धरती मानव से क्या अपेक्षा करती है? - dharatee maanav se kya apeksha karatee hai?

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Class 9 Hindi – B Agnipath Chapter 11 Important Questions . myCBSEguide has just released Chapter Wise Question Answers for class 09 Hindi – B. There chapter wise Practice Questions with complete solutions are available for download in myCBSEguide website and mobile app. These test papers with solution are prepared by our team of expert teachers who are teaching grade in CBSE schools for years. There are around 4-5 set of solved Hindi Extra questions from each and every chapter. The students will not miss any concept in these Chapter wise question that are specially designed to tackle Exam. We have taken care of every single concept given in CBSE Class 09 Hindi – B syllabus and questions are framed as per the latest marking scheme and blue print issued by CBSE for class 09.

CBSE Class 9 Hindi Ch – 11 Practice Tests

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Ch-11 अग्नि पथ (हरिवंश राय बच्चन)

  1. घने वृक्ष और एक पत्र-छाँह का क्या अर्थ है? अग्निपथ कविता के अनुसार लिखिए।

  2. चल रहा मनुष्य है। अश्रु-स्वेद-रक्त से लथपथ, लथपथ, पथपथ। पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।

  3. अश्रु-स्वेद-रक्त से लथपथ से क्या आशय है? अग्निपथ कविता के आधार पर लिखिए।

  4. कवि मनुष्य से क्या अपेक्षा करता है? अग्नि पथ कविता के आधार पर लिखिए।

  5. अग्निपथ कविता का केन्द्रीय भाव लिखिए।

  6. अग्निपथ में क्या नहीं माँगना चाहिए?

  7. अग्निपथ कविता के आधार पर लिखिए कि क्या घने वृक्ष भी हमारे मार्ग की बाधा बन सकते हैं?

  8. कवि हरिवंश राय बच्चन ने मनुष्य से किस बात की शपथ लेने का आग्रह किया है और क्यों?

Ch-11 अग्नि पथ (हरिवंश राय बच्चन)

Answer

  1. ‘घने वृक्ष’ मार्ग में मिलने वाली सुविधा के प्रतीक हैं। इनका आशय है-जीवन की सुख-सुविधाएँ। ‘एक पत्र-छाँह’ का प्रतीकार्थ है-थोड़ी-सी सुविधा।
  2. कवि देखता है कि जीवन पथ में बहुत-सी कठिनाइयाँ होने के बाद भी मनुष्य उनसे हार माने बिना आगे बढ़ता जा रहा है। कठिनाइयों से संघर्ष करते हुए वह आँसू, पसीने और खून से लथपथ है। मनुष्य निराश हुए बिना बढ़ता जा रहा है।
  3. अश्रु-स्वेद-रक्त से लथपथ का आशय है-संकटों से पूरी तरह ग्रस्त मनुष्य। मार्ग में आने वाले कष्टों को झेलता हुआ तथा परिश्रम की थकान को दूर करता हुआ मनुष्य अपने-आप में सुन्दर होता जाता है।
  4. कवि मनुष्य से यह अपेक्षा करता है कि वह अपना लक्ष्य पाने के लिए सतत प्रयास करे और लक्ष्य पाए बिना रुकने का नाम न ले।
  5. इस कविता का मूल भाव है निरन्तर संघर्ष करते हुए जियो। कवि जीवन को अग्निपथ अर्थात् आग से भरा पथ मानता है। इसमें पग-पग पर चुनौतियाँ और कष्ट हैं। मनुष्य को इन चुनौतियों से नहीं घबराना चाहिए और इनसे मुँह भी नहीं मोड़ना चाहिए बल्कि आँसू पीकर, पसीना बहाकर तथा खून से लथपथ होकर भी निरन्तर संघर्ष पथ पर अग्रसर रहना चाहिए।
  6. ‘अग्निपथ’ अर्थात् – संघर्षमयी जीवन में हमें चाहे अनेक घने वृक्ष मिलें, परंतु हमें एक पत्ते की छाया की भी इच्छा नहीं करनी चाहिए। किसी भी सहारे के सुख की कामना नहीं करनी चाहिए।
  7. अग्निपथ कविता में संघर्षमय जीवन को अग्निपथ कहा गया है और सुख-सुविधाओं को घने वृक्षों की छाया। कभी-कभी जीवन में मिलने वाली सुख-सुविधाएँ (घने वृक्षों की छाया) व्यक्ति को अकर्मण्य बना देती है और वे सफलता के मार्ग में बाधा बन जाते हैं इसीलिए कवि जीवन को अग्नि पथ कहता है। घने वृक्षों की छाया की आदत हमें आलसी बनाकर सफलता से दूर कर देती है।
  8. कवि ने मनुष्य से आग्रह किया है कि यह जीवन-मार्ग कठिनाइयों और समस्याओं से घिरा हुआ है। जीवन की राह पर आगे बढ़ते हुए वह कभी निरुत्साहित नहीं होगा। जीवन की राह सरल नहीं है। यह बहुत कठिन है। वह कभी थकान महसूस नहीं करेगा। न शारीरिक न मानसिक। रास्ते में कभी नहीं रुकेगा। रुकना ही मौत है, जीवन की समाप्ति है। इसलिए कवि मनुष्य से इस बात की शपथ दिलाता है कि वह संघर्ष भरे मार्ग पर निरंतर आगे ही बढ़ता रहेगा। वह न तो कभी रुकेगा, न थकेगा और न ही कभी संघर्ष से मुँह मोड़ेगा।

