द्वादशी के दिन क्या करना चाहिए? - dvaadashee ke din kya karana chaahie?

पाप से बचने के लिए एकादशी उपरांत द्वादशी पर अवश्य करें यह काम

एकादशी व्रत को समाप्त करने को पारण कहते हैं। एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद पारण किया जाता है। एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना अति आवश्यक है।

एकादशी व्रत को समाप्त करने को पारण कहते हैं। एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद पारण किया जाता है। एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना अति आवश्यक है। यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो गई हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के बाद ही होता है। द्वादशी तिथि के भीतर पारण न करना पाप करने के समान होता है।

एकादशी व्रत का पारण हरि वासर के दौरान भी नहीं करना चाहिए। जो श्रद्धालु व्रत कर रहे हैं उन्हें व्रत तोड़ने से पहले हरि वासर समाप्त होने की प्रतीक्षा करनी चाहिए। हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि है। व्रत तोड़ने के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रातःकाल होता है। व्रत करने वाले श्रद्धालुओं को मध्यान्ह के दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिए। कुछ कारणों की वजह से अगर कोई प्रातःकाल पारण करने में सक्षम नहीं है तो उसे मध्यान्ह के बाद पारण करना चाहिए।

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पारण समय

हिन्दू धार्मिक ग्रंथों के अनुसार एकादशी के दिन रात्रि जागरण करने का उल्लेख मिलता है। अतः एकादशी की रात्रि में न सोएं। बल्कि भगवान विष्णु जी का भजन-कीर्तन करें। अगले दिन अर्थात द्वादशी के दिन पूजा-दान एवं ब्राह्मणों को भोजन कराने के पश्चात व्रत खोलें।

पंडित विशाल दयानन्द शास्त्री

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द्वादशी के दिन क्या क्या नहीं खाना चाहिए?

एकादशी, द्वादशी और तेरस के दिन बैंगन खाना मना है। इससे संतान को कष्ट होता है। 2. अमावस्या, पूर्णिमा, संक्रांति, चतुर्दशी और अष्टमी, रविवार, श्राद्ध एवं व्रत के दिन स्त्री सहवास तथा तिल का तेल, लाल रंग का साग तथा कांसे के पात्र में भोजन करना मना है।

द्वादशी के दिन क्या दान करें?

वामन द्वादशी (Vaman Dwadashi) की पूजा के उपरांत एक डलिया में एक कटोरी चावल, एक कटोरी चीनी, एक कटोरी दही रखकर ब्राह्मण को दान करें. इस समय ब्राह्मणों को माला, कमंडल, लाठी, आसन, गीता, छाता, खड़ाऊ, फल और दक्षिणा देने से भगवान वामन की कृपा प्राप्त होती है. ब्राह्मणों का आशीर्वाद मिलता है.

द्वादशी के दिन व्रत कैसे खोलें?

गौरतलब है कि एकादशी व्रत के दिन चावल खाना मना होता है, लेकिन द्वादशी के दिन चावल खाना अति उत्तम माना जाता है। मान्यताओं के अनुसार एकादशी के दिन चावल खाने से प्राणी रेंगने वाले जीव की योनि में जन्म पाता है। लेकिन वही द्वादशी के दिन चावल खाकर व्रत का पारण करने से इस योनि से मुक्ति भी मिल जाती है।

द्वादशी को चावल क्यों खाना चाहिए?

वैज्ञानिक तथ्यों के अनुसार, चावल में जल तत्व की मात्रा अधिक होती है। वहीं जल पर चंद्रमा का प्रभाव अधिक पड़ता है और चंद्रमा मन का कारक ग्रह होता है। चावल को खाने से शरीर में जल की मात्रा बढ़ जाती है, इससे मन विचलित और चंचल होने लगता है। मन के चंचल होने से व्रत के नियमों का पालन करने में बाधा आती है।

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