शून्य (०) एक अंक है जो संख्याओं के निरूपण के लिये प्रयुक्त आजकी सभी स्थानीय मान पद्धतियों का अपरिहार्य प्रतीक है। इसके अलावा यह एक संख्या भी है। दोनों रूपों में गणित में इसकी अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका है। पूर्णांकों तथा वास्तविक संख्याओं के लिये यह योग का तत्समक अवयव है। Show
ग्वालियर दुर्ग में स्थित एक छोटे से मन्दिर की दीवार पर शून्य (०) उकेरा गया है जो शून्य के लेखन का दूसरा सबसे पुराना ज्ञात उदाहरण है। यह शून्य आज से लगभग १५०० वर्ष पहले उकेरा गया था।[1] गुण[संपादित करें]
शून्य प्राप्त होता है। (x × 0 = 0)
आविष्कार[संपादित करें]प्राचीन बक्षाली पाण्डुलिपि में,[2] जिसका कि सही काल अब तक निश्चित नहीं हो पाया है परन्तु निश्चित रूप से उसका काल आर्यभट्ट के काल से प्राचीन है, शून्य का प्रयोग किया गया है और उसके लिये उसमें संकेत भी निश्चित है। २०१७ में, इस पाण्डुलिपि से ३ नमूने लेकर उनका रेडियोकार्बन विश्लेषण किया गया। इससे मिले परिणाम इस अर्थ में आश्चर्यजनक हैं कि इन तीन नमूनों की रचना तीन अलग-अलग शताब्दियों में हुई थी- पहली की २२५ ई॰ – ३८३ ई॰, दूसरी की ६८०–७७९ ई॰, तथा तीसरी की ८८५–९९३ ई॰। इस प्रश्न का उत्तर नहीं मिल पा रहा है कि विभिन्न शताब्दियों में रचित पन्ने एक साथ जोड़े जा सके।[3] गणितीय गुण[संपादित करें]शून्य, पहली प्राकृतिक पूर्णांक संख्या है। यह अन्य सभी संख्याओं से विभाजित हो जाता है। यदि कोई वास्तविक या समिश्र संख्या हो तो:
सन्दर्भ[संपादित करें]
इन्हें भी देखें[संपादित करें]
बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]
आज आप इस आर्टिकल में जानेंगे कि Zero Ka Avishkar Kisne Kiya जीरो को गणित के सबसे बड़े अविष्कारों में से एक गिना जाता हैं। जीरो एक गणितीय अंक हैं जिसे सामान्य भाषा में संख्या कहा जाता हैं। वैसे तो जीरो का कोई मान नही होता लेकिन यह किसी संख्या के लग जाए तो उसका मान दस गुना बढा देता हैं जैसे की 1 के आगे जीरो लग जाए तो 10 और 10 के आगे ज़ीरो लग जाए 100। लेकिन अगर Zero की किसी संख्या के आगे लगाया जाए तो उसका मान वही रहता हैं जैसे की 99 के आगे 0 लगा दे तो वह 099 होगा यानी की संख्या का मान घटेगा या बढ़ेगा नहीं। अगर जीरो को किसी संख्या से गुणा किया जाए तो 0 ही आएगा और अगर 0 में किसी संख्या का भाग दिया जाए तो उत्तर अनन्त (Infinity) आएगा शून्य को अंग्रेजी में Zero के साथ Nought (UK) और Naught (US) भी कहते हैं। सरल भाषा में शून्य सबसे छोटी संख्या होती हैं जो no-negetive संख्या होती हैं लेकिन इसका कोई मान नही होता है। आइए जानते हैं कि Zero Ka Avishkar Kisne Kiya?