Class 9 Hindi – B Chapter Wise Important Question

Gujarat Board GSEB Solutions Class 7 Hindi Chapter 5 धरती की शान Textbook Exercise Important Questions and Answers, Notes Pdf.

Gujarat Board Textbook Solutions Class 7 Hindi Chapter 5 धरती की शान

GSEB Solutions Class 7 Hindi धरती की शान Textbook Questions and Answers

धरती की शान अभ्यास

1. काव्य को डी.वी.डी., मोबाइल जैसे साधनों के माध्यम से सनाकर उसका व्यक्तिगत और सामहिक गान करवाना।

2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए :

प्रश्न 1.
आप क्या-क्या कर सकते हैं?
उत्तर :
मैं नदी में तैर सकता हूँ। मैं कुएँ से पानी निकाल सकता हूँ। मैं साइकिल चला सकता हूँ। मैं पतंग उड़ा सकता हूँ। मैं क्रिकेट में अच्छी बल्लेबाजी और गेंदबाजी कर सकता हूँ। इस तरह मैं बहुत – से काम कर सकता हूँ।

प्रश्न 2.
विविध क्षेत्रों में मनुष्य ने क्या-क्या प्रगति की है?
उत्तर :
रासायनिक खाद और ट्रैक्टर बनाकर मनुष्य ने कृषि – क्षेत्र में अनाज का उत्पादन बढ़ाया है। विद्युतशक्ति से चलनेवाली मशीनों द्वारा उसने औद्योगिक क्षेत्र में कपड़ा, प्लास्टिक, रबर आदि से तरह – तरह के उत्पादन किए हैं। भवन – निर्माण के क्षेत्र में उसने अनोखी सफलता प्राप्त की है।

मोटर, बस, रेलगाड़ी, दुपहिये, विमान आदि के निर्माण से यात्रा बहुत सुगम हो गई है। टेलीफोन, मोबाइल, ई – मेईल आदि के द्वारा संचार – व्यवस्था में क्रांतिकारी बदलाव आया है। कम्प्यूटर के आविष्कार ने हर एक क्षेत्र में अपनी उपयोगिता साबित कर दी है।

चिकित्सा क्षेत्र में तरह – तरह की दवाइयाँ और इलाज के नए साधन खोजे गए हैं। इस तरह विविध क्षेत्रों में मनुष्य ने अद्भुत प्रगति की है।

प्रश्न 3.
अन्य जीवों से मनुष्य महान कैसे है?
उत्तर :
मनुष्य के पास अन्य जीवों की अपेक्षा सोचने – समझने की विशेष बुद्धि है। इसी बुद्धि के द्वारा उसने अनोखे आविष्कार किए हैं। मनुष्य को वाणी का वरदान मिला है।

उसके पास भाषा की शक्ति है। इसके बल पर उसने सभ्यता और संस्कृति का विकास किया है। इस प्रकार मनुष्य अन्य जीवों की अपेक्षा महान है।

प्रश्न 4.
काव्य में उल्लिखित प्रकृति के तत्त्व बताइए और उनके समानार्थी शब्द दीजिए।
उत्तर :
काव्य में उल्लिखित प्रकृति के तत्त्व और उनके समानार्थी शब्द :

