2.
Prove that 3 + 2√5 is an irrational.
Solution :
Let us assume 3 + 2√5 is a rational. It can be expressed in the form of \(\frac{a}{b}\), where a and b are coprime positive integers and b ≠ 0.
∴ 3 + 2√5 = \(\frac{a}{b}\)
\(\frac{a}{b}\) – 3 = 2√5
\(\frac{a-3 b}{b}\) = 2√5
\(\frac{a-3 b}{2 b}\) = √5
\(\frac{a-3 b}{2 b}\) = rational
(∵ a and b are positive integers)
So, from equation (i) √5 is a rational.
But this contradicts the fact √5 is an irrational. So, our assumption that 3 + 2√5 is a rational, is wrong.
Hence, 3 + 2√5 is an irrational number.

Question 3.
Prove that the following are irrationals:
(i) \(\frac{1}{\sqrt{2}}\)
(ii) 7√5
(iii) 6 + √2
Solution:
(i) Let us assume, that \(\frac{1}{\sqrt{2}}\) is a rational. It can be expressed in the form of \(\frac{a}{b}\), where a and b are coprime positive integer.
∴ \(\frac{1}{\sqrt{2}}=\frac{a}{b}\)
(Where HCF of a and b is 1 and b ≠ 0)
\(\frac{1}{2}=\frac{a^2}{b^2}\) (Squaring both sides)
⇒ b2 = 2a2 …………….(i)
It means b2 is divisible by 2. It follows that b, is divisible by 2 [By theorem 1.3]
Let b = 2c (Where c is any positive integer).
And put b = 2c in equation (i)
(2c)2 = 2a2
⇒ 4c2 = a2
⇒ 2c2 = a2 …………….(ii)
It means a2 is divisible by 2. It follows that a, is divisible by 2. [By theorem 1.3]
From (i) and (ii) we say that 2 is the common factor of a and b. But this contradicts the fact that a and b are coprime. So, our assumption that \(\frac{1}{\sqrt{2}}\) is a rational, is wrong.
Hence, \(\frac{1}{\sqrt{2}}\) is an irrational number.

(ii) Let us assume, that 7√5 is a rational.
It can be expressed in the form of \(\frac{a}{b}\), where a and b are coprime positive integer and b ≠ 0.
∴ 7√5 = \(\frac{a}{b}\) (Where HCF of a and b is 1)
√5 = \(\frac{a}{7 b}\)
∵ a and b are positive integers.
∴ \(\frac{a}{7 b}\) is a rational.
Therefore, √5 is a rational.
But this contradicts the fact that √5 is an irrational. So, our assumption that 7√5 is a srational, is wrong.
Hence, 7√5 is an irrational number.

(iii) Let us assume, that 6 + √2 is a rational.
It can be expressed in the form of \(\frac{a}{b}\), where a and b are coprime positive integer and b ≠ 0.
∴ 6 + √2 = \(\frac{a}{b}\) (Where HCF’ of a and b is 1)
⇒ √2 = \(\frac{a}{b}\) – 6
⇒ √2 = \(\frac{a-6 b}{b}\)
∵ a and b are positive integers.
∴ \(\frac{a-6 b}{b}\) is a rational.
Therefore, √2 is a rational.
But this contradicts the fact that √2 is an irrational. So, our assumption that 6 + √2 is a rational, is wrong
Hence, 6 + √2 is an irrational number.

Haryana State Board HBSE 9th Class Science Notes Chapter 7 जीवों में विविधता Notes.

Haryana Board 9th Class Science Notes Chapter 7 जीवों में विविधता

→ हमारी पृथ्वी पर लगभग 10 करोड़ प्रकार के जीव पाए जाते हैं, जिनमें से लगभग 17 लाख विभिन्न प्रकार की जातियों का वर्गीकरण किया गया है।

→ जीवों का वर्गीकरण इनमें समानता, विभिन्नता तथा उनके आपसी संबंधों के आधार पर किया गया है।

→ जीव विज्ञान की वह शाखा जो जीवों का वर्गीकरण करती है, वर्गिकी कहलाती है। यह शब्द डी० केंडोली ने दिया।

→ जीवों के वर्गीकरण से जीवों का अध्ययन करना आसान हो गया है।

→ केरोलस लीनियस वर्गीकरण का जनक है। उसने द्विनाम पद्धति विकसित की।

→ द्विनाम पद्धति में जीव को नाम देने के लिए नाम के दो घटक पहला जीनस (जेनेटिक नाम) तथा दूसरा जातीय नाम होता है।

→ जीवों के वर्गीकरण की विभिन्न श्रेणियाँ-जगत, फाइलम, क्लास, आर्डर, फैमिली, वंश तथा जाति हैं।

→ समूचे जीव-जगत को दो समूहों में बाँटा गया है-वनस्पति जगत तथा प्राणी जगत।

→ जीवों को पाँच जगत में वर्गीकृत करने के लिए निम्न विशेषताओं को ध्यान में रखा जाता है

→ कोशिकीय संरचना-प्रोकैरियोटी अथवा यूकैरियोटी।

→ जीव का शरीर एककोशिक अथवा बहुकोशिक है। बहुकोशिक जीवों की संरचना जटिल होती है।

→ कोशिका भित्ति की उपस्थिति तथा स्वपोषण की क्षमता।

→ उपर्युक्त आधार पर सभी जीवों को पाँच जगत में बाँटा गया है मोनेरा, प्रोटिस्टा, कवक (फंजाइ), प्लांटी और एनिमेलिया।

→ जीवों का वर्गीकरण उनके विकास से संबंधित है।

→ ्लांटी और एनिमेलिया को उनकी शारीरिक जटिलता के आधार पर वर्गीकृत किया गया है।

→ पौधों को पाँच वर्गों में बाँटा गया है-शैवाल, ब्रायोफाइटा, टेरिडोफाइटा, जिम्नोस्पर्म और एंजियोस्पर्म।

→ जंतुओं को दस फाइलम में बाँटा गया है-पोरीफेरा, सीलेंटरेटा, प्लेटीहेल्मिन्थीज, निमेटोडा, एनीलिडा, आर्थोपोडा, मोलस्का, इकाइनोडर्मेटा, प्रोटोकॉर्डेटा और वर्टीब्रेटा।

→ जैव विविधता-जीवों के गुण-धर्मों में पाई जाने वाली विविधता जैव विविधता कहलाती है।

→ वर्गीकरण-समानता और भिन्नता के आधार पर जीवों को बाँटना वर्गीकरण कहलाता है।

→ जैव विकास-जीवों में निरंतर बदलावों की प्रक्रिया के परिणामस्वरूप बेहतर जीवन-यापन जैव विकास कहलाता है।

