आरंभिक मानव को आखेटक खाद्य संग्रह क्यों कहा जाता था? - aarambhik maanav ko aakhetak khaady sangrah kyon kaha jaata tha?

आखेट खाद्य संग्राहक:- आखेटक खाद्य संग्राहक आमतौर पर खाने के लिए जंगली जानवरों का शिकार करते थे, मछलियां और चिड़िया पकड़ते थे, फल - मूल, दाने, पौधे, पत्तियां, अंडे इकट्ठा किया करते थे।

आखेटक खाद्य संग्राहक समुदाय के लोग एक जगह से दूसरी जगह पर क्यों घूमते रहते थे? कारण बताइए।

1).पहला कारण यह कि अगर वह एक ही जगह पर ज्यादा दिनों तक रहते तो आसपास के पौधों, फलों और जानवरों को खा कर समाप्त कर देते थे। इसलिए और भोजन की तलाश में इन्हें दूसरी जगह पर जाना पड़ता था।

2).दूसरा कारण है कि जानवर अपने शिकार के लिए या फिर हिरण और मवेशी अपना चारा ढूंढने के लिए एक जगह से दूसरी जगह जाया करते हैं। इसलिए इन जानवरों का शिकार करने वाले लोग भी इनके पीछे-पीछे जाया करते होंगे।

3).तीसरा कारण यह है कि पेड़ों और पौधों में फल फूल अलग अलग मौसम में आते हैं इसलिए लोग उनकी तलाश में उपयुक्त मौसम के अनुसार अन्य इलाकों में घूमते होंगे।

4).चौथा कारण यह है कि पानी के बिना किसी भी प्राणी या पेड़ पौधों का जीवित रहना संभव नहीं होता और पानी झीलो, झरनों तथा नदियों में ही मिलता है। कई नदियों और झीलों का पानी कभी नहीं सूखता कुछ झीलों और नदियों में पानी बारिश के बाद ही मिल पाता है इसलिए ऐसी झीलों और नदियों के किनारे बसे लोग को सूखे मौसम में पानी की तलाश में इधर-उधर जाना पड़ता होगा।

आग का इस्तेमाल:- 1) कुरनूल गुफा में राग के अवशेष मिले हैं इसका मतलब यह है कि आरंभिक लोग आग जलाना सीख गए थे।

2) आग का इस्तेमाल कई कार्य के लिए किया गया होगा जैसे कि प्रकाश के लिए, मांस भुनने के लिए और खतरनाक जानवरों को दूर आदि भगाने के लिए।

Note: आरंभिक काल को पुरापाषाण काल कहते हैं। यह दो शब्दों पूरा यानी 'प्राचीन' और पाषाण यानी 'पत्थर' से बना है।

Note: इतिहास की लगभग 99% कहानी पुरापाषाण काल के दौरान घटे हैं।

Note: पुरापाषाण काल को बीस लाख साल पहले से 12000 साल पहले तक का माना जाता है।

Note: पुरापाषाण काल को तीन भागों में बांटा गया है। 1). आरंभिक पुरापाषाण  2). मध्य पुरापाषाण 3). उत्तर पुरापाषाण।

मेसोलिथ (मध्य पाषाण युग) :- जिस काल में हमें पर्यावरण में बदलाव देखने को मिलते हैं उसे मेसोलिथ यानी मध्य पाषाण युग कहते हैं। इसका समय लगभग 12,000 साल पहले से लेकर 10,000 साल पहले तक का माना गया है।

माइक्रोलिथ (लघु भाषण) :- इस काल के पाषाण, औजार आमतौर पर बहुत छोटे होते थे इन्हें माइक्रोलिथ यानी लघु पाषाण कहा जाता है। प्राय इन औजारों में हड्डियों या लकड़ियों के मुट्ठे लगे हंसिया और आदि जैसे औजार मिले हैं। साथ-साथ पूरा पाषाण युग वाले औजार भी इस दौरान बनाए जाते रहे।

नवपाषाण:- नवपाषाण युग की शुरुआत लगभग 10,000 साल पहले से होती है। नवपाषाण शब्द का अर्थ 'नए पत्थर' होता है जब मानव ने कृषि करना, पशु पशुओं को पालना, पत्थर को तेज और नौकिला बनाना, मृदभांड बनाना, शुरू कर दिया था। इस शब्द का सबसे पहले 'सर जॉन लुबांक ' ने अपनी पुस्तक 'प्री हिस्टोरिक टाइम्स' में इस्तेमाल किया था।