  • धरती – भूमि, पृथ्वी
  • पर्वत – पहाड़
  • नदी – सरिता
  • माटी – मिट्टी
  • अम्बर – आकाश
  • अग्नि – आग
  • पवन – हवा

3. निम्नलिखित शब्दों का शुद्ध उच्चारण कीजिए और शब्दकोश में से उनके अर्थ ढूँढकर बताइए :

  1. हृष्टपुष्ट
  2. संवाद
  3. शीघ्र
  4. जौहर
  5. अजनबी
  6. वेदांत
  7. मुक़द्दर
  8. शागिर्द
  9. वृत्ति
  10. स्पष्ट

उत्तर :

  1. हृष्ट – पुष्ट – तगड़ा, हट्टाकट्टा
  2. संवाद – बातचीत
  3. शीघ्र – जल्दी
  4. जौहर – पराक्रम, युद्ध में शत्रु की विजय निश्चित हो जाने पर राजपूत स्त्रियों का अग्निकुंड में जल भरना।
  5. अजनबी – अपरिचित
  6. वेदांत – ब्रह्मविद्या
  7. मुकद्दर – भाग्य
  8. शागिर्द – शिष्य
  9. वृत्ति – मनोदशा, मन का झुकाव
  10. स्पष्ट – साफ – साफ

4. निम्नलिखित काव्यपंक्तियों का भावार्थ बताइए :

प्रश्न 1.
पृथ्वी के लाल तेरा हिमगिरि सा भाल
तेरी भृकुटी में तांडव का ताल है।।
उत्तर :
हे पृथ्वी के पुत्र, तेरे पास हिमालय जैसा ऊँचे दर्जे का दिमाग है। तू अगर क्रोध में अपनी भौंह तिरछी कर दे तो उसका वही असर होगा जो शिव के तांडव की ताल में होता है।

प्रश्न 2.
गुरु सा मतिमान, पवन सा तू गतिमान
तेरी नभ से भी ऊँची उड़ान है रे।
उत्तर :
हे मनुष्य, तुझमें महान देवगुरु जैसी बुद्धिमत्ता है और तू पवन की तरह गतिशील है। तू आकाश से भी ऊँचे पहुँचने की शक्ति रखता है।

धरती की शान स्वाध्याय

1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए :

प्रश्न 1.
मनुष्य क्या-क्या कर सकता है?
उत्तर :
मनुष्य पहाड़ों को तोड़ सकता है। वह नदियों के बहाव मोड़ सकता है। वह मिट्टी से अमृत निकाल सकता है। वह धरती और आकाश को एक कर सकता है। इस प्रकार मनुष्य असंभव लगनेवाले काम भी कर सकता है।

प्रश्न 2.
मनुष्य युग का आह्वान कैसे कर सकता है?
उत्तर :
मनुष्य की वाणी में बड़ी शक्ति है। वाणी के बल पर वह लोगों को प्रभावित कर सकता है। वह लोगों के विचार बदल सकता है। इस प्रकार अपनी वाणी के प्रभाव से मनुष्य युग का आह्वान कर सकता है।

प्रश्न 3.
मनुष्य यदि हिम्मत से काम ले तो क्या हो सकता है?
उत्तर :
मनुष्य यदि हिम्मत से काम ले तो धरती पर पापों को बढ़ने से रोका जा सकता है। दुनिया में बढ़नेवाली पशुता कम हो सकती है। इस प्रकार मनुष्य यदि हिम्मत करे तो दुनिया को बदला जा सकता है।

2. उचित जोड़ मिलाइए:

(1) मनुष्य की आत्मा में (1) युग का आह्वान है।
(2) मनुष्य के नयनों में (2) महाकाल है।
(3) मनुष्य की भृकुटी में (3) स्वयं भगवान है।
(4) मनुष्य की वाणी में (4) भूचाल है।
(5) मनुष्य की छाती में (5) ज्वाल है।
(6) तांडव का ताल है।

उत्तर :
(1) मनुष्य की आत्मा में स्वयं भगवान है।
(2) मनुष्य के नयनों में ज्वाल है।
(3) मनुष्य की भृकुटी में तांडव का ताल है।
(4) मनुष्य की वाणी में युग का आहवान है।
(5) मनुष्य की छाती में महाकाल है।