→ मेगाडाइवर्सिटी क्षेत्र पृथ्वी पर कर्क और मकर रेखा के बीच जीवों में काफी विविधता पाई जाती है, इसलिए इसे मेगाडाइवर्सिटी क्षेत्र कहते हैं।

→ मोनेरा-एक कोशिकीय प्रोकैरियोटिक जीव, जिनमें कोशिका भित्ति पाई जाती है, मोनेरा कहलाते हैं।

→ प्रोटिस्टा-एक कोशिकीय यूकैरियोटिक जीव प्रोटिस्टा कहलाते हैं।

→ फंजाई-विषमपोषी यूकैरियोटिक जीव, जो मृत गले-सड़े कार्बनिक पदार्थों से भोजन ग्रहण करें, फंजाई कहलाते हैं।

→ प्लांटी-कोशिका भित्ति वाले बहुकोशिक यूकैरियोटिक स्वपोषी जीव प्लांटी कहलाते हैं।

→ एनिमेलिया-बहुकोशिकीय यूकैरियोटिक जीव, जिसमें कोशिका भित्ति नहीं पाई जाती, एनिमेलिया कहलाते हैं।

→ थैलोफाइट जिन पादपों में विशेष संरचना थैलस पाया जाता है।

→ ब्रायोफाइटा-पादप वर्ग के उभयचर वर्ग को ब्रायोफाइटा कहते हैं।

→ क्रिप्टोगैम्स-जिन पादपों में बीज उत्पन्न करने की क्षमता न हो, वे क्रिप्टोगैम्स होते हैं।

→ जिम्नोस्पर्म-नग्न बीज उत्पन्न करने वाले पौधे जिम्नोस्पर्म कहलाते हैं।

→ एंजियोस्पर्म-ढके हुए बीजों वाले पौधे एंजियोस्पर्म कहलाते हैं।

→ कशेरुकी-जिन जीवों में रीढ़ की हड्डी पाई जाती है, कशेरुकी कहलाते हैं।

→ अकशेरुकी जिन जीवों में रीढ़ की हड्डी न पाई जाए, अकशेरुकी कहलाते हैं।

Haryana State Board HBSE 9th Class Science Notes Chapter 6 ऊतक Notes.

Haryana Board 9th Class Science Notes Chapter 6 ऊतक

→ कोशिका विभाजन जीव के विकास और वृद्धि के लिए आवश्यक है।

→ एक कोशिका जीवों में सभी जैव प्रक्रियाएँ एक कोशिका के द्वारा ही की जाती हैं।

→ बहुकोशिका जीवों में अलग-अलग कोशिकाओं के समूह भिन्न कार्य करते हैं, इसे श्रम विभाजन कहते हैं।

→ समान उद्भव, रचना और समान कार्य करने वाली कोशिकाओं के समूह को ऊतक कहते हैं।

→ पौधे और जंतु भिन्न-भिन्न गुणों वाले जीव हैं।

→ पौधों और जंतुओं में रचना और कार्य के आधार पर भिन्न-भिन्न ऊतक पाए जाते हैं।

→ पौधों में दो प्रकार के ऊतक पाए जाते हैं

  • विभज्योतक तथा
  • स्थायी ऊतक।

→ विभज्योतक पौधे के शीर्ष एवं जड़ की चोटी पर ही पाया जाता है।

→ स्थायी ऊतक भी विभज्योतक से ही बनते हैं।

→ सरल ऊतक तीन प्रकार के होते हैं पैरेन्काइमा, कॉलेन्काइमा तथा स्क्लेरेन्काइमा।

→ स्क्लेरेन्काइमा (दृढ़ोत्तक) पौधे के भागों को दृढ़ता प्रदान करता है।

→ दृढ़ोत्तक ही रक्षी ऊतक में बदल जाता है।

→ स्टोमेटा (वातरंध्र) पौधे के लिए गैसों का आदान-प्रदान व वाष्पोत्सर्जन करता है।

→ जाइलम व फ्लोएम ऊतक जटिल ऊतकों के उदाहरण हैं।

→ ज़ाइलम व फ्लोएम संवहन ऊतक हैं।

→ एपिथीलियमी ऊतक रक्षी अस्तर जंतु ऊतक है।

→ पेशीय ऊतक, प्रमुख रूप से तीन प्रकार का होता है-रेखित पेशी (कंकाल या ऐच्छिक), अरेखित पेशी (चिकनी पेशी या अनैच्छिक पेशी) तथा हृदय पेशी।

→ रुधिर और अस्थि संयोजी ऊतक के प्रकार हैं।

→ रुधिर एक तरल ऊतक है।

→ अस्थि दृढ़ होती है, जबकि उपास्थि में लचीलापन होता है।

→ मस्तिष्क, मेरुरज्जु तथा तंत्रिकाएँ सभी तंत्रिका ऊतक हैं।

→ स्थायी ऊतकों में विभाजन क्षमता नहीं होती।

→ तंत्रिका ऊतक की इकाई न्यूरॉन है। यह एक संदेशवाहक है।

→ विभज्योतक में लगातार विभाजन होता रहता है।

→ ऊतक-समान उद्भव, रचना और कार्य करने वाली कोशिकाओं के समूह को ऊतक कहते हैं।

→ विभज्योतक-विभाजन की क्षमता वाले ऊतक विभज्योतक कहलाते हैं।

→ विभेदीकरण ऊतकों द्वारा विशिष्ट कार्य करने के लिए स्थाई रूप और आकार लेने की क्रिया को विभेदीकरण कहते हैं।

→ स्थायी ऊतक-विभज्योतक विभाजन की क्षमता खोकर जो ऊतक बनते हैं, उन्हें स्थायी ऊतक कहते हैं।

→ सरल ऊतक-एक ही प्रकार की कोशिकाओं से बने ऊतकों को सरल ऊतक कहते हैं।

→ जटिल ऊतक-भिन्न प्रकार की रचना और कार्य करने वाली कोशिकाओं के समूह को जटिल ऊतक कहते हैं।

→ संरक्षी ऊतक-पौधे के शरीर की रक्षा करने वाले संरक्षी ऊतक कहलाते हैं।

→ फ्लोएम-जीवित संवाहक ऊतक को फ्लोएम कहते हैं।

→ उपकला ऊतक-जंतुओं में आवरणी ऊतक को उपकला ऊतक कहते हैं।

→ पेशीय ऊतक-जिन संरचनाओं से पेशियाँ बनी होती हैं, उन्हें पेशीय ऊतक कहते हैं।

→ संयोजी ऊतक-शरीर के विभिन्न अंगों को आपस में जोड़ने या आधार देने का कार्य करने वाले ऊतकों को संयोजी ऊतक कहते हैं।

→ तंत्रिका ऊतक-संवेदनाओं को एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजने वाले ऊतक तंत्रिका ऊतक कहलाते हैं।

Haryana State Board HBSE 9th Class Science Notes Chapter 5 जीवन की मौलिक इकाई Notes.

