14वें वित्त आयोग का गठन कब किया गया? - 14ven vitt aayog ka gathan kab kiya gaya?

विशेष/इन-डेप्थ: वित्त आयोग

संदर्भ एवं पृष्ठभूमि

संविधान के अनुच्छेद 280(1) के अंतर्गत यह प्रावधान किया गया है कि संविधान के प्रारंभ से दो वर्ष के भीतर और उसके बाद प्रत्येक पाँच वर्ष की समाप्ति पर या पहले उस समय पर, जिसे राष्ट्रपति आवश्यक समझते हैं, एक वित्त आयोग का गठन किया जाएगा।

  • इसके मद्देनज़र परंपरा यह है कि पिछले वित्त आयोग के गठन की तारीख के पाँच वर्षों के भीतर अगले वित्त आयोग का गठन हो जाता है, जो एक अर्द्धन्यायिक एवं सलाहकारी निकाय है। 
  • इसी परंपरा को आगे बढाते हुए संवैधानिक प्रावधानों के तहत केंद्र सरकार ने 22 नवंबर, 2017 को 15वें वित्त आयोग के गठन को मंज़ूरी दी थी। 15वें वित्त आयोग का कार्यकाल 2020-25 तक होगा।
  • अब तक जितने भी वित्त आयोग गठित हुए हैं, उनको लेकर कोई-न-कोई विवाद बना ही रहा है। कुछ ऐसा ही विवाद 15वें वित्त आयोग के नियमों और शर्तों (Terms of Reference) को लेकर चल रहा है।

14 वित्त आयोग बन चुके हैं अब तक

वित्त आयोग नियुक्ति वर्ष अध्यक्ष अवधि
पहला 1951 के.सी. नियोगी 1952-1957
दूसरा 1956 के. संथानम 1957-1962
तीसरा 1960 ए.के. चंद्रा 1962-1966
चौथा 1964 डॉ. पी.वी. राजमन्नार 1966-1969
पाँचवां 1968 महावीर त्यागी 1969-1974
छठा 1972 पी. ब्रह्मानंद रेड्डी 1974-1979
सातवाँ 1977 जे.पी. शेलट 1979-1984
आठवाँ 1982 वाई.पी. चौहान 1984-1989
नौवाँ 1987 एन.के.पी. साल्वे 1989-1995
10वाँ 1992 के.सी. पंत 1995-2000
11वाँ 1998 प्रो. ए.एम. खुसरो 2000-2005
12वाँ 2003 डॉ. सी. रंगराजन 2005-2010
13वाँ 2007 डॉ. विजय एल. केलकर 2010-2015
14वां  2012 डॉ. वाई.वी. रेड्डी 2015-2020

(टीम दृष्टि इनपुट) 

14वाँ वित्त आयोग

रिज़र्व बैंक के पूर्व गवर्नर डॉ. वाई.वी. रेड्डी के अध्यक्षता वाले 14वें वित्त आयोग को 1 अप्रैल, 2015 से शुरू होने वाले पाँच वर्षों की अवधि को कवर करने वाली सिफारिशें देने के लिये 2 जनवरी, 2013 को गठित किया गया था। 14वें वित्त आयोग ने 15 दिसंबर, 2014 को अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत किया था। 14वें वित्त आयोग की सिफारिशें वित्तीय वर्ष 2019-20 तक के लिये वैध हैं। 

क्यों पड़ी वित्त आयोग की आवश्यकता? 

