Updated: | Sat, 02 Aug 2014 10:59 AM (IST)
अभिषेक चेंडके, इंदौर। सीमेंट कांक्रीट के बेतहाशा निर्माण से इंदौर हीट आईलैंड यानी गर्म शहर बनता जा रहा है। ऐसे में नगर निगम और आईडीए ने घरों को ठंडा रखने के लिए नए प्रयोग किए हैं। इनके शुरुआती परिणाम भी अच्छे मिले हैं। मालवा के मौसम की खासियत रही है कि यहां दिन भले ही तपन भरे हों लेकिन शामें ठंडी होती हैं। बढ़ते शहरीकरण के कारण इंदौर में अब शब-ए-मालवा का एहसास खत्म हो चुका है। सीमेंट क्रांक्रीट के पक्के घर रात में भी गर्म भट्टी जैसे तपते हैं।
पंखों की हवा भी पक्की छत वाले घरों में ठंडक नहीं घोल पा रही है। यह शहर के हिट आईलैंड में त?दील होने के संकेत हैं। मगर अच्छी खबर ये है कि इसे रोकने के लिए नगर निगम व आईडीए स्तर पर काम शुरू हुआ है। सूरत के बाद इंदौर देश का ऐसा दूसरा शहर है जहां सरकारी आवासीय योजनाओं में 13 तकनीकों का इस्तेमाल कर घर के भीतर का तापमान 3 से 4 डिग्री कम किया गया है। इस कवायद से कम से कम घर के भीतर तो शब-ए-मालवा का एहसास जिंदा रहेगा।
सर्वे में सामने आई हकीकत
शहर के तापमान में हो रहे इजाफे को कम करने के लिए नगर निगम ने क्लाइमेंट चैंज सेल गठित की है। क्लाइमेंट चैंज प्रोग्राम के तहत निगम ने तरु संस्था को इसके सर्वे की जिम्मेदारी दी थी। सर्वे में पाया गया कि बीते 15 वर्षों में शहर के तापमान में लगातार इजाफा हुआ है। शहरीकरण के कारण पैदा हो रही ऊष्मा से घरों के भीतर देर तक गरमाहट कायम रहती है। इससे निपटने के लिए संस्था ने शहर के पांच इलाकों में तापमान मापने के उपकरण लगाए। निरंजनपुर, नैनोद में आईडीए व नगर निगम द्वारा बनाए गए सस्ते आवासों के अलावा खजराना, गोयल विहार सहित 13 जगहों पर घरों के तापमान में कमी लाने के लिए प्रयोग किए।
इसके अच्छे परिणाम आए। डाटा कहता है कि तापमान में 3 से 4 डिग्री की कमी आई है। अब इसकी रिपोर्ट राज्य शासन को भेजी जाएगी, ताकि भविष्य में दूसरे आवासीय प्रोजेक्टों में भी इस तकनीक का उपयोग किया जा सके। आमतौर पर देखा जाता है कि सूरज ढलने के बाद बाहरी वातावरण में तपन कम हो जाती है लेकिन घरों के भीतर ऐसा नहीं होता। बाहर की तुलना में भीतर का तापमान ज्यादा रहता है। ऐसा हीट आईलैंड इफेक्ट के कारण ही होता है। दिनभर तपने के बाद घर की छत और दीवारें देर रात तक ऊष्मा का उत्सर्जन घर के भीतर ही करती हैं।
पुरानी बसाहट में ज्यादा प्रभाव
हीट आईलैंड इफेक्ट का प्रभाव शहर के पुराने हिस्से में ज्यादा है। यहां बसाहट घनी है और पेड़ों की संख्या भी कम है। खुली आबो-हवा नहीं होने और सीमेंटेड सड़कों की अधिकता के कारण शहर के सीमावर्ती इलाकों की तुलना में यहां तापमान ज्यादा रहता है। यातायात के कारण होने वाला वायू प्रदूषण इसे और बढ़ा देता है।
ऐसे हुआ तापमान कम
