इसे सुनेंरोकें(क) तत्सम– ‘तत्सम’ का अर्थ होता है उसके समान यानि ज्यों का त्यों। हिन्दी भाषा में शब्दों का मूल स्रोत ‘संस्कृत’ भाषा है। हिन्दी के अधिकतर शब्द संस्कृत भाषा से लिये गये हैं। संस्कृत भाषा के ऐसे शब्द जो हिन्दी में भी अपने असली (संस्कृत के समान) रूप में प्रचलित हैं उसे ‘तत्सम’ शब्द कहते हैं। Show
पढ़ना: पेटीएम में अलाउंस वॉलेट का उपयोग कैसे करें? शब्द कितने प्रकार के होते? इसे सुनेंरोकेंउत्पत्ति के आधार पर शब्द के 4 भेद है – तत्सम, तद्भव, देशज, विदेशी। प्रयोग के आधार 8 भेद होते है – संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया, क्रिया – विशेषण, संबंध बोधक, समुच्चय बोधक तथा विस्मयादि बोधक। इन 8 प्रकार के शब्दों को विकार की दृष्टि से दो भागों में बंटा गया है – विकारी और अविकारी। अर्थ के आधार पर शब्द के भेद कितने होते हैं?इसे सुनेंरोकेंअर्थ के आधार पर शब्द के भेद ( arth ke aadhar par shabd ke kitne bhed hote hain ): पर्यायवाची या समानार्थी शब्द विलोम शब्द समरूप भिन्नार्थक या श्रुतिसम भिन्नार्थक शब्द भाषा के कितने भेद होते हैं?इसे सुनेंरोकेंभाषा के तीन भेद होते हैं- 1. कथित भाषा 2. लिखित भाषा 3. सांकेतिक भाषा . भाषा के कितने रूप होते हैं? इसे सुनेंरोकेंभाषा के मुख्यतः 3 रूप होते है मौखिक भाषा, लिखित भाषा और सांकेतिक भाषा । सामान्य तौर पर भाषा के केवल 2 रूप होते हैं मौखिक भाषा और लिखित भाषा। पढ़ना: कार्बोहाइड्रेट कौन से ऊर्जा देने वाले पोषक तत्व है? भाषा के कितने रूप होते हैं I दो II चार III तीन IV पाँच?इसे सुनेंरोकें1. मौखिक भाषा – आमने-सामने बैठे व्यक्ति परस्पर बातचीत करते हैं अथवा कोई व्यक्ति भाषण आदि द्वारा अपने विचार प्रकट करता है तो उसे भाषा का मौखिक रूप कहते हैं। 2. लिखित भाषा – जब व्यक्ति लिखकर अपने विचार प्रकट करता है, तब उसे भाषा का लिखित रूप कहते हैं। भाषा के दो रूप कौन कौन से हैं?इसे सुनेंरोकेंभाषा के दो रूप हैं लिखित और मौखिक। भाषा किसे कहते हैं और भाषा के कितने रूप हैं? इसे सुनेंरोकेंभाषा वह साधन है, जिसके द्वारा मनुष्य बोलकर, सुनकर, लिखकर या पढ़कर अपने मन के भावों या विचारों को दूसरो के समक्ष प्रकट करता है। अथवा जिस माध्यम से हम अपने भावों या विचारो को दूसरों को समझा सके और दूसरों के भावो को समझ सके उसे भाषा कहते है। जैसे-हिंदी, अंग्रेजी आदि। भाषा सार्थक ध्वनियों के मेल से बनती है। अर्थ के आधार पर शब्द के भेद (Arth ke aadhar par shabd ke bhed) – पर्यायवाची, विपरातार्थक शब्द, समरूप भिन्नार्थक या श्रुतिसम भिन्नार्थक, अनेक शब्दों के लिए एक शब्द, अनेकार्थी शब्द, एकार्थक प्रतीत होने वाले शब्द अर्थ के आधार पर शब्द के भेद:-
