व्यक्तिगत ओलंपिक पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला कौन है? - vyaktigat olampik padak jeetane vaalee pahalee bhaarateey mahila kaun hai?

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15 Questions 60 Marks 12 Mins

Last updated on Sep 26, 2022

The Bihar Staff Selection Commission (BSSC) had released the exam calendar for BSSC CGL (Competitive Graduate Level) advt no 01/2022. The last date for online application ended on 1st June 2022. The prelims exam is scheduled to be held on 6th & 27th November 2022 and the mains exam in February 2023. Meanwhile, serious aspirants can go through the BSSC CGL Previous Years’ Paper to have an idea of the level of questions asked and streamline their preparation in the right direction.

दो व्यक्तिगत ओलंपिक पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला एथलीट कौन बनी?

This question was previously asked in

RRB NTPC CBT 2 (Level-5) Official Paper (Held On: 12 June 2022 Shift 1)

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  1. मीराबाई चानू
  2. दुती चंद
  3. पी.वी. सिंधु
  4. अंकिता रैना

Answer (Detailed Solution Below)

Option 3 : पी.वी. सिंधु

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Paper 3: Jharkhand GK (Mock Test)

10 Questions 30 Marks 7 Mins

सही उत्‍तर पी.वी. सिंधु है

Key Points

  • बैडमिंटन कांस्य पदक मैच में, पी.वी. सिंधु ने हे बिंग जिओ को सीधे गेम में हराकर टोक्यो खेलों में कांस्य पदक जीता और दो व्यक्तिगत ओलंपिक पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला बन गईं।
  • 5 साल पहले रियो ओलंपिक में रजत पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला एथलीट बनने के बाद, पी.वी. सिंधु सुशील कुमार के बाद खेलों में 2 व्यक्तिगत पदक जीतने वाली दूसरी भारतीय एथलीट बन गई हैं।
  • पी.वी. सिंधु: उपलब्धियां
    • जनवरी 2020 में, पी.वी. सिंधु को भारत में सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार- पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।
    • मार्च 2015 में, सिंधु को भारत में चौथे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार- पद्म श्री से सम्मानित किया गया था।
    • अगस्त 2016 में, उन्हें भारत के सर्वोच्च खेल सम्मान- राजीव गांधी खेल रत्न से सम्मानित किया गया।
    • सितंबर 2013 में, पी.वी. सिंधु को खेलों में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया था, आदि।

Additional Information

खिलाड़ी ओलिंपिक मेडल
मीराबाई चानू मीराबाई चानू ने चल रहे टोक्यो ओलंपिक में भारोत्तोलन में रजत पदक जीता।
कर्णम मल्लेश्वरी कर्णम मल्लेश्वरी एक सेवानिवृत्त भारतीय भारोत्तोलक हैं, वह ओलंपिक में पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला हैं, जब उन्होंने 2000 के सिडनी ओलंपिक में 69 किलोग्राम वर्ग में तीसरा स्थान हासिल किया था।
साइना नेहवाल ओलंपिक पदक जीतने वाली पहली भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी हैं, उन्होंने लंदन 2012 खेलों में कांस्य पदक जीता था।

Latest JSSC Excise Constable Updates

Last updated on Sep 27, 2022

The Jharkhand Staff Selection Commission (JSSC) has released the official notification for the JSSC Excise Constable Recruitment 2022. A total of 583 vacancies have been released for the recruitment process. Candidates can apply for the application till 26th March 2022. The selection process mainly consists of three stages namely Physical Endurance Test, Written Exam, and Medical Exam. Candidates who want a successful selection should refer to the JSSC Excise Constable Previous Year Papers to increase their chance of selection for the post.