Haryana Board 9th Class Science Notes Chapter 5 जीवन की मौलिक इकाई

→ जीवों की संरचनात्मक और क्रियात्मक इकाई को कोशिका कहते हैं।

→ सर्वप्रथम कोशिका का आविष्कार सन् 1665 में रॉबर्ट हुक ने किया।

→ कोशिका का अध्ययन सूक्ष्मदर्शी यंत्र से किया जाता है।

→ अमीबा व पैरामीशियम एककोशिक जीव हैं।

→ बहुकोशिक जीव एक कोशिक जीव से ही विकसित हुए।

→ ल्यूवेनहक ने 1674 में सूक्ष्मदर्शी द्वारा बैक्टीरिया की खोज की।

→ रॉबर्ट ब्राउन ने 1891 में कोशिका केंद्रक का पता लगाया।

→ जे.ई. पुरोकज ने सन् 1839 में जीवद्रव्य की खोज की।

→ एम. स्लीडन (1898) तथा टी० स्वान (1839) ने कोशिका सिद्धांत के बारे में बताया।

→ विरचो ने 1855 में कोशिका सिद्धांत को आगे बढ़ाया।

→ 1940 में इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी की खोज के बाद कोशिका की जटिल संरचना का अध्ययन किया गया।

→ बहुकोशिक जीवों में श्रम विभाजन का गुण पाया जाता है।

→ सभी जंतु कोशिकाओं में प्लैज्मा झिल्ली पाई जाती है।

→ पादप कोशिकाओं में कोशिका भित्ति पाई जाती है।

→ कोशिका झिल्ली में विसरण का गुण पाया जाता है।

→ परासरण विसरण की एक विशिष्ट विधि है।

→ केंद्रक कोशिका के कार्यों पर नियंत्रण करता है।

→ बैक्टीरिया में अस्पष्ट केंद्रक क्षेत्र को केंद्रकाय कहते हैं।

→ कोशिका झिल्ली से घिरे पदार्थ को कोशिका द्रव्य कहते हैं।

→ कोशिका द्रव्य और केन्द्रक को मिलाकर जीवद्रव्य बनता है।

→ अंतर्द्रव्यीजालिका झिल्ली युक्त नलिकाओं का एक बड़ा तंत्र होता है।

→ गॉल्जी उपकरण का विवरण कैमिलो गॉल्जी ने दिया।

→ लाइसोसोम कोशिका के अपशिष्ट पदार्थों का उत्सर्जन करता है।

→ माइटोकॉन्ड्रिया कोशिका का ‘पावर हाऊस’ कहलाता है।

→ प्लैस्टिड केवल पादप कोशिकाओं में पाए जाते हैं।

→ रसधानियाँ ठोस अथवा तरल पदार्थों का संग्रह करने वाली थैलियाँ होती हैं।

→ कोशिका-जीवों की संरचनात्मक और क्रियात्मक इकाई को कोशिका कहते हैं।

→ एककोशिक जीव-जिन जीवों का शरीर केवल एक कोशिका से बना हो, एककोशिक जीव कहलाते हैं।

→ बहुकोशिक जीव-बहुत सारी कोशिकाओं से मिलकर बने जीव को बहुकोशिक जीव कहते हैं।

→ श्रम विभाजन-शरीर के विभिन्न अंग विभिन्न कार्य करते हैं, इसे श्रम-विभाजन कहते हैं।

→ प्लैज्मा झिल्ली-कोशिका में वसा और प्रोटीन से बने आवरण को जो कोशिका को बाहर से घेरे रखता है, प्लैज्मा झिल्ली कहते हैं।

→ परासरण-जल के अणुओं की गति जब वर्णात्मक पारगम्य झिल्ली द्वारा हो, उसे परासरण कहते हैं।

→ अवशोषण-कोशिकाओं द्वारा लवणों और जल को अवशोषित करना, अवशोषण कहलाता है।

→ एंडोसाइटोसिस-एककोशिक जीवों में कोशिका के बाह्य पर्यावरण से भोजन व अन्य पदार्थ ग्रहण करना, एंडोसाइटोसिस कहलाता है।

→ केंद्रक-कोशिका के मध्य गोलाकार संरचना, जो कोशिका के कार्यों पर नियंत्रण करती है, केंद्रक कहलाती है।

→ केंद्रकाय-कोशिका में अस्पष्ट केंद्रक क्षेत्र को केंद्रकाय कहते हैं।

→ असीमकेंद्रक-जिन कोशिकाओं में कोशिकांग न पाए जाए और एक गुणसूत्र वाली छोटे आकार की कोशिका असीमकेंद्रक कहलाती हैं।

→ ससीमकेंद्रक-जिन कोशिकाओं में कोशिकांग पाए जाए और एक-से-अधिक गुणसूत्र वाली बड़े आकार की कोशिका ससीमकेंद्रक कहलाती हैं।

→ कोशिका द्रव्य-कोशिका में कोशिका झिल्ली से घिरे पदार्थ को कोशिका द्रव्य कहते हैं।

→ जीवद्रव्य-कोशिका द्रव्य और केंद्रक सहित दोनों को मिलाकर जीवद्रव्य कहलाता है।

→ अंतर्द्रव्यीजालिका-झिल्ली युक्त नलिकाओं का बना एक बड़ा तंत्र अंतर्द्रव्यीजालिका कहलाता है।

→ गॉल्जी उपकरण-झिल्ली युक्त पुटिका को गॉल्जी उपकरण कहा जाता है।

→ लाइसोसोम-शक्तिशाली पाचनकारी एंजाइम जो एक झिल्ली से घिरे हों, लाइसोसोम कहलाते हैं।

→ माइटोकांड्रिया कोशिका में ऊर्जा उत्पन्न करने वाला अंगक, माइटोकांड्रिया कहलाता है।

→ रसधानियाँ-ठोस अथवा तरल पदार्थों की संग्राहक थैलियों को रसधानियाँ कहते हैं।

Haryana State Board HBSE 9th Class Science Notes Chapter 4 परमाणु की संरचना Notes.

