इस पोस्ट में व्यंजन एवं व्यंजनों का वर्गीकरण प्रकरण को विस्तार से समझाया गया है | जिसे पढने के बाद आप व्यंजनों व इसके प्रकार से पूछे जाने वाले प्रश्नों में महारथ हासिल कर लेंगे | Show
व्यंजन की परिभाषा
जिन वर्णों का उच्चारण करते समय फेफड़ों से उठने वाली वायु मुखविवर के उच्चारण-अवयवों से बाधित होकर बाहर निकले, ‘ व्यंजन‘ कहलाते हैं। | व्यंजन वर्गों के उच्चारण में स्वरों का योगदान रहता है अर्थात् प्रत्येक व्यंजन वर्ण ‘अ’ स्वर से ही उच्चरित होता है।
व्यंजनों का वर्गीकरणमुख्य रूप से व्यंजनों को तीन भागों में बाँटा जा सकता है। 1. व्यंजनों का सामान्य वर्गीकरणi. स्पर्श व्यंजनःवे व्यंजन वर्ण जिनका उच्चारण कण्ठ, तालु, मूर्धा, दन्त, ओष्ठ आदि स्थानों के स्पर्श से होता है, वे ‘स्पर्श व्यंजन’ कहलाते हैं।
क् वर्ग = क् ख् ग् घ् ङ् ii. अन्तःस्थ व्यंजनःवे व्यंजन वर्ण जिनका उच्चारण न तो स्वरों की भाँति ही होता है और न ही व्यंजनों की भाँति अर्थात् जिनके उच्चारण में जीभ, तालु, दाँत और ओंठों को परस्पर सटाने से होता है; परन्तु कहीं भी पूर्ण स्पर्श नहीं होता।
iii. ऊष्म व्यंजन:वे व्यंजन ध्वनियाँ जिनका उच्चारण करते समय घर्षण के कारण गर्म वायु बाहर निकलती है, वे ‘ ऊष्म व्यंजन’ कहलाते हैं।
2. उच्चारण-स्थान के आधार पर व्यंजनों का वर्गीकरणफेफड़ों से उठने वाली वायु मुख के विभिन्न भागों से जिह्वा का सहारा लेकर टकराती है, जिससे विभिन्न वर्णों का उच्चारण होता है। इस आधार पर उस अवयव को वर्ण का उच्चारण-स्थान मान लिया जाता है इस आधार पर व्यंजनों के निम्न भेद होते हैं |
महत्वपूर्ण तथ्य :
3. प्रयत्न के आधार पर व्यंजनों का वर्गीकरणi. स्पर्शी व्यंजनःजिन व्यंजनों के उच्चारण में श्वास का जिह्वा या ओष्ठों से स्पर्श होता है तथा कुछ अवरोध के बाद श्वास-स्फोट के बाद बाहर निकल जाती है। यथा- क् वर्ग, ट् वर्ग, त् वर्ग, प् वर्ग के आरम्भिक चार वर्ण – ट् ठ् ड् द त् थ् द् ध् प् फ् ब् भ् ii. स्पर्श-संघर्षी व्यंजनःवे व्यंजन वर्ण जिनके उच्चारण में कुछ घर्षण के साथ श्वास-वायु बाहर निकलती है। यथा- च् छ् ज् झ् iii. नासिक्य व्यंजनःजिनके उच्चारण में श्वास-वायु मुख तथा नासिका दोनों से बाहर निकले। यथा- ङ्, ञ्, ण्, न्, म् iv. उत्क्षिप्त व्यंजनःजिन व्यंजन वर्णों का उच्चारण करते समय जिह्वा उलटकर श्वास-वायु को बाहर फेंकती है, वे ‘ उत्क्षिप्त‘ या ‘ द्विस्पृष्ट‘ या ‘ द्विगुण‘ या ‘ ताड़नजात्‘ व्यंजन कहलाते हैं। यथा- ड़ ढ़ v. लुंठित व्यंजनःजिस व्यंजन वर्ण का उच्चारण करते समय वायु जिह्वा के ऊपर से लुढ़कती हुई बाहर निकल जाती है, उसे ‘ लुंठित व्यंजन’ कहा जाता है। चूंकि इस वर्ण का उच्चारण करते समय जिह्वा में कम्पन भी होता है। अतः इसे ‘ प्रकम्पित व्यंजन’ भी कहा जाता है। यथा- र vi. संघर्षहीन व्यंजनःवे व्यंजन वर्ण जिनका उच्चारण करते समय वायु बिना संघर्ष के बाहर निकल जाती है, वे ‘संघर्षहीन