व्यंजन वर्णों का वर्गीकरण कितने आधारों पर होता है? - vyanjan varnon ka vargeekaran kitane aadhaaron par hota hai?

इस पोस्ट में व्यंजन एवं व्यंजनों का वर्गीकरण प्रकरण को विस्तार से समझाया गया है | जिसे पढने के बाद आप व्यंजनों व इसके प्रकार से पूछे जाने वाले प्रश्नों में महारथ हासिल कर लेंगे |

व्यंजन की परिभाषा

  • व्यंजन की परिभाषा
  • व्यंजनों का वर्गीकरण
    • 1. व्यंजनों का सामान्य वर्गीकरण
      • i. स्पर्श व्यंजनः
      • ii. अन्तःस्थ व्यंजनः
      • iii. ऊष्म व्यंजन:
    • 2. उच्चारण-स्थान के आधार पर व्यंजनों का वर्गीकरण
    • 3. प्रयत्न के आधार पर व्यंजनों का वर्गीकरण
      • i. स्पर्शी व्यंजनः
      • ii. स्पर्श-संघर्षी व्यंजनः
      • iii. नासिक्य व्यंजनः
      • iv. उत्क्षिप्त व्यंजनः
      • v. लुंठित व्यंजनः
      • vi. संघर्षहीन व्यंजनः
      • vii. पार्श्विक व्यंजनः ‘
      • viii. संघर्षी व्यंजनः
    • 4.श्वास-वायु के आधार परः
      • i. अल्पप्राण व्यंजन
      • ii. महाप्राण व्यंजन
    • 5. नाद (आवाज) या कम्पन के आधार पर व्यंजनों का वर्गीकरण:-
      • i. अघोष व्यंजन
      • (ii) घोष या सघोष व्यंजनः
  • वर्णों (स्वर व व्यंजन ) की संख्या के से संबधित परीक्षाओं में पूछे जाने वाले तथ्य

जिन वर्णों का उच्चारण करते समय फेफड़ों से उठने वाली वायु मुखविवर के उच्चारण-अवयवों से बाधित होकर बाहर निकले, ‘ व्यंजन‘ कहलाते हैं। | व्यंजन वर्गों के उच्चारण में स्वरों का योगदान रहता है अर्थात् प्रत्येक व्यंजन वर्ण ‘अ’ स्वर से ही उच्चरित होता है।

  • इनकी कुल संख्या 33 हैं।

व्यंजन वर्णों का वर्गीकरण कितने आधारों पर होता है? - vyanjan varnon ka vargeekaran kitane aadhaaron par hota hai?
व्यंजन एवं व्यंजनों का वर्गीकरण

व्यंजनों का वर्गीकरण

मुख्य रूप से व्यंजनों को तीन भागों में बाँटा जा सकता है।

1. व्यंजनों का सामान्य वर्गीकरण

i. स्पर्श व्यंजनः

वे व्यंजन वर्ण जिनका उच्चारण कण्ठ, तालु, मूर्धा, दन्त, ओष्ठ आदि स्थानों के स्पर्श से होता है, वे ‘स्पर्श व्यंजन’ कहलाते हैं।

  • स्पर्शी व्यंजनों की संख्या 25 होती है |

क् वर्ग = क् ख् ग् घ् ङ्
च् वर्ग = च् छ् ज् झ् ञ्
ट् वर्ग = ट् ठ् ड् ढ् ण
त् वर्ग = त् थ् द् ध् न्
प् वर्ग = प् फ् ब् भ् म्

ii. अन्तःस्थ व्यंजनः

वे व्यंजन वर्ण जिनका उच्चारण न तो स्वरों की भाँति ही होता है और न ही व्यंजनों की भाँति अर्थात् जिनके उच्चारण में जीभ, तालु, दाँत और ओंठों को परस्पर सटाने से होता है; परन्तु कहीं भी पूर्ण स्पर्श नहीं होता।

  • अन्तःस्थ व्यंजनों की संख्या 4 होती है |
  • जैसे- य् र् ल् व्
  • तथा को ‘अर्द्धस्वर’ भी कहा जाता है।

iii. ऊष्म व्यंजन:

वे व्यंजन ध्वनियाँ जिनका उच्चारण करते समय घर्षण के कारण गर्म वायु बाहर निकलती है, वे ‘ ऊष्म व्यंजन’ कहलाते हैं।

  • ऊष्म व्यंजनों की संख्या 4 होती है |
  • यथा- श् ष् स् ह्

2. उच्चारण-स्थान के आधार पर व्यंजनों का वर्गीकरण

फेफड़ों से उठने वाली वायु मुख के विभिन्न भागों से जिह्वा का सहारा लेकर टकराती है, जिससे विभिन्न वर्णों का उच्चारण होता है। इस आधार पर उस अवयव को वर्ण का उच्चारण-स्थान मान लिया जाता है इस आधार पर व्यंजनों के निम्न भेद होते हैं |