Haryana Board 9th Class Science Notes Chapter 4 परमाणु की संरचना

→ पदार्थ परमाणुओं और अणुओं से मिलकर बने हैं।

→ इलेक्ट्रॉन और प्रोटॉन की खोज क्रमशः जे.जे. टॉमसन और ई. गोल्डस्टीन ने की।

→ जे.जे. टॉमसन ने यह प्रस्तावित किया था कि इलेक्ट्रॉन धनात्मक गोले में फंसे हुए होते हैं।

→ प्रोटॉन का द्रव्यमान एक इकाई तथा आवेश +1 लिखा जाता है जबकि इलेक्ट्रॉन का द्रव्यमान नगण्य और आवेश -1 लिया जाता है।

→ रदरफोर्ड के अल्फा कणों के प्रकीर्णन प्रयोग ने परमाणु केंद्रक की खोज की।

→ रदरफोर्ड के परमाणु मॉडल ने प्रस्तावित किया कि परमाणु के अंदर बहुत छोटा केंद्रक होता है और इलेक्ट्रॉन केंद्रक के चारों ओर घूमते हैं। परमाणु की स्थिरता की इस मॉडल से व्याख्या नहीं की जा सकी।

→ रदरफोर्ड के अनुसार, नाभिक की त्रिज्या परमाणु की त्रिज्या से 10 गुणा छोटी होती है।

→ नील्स बोर द्वारा दिया गया परमाणु का मॉडल अधिक सफल था। उन्होंने प्रस्तावित किया कि इलेक्ट्रॉन केंद्रक के चारों ओर निश्चित ऊर्जा के साथ अलग-अलग कक्षाओं में वितरित हैं। अगर परमाणु की सबसे बाहरीय कक्षाएँ भर जाती हैं, तो परमाणु स्थिर होगा और कम क्रियाशील होगा।

→ जे. चैडविक ने 1932 में परमाणु के अंदर न्यूट्रॉन की उपस्थिति को खोजा।

→ हाइड्रोजन के नाभिक में न्यूट्रॉन नहीं होता।

→ परमाणु के तीन अवपरमाणुक कण इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन व न्यूट्रॉन हैं।।

→ बोर और बरी के नियम अनुसार किसी कक्ष में इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम संख्या 2n2 हो सकती है। यहां n कक्ष की संख्या है।

→ परमाणु के कक्षों को K, L, M, N……..नाम दिया गया है।

→ किसी परमाणु का बाह्यतम कक्ष अधिकतम 8 इलेक्ट्रॉन रख सकता है।

→ जिन तत्त्वों के बाह्यतम कक्ष पूर्ण भरे होते हैं वे रासायनिक रूप से सक्रिय नहीं होते हैं।

→ हाइड्रोजन के तीन समस्थानिक प्रोटियम (1H1), ड्यूटीरियम (1H2) तथा ट्राइटियम (1H3) हैं।

→ क्लोरीन के दो समस्थानिक 17Cl35 तथा 17Cl37 हैं।।

→ समस्थानिकों के रासायनिक गुण समान लेकिन भौतिक गुण अलग-अलग होते हैं।

→ किसी प्राकृतिक तत्त्व के एक परमाणु का द्रव्यमान उस तत्त्व में विद्यमान सभी प्राकृतिक रूप में पाए जाने वाले परमाणुओं के औसत द्रव्यमान के बराबर होता है।

→ परमाणु भट्टी में ईंधन के रूप में यूरेनियम के समस्थानिक का उपयोग किया जाता है।

→ कोबाल्ट के समस्थानिक का उपयोग कैंसर के उपचार के लिए किया जाता है।

→ आयोडीन के समस्थानिक का उपयोग घेघा रोग के इलाज के लिए किया जाता है।

→ कैल्शियम व आर्गन समभारिक परमाणु हैं।

→ तत्त्वों को उनके प्रोटॉनों की संख्या के आधार पर परिभाषित किया जा सकता है।

→ संयोजकता-इलेक्ट्रॉन-किसी परमाणु के सबसे बाहरी कक्ष में उपस्थित इलेक्ट्रॉनों को संयोजकता-इलेक्ट्रॉन कहा जाता है।

→ संयोजकता संयोजकता परमाणु की संयोजन शक्ति होती है।

→ अक्रिया तत्त्व-जिन तत्त्वों के बाह्यतम कक्ष पूर्ण होते हैं उन्हें अक्रिया तत्त्व कहा जाता है।

→ परमाणु संख्या-परमाणु के नाभिक में उपस्थित कुल प्रोटॉनों की संख्या, उसकी परमाणु संख्या (Z) कहलाती है।

→ द्रव्यमान संख्या: परमाणु के नाभिक में उपस्थित प्रोटॉनों और न्यूट्रॉनों की कुल संख्या के योग को द्रव्यमान संख्या (A) कहा जाता है।

→ न्यूक्लियॉन-परमाणु के नाभिक में उपस्थित प्रोटॉन व न्यूट्रॉन न्यूक्लियॉन कहलाते हैं।

→ समस्थानिक-एक ही तत्त्व के ऐसे परमाणु जिनकी परमाणु संख्या समान हो, परंतु द्रव्यमान संख्या भिन्न हो, तत्त्व के समस्थानिक कहलाते हैं।

→ समभारिक-समभारिक वे परमाणु होते हैं जिनकी द्रव्यमान संख्या समान लेकिन परमाणु संख्या भिन्न-भिन्न होती है।

Haryana State Board HBSE 9th Class Science Notes Chapter 3 परमाणु एवं अणु Notes.