भले ही आज यह नाम लोगों की ज़ुबां पर नहीं है या उन्हें वह चमक और रौनक नहीं मिली जो आज के खेल सितारों को मिलती है, लेकिन खाशाबा दादासाहेब जाधव द्वारा हासिल की गई उपलब्धि ने उस समय की युवा पीढ़ी को काफी प्रेरित किया था। वह सभी उन्हें अपना स्टार और आदर्श मानते थे।

केडी जाधव स्वतंत्र भारत के पहले इंडिविज़ुअल ओलंपिक मेडल विजेता बने। लेकिन ओलंपिक पोडियम तक पहुंचने का उनका यह सफर इतना आसान नहीं था।

उनके बारे में कहा जाता है कि जब दुबले और छोटे कद के जाधव ने महाराष्ट्र के कोल्हापुर में राजा राम कॉलेज के खेल टीचर से उनका नाम कुश्ती प्रतियोगिता के वार्षिक स्पोर्ट्स मीट में डालने के लिए बात की तो वह फौरन ही बिना कुछ बोले वहां से चले गए।

लेकिन ऐसा उन्होंने 23 वर्षीय जाधव को प्रतियोगिता में हिस्सा लेने से रोकने के लिए नहीं किया था। वह इस इवेंट में उनका नाम दर्ज कराने के लिए कॉलेज के प्रिंसिपल से मिलने गए थे। बाद में हुआ भी यही।

यही वह अवसर था जिसने इस युवा को खुद को साबित करने का मौका दिया। वह एक मुकाबले के बाद दूसरा और फिर तीसरा लगातार जीत हासिल करते गए, जाधव इस इवेंट में अपने से मजबूत और अनुभवी विरोधियों को भी शिकस्त देकर आगे बढ़ते गए।

यह एक ऐसी घटना थी जिसने केडी जाधव को परिभाषित किया। इसके बाद से उनपर किए जाने वाले ताने और उनके रास्ते में आने वाली बाधाएं दूर होने लगी थीं।

केडी जाधव: तकनीक ने बढ़ाया आगे

बीती शताब्दी के मध्य से ही महाराष्ट्र एक समृद्ध कुश्ती की विरासत रहा है। मारुति माने, गणपतराव अंडालकर और दादू चौगुले जैसे दिग्गज ने देशभर में अपनी पहचान बनाने में सफलता हासिल की है।

हालांकि वह कभी भी प्रसिद्धि के उस स्तर तक नहीं पहुंच सके, जहां उन्हें दुनिया जान सके। दादासाहेब जाधव गोलेश्वर नाम के एक छोटे से गांव के प्रमुख पहलवान थे और उनके पांच बेटों के अंदर भी यही जुनून हावी हो गया था।

हालांकि, उनके सबसे छोटे लड़के को इस खेल में अधिक दिलचस्पी थी। केडी जाधव ने वेटलिफ्टिंग, तैराकी, रनिंग और हैमर थ्रो में बेहतरीन प्रदर्शन किया, लेकिन पारिवारिक जुनून ने उन्हें 10 साल की उम्र में ही कुश्ती के अखाड़े में उतार दिया।

उनके बचपन के दोस्त राजाराव देओदेकार ने एक साक्षात्कार में Rediff.com को बताया, "वह हमें कभी भी किसी भी कुश्ती प्रतियोगिता में ले जाना नहीं भूले। वह हम सभी को अपने साथ कुश्ती दिखाते और फिर उसके दांव-पेच समझाते और उसपर चर्चा करते।"

केडी जाधव बहुत तगड़े-तंदरुस्त नहीं थे, वह जीतने के लिए अपनी तकनीक का इस्तेमाल करते थे। तस्वीर साभार: प्रो रेसलिंग लीग

इस युवा पहलवान ने अपने पिता के संरक्षण में ही प्रशिक्षण शुरू किया और उसके बाद बाबूराव बलावडे और बेलापुरी गुरुजी ने भी उन्हें सलाह दी।

वह अपने विरोधियों पर सिर्फ ताकत का इस्तेमाल करके उन्हें नहीं हरा सकते थे और इसलिए उन्होंने अपनी तकनीक को बेहतर करने में बहुत अधिक समय दिया। जिसके चलते उन्होंने स्थानीय भाषा में ढाक के नाम से प्रचलित दांव को अच्छी तरह सीखा और उसका उत्कृष्ट प्रदर्शन किया। इसमें एक पहलवान अपने प्रतिद्वंदी के सिर पर फंदा लगाकर जमीन पर ले जाता है।