  • भारत की संघीय प्रणाली केंद्र और राज्यों के बीच शक्ति तथ कार्यों के विभाजन की अनुमति देती है और इसी आधार पर कराधान की शक्तियों को भी केंद्र एवं राज्यों के बीच विभाजित किया जाता है।
  • राज्य विधायिकाओं को अधिकार है कि वे स्थानीय निकायों को अपनी कराधान शक्तियों में से कुछ अधिकार दे सकती हैं। 
  • केंद्र कर राजस्व का अधिकांश हिस्सा एकत्र करता है और कुछ निश्चित करों के संग्रह के माध्यम से बड़े पैमाने पर अर्थव्यवस्था में योगदान देता है।
  • स्थानीय मुद्दों और ज़रूरतों को निकटता से जानने के कारण राज्यों की यह ज़िम्मेदारी है कि वे अपने क्षेत्रों में लोकहित का ध्यान रखें।
  • हालाँकि इन सभी कारणों से कभी-कभी राज्य का खर्च उनको प्राप्त होने वाले राजस्व से कहीं अधिक हो जाता है।
  • इसके अलावा, विशाल क्षेत्रीय असमानताओं के कारण कुछ राज्य दूसरों की तुलना में पर्याप्त संसाधनों का लाभ उठाने में असमर्थ हैं। इन असंतुलनों को दूर करने के लिये वित्त आयोग राज्यों के साथ साझा किये जाने वाले केंद्रीय निधियों की सीमा की सिफारिश करता है।

15वें वित्त आयोग की संरचना 

  • अनुच्छेद 280(1) के तहत उपबंध है कि राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त्त किये जाने वाले एक अध्यक्ष और चार अन्य सदस्यों से मिलकर वित्त आयोग बनेगा।
  • 27 नवम्बर, 2017 को एन.के. सिंह को 15वें वित्त आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया।
  • एन.के. सिंह भारत सरकार के पूर्व सचिव एवं 2008-2014 तक बिहार से राज्यसभा के सदस्य भी रह चुके हैं।
  • इनके अलावा अन्य 4 सदस्यों में शक्तिकांत दास (भारत सरकार के पूर्व सचिव) और डॉ. अनूप सिंह (सहायक प्रोफेसर, जॉर्जटाउन विश्वविद्यालय, वाशिंगटन डी.सी., अमेरिका) पूर्णकालिक सदस्य तथा डॉ. अशोक लाहिड़ी (अध्यक्ष, बंधन बैंक) और डॉ. रमेश चंद्र (सदस्य, नीति आयोग) इसके अंशकालिक सदस्य मनोनीत किये गए हैं।

वित्त आयोग के सदस्यों हेतु अर्हताएँ

संसद द्वारा वित्त आयोग के सदस्यों की अर्हताएँ निर्धारित करने हेतु वित्त आयोग (प्रकीर्ण उपबंध) अधिनियम,1951 पारित किया गया है। इसका अध्यक्ष ऐसा व्यक्ति होना चाहिये जो सार्वजनिक तथा लोक मामलों का जानकार हो। अन्य चार सदस्यों में उच्च न्यायालय का न्यायाधीश बनने की अर्हता हो या उन्हें प्रशासन व वित्तीय मामलों का या अर्थशास्त्र का विशिष्ट ज्ञान हो।

वित्त आयोग के कार्य दायित्व

  • भारत के राष्ट्रपति को यह सिफारिश करना कि संघ एवं राज्यों के बीच करों की शुद्ध प्राप्तियों को कैसे वितरित किया जाए एवं राज्यों के बीच ऐसे आगमों का आवंटन।
  • अनुच्छेद 275 के तहत संचित निधि में से राज्यों को अनुदान/सहायता दी जानी चाहिये।
  • राज्य वित्त आयोग द्वारा की गई सिफारिशों के आधार पर पंचायतों एवं नगरपालिकाओं के संसाधनों की आपूर्ति हेतु राज्य की संचित निधि में संवर्द्धन के लिये आवश्यक क़दमों की सिफारिश करना।
  • राष्ट्रपति द्वारा प्रदत्त अन्य कोई विशिष्ट निर्देश, जो देश के सुदृढ़ वित्त के हित में हों। 
  • आयोग अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंपता है, जिसे राष्ट्रपति द्वारा संसद के दोनों सदनों में रखवाया जाता है।
  • प्रस्तुत सिफारिशों के साथ स्पष्टीकरण ज्ञापन भी रखवाया जाता है ताकि प्रत्येक सिफारिश के संबंध में हुई कार्यवाही की जानकारी हो सके।
  • वित्त आयोग द्वारा की गई सिफारिशें सलाहकारी प्रवृत्ति की होती हैं, इसे मानना या न मानना सरकार पर निर्भर करता है।

