अब अली रही गुलाब में का अर्थ - ab alee rahee gulaab mein ka arth

जहाँ उपमान के बहाने उपमेय का वर्णन किया जाय, या कोई बात सीधे न कहकर किसी के सहारे की जाय, या जहाँ अप्रस्तुत कथन के माध्यम से प्रस्तुत का बोध हो, वहाँ अन्योक्ति अलंकार होता है। जैसे-

नहिं पराग नहिं मधुर मधु, नहिं विकास इहि काल। अली कली ही सौं बंध्यो, आगे कौन हवाल॥

स्पष्टीकरण - अप्रस्तुत अली ( भौंरा ) प्रस्तुत राजा एवं अप्रस्तुत कली के माध्यम से प्रस्तुत रानी का उल्लेख किया गया है , इसलिए यहाँ अन्योक्ति अलंकार है। इस पंक्ति में राजा जयसिंह और उसकी रानी का वर्णन भंवरा पराग और मधु के माध्यम से हुई है।

माली आवत देखकर कलियन करी पुकार । फूले-फूले चुन लिए , काल्हि हमारी बार ॥

स्पष्टीकरण - माली, कलियाँ और फूल अप्रस्तुत हैं , जिनके द्वारा प्रस्तुत काल, जीवन और मृत्यु का बोध कराया गया है। कबीर दास जीने जीवन मृत्यु के शाश्वत को माली और कलियों के माध्यम से व्यक्त किया है।

इहिं आस अटक्यो रहत, अली गुलाब के मूल । अइहैं फेरि बसन्त रितु , इन डारन के मूल ॥अन्योक्ति अलंकार के अन्य उदहारणजिन दिन देखे वे कुसुम गई सु बीती बहार। अब अली रही गुलाब में अपत कंटीली डार॥

( यहां नायिका अपनी सहेली के साथ अपनी प्रेम की अभिव्यक्ति भंवरा तथा गुलाब के फूल के माध्यम से कर रही है।)

करि फुलेल को आचमन , मीठो कहत सराहि ।ए गंधी मतिमंद तू अतर दिखावत काहि॥मरतु प्यास पिंजरा पइयौ , सुआ समय के फेर। आदर दै-दै बोलियतु बायसु बलि की बेर॥स्वारथ , सुकृत न श्रम वृथा देखि विहंग विचारि। बाज पराए पानि परि , तू पच्छीनु न मारि॥

प्रस्तुत पद में बाज पक्षी के माध्यम से अन्य हिंदू राजाओं को जागृत करने का प्रयत्न किया गया है। राजा जयसिंह और औरंगजेब पर संकेत है।

भुक्ता मृणालपटली भवता निपीता –न्यम्बूनि यत्र नलिनानि निषेवितानि।रे राजहंस वद तस्य सरोवरस्य,कृत्येन केन भवितासि कतोपकारः॥

( अर्थ : हे राजहंस! तुमने सरोवर में कमलनाल का भोजन किया, पानी पिया और कमल के फूलों का आस्वाद लिया। अब बोलो, कौनसा काम कर के सरोवर के इतने बड़े उपकार से मुक्त हो जाओगे।)

अन्योक्ति – किसी व्यक्ति पर किसी अन्य सज्जन ने बहुत उपकार किए हैं। और वह व्यक्ति उस सज्जन के उपकारों के नहीं चुका पा रहा है। उस व्यक्ति के लिए यह अन्योक्ति है।

सन्दर्भ[संपादित करें]

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • वक्रोक्ति अलंकार

अब अली रही गुलाब में कौन सा अलंकार है?

नहिं पराग नहिं मधुर मधु, नहिं विकास इहि काल। अली कली ही सौं बंध्यो, आगे कौन हवाल॥ स्पष्टीकरण - अप्रस्तुत अली ( भौंरा ) प्रस्तुत राजा एवं अप्रस्तुत कली के माध्यम से प्रस्तुत रानी का उल्लेख किया गया है , इसलिए यहाँ अन्योक्ति अलंकार है

बबली रही गुलाब में अपत कटीली डार में कौन सा अलंकार है?

अब अलि रही गुलाब में, अपत कटीली डार। उपर्युक्त पंक्तियों में अन्योक्ति अलंकार है। अन्योक्ति अलंकार के अंतर्गत अप्रस्तुत के माध्यम से प्रस्तुत को व्यंजित किया जाता है।

जिन दिन देखे हुए कुसुम गई सो बीति बहार किसकी रचना है?

बिहारी सतसई / भाग 66 / बिहारी

नहीं पराग नहीं मधुर मधु कौन सा अलंकार?

'नहिं पराग नहिं मधुर मधु, नही विकास इहि काल। अली कली ही सौं बिध्यों, आगे कौन हवाल।। प्रस्तुत पंक्तियों में अन्योक्ति अलंकार है। जहां प्रस्तुति उक्ति से कोई अप्रस्तुत अर्थ भी निकले और प्रस्तुत की अपेक्षा वह अप्रस्तुत अर्थ प्रधान हो वहां अन्योक्ति अलंकार होगा।