Haryana Board 9th Class Science Notes Chapter 3 परमाणु एवं अणु

→ कोई भी यौगिक दो या दो से अधिक तत्त्वों से निर्मित होता है।

→ यौगिक जल में हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन के द्रव्यमानों का अनुपात सदैव 1 : 8 होता है चाहे जल का स्रोत कोई भी हो।

→ अमोनिया (NH3) में नाइट्रोजन एवं हाइड्रोजन द्रव्यमानों के अनुसार सदैव 14 : 3 के अनुपात में विद्यमान रहते हैं।

→ जॉन डॉल्टन का जन्म सन् 1766 में इंग्लैंड में हुआ था।

→ किसी भी यौगिक में परमाणुओं की सापेक्ष संख्या एवं प्रकार निश्चित होते हैं।

→ सभी द्रव्यों की रचनात्मक इकाई परमाणु होती है।

→ परमाणु त्रिज्या को नेनोमीटर (nm) में मापा जाता है। (1nm = 10-9m)

→ आजकल इंटरनेशनल यूनियन ऑफ प्योर एंड एप्लाइड केमिस्ट्री (IUPAC) तत्त्वों के नामों को स्वीकृति प्रदान करती है।

→ प्रत्येक तत्त्व का एक नाम एवं एक अद्वितीय रासायनिक प्रतीक होता है।

→ प्रत्येक तत्त्व का एक अभिलाक्षणिक परमाणु द्रव्यमान होता है।

→ हम परमाणु द्रव्यमान की इकाई को एक कार्बन परमाणु द्रव्यमान के बराबर मानते हैं।

→ कार्बन-12 समस्थानिक के एक परमाणु द्रव्यमान के सापेक्ष सभी तत्त्वों के परमाणु द्रव्यमान प्राप्त किए गए हैं।

→ साधारणतया अणु ऐसे दो या दो से अधिक परमाणुओं का समूह होता है जो आपस में रासायनिक बंध द्वारा जुड़ा होता हैं।

→ किसी तत्त्व के अणु एक ही प्रकार के परमाणुओं से बने होते हैं।

→ ऋण आवेशित कण को ऋणायन व धन आवेशित कण को धनायन कहते हैं।

→ प्रत्येक तत्त्व की संयोजकता द्वारा आण्विक यौगिकों के रासायनिक सूत्र निर्धारित होते हैं।

→ आयनिक यौगिकों में, प्रत्येक आयन के ऊपर आवेशों की संख्या द्वारा यौगिक के रासायनिक सूत्र ज्ञात करते हैं।

→ किसी पदार्थ के एक मोल में कणों (परमाणु, अणु अथवा आयन) की संख्या निश्चित होती है जिसका मान 6.022 × 1023 होता है।

→ द्रव्यमान संरक्षण नियम-द्रव्यमान संरक्षण के नियम के अनुसार, किसी रासायनिक अभिक्रिया में द्रव्यमान का न तो सृजन किया जा सकता है न ही विनाश।

→ निश्चित अनुपात का नियम-एक शुद्ध रासायनिक यौगिक में तत्त्व हमेशा द्रव्यमानों के निश्चित अनुपात में विद्यमान होते हैं, इसे निश्चित अनुपात का नियम कहते हैं।

→ परमाणु-तत्त्व का सूक्ष्मतम कण परमाणु होता है, जो स्वतंत्र रूप से रह सकता है तथा उसके सभी रासायनिक गुणधर्मों को प्रदर्शित करता है।

→ अणु-अणु, किसी तत्त्व अथवा यौगिक का वह सूक्ष्मतम कण होता है जो सामान्य दशाओं में स्वतंत्र रह सकता है। यह उस यौगिक के सभी गुणधर्मों को प्रदर्शित करता है।

→ मानक परमाणु द्रव्यमान इकाई-कार्बन-12 समस्थानिक के एक परमाणु द्रव्यमान के 1/12वें भाग को मानक परमाणु द्रव्यमान इकाई के रूप में लेते हैं।

→ परमाणुकता किसी अणु की संरचना में प्रयुक्त होने वाले परमाणुओं की संख्या को इस अणु की परमाणुकता कहते हैं।

→ आयन-धातु एवं अधातु युक्त यौगिक आवेशित कणों से बने होते हैं। इन आवेशित कणों को आयन कहते हैं।

→ बहु-परमाणुक आयन-परमाणुओं का वह समूह जो आयन की तरह व्यवहार करता है बहु-परमाणुक आयन कहलाता है।

→ रासायनिक सूत्र-किसी यौगिक का रासायनिक सूत्र इसके संघटक का प्रतीकात्मक निरूपण होता है।

→ संयोजकता-किसी तत्त्व की संयोजन शक्ति (अथवा क्षमता) उस तत्त्व की संयोजकता कहलाती है।

→ द्विअंगी यौगिक-दो भिन्न-भिन्न तत्त्वों से निर्मित सरलतम यौगिकों को द्विअंगी यौगिक कहते हैं।

→ आण्विक द्रव्यमान किसी पदार्थ का आण्विक द्रव्यमान उसके सभी संघटक परमाणुओं के द्रव्यमानों का योग होता है। इसे परमाणु द्रव्यमान इकाई (w) द्वारा व्यक्त किया जाता है।

→ सूत्र इकाई द्रव्यमान-किसी पदार्थ का सूत्र इकाई द्रव्यमान उसके सभी संघटक परमाणुओं के परमाणु द्रव्यमानों का योग होता है।

→ मोल-मोल पदार्थ की वह मात्रा है जिसमें कणों (परमाणु, आयन, अणु या सूत्र इकाई) की संख्या कार्बन = 12 के ठीक 12g में विद्यमान परमाणुओं के बराबर होती है।

→ मोलर द्रव्यमान पदार्थ के एक मोल अणुओं का द्रव्यमान उसका मोलर द्रव्यमान कहलाता है।

Haryana State Board HBSE 9th Class Science Notes Chapter 2 क्या हमारे आस-पास के पदार्थ शुद्ध हैं Notes.

Haryana Board 9th Class Science Notes Chapter 2 क्या हमारे आस-पास के पदार्थ शुद्ध हैं

→ शुद्ध पदार्थ एक ही प्रकार के कणों का बना होता है।

→ जल में घुले हुए सोडियम क्लोराइड को वाष्पीकरण या आसवन विधि द्वारा जल से पृथक् किया जा सकता है।

→ मिश्रण में एक से अधिक पदार्थ होते हैं।

→ कॉपर सल्फेट का जल में समांगी मिश्रण बनता है।

→ जल और तेल का मिश्रण विषमांगी मिश्रण है।

→ नींबू जल व सोडा जल विलयन के उदाहरण हैं।

→ चीनी और जल के विलयन में चीनी विलेय तथा जल विलायक होता है।

→ वायु मुख्यतः 21% ऑक्सीजन और 78% नाइट्रोजन का समांगी मिश्रण होती है।

→ विलयन के कण व्यास में 1 mm (1 × 10-9m) से भी छोटे होते हैं।

→ विलयन एक समांगी मिश्रण होता है जिसमें से छानना विधि द्वारा विलेय के कणों को विलयन से अलग नहीं किया जा सकता।