- निरंजनपुर में बने ईड?लूएस मकानों की छत पर थर्माकोल बॉल के साथ सीमेंट की कोटिंग की गई। बॉल के कारण दिनभर छत तपने के बावजूद ऊष्मा का असर घर के भीतर नहीं पड़ता।
- नैनोद में निगम ने गरीबों के लिए बनाए गए फ्लैट्स में होलो क्ले टाइल्स का इस्तेमाल किया गया। टाइल्स के बीच 2 से 3 इंच के छेद होने के कारण हवा का प्रवाह बना रहता है। इससे छत व दीवारों में बाहरी तापमान का असर कम होता है। टाइल्स की ऊपरी सतह पर सीमेंट की कोटिंग की गई, ताकि बारिश में छत में सीलन न आए।
- बेम्बू स्क्रीन शेडिंग डिजाइन मूसाखेड़ी बस्ती के एक कच्चे मकान में अपनाई गई। टीन शेड के ऊपर बांस के टुकड़ों को जोड़कर रखा गया। बांस की ऊपरी सतह पर सफेद पेंट किया गया। इस प्रयोग के बाद घर के भीतर पहले की तुलना में तीन इंच तापमान कम पाया गया। यह अपेक्षाकृृत सस्ता उपाय है और टीन शेड के घरों के लिए लाभकारी है। बस्तियों में रहने वाले परिवारों की आय कम रहती है। ऐसे में वे गर्मी से बचने के लिए पंखों का इस्तेमाल करते हैं, जिससे उन्हें ज्यादा बिजली बिल देना पड़ता है।
ये है हीट आईलैंड इफेक्ट
गर्मी के दिनों में तापमान 40 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है। सीमेंट की गर्म छत ऊष्मा नीचे की तरफ छोड़ती है। यही कारण है कि सिलिंग पंखे भी गर्म हवा फेंकते हैं। प्रोजेक्ट पर काम कर रही तरु संस्था की मेघा बरवे ने बताया 'सर्वे में हमने बहुमंजिला भवनों के ग्राउंड फ्लोर और ऊपरी मंजिल के मकानों का तापमान मापा। इनमें चार डिग्री तक का अंतर मिला। सीमेंट की छतों के कारण सबसे अधिक हीट आईलैंड इफेक्ट पनपा है। ठंडक के लिए लोग पंखा, कूलर, एसी का उपयोग करने लगे हैं। इससे बिजली खपत भी बढ़ गई है।
तापमान बढ़ने से शहर में भी बदलाव आए हैं। इसके लिए सर्वे हुए भी हुआ है। इसकी रिपोर्ट को हम अमल में लाएंगे। वैसे बजट में हमने क्लाइमेंट चैंज सेल के गठन को भी मंजूरी दी है, जो शहर में पर्यावरण गतिविधियों पर काम करेगी।
-कृृष्णमुरारी मोघे, महापौर
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गर्मी को कम करने का क्या कारगर उपाय है छत की सफ़ेद रंगाई?
- रियलिटी चेक टीम
- बीबीसी न्यूज़
1 जून 2019
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ग्रीस के सेंटोरिनी स्थित ओया गांव में पारंपरिक पवन चक्की
माना जाता है कि किसी इमारत की छत को सफ़ेद रंग से पेंट करने से सूरज की गर्मी उससे टकराकर वापस लौट जाती है, जो यह तापमान को कम करने का सबसे सटीक उपाय है.
लेकिन ऐसा करना कितना कारगर है और इसके नकारात्मक पहलू क्या हैं?
हाल ही में बीबीसी के साथ एक इंटरव्यू में संयुक्त राष्ट्र संघ के पूर्व महासचिव बान की मून ने सुझाव दिया कि यह कमी 30 डिग्री जितनी हो सकती है, और घर के अंदर के तापमान में इससे 7 डिग्री तक की गिरावट हो सकती है.
तो आखिर ये आंकड़े आये कहां से और क्या रिसर्च भी इसका समर्थन करते हैं?