व्यंजन’ या ‘ अर्द्धस्वर‘ कहलाते हैं। यथा- य् व् vii. पार्श्विक व्यंजनः ‘पार्श्व‘ शब्द का शाब्दिक अर्थ ‘ बगल‘ होता है अर्थात् जिस व्यंजन का उच्चारण करते समय वायु जिह्वा के दोनों बगल से बाहर निकल जाती है। वह ‘ पार्श्विक व्यंजन‘ है यथा- ल् viii. संघर्षी व्यंजनःजिन व्यंजन वर्णों का उच्चारण करते समय दो उच्चारण-अवयव इतने निकट आ जाते हैं कि वायु-निकासी का मार्ग इतना संकरा हो जाता है कि वायु को बाहर निकलते समय संघर्ष करना पड़ता है। अतः ये ‘ संघर्षी व्यंजन’ कहलाते हैं। यथा- श् ष् स् ह 4.श्वास-वायु के आधार परःउच्चारण में लगने वाली श्वास-वायु के आधार पर व्यंजन दो प्रकार के होते हैं i. अल्पप्राण व्यंजनवे व्यंजन वर्ण जिनके उच्चारण में कम श्वास-वायु बाहर निकलती है।
ii. महाप्राण व्यंजनवे व्यंजन वर्ण जिनके उच्चारण में श्वास-वायु अल्पप्राण व्यंजनों की अपेक्षा दुगुनी बाहर निकलती है।
5. नाद (आवाज) या कम्पन के आधार पर व्यंजनों का वर्गीकरण:-कम्पन के आधार पर व्यंजन दो प्रकार के होते हैं i. अघोष व्यंजनवे व्यंजन वर्ण जिनका उच्चारण करते समय स्वरतंत्री में नाद या कम्पन उत्पन्न नहीं होता वे ‘अघोष व्यंजन’ कहलाते हैं।
(ii) घोष या सघोष व्यंजनःजिन व्यंजन वर्णों का उच्चारण करते समय स्वरतंत्री में नाद या कम्पन्न उत्पन्न होता है वे ‘ घोष’ या ‘सघोष व्यंजन’ कहलाते हैं ।
वर्णों (स्वर व व्यंजन ) की संख्या के से संबधित परीक्षाओं में पूछे जाने वाले तथ्य
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व्यंजनों के वर्गीकरण के कुल कितने आधार है?इसी प्रकार उच्चारण अथवा प्रयत्न विधि के आधार पर, स्वर तन्त्रियों की स्थिति या कम्पन के आधार पर तथा प्राणवायु के आधार पर भी हिंदी व्यंजनों (Hindi Vyanjan) का वर्गीकरण किया जाता है। अतः हिंदी व्यंजनों (Hindi Vyanjan) का वर्गीकरण पाँच प्रमुख आधारों पर किया जाता है।
व्यंजन कितने प्रकार के होते हैं class 9?जिन वर्णों का उच्चारण बिना किसी दुसरे वर्णों के नहीं हो सकता उन्हें व्यंजन कहते हैं। अर्थात स्वर की सहायता से बोले जाने वाले वर्ण व्यंजन कहलाते हैं। वैसे तो व्यंजनों की संख्या 33 ही होती है। लेकिन 2 द्विगुण व्यंजन और 4 संयुक्त व्यंजन मिलाने के बाद व्यंजनों की संख्या 39 हो जाती है।
व्यंजन का वर्गीकरण कैसे होता है?व्यंजनों के वर्गीकरण में स्वर-तंत्रियों की स्थिति भी महत्त्वपूर्ण मानी जाती है। इस दृष्टि से व्यंजनों को दो वर्गों में विभक्त किया जाता है - घोष और अघोष। जिन व्यंजनों के उच्चारण में स्वरतंत्रियों में कंपन होता है, उन्हें घोष या सघोष कहा जाता हैं। दूसरे प्रकार की ध्वनियां अघोष कहलाती हैं।
व्यंजन वर्ण कितने होते है?वर्णों को व्यवस्थित करने के समूह को वर्णमाला कहते हैं। हिन्दी में उच्चारण के आधार पर ५२ वर्ण होते हैं। इनमें ११ स्वर और ४१ व्यञ्जन होते हैं।
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