नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़ कर प्रश्नों के उत्तर दीजिए
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“सच्चा उत्साह वही होता है जो मनुष्य को कार्य करने के लिए प्रेरणा देता है। मनुष्य किसी भी कारणवश जब किसी के कष्ट को दूर करने का संकल्प करता है, तब जिस सुख को वह अनुभव करता है, वह सुख विशेष रूप से प्रेरणा देनेवाला होता है। जिस भी कार्य को करने के लिए मनुष्य में कष्ट, दुःख या हानि को सहन करने की ताकत आती है, उन सबसे उत्पन्न आनंद ही उत्साह कहलाता है उदाहरण के लिए दान देनेवाला व्यक्ति निश्चय ही अपने भीतर एक विशेष साहस रखता है और वह है धन-त्याग का साहस । यही त्याग यदि मनुष्य प्रसन्नता के साथ करता है तो उसे उत्साह से किया गया दान कहा जाएगा उत्साह आनंद और साहस का मिला-जुला रूप है। उत्साह में किसी-न-किसी वस्तु पर ध्यान अवश्य केंद्रित होता है। वह चाहे कर्म पर, चाहे कर्म के फल पर और चाहे व्यक्ति या वस्तु पर हो। इन्हीं के आधार पर कर्म करने में आनंद मिलता है। कर्म-भावना से उत्पन्न आनंद का अनुभव केवल सच्चे वीर ही कर सकते हैं क्योंकि उनमें साहस की अधिकता होती है। सामान्य व्यक्ति कार्य पूरा हो जाने पर जिस आनंद का अनुभव करता है, सच्चा वीर कार्य प्रारंभ होने पर ही उसका अनुभव कर लेता है। आलस्य उत्साह का सबसे बड़ा शत्रु है। जो व्यक्ति आलस्य से भरा होगा, उसमें काम करने के प्रति उत्साह कभी उत्पन्न नहीं हो सकता। उत्साही व्यक्ति असफल होने पर भी कार्य करता रहता है। उत्साही व्यक्ति सदा दृढनिश्चयी होता है।”
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विषयसूची
उत्साह किसका निबंध है?
इसे सुनेंरोकेंदु:ख के वर्ग में जो स्थान भय का है, वही स्थान आनंदवर्ग में उत्साह का है। भय में हम प्रस्तुत कठिन स्थिति के नियम से विशेष रूप में दु:खी और कभी कभी उस स्थिति से अपने को दूर रखने के लिए प्रयत्नवान् भी होते हैं।
उत्साह के कितने भेद है समझाइये?
इसे सुनेंरोकेंकष्ट या हानि के भेद के अनुसार उत्साह के भी भेद हो जाते हैं। साहित्य मीमांसकों ने इसी दृष्टि से युद्धवीर, दानवीर, दयावीर इत्यादि भेद किये हैं। इनमें सबसे प्राचीन और प्रधान युद्धवीरता है, जिसमें आघात, पीड़ा या मृत्यु की परवाह नहीं रहती।
आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार उत्साह क्या है इसके प्रमुख भेद के बारे में प्रकाश डालें?
इसे सुनेंरोकेंऔर अधिकरामचंद्र शुक्ल दुःख के वर्ग में जो स्थान भय का है, आनंद वर्ग में वही स्थान उत्साह का है। भय में हम प्रस्तुत कठिन स्थिति के निश्चय से विशेष रूप में दुखी और कभी-कभी स्थिति से अपने को दूर रखने के लिए प्रयत्नवान् भी होते हैं।
उत्साह कहानी के लेखक कौन है और उत्साह में किसका योग होता है?
इसे सुनेंरोकेंउत्साह : आचार्य रामचंद्र शुक्ल ( Utsah : Acharya Ramchandra Shukla )
उत्साह के लक्षण क्या है?
इसे सुनेंरोकेंउत्तर 1. (क) किसी कार्य को करने के लिए सदैव तत्पर रहना तथा उस कार्य को करने में आनंद अनुभव करना ही उत्साह का प्रमुख लक्षण है। (ख) कार्य करने की प्रेरणा देना ‘सच्चा उत्साह’ कहलाता है। उत्साह अनेक प्रकार का होता है, परंतु सच्चा उत्साह वही होता है, जो मनुष्य को कार्य करने की प्रेरणा दे।
उत्साह का क्या अर्थ है जीवन में इसका महत्व बताइए?
इसे सुनेंरोकेंउत्साह सकारात्मक होने के कारण कार्य के प्रति आशा का संचार करता है, जबकि उत्तेजना पैदा होने पर नकारात्मक वृत्तियां बढ़ने लगती है और कार्य की असफलता की ओर बढ़त होने लगती है। उत्साह कार्मिक क्षमता का विकास होता है, जबकि नकारात्मक सोच क्रोध को जन्म देती है।
त्याग के उत्साह से शुक्ल जी का क्या आशय है?
इसे सुनेंरोकेंथोड़ा-बहुत कष्ट करना पड़ता है, त्याग करना पड़ता है, हाथ-पैर हिलाने पड़ते हैं अर्थात् कर्म करना पड़ता है। इस कर्म को करने में जो तत्परता और सुख की अनुभूति होती हैं वही उत्साह है। अतः उत्साह में भले ही साहस, शौर्य, वीरता के भाव न हों, कर्म करने का संकल्प तथा प्रयत्न जरूरी हैं।
उत्साह से क्या तात्पर्य है इसके प्रमुख लक्षणों को विस्तार से लिखिए?
इसे सुनेंरोकेंकिसी काम को करने के लिए सदा तैयार रहना तथा उस काम को करने में आनन्द अनुभव करना उत्साह का प्रमुख लक्षण है। उत्साह कई प्रकार का होता है परन्तु सच्चा उत्साह वही होता है जो मनुष्य को कार्य करने के लिए प्रेरणा दें।
भाई और उत्साह में क्या अंतर है?
इसे सुनेंरोकेंभय किसी भयानक या अहिंसात्मक दृश्य को देखने से, या किसी हिंसात्मक या भयानक गतिविधि के कारण या किसी गलत कार्य या किसी आशंका के कारण उत्पन्न होता है। जबकि उत्साह किसी कार्य को करने के लिए प्रेरित करने वाला एक भाव है, जो किसी कार्य को करने के लिए एक अतिरिक्त ऊर्जा प्रदान करता है।