भारतीय संविधान के प्रस्तावना में घोषणा के अनुसार भारत एक पन्थनिरपेक्ष देश है। लेकिन भारतीय पन्थनिरपेक्षता, पश्चिमी देशों की पन्थनिरपेक्षता से थोड़ी भिन्न है। पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता जहाँ धर्म एवं राज्य के बीच पूर्णत: संबंध विच्छेद पर आधारित है, वहीं भारतीय संदर्भ में यह अंतर-धार्मिक समानता पर आधारित है।[कृपया उद्धरण जोड़ें] पश्चिम में धर्मनिरपेक्षता का पूर्णतः नकारात्मक एवं अलगाववादी स्वरूप दृष्टिगोचर होता है, वहीं भारत में यह समग्र रूप से सभी धर्मों का सम्मान करने की संवैधानिक मान्यता पर आधारित है। Show धर्म शब्द का अर्थ पंथ नही होता। इसलिए धर्म निरपेक्ष शब्द ही गलत है। सेक्युलर शब्द का अर्थ धर्मनिरपेक्ष नही अपितु पंथनिरपेक्ष होता है । धर्म शब्द का विश्व में किसी भी समृद्ध भाषा मे पर्यायवाची शब्द नही है। इसलिए पंथनिरपेक्ष या सेक्युलर कहना उचित है। धर्मनिरपेक्षता असंभव है। धर्म एक ही होता है। ईसाई, इस्लाम, जैन, बौद्ध, सिख ये धर्म नही है अपितु पंथ मजहब या संप्रदाय है। धर्म के 10 लक्षण होते हैं जो मनुस्मृति मे दर्ज है।[1] धर्मनिरपेक्ष शब्द, भारतीय संविधान की प्रस्तावना में बयालीसवें संशोधन (1976) द्वारा डाला गया था। भारत का इसलिए एक आधिकारिक राज्य धर्म नहीं है। हर व्यक्ति को उपदेश, अभ्यास और किसी भी धर्म के चुनाव प्रचार करने का अधिकार है। सरकार के पक्ष में या किसी भी धर्म के खिलाफ भेदभाव नहीं करना चाहिए। यह बराबर सम्मान के साथ सभी धर्मों का सम्मान करना होगा। सभी नागरिकों, चाहे उनकी धार्मिक मान्यताओं के लिए कानून के सामने बराबर हैं। कोई धार्मिक अनुदेश सरकार या सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में दिया जाता है। फिर भी, सभी स्थापित दुनिया के धर्मों के बारे में सामान्य जानकारी समाजशास्त्र में पाठ्यक्रम के हिस्से के रूप में दिया जाता है, किसी भी एक धर्म या दूसरों को कोई महत्व देने के बिना। मौलिक मान्यताओं, सामाजिक मूल्यों और मुख्य प्रथाओं और प्रत्येक स्थापित दुनिया धर्मों के त्योहारों के संबंध के साथ सामग्री / बुनियादी मौलिक जानकारी प्रस्तुत करता है। एसआर बोम्मई बनाम भारतीय संघ में भारत के सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के मूल ढांचे का एक अभिन्न हिस्सा है कि धर्मनिरपेक्षता था। भारतीय पन्थनिरपेक्षता की प्रमुख विशेषताएँ[संपादित करें]ध्यातव्य है कि ४२वें संविधान संशोधन के बाद भारतीय संविधान की प्रस्तावना में 'पंथनिरपेक्ष' शब्द जोड़ा गया, लेकिन 'पन्थनिरपेक्ष' शब्द का प्रयोग भारतीय संविधान के किसी अन्य भाग में नहीं किया गया है। वैसे संविधान में कई ऐसे अनुच्छेद मौजूद हैं जिनके आधार पर भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राज्य कहा जा सकता है-
बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]
धर्मनिरपेक्षता का कौन सा सिद्धांत भारत के संविधान में अपनाया गया था?धर्म के आधार पर राज्य नागरिकों में भेदभाव नहीं करता है, बल्कि वह सभी धर्मों को बराबर सम्मान देता है। धर्मनिरपेक्षता को और अधिक स्पष्ट करते हुए अनुच्छेद 25 सभी नागरिकों को धर्म के अनुकरण की स्वतन्त्रता तथा धर्म को अबाध रूप से मानने, आचरण तथा प्रचार करने का अधिकार देता है।
धर्मनिरपेक्षता का सिद्धांत क्या है?'धर्मनिरपेक्षता, पंथनिरपक्षता या सेक्युलरवाद धार्मिक संस्थानों व धार्मिक उच्चपदधारियों से सरकारी संस्थानों व राज्य का प्रतिनिधित्व करने हेतु शासनादेशित लोगों के पृथक्करण का सिद्धान्त है। यह एक आधुनिक राजनैतिक एवं संविधानी सिद्धान्त है।
भारत में धर्मनिरपेक्षता की नीति का स्रोत क्या है?हेगड़े ने कहा, बाबा साहेब अम्बेडकर ने संविधान में साफ कहा है कि भारत का संविधान पूरी तरह धर्मनिरपेक्ष है. इसलिए इस पर अपना अधिकार जमाने की जरूरत नहीं है. धर्मनिरपेक्षता भारतीय संविधान का बुनियादी ढांचा है.
धर्मनिरपेक्षता का मूल मंत्र क्या है?इस सोच के आधार पर आप संघर्ष का रास्ता चुनकर इस बात के लिए आवाज़ उठा सकते हैं कि धर्म और आस्था के आधार पर किसी के साथ भेदभाव नहीं होना चाहिए। यह सोच इस मान्यता पर आधारित है कि धर्म से संबंधित किसी भी तरह का वर्चस्व खत्म होना चाहिए । यही धर्मनिरपेक्षता का मूलमंत्र है ।
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