3. निम्नलिखित प्रश्नों के सही विकल्प के सामने ✓ कीजिए :

प्रश्न 1.
मनुष्य चाहे तो काल को….
थाम ले [ ]
रोक ले [ ]
जान ले [ ]
उत्तर :
थाम ले [ ]
रोक ले [ ]
जान ले [ ]

प्रश्न 2.
मनुष्य चाहे तो धरती को….
फोड़ दे [ ]
युग का आह्वान दे [ ]
अम्बर से जोड़ दे [ ]
उत्तर :
फोड़ दे [ ]
युग का आह्वान दे [ ]
अम्बर से जोड़ दे [ ]

प्रश्न 3.
मनुष्य चाहे तो माटी से…..
मुख को भी मोड़ दे [ ]
अमृत निचोड़ दे [ ]
दुनिया बदल दे [ ]
उत्तर :
मुख को भी मोड़ दे [ ]
अमृत निचोड़ दे [ ]
दुनिया बदल दे [ ]

4. नीचे दिए गए शब्दों के विरुद्धार्थी शब्द देकर वाक्य में प्रयोग कीजिए :
जैसे
कि : धरती x आकाश
वाक्य : पक्षी आकाश में उड़ रहे हैं।

(1) अमृत :
(2) वरदान :
(3) ऊँचा :
(4) पाप :
(5) जीवन :
उत्तर :
(1) अमृत ✗ विष
वाक्य : शंकरजी ने विष पी लिया था।

(2) वरदान ✗ अभिशाप
वाक्य : दहेज प्रथा एक सामाजिक अभिशाप है।

(3) ऊँचा ✗ नीचा
वाक्य : शर्म से उसका सिर नीचा हो गया।

(4) पाप ✗ पुण्य
वाक्य : विद्या का दान बहुत बड़ा पुण्य है।

(5) जीवन ✗ मृत्यु
वाक्य : वीर पुरुष मृत्यु से नहीं डरते।

5. नीचे दिए गए शब्दों को शब्दकोश के क्रम में रखकर उनका अर्थ शब्दकोश में से जानिए और लिखिए :

  1. तूफान,
  2. वरदान,
  3. नयन,
  4. शीश,
  5. क्षति,
  6. आईना,
  7. झंकार

उत्तर :
शब्द शब्दकोश के क्रम में और उनका अर्थ :

  1. आईना – दर्पण
  2. क्षति – हानि
  3. झंकार – पायल, वीणा, सितार आदि की ध्वनि
  4. तूफान – आँधी, हवा – पानी का भीषण उत्पात
  5. नयन – नेत्र, आँख
  6. वरदान – कृपा
  7. शीश – मस्तक, माथा

धरती की शान योग्यता विस्तार

1. निम्नलिखित कविता का गान करवाइए :

नदियाँ न पीए कभी अपना जल
वृक्ष न खाए कभी अपना फल
अपने तन से, मन से, धन से

देश को दे दे दान रे! (2)
वो सच्चा इन्सान रे!! (2)

चाहे मिले सोना – चाँदी
चाहे मिले रोटी बासी
महल मिले बहु सुखकारी
चाहे मिले कुटिया खाली
प्रेम और संतोष भाव से

करता जो स्वीकार रे! (2)
वो सच्चा इन्सान रे!! (2)

चाहे करे निंदा कोई चाहे कोई
गुणगान करे फूलों से सत्कार करे
काँटों की चिंता न करे
मान और अपमान दोनों

जिसके लिए समान रे! (2)
वो सच्चा इन्सान रे!! (2)

2. ‘तेरी नभ से भी ऊँची उड़ान हैं’ के संदर्भ में निम्नलिखित पंक्तियाँ पढ़कर सोचिए।

प्रश्न 1.
आजमाना चाहते हो मेरी उड़ान को,
तो ऊँचा कर लो अपने आसमान को।
उत्तर :
तुम मेरी उड़ने की शक्ति की परीक्षा लेना चाहते हो तो ले सकते हो। मैं उसके लिए तैयार हूँ। परंतु मेरी शक्ति के परीक्षण के लिए तुम्हारे आसमान की ऊँचाई काफी नहीं है। तुम्हें इससे और ऊँचा करना होगा।