12000 साल पहले बदलती जलवायु :-

लगभग 12,000 साल पहले दुनिया के जलवायु में बड़े बदलाव आए और गर्मी बढ़ने लगी। गर्मी बढ़ने के कारण कई क्षेत्रों में घास वाले मैदान बनने लगे। इससे हिरण, बारहसिंघा, भेड़, बकरी और गाय जैसे  उन जानवरों की संख्या बढ़ी जो घास खाकर जिंदा रह सकते थे। साथ ही साथ इस काल में मछली भी भोजन का महत्वपूर्ण स्रोत बन गई।

खेती और पशुपालन की शुरुआत:

1). 12000 साल पहले खेती :- लगभग 12000 साल पहले उपमहाद्वीप के विभिन्न इलाकों में गेहूं और धान जैसे अनाज प्राकृतिक रूप से उगने लगे थे। शायद महिलाओं पुरुषों और बच्चों ने इन अनाजों को भोजन के लिए बटोरना शुरू कर दिया होगा। साथ ही साथ ही वह यह भी सीखने लगे होंगे कि यह अनाज कहां होते हैं और कब पककर तैयार होते हैं। ऐसा करते करते लोगों ने इन अनाज को खुद पैदा करना सीख लिया होगा जिस प्रकार धीरे-धीरे कृषक बन गए होंगे।

2). 12000 साल पहले पशुपालन :- लगभग 12000 साल पहले खेती करते करते लोगों ने अपने घरों के आस-पास चारा रखकर जानवरों को आकर्षित कर उन्हें पालतू बनाया होगा। सबसे पहले जिस जंगली जानवर को पालतू बनाया गया वह कुत्ते का जंगली पूर्वज था। 

धीरे-धीरे लोग भेड़, बकरी, गाय और सुअर जैसे जानवर को अपने घरों के नजदीक आने को उत्साहित करने लगे। ऐसे जानवर झुंड में रहते थे और ज्यादातर घास खाते थे। अक्सर लोग अन्य जंगली जानवरों के आक्रमण से इसकी सुरक्षा किया करते थे और इस तरह धीरे-धीरे में पशुपालक बन गए होंगे।

12000 साल पहले बसने की प्रक्रिया:-

1). लोगों द्वारा पौधे उगाने और जानवरों की देखभाल करने को बस ने की प्रक्रिया का नाम दिया गया।

2). अपनाए गए पौधे और जानवर अक्सर जंगली पौधों तथा जानवरों से अलग होते थे।

3). लोग उन्हीं पौधों तथा जानवरों का चयन करते थे जिनके बीमार होने की संभावना कम हो। लोग उन पौधों को चुनते थे जिन से बड़े दाने वाले अनाज पैदा होते थे। लोगों उन जानवरों को ही पालते थे जो अहिंसक होते थे।

बसने की प्रक्रिया पूरी दुनिया में धीरे धीरे चलती रही है करीब 12000 साल पहले शुरू हुई आज जो हम भोजन करते हैं वह इसी बसने की प्रक्रिया की वजह से है।

कृषि के लिए अपनाई गई सबसे प्राचीन फसलों में गेहूं तथा जो आते हैं उसी तरह सबसे पहले पालतू बनाए गए जानवरों में कुत्ते के बाद भेड़ बकरी आते हैं।

आखेटक खाद्य संग्राहक जानवरों या पशुओं का इस्तेमाल किस प्रकार करते थे?

जानवर का इस्तेमाल आखेटक खाद्य संग्राहक भोजन के भंडार के रूप में करते थे जानवर से उन्हें दूध मिलता था जो भोजन का एक अच्छा स्रोत है तथा जानवरों से उन्हें मांस प्राप्त होता था।

शुरुआती कृषकों और पशुपालकों के होने के साक्ष्य कहां मिले हैं?

शुरुआती कृषको और पशुपालकों के होने के साक्ष्य पूरे उपमहाद्वीप में पाए गए हैं। इनमें सबसे महत्वपूर्ण पश्चिमोत्तर क्षेत्र में आधुनिक कश्मीर और पूर्वी तथा दक्षिण भारत में पाए गए हैं।

आखेटक खाद्य संग्राहक का स्थाई जीवन :-

1). पुरातत्वविदो को कुछ पूरा स्थलों पर झोपड़ियों और घरों के निशान मिले हैं जैसे कि 'बुर्जहोम' (कश्मीर में) के लोग गड्ढे के नीचे घर बनाते थे जिन्हें गर्तवास कहां जाता है।

2). गर्तवास में उतरने के लिए सीढ़ियां होती थी इससे उन्हें ठंड के मौसम में सुरक्षा मिलती होगी।