केडी जाधव ने इसके बाद कई राज्य स्तर और राष्ट्रीय स्तर के खिताब जीते। राजा राम कॉलेज का इवेंट जीतने के बाद, द महाराज ऑफ कोल्हापुर उन दिनों कुश्ती का केंद्र बन गया था। उनके प्रदर्शन ने उच्च स्तर पर लोगों को इतना प्रभावित किया कि 1948 लंदन ओलंपिक के लिए उनकी राह आसान हो गई।

ओलंपिक में केडी जाधव का प्रदर्शन

केडी जाधव को पहली बार लंदन ओलंपिक में हिस्सा लेने का मौका मिला, जहां वह छठे स्थान पर रहे। उनकी यह उपलब्धि काफी बड़ी और प्रभावशाली रही, क्योंकि जिसने अपने पूरे जीवन में मिट्टी के अखाड़े में अभ्यास किया था वह अचानक कुश्ती की मैट पर उतरकर थोड़ा घबरा गया था।

हालांकि, यह पहलवान खुद के प्रदर्शन से निराश था। इसलिए उन्होंने पहले से अधिक और तेज़ी से प्रशिक्षण लेना शुरू किया और सुनिश्चित किया कि वह एक पदक देश की झोली में डाल सकें।

द इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए उनके एक बचपन के दोस्त गणपति पारसु जाधव ने कहा, "उनके पास बहुत सहनशक्ति थी और एक ही बार में वह लगभग 1000 सिट-अप और लगभग 200 से 300 पुश-अप्स लगा लिया करते थे। हम दिन में दो बार चार घंटे की ट्रेनिंग साथ ही करते थे।”

भारत की ओर से एक बार पहले ही ओलंपिक में हिस्सा ले चुके केडी जाधव को उनके पहले अनुभव के बावजूद 1952 हेलसिंकी ओलंपिक के लिए नहीं चुना गया।

उन्होंने छह फिट लम्बे और बेहतरीन कद काठी के नेशनल फ्लाईवेट चैंपियन निरंजन दास को लखनऊ में एक मिनट में दो बार पटखनी दी। जब अधिकारियों ने फिर भी उन्हें ओलंपिक भेजने का अपना फैसला नहीं बदला तो उन्होंने पटियाला के महाराजा को खत लिखा। जिन्होंने दोनों के बीच तीसरा मुक़ाबला कराने की व्यवस्था की।

केडी जाधव ने दास को फिर से चित करने में कोई समय बर्बाद नहीं किया और आखिरकार उन्हें फिर से अपने सपने को पूरा करने का मौका मिला। हालांकि, इस बार उन्हें फंड देने वाला कोई भी नहीं था।

इसके बाद इस 27 वर्षीय ने एड़ी-चोटी का जोर लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उन्होंने गांव वालों से कुछ पैसा इकट्ठा किया और उनके इस फंड जुटाने के मिशन में सबसे बड़ा योगदान उनके कॉलेज के पूर्व प्रिंसिपल ने दिया। जिन्होंने खुद का घर गिरवी रखकर उन्हें 7000 रुपए उधार दिए।

इतनी मुश्किलों से गुजरने के बाद केडी जाधव के दृढ़ संकल्प ने कई अंतरराष्ट्रीय पहलवानों को मात दी। कनाडा के एड्रियन पोलिकिन और मेक्सिको के पीएल बसुर्टो को हराते हुए वह बेंटमवेट श्रेणी में आगे बढ़े।

अगले राउंड में उनका सामना राशिद मम्मादेयोव से हुआ। इससे पहले कि उन्हें आराम करने का समय मिलता उनका अगला मुकाबला स्वर्ण पदक विजेता शोहाची इशी के खिलाफ था, जहां ये मुकाबला वह थकान की वजह से हार गए।

केडी जाधव ने कई पदक जीते। तस्वीर साभार: ट्विटर/NOC इंडिया

फोटो क्रेडिट NOC India / Twitter

हालांकि, इस हार ने भी केडी जाधव के लिए कांस्य पदक सुनिश्चित कर दिया, जो चार साल के लंबे प्रयास और उच्च स्तर पर बैठे अधिकारियों की मनमानी और वित्तीय कठिनाइयों से हुए मानसिक तनाव का एक बड़ा इनाम था। उनके इसी जुनून की बदौलत जीते गए इस पदक ने भारत का पहला व्यक्तिगत ओलंपिक पदक बना दिया।