क्र.सं.व्यंजनों का प्रकारव्यंजनउच्चारण स्थान
1 कण्ठ्य क् ख् ग् घ् ङ् ह, विसर्ग कण्ठ
2 तालव्य च् छ् ज् झ् ञ् य् श् तालु
3 मूर्धन्य ट् ठ् ड् ढ् ण् र् मूर्द्धा
4 दन्त्य त् थ् द् ध् न् ल् स् दन्त
5 ओष्ठ्य प् फ् ब् भ् म् व् ओष्ठ
उच्चारण-स्थान के आधार पर व्यंजनों का वर्गीकरण

महत्वपूर्ण तथ्य :

  • प्रत्येक वर्ग के पंचमाक्षर का उच्चारण करते समय फेफड़ों से उठने वाली वायु मुख के साथ-साथ नासिका से भी बाहर निकलती है, इसलिए इन वर्णों को नासिक्य वर्ण कहा जाता है | यथा- ङ्, ञ्, ण्, न्, म्
  • व्’ तथा ‘ फ्’ का उच्चारण करते समय नीचे का ओष्ठ ऊपर वाले दांतों को अतः स्पर्श करता है अंत: इन्हें ‘दंतोष्ठ्य कण्ठ‘ जाता है |
  • ‘ह्‘ तथा ‘विसर्ग’ का उच्चारण कंठ के निचे काकल स्थान से होता है इसलिए इसे काकल्य व्यंजन कहा जाता है ।

3. प्रयत्न के आधार पर व्यंजनों का वर्गीकरण

i. स्पर्शी व्यंजनः

जिन व्यंजनों के उच्चारण में श्वास का जिह्वा या ओष्ठों से स्पर्श होता है तथा कुछ अवरोध के बाद श्वास-स्फोट के बाद बाहर निकल जाती है। यथा- क् वर्ग, ट् वर्ग, त् वर्ग, प् वर्ग के आरम्भिक चार वर्ण –
क् ख् ग् घ्

ट् ठ् ड् द

त् थ् द् ध्

प् फ् ब् भ्

ii. स्पर्श-संघर्षी व्यंजनः

वे व्यंजन वर्ण जिनके उच्चारण में कुछ घर्षण के साथ श्वास-वायु बाहर निकलती है। यथा- च् छ् ज् झ्

iii. नासिक्य व्यंजनः

जिनके उच्चारण में श्वास-वायु मुख तथा नासिका दोनों से बाहर निकले। यथा- ङ्, ञ्, ण्, न्, म्

iv. उत्क्षिप्त व्यंजनः

जिन व्यंजन वर्णों का उच्चारण करते समय जिह्वा उलटकर श्वास-वायु को बाहर फेंकती है, वे ‘ उत्क्षिप्त‘ या ‘ द्विस्पृष्ट‘ या ‘ द्विगुण‘ या ‘ ताड़नजात्‘ व्यंजन कहलाते हैं। यथा- ड़ ढ़

v. लुंठित व्यंजनः

जिस व्यंजन वर्ण का उच्चारण करते समय वायु जिह्वा के ऊपर से लुढ़कती हुई बाहर निकल जाती है, उसे ‘ लुंठित व्यंजन’ कहा जाता है। चूंकि इस वर्ण का उच्चारण करते समय जिह्वा में कम्पन भी होता है। अतः इसे ‘ प्रकम्पित व्यंजन’ भी कहा जाता है। यथा- र

vi. संघर्षहीन व्यंजनः

वे व्यंजन वर्ण जिनका उच्चारण करते समय वायु बिना संघर्ष के बाहर निकल जाती है, वे ‘संघर्षहीन व्यंजन’ या ‘ अर्द्धस्वर‘ कहलाते हैं। यथा- य् व्

vii. पार्श्विक व्यंजनः ‘

पार्श्व‘ शब्द का शाब्दिक अर्थ ‘ बगल‘ होता है अर्थात् जिस व्यंजन का उच्चारण करते समय वायु जिह्वा के दोनों बगल से बाहर निकल जाती है। वह ‘ पार्श्विक व्यंजन‘ है यथा- ल्

viii. संघर्षी व्यंजनः

जिन व्यंजन वर्णों का उच्चारण करते समय दो उच्चारण-अवयव इतने निकट आ जाते हैं कि वायु-निकासी का मार्ग इतना संकरा हो जाता है कि वायु को बाहर निकलते समय संघर्ष करना पड़ता है। अतः ये ‘ संघर्षी व्यंजन’ कहलाते हैं। यथा- श् ष् स् ह

4.श्वास-वायु के आधार परः

उच्चारण में लगने वाली श्वास-वायु के आधार पर व्यंजन दो प्रकार के होते हैं

i. अल्पप्राण व्यंजन

वे व्यंजन वर्ण जिनके उच्चारण में कम श्वास-वायु बाहर निकलती है।

  • अल्पप्राण व्यंजनों की संख्या = 19
  • अल्पप्राण स्वरों की संख्या = 11
  • कुल अल्पप्राण वर्गों की संख्या = 19+11=30
  • प्रत्येक वर्ग का पहला, तीसरा, पाँचवाँ वर्ण अल्पप्राण होते है |
  • अन्तःस्थ व्यंजन (य् र् ल् व्) भी अल्पप्राण होते हैं।
  • सभी स्वर भी अल्पप्राण होते हैं।

ii. महाप्राण व्यंजन

वे व्यंजन वर्ण जिनके उच्चारण में श्वास-वायु अल्पप्राण व्यंजनों की अपेक्षा दुगुनी बाहर निकलती है।