[मनुष्य में अपार शक्ति है। उसे मापा नहीं जा सकता। उसे मापने के लिए हर मापदंड छोटा है। ये पंक्तियाँ मनुष्य के प्रबल आत्मविश्वास को व्यक्त करती हैं।]

प्रश्न 2.
तू थक के न बैठ कि तेरी उड़ान अभी बाकी है,
जमीं खत्म हुई तो क्या, आसमान अभी बाकी है।
उत्तर :
हे मनुष्य! थोड़ी – बहुत प्रगति कर तू यह न मान ले कि अपनी मंजिल पर पहुँच गया है। अभी तुझे बहुत आगे बढ़ना है। तुझमें अपार शक्ति है। धरती पर ही अपनी शक्ति का उपयोग कर तुझे संतुष्ट नहीं होना है। तुझे आकाश में जाकर वहाँ भी अपनी शक्ति का परिचय देना है।

[धरती ही नहीं, आकाश में भी मानव की बुद्धि, प्रतिभा और कौशल का झंडा लहराए। इन पंक्तियों मे कवि ने यही कामना व्यक्त की है।]

Hindi Digest Std 7 GSEB धरती की शान Important Questions and Answers

धरती की शान विशेष प्रश्नोत्तर

1. निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प चुनिए :

प्रश्न 1.
मनुष्य किसकी शान है?
A. सागर की
B. आकाश की
C. धरती की
D. समाज की
उत्तर :
C. धरती की

प्रश्न 2.
मनुष्य की मुट्टियों में क्या बंद है?
A. शैतान
B. आसमान
C. आँधी
D. तूफान
उत्तर :
D. तूफान

प्रश्न 3.
मनुष्य धरती से किसको जोड़ सकता है?
A. स्वर्ग को
B. अम्बर को
C. तारों को
D. चाँद को
उत्तर :
B. अम्बर को

प्रश्न 4.
मनुष्य किसको थाम सकता है?
A. काल को
B. कपाल को
C. दिशाओं को
D. भूचाल को
उत्तर :
A. काल को

प्रश्न 5.
पंडित भरत व्यास क्या थे?
A. संगीतकार
B. चित्रकार
C. गीतकार
D. कलाकार
उत्तर :
C. गीतकार

2. कोष्ठक में से उचित शब्द चुनकर रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए: (प्राण, अमृत, भृकुटी, तूफान, मुख)

(1) तेरी मुट्टियों में बंद …………………………………. है।
(2) तू जो चाहे नदियों के …………………………………. को भी मोड़ दे।
(3) तू जो चाहे माटी से …………………………………. निचोड़ दे।
(4) अमर तेरे …………………………………. मिला तुझ को वरदान।
(5) तेरी …………………………………. में तांडव का ताल है।
उत्तर :
(1) तेरी मुट्ठियों में बंद तूफान है।
(2) तू जो चाहे नदियों के मुख को भी मोड़ दे।
(3) तू जो चाहे माटी से अमृत निचोड़ दे।
(4) अमर तेरे प्राण, मिला तुझ को वरदान।
(5) तेरी भृकुटी में तांडव का ताल है।

3. सही वाक्यांश चुनकर पूरा वाक्य फिर से लिखिए :

प्रश्न 1.
मनुष्य के प्राण अमर है, क्योंकि …
(अ) उसे न मरने का वरदान मिला है।
(ब) उसने अमृत की खोज कर ली है।
(क) उसकी आत्मा में स्वयं भगवान बैठे हैं।
उत्तर :
मनुष्य के प्राण अमर है, क्योंकि उसकी आत्मा में स्वयं भगवान बैठे हैं।

प्रश्न 2.
मनुष्य जितना चाहे उतना ऊँचे जा सकता है, क्योंकि …
(अ) उसकी उड़ान नभ से भी ऊँची है।
(ब) उसने हवाई जहाज बना लिया है।
(क) वह एवरेस्ट की चोटी पर पहुँच चुका है।
उत्तर :
मनुष्य जितना चाहे उतना ऊँचे जा सकता है, क्योंकि उसकी उड़ान नभ से भी ऊँची है।

4. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक – एक वाक्य में दीजिए :

प्रश्न 1.
कवि ने किसे धरती की शान कहा है?
उत्तर :
कवि ने मनुष्य को धरती की शान कहा है।

प्रश्न 2.
कवि ने मनुष्य को क्या पहचानने के लिए कहा है?
उत्तर :
कवि ने मनुष्य को अपनी शक्ति पहचानने के लिए कहा है।