विस्तृत है 15वें वित्त आयोग का दायरा  

15वें वित्त आयोग को विस्तृत दायरे में कार्य सौंपा गया है, जिसका उसे उचित समाधान करना होगा। आयोग अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों, सभी राज्य सरकारों, स्थानीय निकायों, पंचायतों और प्रत्येक राज्य की राजनीतिक पार्टियों के साथ विभिन्न मुद्दों पर नियमित विचार-विमर्श करेगा।

रिज़र्व बैंक से लिया जा सकता है सहयोग

आयोग सभी विचारार्थ विषयों के समाधान का विश्लेषण करने के लिये देश के शोध संस्थानों की सहायता लेगा। जैसे कि रिज़र्व बैंक के पास संपूर्ण वित्तीय सहायता से जुड़े मामलों के आँकड़े और तकनीकी विशेषताएँ हैं। रिज़र्व बैंक का राज्य वित्त प्रभाग काफी लंबे समय से उभरते हुए वित्तीय परिदृश्य और राज्य की वित्तीय स्थिति के बारे में जानकारी देने का समृद्ध भंडार रहा है। ऐसे में आयोग को रिज़र्व बैंक के विश्लेषणात्मक और क्षेत्र संबंधी जानकारी से इन विशेष क्षेत्रों में काफी लाभ मिल सकेगा। इसके अलावा, विश्लेषणात्मक पत्रों को तैयार करने और कुछ जटिल मुद्दों का विश्लेषण करने में भी वित्त आयोग की मदद रिज़र्व बैंक कर सकता है, जिसकी आयोग को अपने कार्यों को निपटाने में ज़रूरत पड़ सकती है।

परामर्शक सलाहकार परिषद का गठन 

हाल ही में 15वें वित्त आयोग ने अरविंद विरमानी की अध्यक्षता में 6 सदस्यों वाली सलाहकार परिषद का गठन किया है, जो आयोग को परामर्श देने के साथ-साथ आवश्यक सहायता भी प्रदान करेगी। सुरजीत एस. भल्ला, संजीव गुप्ता, पिनाकी चक्रबर्ती, साजिद चिनॉय और नीलकंठ मिश्रा इसके सदस्य हैं।

सलाहकार परिषद की भूमिका और कामकाज 

आयोग के विचारार्थ विषयों से संबंधित विषय अथवा किसी ऐसे मसले पर आयोग को परामर्श देना जो प्रासंगिक हो सकता है।

  • ऐसे प्रपत्र (पेपर) अथवा अनुसंधान तैयार करने में मदद प्रदान करना जो उसके विचारार्थ विषयों र में शामिल मुद्दों पर आयोग की समझ बढ़ाएंगे।
  • वित्तीय हस्तांतरण से संबंधित विषयों पर सर्वोत्तम राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय प्रथाओं का पता लगाने और उसकी सिफारिशों की गुणवत्ता एवं पहुँच तथा इसे बेहतर ढंग से अमल में लाने के लिये आयोग के दायरे एवं समझ का विस्तार करने में मदद करना।

(टीम दृष्टि इनपुट)

15वें वित्त आयोग के नियमों और शर्तों को लेकर विवाद

15वें वित्त आयोग के गठन के बाद से ही कुछ राज्यों द्वारा इनको 'सहकारी संघवाद' की अवधारणा पर कुठाराघात के रूप में लेते हुए उत्तरी एवं दक्षिणी राज्यों के बीच जानबूझकर किए गए भेदभाव के रूप में मानते हुए इस मामले में गंभीर आपत्तियाँ जताई जा रही हैं।

