आज एक ऐसे महामानव का जन्मदिन है जिसने संसार के कल्याण के लिए अपने प्राणों का बलिदान दे दिया। इस महामानव का नाम दधिचि है। इनके विषय में कथा है कि एक बार वृत्रासुर नाम का एक राक्षस देवलोक पर आक्रमण कर दिया।
देवताओं ने देवलोक की रक्षा के लिए वृत्रासुर पर अपने दिव्य अस्त्रों का प्रयोग किया लेकिन सभी अस्त्र शस्त्र इसके कठोर शरीर से टकराकर टुकरे-टुकरे हो रहे थे। अंत में देवराज इन्द्र को अपने प्राण बचाकर भागना पड़ा। इन्द्र भागकर ब्रह्मा, विष्णु एवं शिव के पास गया लेकिन तीनों देवों ने कहा कि अभी संसार में ऐसा कोई अस्त्र शस्त्र नहीं है जिससे वृत्रासुर का वध हो सके।
त्रिदेवों की ऐसी बातें सुनकर इन्द्र मायूस हो गया। देवराज की दयनीय स्थिति देखकर भगवान शिव ने कहा कि पृथ्वी पर एक महामानव हैं दधिचि। इन्होंने तप साधना से अपनी हड्डियों को अत्यंत कठोर बना लिया है। इनसे निवेदन करो कि संसार के कल्याण हेतु अपनी हड्डियों का दान कर दें।
इन्द्र ने शिव की आज्ञा के अनुसार दधिचि से हड्डियों का दान मांगा। महर्षि दधिचि ने संसार के हित में अपने प्राण त्याग दिए। देव शिल्पी विश्वकर्मा ने इनकी हड्डियों से देवराज के लिए वज्र नामक अस्त्र का निर्माण किया और दूसरे देवताओं के लिए भी अस्त्र शस्त्र बनाए।
इसके बाद इन्द्र ने वृत्रासुर को युद्घ के लिए ललकारा। युद्घ में इन्द्र ने वृत्रासुर पर वज्र का प्रहार किया जिससे टकराकर वृत्रासुर का शरीर रेत की तरह बिखर गया। देवताओं का फिर से देवलोक पर अधिकार हो गया और संसार में धर्म का राज कायम हुआ।
आज जहां संत और साधुओं को लेकर आम जनता के मन में विश्वास की भावना कम होती जा रही है ऐसे में महर्षि दधिचि का जीवन एक आदर्श रूप है जो बताता है कि संत और ऋषि को कैसा होना चाहिए। वास्तव में संत की यही परिभाषा है कि वह अपने लिए नहीं बल्कि संसार के लिए जिए, संसार के कल्याण में अपने प्राणों का बलिदान दे जैसा महर्षि दधिचि ने किया।
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दधीचि का अर्थ क्या है?
इसे सुनेंरोकें(पुराण) एक परोपकारी और उदार ऋषि जिनकी रीढ़ की हड्डी से इंद्र ने वज्र नामक शस्त्र बनाकर वृत्रासुर नामक दैत्य को मारा था; दधीच। एक प्रसिद्ध वैदिक ऋषि जो परोपकार और उदारता के लिए प्रसिद्ध है।
दधीचि की हड्डियों से कितने धनुष बने?
इसे सुनेंरोकेंदिव्य धनुष और तरकश : दधीचि ऋषि ने देश के हित में अपनी हड्डियों का दान कर दिया था। उनकी हड्डियों से 3 धनुष बने- 1. गांडीव, 2. पिनाक और 3.
दधीचि की पत्नी का नाम क्या था?
इसे सुनेंरोकेंदधीचि प्राचीन काल के परम तपस्वी और ख्यातिप्राप्त महर्षि थे। उनकी पत्नी का नाम ‘गभस्तिनी’ था। महर्षि दधीचि वेद शास्त्रों आदि के पूर्ण ज्ञाता और स्वभाव के बड़े ही दयालु थे।
महर्षि दधीचि के पुत्र का क्या नाम था?
इसे सुनेंरोकेंमहर्षि दधीचि के पुत्र का नाम पिपलाद था। जो उन्हें भगवान शिव शंकर की कठोर तपस्या के फलस्वरूप प्राप्त हुआ था।
क्षितीश का अर्थ क्या है?
इसे सुनेंरोकेंक्षीतीश नाम का मतलब – Kshitish ka arth आपको बता दें कि क्षीतीश का मतलब सभी देवताओं के राजा, इन्द्रदेव, पृथ्वी के मास्टर होता है।
पिप्पलाद ऋषि कौन थे?
इसे सुनेंरोकेंपिप्पलाद ऋषि महर्षि दधीचि के पुत्र थे। जब दधीचि ने वज्र बनाने के लिये, इंद्रदेव को अपनी अस्थियों का दान कर दिया, तो उनकी गर्भवती पत्नी ने अपने गर्भ को त्याग दिया। और उसे पीपल की जड़ के पास छोड़ कर अपने पति की चिता पर बैठकर सती हो गयी। बच्चे ने पीपल का फल और गोंद खाकर खुद को जिंदा रखा।
दधीचि की हड्डियों से निर्मित वज्र का क्या उद्देश्य था?