प्रश्न 3.
महाकाल कहाँ छिपा है?
उत्तर :
महाकाल मनुष्य की छाती में छिपा है।

प्रश्न 4.
मनुष्य किसके समान धीर है?
उत्तर :
मनुष्य धरती के समान धीर है।

प्रश्न 5.
कवि ने मनुष्य को किसके समान वीर बताया है?
उत्तर :
कवि ने मनुष्य को अग्नि के समान वीर बताया है।

5. निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर दीजिए : कवि ने मनुष्य को ‘महान’ क्यों कहा है?
उत्तर :
मनुष्य में अद्भुत शक्तियाँ हैं। वह असंभव को भी संभव कर सकता है। जो भगवान सब कुछ कर सकता है, वह मनुष्य की आत्मा में निवास करता है। मनुष्य में हिमालय जैसा उन्नत दिमाग है। उसकी तिरछी भौंह में शिव के तांडव जैसा सामर्थ्य है मनुष्य की इन असाधारण शक्तियों के कारण ही कवि ने उसे ‘महान’ कहा है।

धरती की शान प्रवृत्तियाँ

(1) चंद्रयात्रियों के बारे में जानकारी प्राप्त कीजिए और उनके चित्र अपनी कॉपी में चिपकाइए।
(2) तांडव नृत्य करते हुए शिव का चित्र बनाइए।
(3) उड़ते हुए विमान में बैठे एक – दो व्यक्ति दिखाइए।
(4) वे पाँच तत्त्व कौन – से हैं जिनसे हमारा शरीर बना है?
उत्तर :
(1) अग्नि
(2) जल
(3) वायु
(4) पृथ्वी
(5) आकाश।

धरती की शान Summary in Hindi


पंडित भरत व्यास जी

धरती की शान कविता का सरल अर्थ

(1) धरती की ……………………………………. महान है।
हे भारत के पुत्र, तू इस धरती का गौरव है। तेरी मुट्ठियों में तूफान बंद है – तुझमें तूफान को भी अपने वश में करने की ताकत है। हे मनुष्य, तू बहुत महान है।

(2) तू जो चाहे ……………………………………. भगवान है रे।
हे मनुष्य, तू चाहे तो पर्वतों को तोड़ सकता है। तू चाहे तो नदियों के बहाव की दिशा बदल सकता है। तू चाहे तो मिट्टी से अमृत निकाल सकता है। तू चाहे तो धरती को आकाश से जोड़ सकता है। तू (अपने अनोखे कामों से) मरकर भी अमर हो सकता है।

तूझे अमरता का वरदान मिला है। तेरी आत्मा में स्वयं परमात्मा बैठा हुआ है।

(3) नयनों में ज्वाला ……………………………………. आह्वान है रे।
हे मनुष्य, तू क्रोधित हो जाए तो तेरे नेत्र आग बरसा सकते हैं। तेरी चाल में वह शक्ति है जो भूकंप में होती है। तेरी छाती में महाकालरूपी शिव बैठा हुआ है। हे पृथ्वी के पुत्र, तेरे पास हिमालय जैसा ऊँचे दर्जे का दिमाग है।

तू अगर क्रोध में अपनी भौंह तिरछी कर दे तो उसका वही असर होगा जो शिव के तांडव की ताल में होता है। हे मनुष्य, तू अपनी शक्ति को पहचान। तेरी वाणी में युग की ललकार है – तेरी आवाज सारे युग की आवाज है।

(4) धरती सा ……………………………………. उड़ान है रे।
हे मनुष्य, तुझमें धरती जैसा धीरज है। तुझमें अग्नि जैसी शक्ति है। तू चाहे तो काल को भी रोक सकता है। तू अगर हिम्मत से काम ले तो पापों की विनाशलीला भी रूक सकती है और आदमी को हैवान बनने से रोका जा सकता है।

तुझमें महान देवगुरु जैसी बुद्धिमत्ता है और तू पवन की तरह गतिशील है। तू आकाश से भी ऊँचे पहुँचने की शक्ति रखता है।

धरती की शान Summary in Gujarati

धरती की शान ધરતીનું ગૌરવ

(1) હે ભારતના પુત્ર, તું આ ધરતીનું ગૌરવ છે. તારી મુઠ્ઠીઓમાં તોફાન બંધ છે – તારામાં તોફાનને પણ વશમાં કરવાની તાકાત છે. તે મનુષ્ય, તું ખૂબ મહાન છે.