  • दक्षिण भारत के सभी राज्य इन नियम और शर्तों का विरोध कर रहे हैं तथा पंजाब भी इनमें शामिल हो गया है। 
  • इन राज्यों का कहना है कि वित्त आयोग के नए नियम और शर्तें उन राज्यों के लिये नुकसानदेह हैं, जिन्होंने जनसंख्या नियंत्रण पर अच्छा काम किया है।
  • 1971 में देश की जनसंख्या में दक्षिणी राज्यों की हिस्सेदारी 24% से अधिक थी, जो 2011 में घटकर 20% रह गई। दूसरी ओर, बिहार की जनसंख्या 1991 से 2011 के बीच लगभग 25% बढ़ गई।
  • इन राज्यों का यह भी कहना है कि वित्त आयोग के नियमों और शर्तों से संविधान के मूल ढाँचे का उल्लंघन नहीं होना चाहिये। ये राज्य इस मुद्दे पर राष्ट्रीय चर्चा के पक्षधर हैं।
  • दक्षिणी राज्यों का मानना है कि 15वें वित्त आयोग के नियमों और शर्तों को यदि जस-का-तस लागू किया जाता है, तो इससे प्रगतिशील राज्य बुरी तरह प्रभावित होंगे। 
  • इन राज्यों का कहना है कि केंद्र को सहकारिता के संघीय ढाँचे का सम्मान करना चाहिये। ये राज्य वित्त आयोग के इन नियमों और शर्तों को राज्यों के मूल वित्तीय ढाँचे को नुकसान पहुँचाने वाला मानते हैं। 
  • इन राज्यों का तर्क है कि 2011 की जनगणना के आधार पर कोष के बँटवारे से उन राज्यों को फायदा होगा, जो अपने यहाँ बढ़ती आबादी को रोकने में असफल रहे हैं। 
  • इन राज्यों का यह भी कहना है कि 15वें वित्त आयोग ने अपनी शर्तों में उन विषयों को भी शामिल कर लिया है, जो उसके दायरे में अभी तक नहीं आते थे।

आगे की राह

  • राज्यों में आबादी को नियंत्रित करने के प्रयासों को प्रोत्साहित करने के मामलों में प्रजनन दर अभी भी उच्च है। ऐसे राज्यों के बीच तनाव कम करने के लिये रचनात्मक विकल्पों को अपनाए जाने की आवश्यकता है। 
  • लगभग 6 करोड़ लोगों के रूप में अंतर्राज्यीय प्रवासन दर उच्च रहने का अनुमान लगाया गया है, इसलिये अधिक-से-अधिक प्रवासित होने वाले राज्यों का सहयोग करना भी महत्त्वपूर्ण है।
  • इस प्रकार के सहयोग से राज्य बेहतर सेवाएँ प्रदान करेंगे और प्रवासियों के खिलाफ भेदभाव को हतोत्साहित करेंगे ।
  • ध्यातव्य है कि वर्तमान में विशेष रूप से संसदीय निर्वाचन क्षेत्र और राज्यवार निरूपण भी 1971 की जनगणना पर ही आधारित हैं, जो 2011 की जनगणना में आधार प्रदान कर सकते हैं।

राज्यों में वित्त आयोग के कार्य 

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद-243(आई) तथा 243(वाई) में आयोग के गठन के लिये दी गई व्यवस्थानुसार राज्य वित्त आयोगों का गठन प्रत्येक पाँच वर्ष पर संबंधित राज्य के राज्यपाल द्वारा किया जाता है। 
  • राज्य वित्त आयोग का प्रमुख कार्य पंचायतों तथा नगरपालिकाओं की वित्तीय स्थिति की समीक्षा करना है। 
  • राज्य वित्त आयोग में सामान्यतः अध्यक्ष, सदस्य सचिव तथा अन्य सदस्य शामिल होते हैं।
  • राज्य वित्त आयोग को केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित वित्त आयोग की सिफारिशों के अनुरूप अनुदान प्राप्त होता है।
  • राज्य की संचित निधि से राज्य में विभिन्न पंचायती राज संस्थाओं और नगर निकायों को धन आवंटन का कार्य करता है।
  • वित्तीय मुद्दों के संबंध में राज्य और केंद्रीय सरकारों के बीच एक मध्यस्थ के रूप में कार्य करता है।
  • राज्य सरकार द्वारा कर, फीस, टोल के रूप में वसूली गई निधि को राज्य के विभिन्न नगर निकायों तथा पंचायती राज संस्थानों के बीच वितरित करता है।