3). पुरातत्व दो को झोपड़ियों के अंदर और बाहर दोनों ही स्थानों पर आग जलाने के जगह मिले हैं।

4). ऐसा लगता है कि लोग मौसम के अनुसार घर के अंदर या बाहर खाना पकाते होंगे।

5). बहुत सारी जगह से पत्थर के भी साक्ष्य मिले हैं इनमें से कई ऐसे हैं जो पूरा पाषाण युगीन उपकरणों से भिन्न है इसलिए उन्हें नवपाषाण युग का माना गया है।

नवपाषाण युग के पुरा स्थलों से पाए गए पात्र (बर्तन):-

1). नवपाषाण युग के पुरास्थलों से कई प्रकार की मिट्टी के बर्तन मिले हैं कभी-कभी इन पर अलंकर भी किया जाता था।

2). बर्तनों का उपयोग चीजों को रखने के लिए किया जाता था धीरे धीरे लोग बर्तनों का प्रयोग खाना बनाने के लिए भी करने लगे।

3). चावल, गेहूं तथा दलहन जैसे अनाज अब आहार का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गए थे। इसके साथ-साथ अब लोग कपड़े भी बनने लगे थे।

मेहरगढ़ में जीवन मृत्यु:-

1). मेहरगढ़ संभवत वह स्थान है जहां के सभी स्त्री पुरुषों ने इस इलाके में सबसे पहले जो, गेहूं, उगाना और भेड़, बकरी पालना सीखा।

2). यहां विभिन्न प्रकार के जानवरों की हड्डियां मिली है इनमें से हिरन तथा सूअर जैसे जंगली जानवरों तथा बीयर और बकरियों की हड्डियां है।

3). मेहरगढ़ में इसके अलावा चौक कौर तथा आयताकार घरों के अवशेष भी मिले हैं प्रत्येक घर में 4 या उससे ज्यादा कमरे हैं जिनमें से कुछ संभवत भंडार के काम आते होंगे।

4). लोगों की अवस्था आस्था थी की मृत्यु के बाद भी जीवन होता है इसलिए कब्रों में मृतकों के साथ कुछ सामान भी रखे जाते थे।

तुर्की का एक नवपषाणिक पुरास्थल:-

नवपाषाण युग के सबसे प्रसिद्ध पूरा स्थलों में एक चताल ह्यूक तुर्की में है। यहां दूरदराज स्थानों से कई चीजें लाई जाती थी और उनका उपयोग किया जाता था जैसे सीरिया से लाया गया चकमक पत्थर, लाल सागर की कौड़ियां तथा भूमध्य सागर की सीपियां उस समय पहिए वाले वाहन का विकास नहीं हुआ था लोग समान खुद या जानवर के पीठ पर लादकर ले जाया करते थे।

आरंभिक मानव के आखेटक खाद्य संग्रहण क्यों कहा जाता है?

आरंभिक मानव आखेटक-खाद्य संग्राहक था। इसका मतलब है कि वह भोजन के लिए शिकार करता था और कंद-मूल-फल इकट्ठा करता था। आरंभिक मानव किसी खानाबदोश की तरह रहता था, यानि एक स्थान से दूसरे स्थान तक घूमता रहता था।

आखेटक खाद्य संग्रह क्या होता है?

आखेटक - खाद्य संग्राहक समुदाय के लोग एक जगह से दूसरी जगह पर घूमते रहते थे। ऐसा करने के कई कारण थे। पहला कारण यह कि अगर वे एक ही जगह पर ज़्यादा दिनों तक रहते तो आस-पास के पौधों, फलों और जानवरों को खाकर समाप्त कर देते थे। इसलिए और भोजन की तलाश में इन्हें दूसरी जगहों पर जाना पड़ता था ।

आरंभिक मानव के मुख्य भोजन क्या है?

Solution : आरंभिक मानव आमतौर पर खाने के लिए जंगली जानवरों का शिकार करते थे। वे मछलियाँ और चिड़ियाँ पकड़ते थे तथा फल-मूल, दाने, पौधे-पत्तियाँ, अंडे इकट्ठे किया करते थे

आखेटक खाद्य संग्राहक एक स्थान से दूसरे स्थान पर क्यों घूमते रहते हैं?

उत्तर: आखेटक खाद्य- संग्राहक भोजन और पानी की तलाश में एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमते थे। चूकि एक स्थान पर ज्यादा दिनों तक रहने के कारण वे आस पास के पौधे, फल और जानवरों को खाकर खत्म कर देते थे। कुछ नदियों और झीलों का पानी सूखे के मौसम में सूख जाते थे। इसलिए उन्हें दूसरे स्थान पर जाना पड़ता था।