  • महाप्राण वर्गों की संख्या = 14
  • प्रत्येक वर्ग का दूसरा, चौथा वर्ण महाप्राण होते हैं।
  • ऊष्म व्यंजन (श् ष् स् ह) भी महाप्राण होते हैं।

5. नाद (आवाज) या कम्पन के आधार पर व्यंजनों का वर्गीकरण:-

कम्पन के आधार पर व्यंजन दो प्रकार के होते हैं

i. अघोष व्यंजन

वे व्यंजन वर्ण जिनका उच्चारण करते समय स्वरतंत्री में नाद या कम्पन उत्पन्न नहीं होता वे ‘अघोष व्यंजन’ कहलाते हैं।

  • इनकी कुल संख्या 13 होती है
  • प्रत्येक वर्ग का पहला तथा दूसरा वर्ण अघोष होता है
  • ऊष्म व्यंजन (श् ष स्) भी अघोष होते हैं

(ii) घोष या सघोष व्यंजनः

जिन व्यंजन वर्णों का उच्चारण करते समय स्वरतंत्री में नाद या कम्पन्न उत्पन्न होता है वे ‘ घोष’ या ‘सघोष व्यंजन’ कहलाते हैं ।

  • कुल सघोष व्यंजन वर्णों की संख्या = 20
  • कुल सघोष वर्णों की संख्या = 20 + 11 = 31 (स्वर जोड़ने पर)
  • प्रत्येक वर्ग का तीसरा, चौथा, पाँचवाँ वर्ण सघोष होते
  • अन्तःस्थ व्यंजन (य् र ल व्) भी सघोष होते हैं।
  • ऊष्म व्यंजनों में से ‘ ह‘ सघोष होता है।
  • सभी स्वर भी सघोष होते हैं।

वर्णों (स्वर व व्यंजन ) की संख्या के से संबधित परीक्षाओं में पूछे जाने वाले तथ्य

  • स्वरों की कुल संख्या = 11
  • व्यंजनों की कुल संख्या = 33 (क् से ह तक)
  • कुल स्वर और व्यंजनों की संख्या = 11+ 33 = 44
  • संयुक्त व्यंजनों की संख्या = 04 (क्ष, त्र, ज्ञ, श्र)
  • उत्क्षिप्त व्यंजनों की संख्या = 02 (ड, ढ़)
  • अयोगवाह वर्णों की संख्या = 02 (अं, अः)
  • देवनागरी हिन्दी वर्णमाला में कुल वर्गों की संख्याः
स्वर व्यंजन संयुक्त व्यंजन उत्क्षिप्त अयोगवाह कुल
11 33 4 2 2 52
हिंदी में वर्णों की कुल संख्या

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व्यंजनों के वर्गीकरण के कुल कितने आधार है?

इसी प्रकार उच्चारण अथवा प्रयत्न विधि के आधार पर, स्वर तन्त्रियों की स्थिति या कम्पन के आधार पर तथा प्राणवायु के आधार पर भी हिंदी व्यंजनों (Hindi Vyanjan) का वर्गीकरण किया जाता है। अतः हिंदी व्यंजनों (Hindi Vyanjan) का वर्गीकरण पाँच प्रमुख आधारों पर किया जाता है।

व्यंजन कितने प्रकार के होते हैं class 9?

जिन वर्णों का उच्चारण बिना किसी दुसरे वर्णों के नहीं हो सकता उन्हें व्यंजन कहते हैं। अर्थात स्वर की सहायता से बोले जाने वाले वर्ण व्यंजन कहलाते हैं। वैसे तो व्यंजनों की संख्या 33 ही होती है। लेकिन 2 द्विगुण व्यंजन और 4 संयुक्त व्यंजन मिलाने के बाद व्यंजनों की संख्या 39 हो जाती है।

व्यंजन का वर्गीकरण कैसे होता है?

व्यंजनों के वर्गीकरण में स्वर-तंत्रियों की स्थिति भी महत्त्वपूर्ण मानी जाती है। इस दृष्टि से व्यंजनों को दो वर्गों में विभक्त किया जाता है - घोष और अघोष। जिन व्यंजनों के उच्चारण में स्वरतंत्रियों में कंपन होता है, उन्हें घोष या सघोष कहा जाता हैं। दूसरे प्रकार की ध्वनियां अघोष कहलाती हैं।

व्यंजन वर्ण कितने होते है?

वर्णों को व्यवस्थित करने के समूह को वर्णमाला कहते हैं। हिन्दी में उच्चारण के आधार पर ५२ वर्ण होते हैं। इनमें ११ स्वर और ४१ व्यञ्जन होते हैं।