ओलंपिक से लौटने के बाद उनका स्वागत बहुत धूमधाम से किया गया। 100 से अधिक बैलगाड़ियों के जुलूस निकला, जिसने रेलवे स्टेशन से उनके घर तक के 15 मिनट के सफर को तय करने में सात घंटे लगा दिए। लोगों की भीड़ उनकी उपलब्धि की ऊंचाई को बयां कर रही थी।

कुश्ती के बाद का उनका जीवन

घर लौटने के बाद केडी जाधव ने सबसे पहले उन सभी का उधार चुकाया, जिन्होंने उनका मुश्किल समय में साथ दिया था। उन्होंने सबसे पहले अपने कॉलेज के प्रिंसिपल खारडिकर को धन्यवाद दिया और उनका दिया हुआ पैसा उन्हें वापस लौटाया।

गोलेश्वर के निवासियों ने एक चौक पर पांच छल्लों की संरचना स्थापित की, जो उनकी इस जीत के लिए समर्पित थी। दिलचस्प बात यह है कि जाधव ने अपने घर का नाम भी ‘ओलंपिक निवास’ रखा है।

इसके बाद 1955 में कुश्ती में हासिल की गई उनकी उपलब्धि के चलते उन्हें सब-इंस्पेक्टर के रूप में महाराष्ट्र पुलिस में शामिल किया गया। वह 1956 मेलबर्न ओलंपिक में जाने के लिए पूरी तरह से तैयार थे कि तभी घुटने की एक गंभीर चोट ने उनकी ‘खेलों के महाकुंभ’ में हिस्सा लेने की उम्मीदों पर पानी फेर दिया।

हालांकि, इसके बाद केडी जाधव ने पुलिस गेम्स में भी कुछ मौकों पर हिस्सा लिया और फोर्स में कई पुलिसवालों को भी प्रशिक्षित किया। उन्होंने महाराष्ट्र पुलिस की अपनी रैंक को बेहतर करने में काफी मेहनत की और 1983 में वह सहायक आयुक्त के तौर पर सेवानिवृत्त हुए।

1952 ओलंपिक में पोडियम पर खड़े केडी जाधव। तस्वीर साभार: ट्विटर/NOC इंडिया

साल 1984 में इस भारतीय पहलवान का एक दुर्भाग्यपूर्ण मोटरसाइकिल एक्सीडेंट में देहांत हो गया। उनकी मृत्यु के बाद साल 2001 में उन्हें अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 2010 के राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान उन्हें सम्मानित करने के लिए आईजीआई एरिना में कुश्ती रिंग को ‘केडी जाधव स्टेडियम' नाम दिया गया।

संग्राम सिंह इस फिल्म में मुख्य भूमिका निभाने वाले थे। उन्होंने कहा, "वह भारत में खेलों [ओलंपिक] के पहले सुपरस्टार हैं। उन्होंने 1952 में ओलंपिक पदक जीता था, जब जरूरी सुविधाओं की बहुत कमी हुआ करती थी।

उन्होंने हिंदुस्तान टाइम्स से बात करते हुए कहा, "वह भारत को दुनिया के नक्शे पर लाने वाले पहले व्यक्ति थे और साथ ही दुनिया को पहली बार पता चला कि भारत भी शीर्ष स्तर के एथलीट और खिलाड़ी दे सकता है।"

खेल के लिए उनका जुनून हालांकि उनके शब्दों में ही सबसे अच्छा है, उनके बेटे रंजीत ने द इंडियन एक्सप्रेस के साथ एक इंटरव्यू में उनके शब्दों को याद करते हुए कहा, “वह हमेशा कहते थे कि वह एक पहलवान के रूप में ही पुनर्जन्म लेना चाहेंगे। इस खेल ने उन्हें जीवन सबसे अच्छे और सुखद पल दिए थे।"

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