अर्थ के आधार पर शब्द के भेद – पर्यायवाची शब्दवे शब्द जो समान अर्थ प्रकट करते हैं, पर्यायवाची शब्द कहलाते हैं | इन्हें समानार्थी शब्द भी कहते हैं | भाषा की बात की जाए तो ध्वनियों, वर्णो (अक्षरों) के पश्चात 'शब्द' का अध्ययन किया जाता है। 'शब्द' वर्णो (अक्षरों) के योग से बनते हैं। भाषा में जिन शब्दों का प्रयोग किया जाता है उनके कई प्रकार हैं। उन्हीं के बारे में नीचे विवरण दिया गया है। सर्वप्रथम शब्दों को ध्वनि के आधार पर वर्गीकरण किया जाए तो इनके दो प्रकार हो सकते हैं। (क) ध्वन्यात्मक शब्द - जो शब्द स्पष्टतापूर्वक सुनाई न देते हों और न ही स्पष्ट रूप से समझ में ही आते हों, ऐसे शब्दों को 'ध्वन्यात्मक शब्द' कहते हैं। (ख) वर्णात्मक शब्द - ऐसे शब्द जो पृथक्-पृथक अक्षरों से पृथक-पृथक रूप से सुनाई देते हों, उन्हें 'वर्णात्मक शब्द' कहा जाता है। मानव जीवन में भाषा प्रयोग की दृष्टि से 'ध्वन्यात्मक शब्दों' की अपेक्षा 'वर्णात्मक शब्दों' का महत्त्व अधिक है। 'वर्णनात्मक शब्द' जोकि भिन्न-भिन्न वर्णों (अक्षरों) के योग होने पर स्पष्ट रूप से सुनाई देते हैं, इन वर्णनात्मक शब्दों को अर्थ के आधार पर दो भागों में बाँटा जा सकता है। (क) सार्थक शब्द - सार्थक शब्दों की श्रेणी में वे शब्द आते हैं जिन का उच्चारण करने पर कोई-न-कोई अर्थ स्पष्ट होता है। जैसे - नदी, पर्वत, व्यक्ति, घोड़ा, खेलना, धीरे-धीरे आदि सार्थक शब्द है क्योंकि ये अर्थ प्रदान कर रहे हैं। (ख) निरर्थक शब्द - ऐसे शब्द जिनका मुख से उच्चारण तो होता है किन्तु उनका कोई अर्थ स्पष्ट नहीं होता ऐसे शब्दों को निरर्थक शब्द की श्रेणी में रखा जाता है। जैसे - गोऋव, रदब, गिलका, तमन्भो आदि। ये ऐसे शब्द है जिन से कोई अर्थ ही स्पष्ट नहीं होता, अतः ऐसे शब्द निरर्थक शब्द की श्रेणी में आते हैं। सार्थक शब्दों का वर्गीकरणहिन्दी भाषा में शब्दों का वर्गीकरण कई प्रकार से किया जाता है, जिनमें चार आधार मुख्य हैं- (अ) अर्थ के आधार पर - हिन्दी भाषा में कई शब्द ऐसे हैं जो भिन्न-भिन्न स्थितियों में भिन्न-भिन्न अर्थ देते हैं। कभी उनका अर्थ सीधा, कभी लक्षण से निकलता है। इस अन्तर के कारण शब्दों के तीन भेद किये जाते हैं- (क) वाचक शब्द - जब किसी शब्द का उसी रूप में प्रयोग किया जाता है जिसके लिए वह बना है तो उसे 'वाचक शब्द' कहते हैं। शब्द की यह शक्ति जिससे उसके वाच्यार्थ का बोध होता हो तो शब्द की 'अभिधा शब्द शक्ति' कहलाती है। (अ) पर्यायवाची शब्द (अ) पर्यायवाची शब्द - ऐसे शब्द जिनके अर्थ में समानता हो, उन्हें पर्यायवाची शब्द कहते हैं। (आ) अनेकार्थी शब्द - एक से अधिक अर्थ वाले शब्द इस वर्ग में आते हैं जैसे- (इ) एकार्थी (एकार्थक) शब्द - एकार्थी शब्दों का अर्थ सदैव एक ही रहता है। प्रायः व्यक्तिवाचक संज्ञा के शब्द इस वर्ण में आते हैं। (ई) विलोम या विपरीतार्थ शब्द - विपरीत अर्थ बताने वाले शब्दों को विलोम शब्द कहा जाता है। (उ) अनेक शब्दों हेतु एक शब्द (समग्र शब्द) - ऐसा शब्द जो किसी शब्द समूह के बदले में केवल एक अकेला शब्द ही प्रयुक्त किया जाता है उसे ही अनेक शब्दों हेतु एक शब्द कहा जाता है। (ख) लाक्षणिक शब्द - जब किसी शब्द से अपने वाच्यार्थ का बोध न होकर उससे सम्बन्धित किसी गुण का बोध होता है तो उसे 'लाक्षणिक शब्द' कहते हैं। शब्द की वह शक्ति जिससे उसके लक्ष्यार्थ का बोध होता हो 'लक्षणा शब्द शक्ति' कहलाती है। (ग) व्यन्जक शब्द - जिन