→ निलंबित कण 100 nm (10-7m) से बड़े होते हैं। ये कण आंखों से देखे जा सकते हैं।

→ कोलाइड के कण विलयन में समान रूप से फैले होते हैं।

→ दूध एक कोलाइडल विलयन है।

→ कोलाइडल कणों द्वारा प्रकाश की किरणों को फैलाना टिनडल प्रभाव कहलाता है।

→ कोलाइड के कणों का आकार 1nm से 100 nm के बीच होता है।

→ कोलाइड के विभिन्न अवयवों को अपकेंद्रीकरण तकनीक द्वारा पृथक् किया जा सकता है।

→ दो अघुलनशील द्रवों को पृथक्करण कीप द्वारा अलग-अलग किया जा सकता है।

→ अमोनियम क्लोराइड, कपूर, नैफ्थलीन और एंथ्रासीन ऊर्ध्वपातित होने योग्य ठोस पदार्थ हैं।

→ दो घुलनशील द्रवों के मिश्रण को जिनके घटकों के क्वथनांकों के बीच काफी अंतर होता है को आसवन विधि द्वारा अलग किया जा सकता है।

→ क्रिस्टलीकरण विधि का प्रयोग ठोस पदार्थों को शुद्ध करने में किया जाता है।

→ रासायनिक परिवर्तन पदार्थ के रासायनिक गुणधर्मों में परिवर्तन लाता है।

→ रासायनिक संघटन के आधार पर पदार्थों को या तो तत्त्वों या यौगिकों में वर्गीकृत किया जा सकता है।

→ तत्त्वों को साधारणतया धातु, अधातु और उपधातु में बांटा जा सकता है।

→ दो तत्त्व पारा व ब्रोमीन कमरे के तापक्रम पर द्रव अवस्था में होते हैं।

→ यौगिकों के गुण उसमें निहित तत्त्वों के गुणों से अलग होते हैं, जबकि मिश्रण में उपस्थित तत्त्व और यौगिक अपने-अपने गुणों को दर्शाते हैं।

→ शुद्ध पदार्थ-एक ही प्रकार के कणों से बने पदार्थ को शुद्ध पदार्थ कहा जाता है।

→ मिश्रण-एक या एक से अधिक शुद्ध तत्त्वों या यौगिकों के मिलने से बना पदार्थ मिश्रण कहलाता है।

→ विलयन-दो या दो से अधिक पदार्थों का समांगी मिश्रण विलयन कहलाता है।

→ मिश्र धातुएँ-वे धातुओं के समांगी मिश्रण जिन्हें भौतिक क्रियाओं द्वारा अवयवों से अलग नहीं किया जा सकता, मिश्र धातुएँ कहलाती हैं।

→ विलायक-विलयन का वह घटक (जिसकी मात्रा दूसरे से अधिक होती है) जो दूसरे घटक को विलयन में मिलाता है, विलायक कहलाता है।

→ विलेय विलयन का वह घटक जो कि विलायक में घुला होता है, उसे विलेय कहते हैं।

संतृप्त विलयन-दिए गए निश्चित तापमान पर यदि विलयन में विलेय पदार्थ नहीं घुलता तो, उसे संतृप्त विलयन कहते हैं।

→ घुलनशीलता-विलेय पदार्थ की वह मात्रा जो निश्चित तापमान पर संतृप्त विलयन में उपस्थित होती है, उसकी घुलनशीलता कहलाती है।

→ असंतृप्त विलयन यदि किसी विलयन में विलेय पदार्थ की मात्रा संतृप्तता से कम हो तो उसे असंतृप्त विलयन कहते हैं।

→ अति संतृप्त विलयन-यदि किसी विलयन में विलेय पदार्थ की सांद्रता संतृप्त सांद्रता से अधिक हो तो उसे अति संतृप्त विलयन कहते हैं।

→ विलयन की सांद्रता-विलायक की मात्रा (आयतन) में घुले हए विलेय पदार्थ की मात्रा को विलयन की सांद्रता कहते हैं।
अथवा
विलेय पदार्थ की मात्रा जो विलयन की मात्रा (आयतन) में उपस्थित हो उसे विलयन की सांद्रता कहते हैं।

→ निलंबन-निलंबन एक विषमांगी मिश्रण होता है, जिसमें विलेय पदार्थ के कण घुलते नहीं हैं, बल्कि माध्यम की समष्टि में निलंबित रहते हैं।

→ अपकेंद्रण विधि का सिद्धांत-अपकेंद्रण विधि में मिश्रण को तेजी से घुमाने पर भारी कण नीचे बैठ जाते और हल्के कण ऊपर आ जाते हैं।

→ क्रोमैटोग्राफी-क्रोमैटोग्राफी एक ऐसी विधि है जिसका प्रयोग उन विलेय पदार्थों को पृथक् करने में होता है जो एक ही तरह के विलायक में घुले होते हैं।

→ क्रिस्टलीकरण क्रिस्टलीकरण वह विधि है जिसके द्वारा क्रिस्टल के रूप में शुद्ध ठोस को विलयन से पृथक् किया जाता है।

→ तत्त्व-तत्त्व पदार्थ का वह मूल रूप है जिसे रासायनिक क्रिया द्वारा छोटे टुकड़ों में नहीं बाँटा जा सकता।

→ उपधातु-धातु और अधातु के बीच के गुण दर्शाने वाले तत्त्व उपधातु कहलाते हैं; जैसे बोरॉन व सिलिकॉन।

→ यौगिक-दो या दो से अधिक तत्त्वों के समान अनुपात में रासायनिक तौर पर मिलने से बना पदार्थ यौगिक कहलाता है।

Haryana State Board HBSE 9th Class Science Notes Chapter 1 हमारे आस-पास के पदार्थ Notes.

Haryana Board 9th Class Science Notes Chapter 1 हमारे आस-पास के पदार्थ

→ हमारे चारों ओर स्थित वस्तुओं का आकार, आकृति और बनावट अलग-अलग होती है।

→ पदार्थ वह वस्तु है जो द्रव्यमान रखती है तथा स्थान घेरती है।

→ भारत के प्राचीन दार्शनिकों ने पदार्थ को पाँच मूल तत्त्वों वायु, पृथ्वी, अग्नि, जल और आकाश (जिन्हें पंचतत्त्व कहते हैं) में वर्गीकृत किया था।

→ आधुनिक वैज्ञानिकों ने पदार्थ को भौतिक गुणधर्म एवं रासायनिक प्रकृति के आधार पर वर्गीकृत किया है।

→ पदार्थ के कणों के बीच पर्याप्त रिक्त स्थान होता है।

→ एक गिलास जल में शहद की एक बूंद डालकर शहद की शुद्धता परखी जा सकती है, क्योंकि यदि शहद एक वर्ण रेखा के रूप में गिरता है, तो यह शुद्ध माना जाता है।