इसे सुनेंरोकेंइंद्रदेव के हाथों में वज्र नजर आता है वह महर्षि दधीचि की हड्डियों से ही निर्मित है। शास्त्रों के अनुसार दधीचि ने परोपकार करते हुए अस्थियों का बलिदान देना स्वीकार किया था। इंद्र ने इनकी अस्थियों का पूजन कर उनसे तेजवान नामक वज्र बनाकर वृतासुर का अंत किया था।
कवि के अनुसार मनुष्य के मन में क्या होना चाहिए?
इसे सुनेंरोकेंकवि के अनुसार ईश्वर सर्वत्र व्याप्त है और सभी मनुष्यों में ईश्वर का अंश है। वह मनुष्यों की सहायता मनुष्य के रूप में ही करता है। सभी मनुष्य उस परमपिता ईश्वर की संतान हैं तथा एक पिता की संतान होने के नाते सभी मनुष्य एक दूसरे के भाई के समान हैं।
अवलोक रहा है बार बार नीचे जल में महाकार से क्या तात्पर्य है?
इसे सुनेंरोकेंAnswer. अवलोक रहा है, बार-बार नीचे जल में महाकार से तात्पर्य यह है कि पर्वत नीचे पहले तालाब में फैले हुए जल में अपने विशाल आकार को निहार रहा है।
पिप्पलाद की माता का नाम क्या था?
इसे सुनेंरोकेंकिन्तु कई ग्रथों में इसके माता का नाम सुवर्चा अथवा सुभद्रा दिया गया है। इनमें से सुभद्रा, दधीचि ऋषि की दासी थी।
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दधीचि की हड्डियों से कौन से अस्त्र बने?
इसे सुनेंरोकेंइन्द्र ने शिव की आज्ञा के अनुसार दधिचि से हड्डियों का दान मांगा। महर्षि दधिचि ने संसार के हित में अपने प्राण त्याग दिए। देव शिल्पी विश्वकर्मा ने इनकी हड्डियों से देवराज के लिए वज्र नामक अस्त्र का निर्माण किया और दूसरे देवताओं के लिए भी अस्त्र शस्त्र बनाए।
महर्षि दधीचि कौन थे?
इसे सुनेंरोकेंदधीचि प्राचीन काल के परम तपस्वी और ख्यातिप्राप्त महर्षि थे। उनकी पत्नी का नाम ‘गभस्तिनी’ था। महर्षि दधीचि वेद शास्त्रों आदि के पूर्ण ज्ञाता और स्वभाव के बड़े ही दयालु थे। अहंकार तो उन्हें छू तक नहीं पाया था।
दधीचि की हड्डियों से निर्मित वज्र का क्या उद्देश्य था?
इसे सुनेंरोकेंइंद्रदेव के हाथों में वज्र नजर आता है वह महर्षि दधीचि की हड्डियों से ही निर्मित है। शास्त्रों के अनुसार दधीचि ने परोपकार करते हुए अस्थियों का बलिदान देना स्वीकार किया था। इंद्र ने इनकी अस्थियों का पूजन कर उनसे तेजवान नामक वज्र बनाकर वृतासुर का अंत किया था।
दधीचि ऋषि का नाम क्यों प्रसिद्ध?
इसे सुनेंरोकेंAnswer: लोक कल्याण के लिये आत्म-त्याग करने वालों में महर्षि दधीचि का नाम बड़े ही आदर के साथ लिया जाता है। दधीचि संस्कृत एक परोपकारी और उदार ऋषि जिनकी रीढ़ की हड्डी से इंद्र ने वज्र नामक शस्त्र बनाकर वृत्रासुर नामक दैत्य को मारा था ; दधीच। तथा उनका नाम प्रसिद्ध है।
महर्षि दधीचि के कितने पुत्र थे?
कुल | ब्राह्मण |
पिता | अथर्वा |
विवाह | गभस्तिनी |
संतान | पिप्पलाद |
महर्षि से कौन जाने जाते हैं?
इसे सुनेंरोकेंदधीचि को अश्विनीकुमार ब्रह्म विद्या पाने के योग्य लगे। उन्होंने अश्विनीकुमारों को इन्द्र द्वारा कही गई बातें बताईं। तब अश्विनीकुमारों ने महर्षि दधीचि के अश्व का सिर लगाकर ब्रह्म विद्या प्राप्त कर ली। इन्द्र को जब यह जानकारी मिली तो वह पृथ्वी लोक में आये और अपनी घोषणा के अनुसार महर्षि दधीचि का सिर धड़ से अलग कर दिया।
इंद्र के वज्र का निर्माण कैसे हुआ?
इसे सुनेंरोकेंभागवत में लिखा है कि इंद्र ने वृत्रासुर का वध करने के लिये दधीचि की हड्डी से वज्र बनवाया था । मत्स्य- पुराण के अनुसार जब विश्वरकर्मा ने सूर्य को भ्रमयंत्र (खराद) पर चढ़ाकर खरादा था, तब छिलकर जो तेज निकला था, उसी से विष्णु का चक्र, रुद्र का शूल और इंद्र का वज्र बना था ।
वृत्रासुर कौन था?
इसे सुनेंरोकेंवृत्रासुर कौन था? – Quora. पौराणिक कथाओं के अनुसार देवताओं के अस्थायी गुरु विश्वरूप का छोटा भाई था वृत्रासुर । जिसको विश्वरूप के पिता महर्षि त्वष्टा ने ; देवताओं द्वारा विश्वरूप की हत्या किये जाने पर,देवताओं से बदला लेने के लिए महर्षि त्वष्टा ने यज्ञ वेदी से प्रकट किया था ।