Show ऋषि परम्परा:संकल्प से सिद्धि के प्रतिमान हैं महर्षि विश्वामित्र, पहले थे राजा और फिर ज्ञान प्राप्त कर सप्तऋषियों में बनाया स्थानडॉ. विवेक चौरसिया2 वर्ष पहले
भारतीय ऋषि परम्परा में ऋषि, महर्षि, देवर्षि, ब्रह्मर्षि तो अनेक हैं, लेकिन विश्वामित्र केवल और केवल एक ही हैं। सूर्य तक की आभा को लज्जित कर देने वाले अपने परम तेजस्वी व्यक्तित्व और कृतित्व के साथ विश्वामित्र तीन युगों की त्रिवेणी के प्रत्येक तट पर उपस्थित हैं। सप्तऋषियों में सर्वोपरि विश्वामित्र ने अपनी संकल्प शक्ति और साधना के बल पर एक राजा से ब्रह्मर्षि के महान पद को प्राप्त किया। यह उपलब्धि हर युग में हर पीढ़ी को इस बात की प्रेरणा देती है कि मनुष्य की क्षमताएं असीम हैं। यदि वह ठान ले तो विश्वामित्र की तरह न केवल नया स्वर्ग रच सकता है, बल्कि मनुष्य होकर देवताओं का पूज्य भी बन सकता है। एक ओर विश्वामित्र सप्तर्षियों की परंपरा में परिगणित प्रमुख ऋषि हैं तो दूसरी ओर वैदिक काल में सर्वप्रमुख वेद ऋग्वेद के अनेक मंत्रों के द्रष्टा हैं। ऋग्वेद के तीसरे मंडल के 62वें सूक्त का दसवां मंत्र इन्हीं महान विश्वामित्र द्वारा सृजित है जो लोक में गायत्री मंत्र के नाम से प्रसिद्ध और सर्वफलदायक है। ऋग्वेद के सभी दस मंडलों में विश्वामित्र के सूक्त और मंत्र हैं, जबकि तीसरा मंडल तो समूचा ही विश्वामित्र और उनकी कुल व शिष्य परम्परा कृत है। इनमें सबसे मूल्यवान विश्वामित्र कृत गायत्री मंत्र है और दूसरा विश्वामित्र-नदी-संवाद सूक्त। विश्व साहित्य में नदियों से मनुष्य का यह पहला संवाद है जो ऋग्वेद के तीसरे मंडल के 33वें सूक्त में दर्ज है। इसके ऋषि विश्वमित्र और देवता नदी है। इसमें विपाशा (व्यास) और शुतुद्री (सतलुज) नदियों से ऋषि ने पंक्ति, उष्णिक और त्रिष्टुप छंद में मधुर और प्रेरक काव्यात्मक बात की है। यह विश्वामित्र की सहृदयता का प्रतीक तो है ही, धरती पर जीवन के पर्याय जल की मनुष्य जाति की ओर से की गई वंदना का भी द्योतक है, जिसकी जोड़ की दूसरी रचना दुर्लभ है। विश्वामित्र की कामधेनु त्रिशंकु और नए स्वर्ग का निर्माण विश्वामित्र, मेनका और रम्भा लोभ में गंवाया, दान से पाया नाम का नियम विश्वामित्र ऋषि बनने से पहले क्या थे?कहते हैं कि विश्वामित्र जन्म से ब्राह्मण नहीं, बल्कि क्षत्रिय थे। उन्हें राजा कौशिक के नाम से जाना जाता था। एक बार उनकी मुलाकात महर्षि वशिष्ठ से हुई और फिर कुछ ऐसा हुआ कि उन्होंने तप शुरू कर दिया और वेद-पुराण का ज्ञान लेकर महान ऋषि बन गए। पढ़ें राजा कौशिक के महर्षि विश्वामित्र बनने की कहानी।
विश्वामित्र के पूर्वज कौन थे?विशेष—विश्वामित्र कान्यकुब्ज के पुरुवंशी महाराज गाधि के पुत्र थे, परंतु क्षत्रिय कुल में जन्म लेने पर भी अपने तपोबल से ब्रह्मर्षियो में पारगणित हुए । ऋग्वेद के अनेक मंत्र ऐसे हैं जिनके द्रष्टा वश्वमित्र अथवा उनके वंशज माने जाते हैं ।
ब्राह्मणत्व प्राप्ति से पहले विश्वामित्र का क्या नाम था?विश्वामित्र जन्म से ब्राह्मण नहीं थे। इनका पूर्व नाम राजा कौशिक था। एक बार वे अपनी विशाल सेना के साथ जंगल में निकल गये थे और रास्ते में पडऩे वाले महर्षि वसिष्ठ के आश्रम मेें उनसे मिले। महर्षि वसिष्ठ ने उनका और उनकी सेना का सत्कार किया और सबको भोजन कराया।
ऋषि कैसे बने?ऋषि के नाम पर अक्सर हमारे मस्तिष्क पटल पर कोई जटाधारी, तपस्या में लीं पुरुष की आकृति उत्पन्न होती है |. बरसों से हम यही प्रतीकात्मक उल्लेख देखते आये हैं, लेकिन केवल जंगलों में तपस्या करने तक ही सीमित नहीं होते हैं |. ऋषि शब्द का श्रुति से कोई सम्बन्ध नहीं है |. ऋषि, शब्द बना है ऋत से |. और ऋत कहते हैं मूल को,. |