(2) હે મનુષ્ય, તું ઇચ્છે તો પર્વતોને તોડી શકે છે. તું ઇચ્છે તો નદીઓનાં વહેણની દિશા બદલી શકે છે. તું ઇચ્છે તો માટીમાંથી અમૃત કાઢી શકે છે. તું ઇચ્છે તો ધરતીને આકાશ સાથે જોડી શકે છે. તું (પોતાનાં અનોખાં કાર્યોથી) મરીને પણ અમર થઈ શકે છે. તને અમરતાનું વરદાન મળ્યું છે. તારા આત્મામાં સ્વયં પરમાત્મા બિરાજમાન છે.

(3) હે મનુષ્ય, તું ક્રોધે ભરાય તો તારી આંખો આગ વરસાવી શકે છે. તારી ચાલમાં એ શક્તિ છે જે ભૂકંપમાં હોય છે. તારી છાતીમાં મહાકાળરૂપી શિવ બેઠા છે. હે પૃથ્વીના પુત્ર, તારી પાસે હિમાલય જેવું ઉન્નત મગજ છે.

તું જો ક્રોધથી તારી ભૃકુટી તિરછી કરે તો, તેની એ જ અસર થશે જે શિવના તાંડવના તાલમાં હોય છે. તે મનુષ્ય, તું તારી શક્તિને ઓળખ. તારી વાણીમાં યુગનો લલકાર છે – તારો અવાજ સમગ્ર યુગનો અવાજ છે.

(4) હે મનુષ્ય, તારામાં ધરતી જેવી ધીરજ છે. તારામાં અગ્નિ જેવી શક્તિ છે. તું ઇચ્છે તો કાળને પણ રોકી શકે છે. તું જો હિમ્મતથી કામ લે તો પાપોની વિનાશલીલા પણ અટકી શકે છે અને મનુષ્યને હેવાન બનતો રોકી શકે છે.

તારામાં મહાન દેવગુરુ જેવી બુદ્ધિમત્તા છે અને તું પવનની જેમ ગતિશીલ છે. તું આકાશથી પણ ઊંચે પહોંચવાની શક્તિ ધરાવે છે.

धरती की शान विषय – प्रवेश

ईश्वर ने मनुष्य को सबसे बुद्धिमान प्राणी बनाया है। बुद्धि के साथ उसमें गजब का साहस भी है। मनुष्य ने अपनी बुद्धि और अपने साहस के बल पर ऐसे काम कर दिखाए हैं जो कभी असंभव माने जाते थे। जल, थल और आकाश में अपनी सत्ता स्थापित करने में वह सफल हुआ है।

प्रस्तुत कविता में कवि ने मनुष्य में छिपी हुई अद्भुत शक्तियों के बारे में बताया है।

धरती की शान शब्दार्थ

  • शान – वैभव, गौरव
  • फोड़ना – तोड़ना, टुकड़े करना नदी का
  • मुख – नदी का प्रवाह
  • मोड़ना – दिशा बदलना
  • निचोड़ना – किसी चीज को दबाकर उसका रस निकालना
  • अम्बर – आकाश
  • अमर – न मरनेवाला
  • स्वयं – खुद
  • नयन – आँख
  • ज्वाल – ज्वाला, लपट
  • गति – रफ्तार
  • भूचाल – भूकंप
  • महाकाल – भगवान शंकर का संहारकारी स्वरूप
  • लाल – बेटा, पुत्र
  • हिमगिरि – हिमालय
  • भाल – ललाट, कपाल
  • भृकुटी – भौंह, क्रोधादि में भौंह को तिरछी करना
  • तांडव – भगवान शिव का भयानक नृत्य
  • ताल – लय
  • निज – खुद, अपने आप
  • वाणी – बोली, आवाज
  • आह्वान – ललकार, पुकार
  • धीर – धीरजवाला, काल – समय
  • प्रलय – विनाशलीला, विस्तृत भूभाग में होनेवाली भयंकर बर्बादी
  • पशता – जानवरपन
  • शीश – मस्तक
  • मतिमान – बुद्धिमान
  • गतिमान – गतिशील
  • नभ – आकाश

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