आत्मा का ज्ञान कैसे प्राप्त होगा? - aatma ka gyaan kaise praapt hoga?

आत्मज्ञान कैसे प्राप्त करें?

आत्मा का ज्ञान कैसे प्राप्त होगा? - aatma ka gyaan kaise praapt hoga?
आत्मज्ञान की साधना

वैसे तो जो आत्मज्ञानी होते हैं, उनके लिए इस प्रश्न का कोई महत्व नही होता है, क्योंकि आखिरकार आत्मज्ञान का अर्थ है, 'स्व' का ज्ञान'आप कौन हैं' ये आपसे ज्यादा कौन जान सकता है, लेकिन जिन्हें इसका बिल्कुल भी भान नहीं है, की आत्मज्ञान तक कैसे पहुँच सकते हैं उनके लिए तीन रास्ते सुझाए गए:-

★आत्मज्ञानी गुरु के सान्निध्य से 

आइए बारी-बारी से तीनो तरिकों की विस्तृत व्याख्या देखते है :-

★बुद्धि के प्रयोग से :

बुद्धि के प्रयोग से आत्मज्ञान पाने का अर्थ है, 'स्व' के सभी आयामों को परत-दर-परत भेदते हुए, वहाँ पहुँचना, जो 'आप स्वयं' हैं। 

जैसे की आपका शरीर और मन दो अलग-अलग आयाम है, लेकिन दोनों ही भौतिक है। आप अगर आप इन पर गौर करें, तो आसानी से इन दोनों को अलग-अलग अनुभव कर सकते हैं। जब हम शरीर की बात करते है, तो यह हड्डी और मांसो का ढाँचा है, जिसे सभी देख सकते लेकिन मन इससे परे है और कोई देख नहीं सकता। 

हालाँकी अगर आपको कुछ खाने मे अच्छा लगता है, तो  वह आपके स्वादइन्द्रियों की माँग बन जाता है,  और अगर आपका मन और शरीर पुरी तरह से जुड़ा है, आपने उनके अन्तर को अनुभव नहीं किया है, तो फिर वह आपके मन का माँग भी बन जाता है। 

आप बुद्धि के प्रयोग से मन और शरीर की गतिविधियों पर अगर प्रर्याप्त गौर करेंगे तो आपको इनके बिच के अंतर की अनुभूति हो जाएगी। इसी प्रकार आप अपने अन्य पहलुओं जैसे मन, शरीर, भावनाएं, विचार इत्यादि को अपने अनुभव मे ला सकते हैं, और आत्मज्ञान की ओर बढ़ सकते हैं।

 हालाँकी आत्मज्ञान पाने के इस तरीके में तेज बुद्धि और जबरदस्त धीरज की आवश्यकता होगी। इस तरिके से आत्मज्ञान पाने में आपको 10 साल लगेंगे या 20 साल या अगले जन्म तक इंतजार करना पड़े ये आपकी बुद्धि पर निर्भर करेगा। मुख्य बात ये है कि आपको लंबे समय तक टिके रहना होगा सौ प्रतिशत एकाग्रता के साथ।

★भक्ति: 

भक्ति वह घोल है जिसमे इंसान का भौतिक पहलु पूरी तरह से घुल जाता है। कोई अपने आपको भक्त कहे, और कोई भक्ति का एहसास अपने भीतर करे, इन दोनो में बहुत फर्क है। भक्ति एक बार में नहीं आती। 

अगर आप किसी के साथ भावनात्मक रूप से जुड़े हैं, और इस भावना को चौबिस घंटे तराश रहे हैं, तो धीरे-धीरे एक ऐसा समय आएगा जब आपका 'स्वयं' का व्यक्तित्व पुरी तरह से खत्म हो जाएगा। तब आप भक्ति की अवस्था में पहुँच जाएंगे। 

इससे कोई फर्क नहीं पड़ता की वो भावना इन्सान के प्रति है या मूर्ति के प्रति। लेकिन यहाँ भी एक लंबे समय तक आपकी भावनाओं को एक ही दिशा में प्रवाहित होने की जरूरत है। 

भक्ति भी एक ऐसा आयाम है जो भौतिकता से परे है। अगर आप सच्ची भक्ति पा लेते हैं तब आप भौतिकता से परे पहुँच चुके हैं और आत्मज्ञान या स्व' का बोध करने में ज्यादा समय नहीं लगेगा।

★आत्मज्ञानी गुरु के सान्निध्य से:

आत्मा का ज्ञान कैसे प्राप्त होगा? - aatma ka gyaan kaise praapt hoga?
आत्मज्ञान की साधना

आत्मज्ञान पाने का ये रास्ता सबसे सरल है, लेकिन तब ही जब आपके गुरु वास्तव में आत्मज्ञानी हों। अक्सर ऐसे बहुत से लोग मिल जाएंगे जो बहुत ज्ञानी होते हैं, और खुद को आत्मज्ञानी बताते हैं, लेकिन वो नहीं होते।

तो अगर आपको आत्मज्ञानी गुरु मिल जाते हैं, तो फिर आपको बस एक ही काम करना है, स्वयं को उनके हवाले।

 उसके बाद वो खुद ही आपको 'स्व' का बोध करा देंगे जैसा कि रामकृष्ण परमहंस ने स्वामी विवेकानन्द को कराया था।

आत्मज्ञान पाने के लिए क्या करें?

इस देख लिए जाने को ही आत्मज्ञान कहते हैं। देखने का एकमात्र तरीका : ध्यान ही है। ध्यान कई प्रकार का होता है। इसे बोधपूर्ण जीवन, साक्षीभाव में रहने की आदत कह सकते हैं।

आत्मा का ज्ञान क्या है?

आत्मा का ज्ञान प्राप्त करने के लिये सर्वप्रथम आवश्यक है कि हम चेतना के सभी स्तरों की खोजबीन करें और उन पर प्रकाश डालें। इसमें चेतन मन, अवचेतन मन और अचेतन मन सम्मिलित हैं। चेतना के इन स्तरों की सन्तुष्टि पूरी तरह से प्रदर्शित और विशुद्ध होनी चाहिए।

दिव्य ज्ञान कैसे प्राप्त करें?

दिव्य ज्ञान के लिए गुरु सियाग सिद्ध योग सबसे बढ़िया है । ... .
कोई कर्म कांड नहीं।.
कुण्डलिनी जागरण तुरन्त होता है और सुरक्षित तरीके से आत्म विकास होता जाता है।.
स्व चालित है। ... .
रोज पन्द्रह मिनट सुबह शाम पर्याप्त है ध्यान के लिए।.
एक छोटा सा गुरु मंत्र है जो बिना होंठ जीभ हिलाए मानसिक रूप से हर समय कर सकते हैं हर स्थिति में।.

आत्म ज्ञान से किसकी निवृत्ति होती है?

आत्मज्ञान से किसकी निवृत्ति होती है? इसे सुनेंरोकेंसूर्योदय के समकाल में ही अन्धकार का नाश होता है वैसे ही ज्ञान के उदय के समकाल में ही अविद्या का नाश होता है। और वह भी किसी विचार अथवा प्रमाण परीक्षा को सहन नहीं करती यह सभी के अनुभव द्वारा सिद्ध ही है। इस प्रकार प्रमाण सहिष्णुता ही अज्ञान की ज्ञानविरोधिता है।