बान की मून भारत के गुजरात राज्य के अहमदाबाद में चल रहे एक पायलट प्रोजेक्ट के बारे में बात कर रहे थे, जहां गर्मियों में तापमान 50 डिग्री सेंटीग्रेड तक पहुंच जाता है.
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दिन-ब-दिन समंदर में समा रहा भारत का ये हिस्सा
2017 में शहर के 3,000 से अधिक छतों को सफ़ेद चूना और 'स्पेशल रिफ्लेक्टिव कोटिंग' से पेंट किया गया.
रूफ़ कूलिंग यानी छत को ठंडा करने की इस प्रक्रिया को सूरज से पैदा होने वाली गर्मी को कम करने के लिए डिज़ाइन किया गया है, ताकि इमारत के अंदर कम से कम गर्मी पहुंचे.
इमारत ने जो गर्मी सोख रखी है ठंडा छत उसे भी बाहर निकालने में सहायक होता है और इसे और ठंडा करती है.
गुजरात के इसी प्रोजेक्ट के दस्तावेज़ में कहा गया है कि 'रिफ्लेक्टिव रूफ कवरिंग' "छत के तापमान को 30 डिग्री सेंटीग्रेड तक कम करने और घर के अंदर के तापमान को तीन से सात डिग्री तक कम करने में सहायक हो सकता है."
लेकिन यह वो वास्तविक खोज नहीं है जिसका इस प्रोजेक्ट से पता चला हो.
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गर्मी में 2 से 5 डिग्री तक की कमी
अहमदाबाद प्रोजेक्ट का निरीक्षण करने के बाद अमरीका स्थित नेचुरल रिसॉर्सेज डिफेंस काउंसिल की अंजलि जायसवाल कहती हैं, "यह सेटिंग पर निर्भर करता है, लेकिन पारंपरिक घरों की तुलना में रूफ़ कूलिंग घर के अंदर का तापमान को 2 से 5 डिग्री तक कम करने में मदद करती है.
और यह बान की मून के आंकड़े से थोड़ा कम है, फिर भी यह महत्वपूर्ण है.
दक्षिण भारत के हैदराबाद में एक और पायलट प्रोजेक्ट चल रहा है जिसमें रूफ़ कूलिंग मेम्ब्रेन (शीट) का इस्तेमाल किया गया है, इसमें घर के अंदर के तापमान में 2 डिग्री तक की कमी पायी गयी.
जहां तक सवाल बान की मून के 30 डिग्री तक तापमान में गिरावट का दावा है, गुजरात में चल रहा पायलट प्रोजेक्ट में इसका जवाब नहीं मिलता, लेकिन इसके लिए हम कैलिफोर्निया के बर्कले लैब में चल रही एक स्टडी के निष्कर्षों को देख सकते हैं.
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जलवायु परिवर्तन से किस तरह हो रहा है नुकसान
इस स्टडी में पाया गया है कि एक साफ़ सफ़ेद छत जो 80 फ़ीसदी तक सूरज की रोशनी को वापस लौटा सकने में सक्षम है, उससे गर्मी की भरी दोपहरी में इसके तापमान में 31 डिग्री तक गिरावट आ सकती है.
निश्चित ही भारत की तुलना में कैलिफोर्निया की स्थितियां बहुत अलग होंगी- वहां 60% से अधिक छतें मेटल, एस्बेस्टस और कंक्रीट से बनाई जाती हैं, जिन पर सफ़ेद कोटिंग के बावजूद इमारत के अंदर गर्मी बनी रहती है.
हालांकि, अहमदाबाद और हैदराबाद दोनों भारतीय शहरों में चल रहे पायलट प्रोजेक्ट्स में समुचित सफलता देखने को मिली है.
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अपने ऑटो की छत को ठंडा करने के लिए पानी डालता एक ऑटो ड्राइवर
नया आइडिया नहीं
तो आखिर और अधिक शहरों की छतों पर भी सफ़ेद पेंटिंग क्यों नहीं की जा रही?