निष्कर्ष: केंद्र सरकार द्वारा हर पाँच साल पर वित्त आयोग का गठन किया जाता है, ताकि केंद्र व राज्यों के बीच और एक राज्य से दूसरे राज्यों के बीच राजस्व के बँटवारे का तरीका तय किया जा सके। देश में राजस्व सामूहिक रूप से इकट्ठा किया जाता है और फिर उसके बँटवारे का एक फॉर्मूला तय होता है। राजस्व के बँटवारे का तरीका और शर्तों को तय करते समय वित्त आयोग किसी भी राज्य के राजस्व प्रदर्शन के अलावा कई अन्य मानदंडों पर भी गौर करता है और उसी के बाद राजस्व का बँटवारा होता है। इसके लिये वित्त आयोग अक्सर राज्य की आबादी और उसकी आय के फासले को ध्यान में रखता है। इससे राजस्व बँटवारे का पैमाना अधिक गरीबी पर आकर ठहर जाता है। 

15वें वित्त आयोग द्वारा 2011 की जनगणना को ध्यान में रखते हुए राज्यों के बीच संसाधनों का आवंटन किये जाने की अनुशंसा की गई है। देखा जाए तो नवीनतम जनगणना के आँकड़ों का प्रयोग किया जाना उचित प्रतीत होता है, किंतु इससे उत्तरी और दक्षिणी राज्यों के मध्य विवाद का एक सबसे गंभीर मुद्दा उभर रहा है। जनगणना आधार के बदलाव के कारण सामाजिक-राजनीतिक क्षेत्र में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। इसमें उन दक्षिणी राज्यों को नुकसान होने की ज़्यादा संभावना है, जो दशकों से अपनी आबादी को नियंत्रित करने के लिये बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं। उनके यहाँ कम जनसंख्या वृद्धि स्वाभाविक रूप से ‘कम प्रजनन दर’ से जुड़ी हुई है, जो बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं और विकास का एक परिणाम है। ऐसे में उन्हें विकास संबंधी कार्यों में उनकी सफलता के कारण निधि आवंटन में नुकसान उठाना पड़ सकता है जिसे दंड की तरह माना जा रहा है। यही कारण है कि मुख्यतः दक्षिणी राज्य 15वें वित्त आयोग के नियमों तथा शर्तों पर गंभीर आपत्ति जता रहे हैं।

14 वित्त आयोग कौन थे?

Q7. The Karnataka health department has started the process of compiling a database of all healthcare professionals which includes Doctors, Nurses, and Pharmacists under the Ayushman Bharat Digital Mission. The portal for the online database is being developed by whom of the following?

15वें वित्त आयोग का गठन कब किया गया?

योजना आयोग की समाप्ति के साथ ही योजनागत व गैर-योजनागत व्यय में भेद समाप्त किये जाने तथा वस्तु एवं सेवा कर को लागू किया जाना जिसने संघीय राजकोषीय संबंधों के मौलिक रूप को पुनः परिभाषित किया है की पृष्ठभूमि में 27 नवंबर 2017 को पंद्रहवे वित्त आयोग का गठन किया गया

15 वित्त आयोग के सचिव कौन है?

एनके सिंह - भारत के 15 वें वित्त आयोग के अध्यक्ष अरविंद मेहता - सचिव

16 वित्त आयोग के अध्यक्ष कौन है?

Status of the availability of SFC Reports with MoPR.