→ पदार्थ के कण निरंतर गतिशील होते हैं अर्थात उनमें गतिज ऊर्जा होती है।

→ तापमान बढ़ने से कणों की गतिज ऊर्जा बढ़ जाती है।

→ पदार्थ के कण एक-दूसरे को आकर्षित करते हैं, परंतु आकर्षण बल का सामर्थ्य प्रत्येक पदार्थ में अलग-अलग होता है।

→ पदार्थ ठोस, द्रव तथा गैस तीन रूपों में पाया जाता है।

→ ठोस पूर्णतः असंपीडय, निश्चित आकार तथा स्थिर आयतन के होते हैं।

→ ठोस के कण अपनी माध्य स्थिति के चारों ओर दोलन कर सकते हैं।

→ ठोस पदार्थों में दूसरे ठोस में विसरित होने का गुण नहीं होता।

→ द्रव अपेक्षाकृत असंपीडय तरल होते हैं। इनका आयतन निश्चित होता है, परंतु आकार नहीं।

→ गैसें जल में विसरित होकर घुल जाती हैं। इसी गुण के कारण जलीय जंतु व पौधे जल में जीवित रहते हैं।

→ जलीय जंतु जल में घुली ऑक्सीजन के कारण श्वास लेते हैं।

→ द्रव में ठोस, द्रव और गैस तीनों का विसरण संभव है।

→ ठोस की अपेक्षा द्रव में विसरण की दर अधिक होती है क्योंकि द्रव अवस्था में कणों में रिक्त स्थान अधिक होता है तथा वे स्वतंत्र रूप से गति कर सकते हैं।

→ ठोसों एवं द्रवों की तुलना में गैसों की संपीडयता अधिक होती है।

→ कणों की तेज गति तथा अत्यधिक रिक्त स्थानों के कारण गैसों का अन्य गैसों में विसरण बहुत तीव्रता से होता है।

→ तापमान की माप केल्विन से सेल्सियस में बदलने के लिए दिए हुए तापमान से 273 घटाना चाहिए तथा सेल्सियस से केल्विन में बदलने के लिए दिए हुए तापमान में 273 जोड़ देना चाहिए।

→ किसी ठोस का गलनांक उसके कणों के बीच के आकर्षण बल के सामर्थ्य को दर्शाता है।

→ 0°C पर जल के कणों की ऊर्जा उसी तापमान पर बर्फ के कणों की ऊर्जा से अधिक होती है।

→ जल का क्वथनांक 373K (100°C) है।

→ तापमान बदलकर हम पदार्थ को एक अवस्था से दूसरी अवस्था में बदल सकते हैं।

→ दाब के बढ़ने और तापमान के घटने से गैस द्रव में बदल सकती है।

→ कपूर और अमोनियम क्लोराइड ऊर्ध्वपातनशील पदार्थ हैं।

→ सतही क्षेत्र बढ़ने पर वाष्पीकरण की दर बढ़ जाती है।

→ तापमान बढ़ने पर वाष्पीकरण की दर बढ़ जाती है।

→ वाष्पीकरण के कारण शीतलता आती है।

→ विसरण-दो विभिन्न पदार्थों के कणों का स्वतः मिलना विसरण कहलाता है।

→ द्रवित पेट्रोलियम गैस (LPG): ब्यूटेन को उच्च दाब पर संपीडित करके घरों में खाना बनाने के लिए उपयोग की जाने वाली गैस द्रवित पेट्रोलियम गैस कहलाती है।

→ संपीडित प्राकृतिक गैस (CNG): प्राकृतिक गैस को उच्च दाब पर संपीडित करके वाहनों के ईंधन के रूप में प्रयोग की जाने वाली गैस संपीडित प्राकृतिक गैस (CNG) कहलाती है।

द्रव्यमान घनत्व किसी तत्त्व के द्रव्यमान प्रति इकाई आयतन को घनत्व कहते हैं।
अर्थात् घनत्व

→ थर्मामीटर-तापमान मापने के लिए प्रयोग की जाने वाली यक्ति को थर्मामीटर कहते हैं।

→ गलनांक-वह निश्चित तापमान जिस पर कोई ठोस पिघलकर द्रव बन जाता है, गलनांक कहलाता है।

→ संगलन-गलने की प्रक्रिया यानि ठोस से द्रव अवस्था में परिवर्तन को संगलन कहते हैं।

→ संगलन की प्रसुप्त ऊष्मा वायुमंडलीय दाब पर 1 किलो ठोस को उसके गलनांक पर द्रव में बदलने के लिए जितनी ऊष्मीय ऊर्जा की आवश्यकता होती है, उसे संगलन की प्रसुप्त ऊष्मा कहते हैं।

→ क्वथनांक-वायुमंडलीय दाब पर वह तापमान जिस पर कोई द्रव उबलने लगता है, उसे क्वथनांक कहते हैं।

→ वाष्पीकरण की गुप्त ऊष्मा वायुमंडलीय दाब पर 1 किलो द्रव को उसके क्वथनांक पर वाष्प में बदलने के लिए जितनी ऊष्मीय ऊर्जा की आवश्यकता होती है, उसे वाष्पीकरण की गुप्त या प्रसुप्त ऊष्मा कहते हैं।

→ ऊर्ध्वपातन-द्रव अवस्था में परिवर्तित हुए बिना ठोस अवस्था से सीधे गैस और वापस ठोस में बदलने की प्रक्रिया को ऊर्ध्वपातन कहते हैं।

→ शुष्क बर्फ-ठोस कार्बन-डाइऑक्साइड को शुष्क बर्फ कहते हैं।

→ जमना-किसी द्रव से ठोस अवस्था में परिवर्तन को जमना कहते हैं।

→ हिमांक-वह निश्चित ताप जिस पर कोई द्रव, ठोस अवस्था में बदलना आरंभ करता है, हिमांक कहलाता है।

→ वाष्पीकरण-क्वथनांक से कम तापमान पर द्रव के वाष्प में परिवर्तित होने की प्रक्रिया को वाष्पीकरण कहते हैं।

→ आर्द्रता-वायु में विद्यमान जलवाष्प की मात्रा को आर्द्रता कहते हैं।

Haryana State Board HBSE 9th Class Science Notes Chapter 15 खाद्य संसाधनों में सुधार Notes.