जीरो का आविष्कार किसने किया था (0 ka avishkar kisne kiya tha)
शून्य का अविष्कार का मुख्य श्रेय भारतीय विद्वान ‘ब्रह्मगुप्त‘ को जाता हैं। क्योंकि उन्होंने 628 ईसवी में शून्य को सिद्धान्तों सहित पेश किया था। ब्रह्मगुप्त से पहले भारत के महान गणितज्ञ और ज्योतिषी आर्यभट्ट ने शून्य का प्रयोग किया था इसलिए कई लोग आर्यभट्ट को भी शून्य का जनक मानते थे। लेकिन सिद्धांत ना देने के कारण उन्हें शून्य का मुख्य अविष्कारक नही माना जाता। शून्य के अविष्कार को लेकर शुरुआत से ही मतभेद रहे हैं. क्योंकि गणना काफी पहले से की जा रही है लेकिन बिना शून्य के यह असम्भव प्रतीत होती हैं। ज़ीरो का इतिहासब्रह्मगुप्त के द्वारा शून्य का आविष्कार करने से पहले भी शून्य का प्रयोग किया जा रहा था। कई प्राचीन मंदिरों के पुरातत्वो और ग्रंथों में इसे देखा गया हैं। शुरुआत में शून्य मात्र एक स्थानधारक था। लेकिन बाद में यह गणित का एक अहम भाग बन गया। कहा जाता हैं की शून्य का कॉन्सेप्ट तो काफी पुराना है लेकिन यह 5वी शताब्दी तक भारत में पूर्ण रूप से विकसित था। गणना प्रणाली को शुरू करने वाले सबसे पहले लोग सुमेर निवासी थे। Zero को भारत में शून्य कहा जाता था जो की एक संस्कृत शब्द हैं। जीरो का कॉन्सेप्ट और इसकी परिभाषा सबसे पहले 628 ईसवी में भारतीय गणितज्ञ ब्रह्मगुप्त ने दी। इसके बाद यह भारत में विकसित होता रहा। बाद में 8वी शताब्दी में शून्य अरबो जी सभ्यता में पहुचा जहा से इसे आज का रूप ‘0‘ मिला। अन्त में जाकर 12वी शताब्दी के के करीब यह यूरोप में पहुचा और यूरोपीय गणना में सुधार हुआ।
ज़ीरो के कितने नाम?
तो अब आप जान गए होंगे कि Zero Ka Avishkar Kisne Kiya Tha शून्य का अविष्कार का मुख्य श्रेय भारतीय विद्वान ‘ब्रह्मगुप्त‘ को जाता हैं. क्योंकि उन्होंने 628 ईसवी में शून्य को सिद्धान्तों सहित पेश किया था। ये भी पढ़े-
जीरो का आविष्कार किसने किया था? से सम्बंधित FAQजीरो का आविष्कार किसने किया था जीरो का अविष्कार का मुख्य श्रेय भारतीय विद्वान ‘ब्रह्मगुप्त‘ को जाता हैं। गणित में शून्य का जनक कौन है?आर्यभट्ट को लोग शून्य का जनक इसलिए मानते हैं, क्योंकि उन्होंने अपने ग्रंथ आर्यभटीय के गणितपाद 2 में एक से अरब तक की संख्याएं बताकर लिखा है।
शून्य की खोज किसने की थी और कब की थी?628 ईस्वी में ब्रह्मगुप्त नामक विद्वान और गणितज्ञ ने पहली बार शून्य और उसके सिद्धांतों को परिभाषित किया और इसके लिए एक प्रतीक विकसित किया जो कि संख्याओं के नीचे दिए गए एक डॉट के रूप में था. उन्होंने गणितीय संक्रियाओं अर्थात जोड़ (addition) और घटाव (subtraction) के लिए शून्य के प्रयोग से संबंधित नियम भी लिखे हैं.
क्या आर्यभट्ट ने जीरो की खोज की थी?ब्रह्मगुप्त से पहले भारत के महान गणितज्ञ और ज्योतिषी आर्यभट्ट ने शून्य का प्रयोग किया था, इतने सारे लोग आर्यभट्ट को शून्य का जनक (0) मानते थे। लेकिन सिद्धांत न देने के कारण उन्हें शून्य का मुख्य आविष्कारक नहीं माना जाता है। बहुत से लोग मानते हैं कि शून्य का आविष्कार भारत के महान गणितज्ञ और ज्योतिषी आर्यभट्ट ने किया था।
शून्य का आविष्कार कहाँ हुआ?शून्य का आविष्कार ब्रहगुप्त ने 628 में किया था। शून्य का अविष्कारक कौन है ; यह अभी तक पूर्ण रूप से स्पष्ट नही हो पाया है। भारतीय लोगों का मानना है कि शून्य की खोज भारतीय गणितज्ञ आर्यभट्ट ने की थी, वहीं कुछ अमेरिकी गणितज्ञ यह मानते है कि एक अमेरिकी गणितज्ञ आमिर एक्जेल ने कंबोडिया में शून्य की खोज की थी।
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