आइडिया नया नहीं है, सफ़ेद छतें और दीवारें दक्षिणी यूरोपीय और उत्तरी अफ़्रीकी देशों में सदियों से देखी जा रही है.
हाल ही में न्यूयॉर्क शहर के 10 मिलियन वर्ग फ़ीट छतों पर सफ़ेद पेंट की पुताई की गई है.
कैलिफोर्निया जैसी अन्य जगहों पर ठंडी छतों को बढ़ावा देने के लिए बिल्डिंग कोड अपडेट किये गये हैं, जिन्हें ऊर्जा बचाने के एक महत्वपूर्ण तरीके के रूप में देखा जा रहा है.
ठंडी छतें आपके एयर कंडीशननिंग के बिल को 40% तक बचा सकती हैं.
कम लागत, बचत भी
भोपाल में एक प्रयोग में पाया गया कि कम ऊंचाई की इमारतों में 'सोलर रिफ्लेक्टिव पेंट' से अधिकतम गर्मी में भी 303 किलोवाट तक की ऊर्जा बचाई जा सकती है.
एक अनुमान के मुताबिक यदि दुनिया के प्रत्येक छत पर कूलिंग पेंट का इस्तेमाल किया जाये तो ग्लोबल कार्बन उत्सर्जन में भी कमी की संभावना है.
बर्कले लैब का कहना है कि रिफ्लेक्टिव रूफ़ यानी सूरज की रोशनी को वापस लौटाने वालीं छतें 24 गीगाटन कार्बन डाइऑक्साइड को ठंडा करने में सक्षम है. यह 20 सालों के लिए सड़क से 300 मिलियन कारों को हटाने के बराबर है.
निश्चित तौर पर यह कम लागत वाला विकल्प है, विशेष कर ग़रीब देशों के लिए.
जायसवाल कहती हैं, "महंगी रिफ्लेक्टिव कोटिंग या रूफ़ कूलिंग मेम्ब्रेन (शीट) की तुलनाम में चूने की एक कोटिंग की कीमत महज 1.5 रुपये प्रति फुट आयेगी."
वो कहती हैं, "व्यक्तिगत आराम, ऊर्जा बचाने और ठंडा करने को लेकर दोनों के बीच अंतर बेहद महत्वपूर्ण हैं. हालांकि इसमें राजनीतिक इच्छाशक्ति और अमल में लाने के उपाय बहुत बड़ी भूमिका निभाते हैं."
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न्यूयॉर्क के न्यूजर्सी में सूर्यास्त देखते लोग
नकारात्मक पहलू
जायसवाल कहती हैं, "और हां इसके कुछ नकारात्मक पहलुओं पर भी विचार किया जाना चाहिए."
जिन शहरों में सर्दियां अधिक पड़ती है या जहां जाड़े का मौसम है, वहां इन छतों को गर्म करने के मांग हो सकती है. लेकिन ऐसा करने में इससे पड़ने वाले दबाव से स्वाभाविक ख़तरा भी है.
यही कारण है कि यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन की टीम ने नई दिल्ली के एक पुर्नवास कॉलोनी प्रोजेक्ट में सफ़ेद पेंट का इस्तेमाल नहीं किया.
नई दिल्ली स्थित सेंटर फॉर अर्बन एंड रीजनल एक्सीलेंट की रेणु खोसला का कहना है कि, "यहां के रहने वाले भी अपनी छतों के सफ़ेद पेंट किये जाने के ख़िलाफ़ थे, क्योंकि उन छतों का कई अन्य कामों में भी इस्तेमाल किया जाता है.
वो कहती हैं, "रिफ्लेक्टिव पेंट लगाये जाने के बाद छत का अन्य कामों में या रोजाना घरेलू कामों के लिए इस्तेमाल कर पाना मुश्किल हो जाता है."
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धरती को बचाने के लिए आप क्या कर सकते हैं?