Haryana Board 9th Class Science Notes Chapter 15 खाद्य संसाधनों में सुधार

→ हमारे भोजन में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेटस, वसा, विटामिन और खनिज लवण होते हैं।

→ हमें भोजन पौधों और जंतुओं से प्राप्त होता है।

→ हरित और श्वेत क्रांति से खाद्य उत्पादन बढ़ा है।

→ संपूषणीय जीवन-यापन के लिए मिश्रित खेती, अंतराफसलीकरण तथा संघटित कृषि प्रणालियों को अपनाया जाना आवश्यक है।

→ फसल के लिए 16 पोषक आवश्यक हैं। हवा से कार्बन तथा ऑक्सीजन, पानी से हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन एवं मिट्टी से शेष 13 पोषक प्राप्त होते हैं, इन 13 पोषकों में से 6 पोषकों की मात्रा अधिक चाहिए, इन्हें वृहत् पोषक कहते हैं। इनमें से 7 पोषक तत्त्व कम मात्रा में चाहिए, इन्हें सूक्ष्म पोषक कहते हैं।

→ फसल के लिए पोषकों के मुख्य स्रोत खाद तथा उर्वरक हैं।

→ मिश्रित फसल में दो अथवा दो से अधिक फसलों को एक ही खेत में एक साथ उगाते हैं।

→ अब दो अथवा दो से अधिक फसलों को निर्दिष्ट कतार पैटर्न में उगाते हैं, उसे अंतराफसलीकरण कहते हैं।

→ एक ही खेत में विभिन्न फसलों को पूर्व नियोजित क्रमवार उगाएँ तो उसे फसल-चक्र कहते हैं।

→ कंपोस्ट या वर्मीकंपोस्ट और हरी खाद जैविक खादें हैं।

→ उर्वरक रासायनिक विधियों द्वारा तैयार किए जाते हैं।

→ फसल संरक्षण भी फसल उत्पादन वृद्धि में सहायक कारक है।

→ पशुधन के प्रबंधन को पशुपालन कहते हैं।

→ पशुपालन के दो उद्देश्य हैं दूध देने हेतु तथा कृषि कार्य हेतु।

→ कुक्कुट पालन देशी मुर्गियों को बढ़ाने के लिए करते हैं। मुर्गी पालन के अंतर्गत अंडों का उत्पादन तथा मुर्गों के मांस के लिए ब्रौलर उत्पादन आता है।

→ कुक्कुट पालन उत्पादन को बढ़ाने के लिए उन्नत किस्म की नस्लों के लिए भारत (देशी) तथा विदेशी नस्लों में संकरण कराते हैं।

→ समुद्र तथा अंतः स्रोतों से मछलियाँ प्राप्त कर सकते हैं।

→ मछली उत्पादन बढ़ाने के लिए उनका संवर्धन समुद्र तथा अंतःस्थली पारिस्थितिक तंत्रों में कर सकते हैं। समुद्री मछलियों को पकड़ने के लिए प्रतिध्वनि गंभीरता मापी तथा सैटेलाइट द्वारा निर्देशित जाल का प्रयोग करते हैं।

→ मछली फार्मिंग में प्रायः मिश्रित मछली संवर्धन तंत्र अपनाते हैं।

→ मधुमक्खी पालन मधु तथा मोम को प्राप्त करने के लिए किया जाता है।

→ वृहत् पोषक-जिन पोषकों की अधिक मात्रा में आवश्यकता हो, उन्हें वृहत् पोषक कहते हैं। (इनकी संख्या 6 है।)

→ सूक्ष्म पोषक-जिन पोषकों की कम मात्रा में आवश्यकता हो, उन्हें सूक्ष्म पोषक कहते हैं। (इनकी संख्या 7 है।)

→ खाद-जिन पदार्थों से पौधों का पोषण होता है, उन्हें खाद कहते हैं।

→ कंपोस्ट खाद-जैविक पदार्थों को गलाने-सड़ाने से जो पदार्थ बनते हैं, उन्हें कंपोस्ट खाद कहते हैं।

→ वर्मीकंपोस्ट-जिस कंपोस्ट को केंचुए के द्वारा निरस्तीकरण से बनाया जाता है, उसे वर्मीकंपोस्ट कहते हैं।

→ हरी खाद-हरे पौधों के गलने-सड़ने से जो खाद बनती है, उसे हरी खाद कहते हैं।

→ उर्वरक कृत्रिम प्रक्रियाओं से तैयार खाद को उर्वरक कहते हैं।

→ सिंचाई-फसलों को आवश्यकतानुसार पानी उपलब्ध कराना सिंचाई कहलाता है।

→ मृदा अपरदन-मृदा की ऊपरी सतह का किन्हीं कारणों से कट जाना या बह जाना मृदा अपरदन कहलाता है।

→ मिश्रित फसल-दो या दो से अधिक फसलों को एक साथ एक ही खेत में उगाना मिश्रित फसल कहलाता है।

→ अंतराफसलीकरण-दो या दो से अधिक फसलों को एक साथ एक ही खेत में विशेष ढंग से उगाना अंतराफसलीकरण कहलाता है।

→ फसल-चक्र-किसी खेत में क्रमवार पूर्व नियोजित सुनियोजित ढंग से विभिन्न फसलों को उगाना फसल-चक्र कहलाता है।

→ खरपतवार-कृषि योग्य भूमि में उगे अनावश्यक पौधे खरपतवार कहलाते हैं।

→ पीड़क-फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले जंतुओं को पीड़क कहते हैं।

→ पीड़कनाशी-जिन रसायनों से पीड़कों को नष्ट किया जाता है, उन्हें पीड़कनाशी कहते हैं।

→ पशुपालन-पशुधन के प्रबंधन को पशुपालन कहते हैं।

→ दुधारू पशु-दूध देने वाले पशुओं को दुधारू पशु कहते हैं।

→ ड्राफ्ट पशु-बोझा ढोने वाले पशुओं को ड्राफ्ट पशु कहते हैं।

→ डेयरी पशु-दूध देने वाले डेयरी पशु कहलाते हैं।

→ कुक्कुट पालन-अंडे व मांस के लिए मुर्गियों, बत्तखों, बटेरों आदि को पालना कुक्कुट पालन कहलाता है।

→ लेअर-अंडे देने वाली मुर्गी लेअर कहलाती है।

→ ब्रौलर केवल मांस के लिए पाली जाने वाली मुर्गियों को ब्रौलर या ब्रौला कहते हैं।

→ मत्स्य पालन मछली, प्रॉन, मोलस्क को उपयोगिता के लिए पालना मत्स्य पालन कहलाता है।

→ मधुमक्खी पालन-शहद व मोम प्राप्त करने के लिए मधुमक्खियों को पालना मधुमक्खी पालन कहलाता है।

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