शब्दों का न वाचक अर्थ होता है और लाक्षणिक अपितु उनमें किसी व्यंग्यार्थ का बोध होता हो, 'व्यन्जक शब्द' कहलाते हैं। जैसे- (ब) व्युत्पत्ति (रचना/बनावट) के आधार पर - व्युत्पत्ति का अर्थ है बनावट या रचना अर्थात् जो शब्द किसी के मेल से बनाए गए हों, वे बनावटी या उत्पत्ति वाले शब्द कहलाते हैं। ऐसे शब्दों को निम्नलिखित तीन भागों में बाँटा गया है। (क) रूढ़ शब्द - वे शब्द जो प्रारम्भ से ही उत्पन्न हों तथा किसी दूसरे शब्दों की सहायता के बिना ही बनते हैं। इनके खण्ड नहीं हो सकते। (ख) यौगिक शब्द - ऐसे शब्द जो दूसरे शब्दों के मेल से बनते है तथा जिनके सार्थक खण्ड किए जा सकते हैं, यौगिक शब्द कहलाते हैं। (i) प्रत्यय के योग से - जैसे - सामाजिक (समाज + इक), आर्थिक (अर्थ + इक)। इनमें 'समाज' तथा 'अर्थ' रूढ़ शब्द हैं जिनमें 'इक' प्रत्यय जोड़ा गया है तथा 'सामाजिक' व 'आर्थिक' शब्दों का निर्माण हुआ है। (ii) उपसर्ग के योग से - जैसे अपव्यय (अपव्यय), सगुण (स + गुण)। इनमें 'व्यय' तथा 'गुण' रूढ़ शब्द है जिनमें 'अप' तथा 'स' उपसर्ग लगने से 'अपव्यय' तथा 'सगुण' यौगिक शब्द बने हैं। (iii) समास के द्वारा - जैसे- देशभक्ति (देश के लिए भक्ति), राजपुत्री (राजा की पुत्री) आदि। ये दोनों शब्द 'देश के लिए भक्ति' तथा 'राजा की पुत्री' से बने हैं। 'राजा' का संक्षिप्त रूप राज रह गया है तथा 'के लिए' तथा 'की' का लोप हो गया है। (iv) संधि के द्वारा - जैसे- दिनेश (दिन + ईश) यहाँ पर अई मिलकर 'ए' बना है। जिससे 'दिनेश' रूपी यौगिक शब्द बन पाया है। (ग) यौगरूढ़ शब्द - वे शब्द जिनमें यौगिक और रूढ़ दोनों ही शब्दों की शक्तियों का सम्मिश्रण हो जाए और जिसका अर्थ विशेष व्यक्ति या वस्तु के लिए हो संकुचित हो गया हो और व्यापक रूप से प्रयोग न होता हो। (स) उत्पत्ति के आधार पर - हिन्दी भाषा की शब्दावली के अनेक स्त्रोत हैं। कुछ शब्द अपनी संस्कृत मूल भाषा से तो कुछ अन्य स्वदेशीय भाषाओं से और कुछ विदेशी भाषाओं से लिए हैं। इस दृष्टि से शब्दों के छः भेद किए गए हैं। (क) तत्सम शब्द - संस्कृत के वे मूल शब्द जो हिन्दी में भी ज्यों के त्यों प्रयोग होते हैं। तत्सम शब्द कहलाते हैं। जैसे - माता, पर्वत, सूर्य, रात्रि, निद्रा, नित्य, आज्ञा, आहार, ईर्ष्या, ईश, ऊर्जा, औषधि, गंगा, गीत, उच्चारण, चतुर, जय आदि। (ख) तद्भव शब्द - हिन्दी में प्रयुक्त संस्कृत के ऐसे शब्द जिनमें कुछ जोड़कर या हटाकर थोड़े नवीन रूप मैं जब शब्दों का प्रयोग किया जाता है तो इन्हें तद्भव कहते है। जैसे- (ग) देशज शब्द - अपने ही देश की बोलचाल से आए शब्द देशज कहलाते है। जैसे - कुत्ता, रोटी, लोटा, बेटा, आटा, तिलौरी, दाढ़ी, ढीट, सोलंकी, साँठ, मुनियाँ, भड़ास, चसक, चमचम, टाली, डेढ, गिलौरी, काँगड़ा, कबड्डी, गलगल, पेठा, पपीता, भड़ास आदि। (घ) विदेशी शब्द - अन्य भाषाओं के जो शब्द हिन्दी में प्रयुक्त होने लगते है वे 'विदेशी' या 'विदेशज' शब्द कहलाते हैं। जैसे - स्टेशन, डॉक्टर, कानून, कूपन आदि। ऐसे ही अनेक 'विदेशी शब्द' जो अन्य भाषाओं से लिए गए हैं। (अ) विदेशी भाषाओं के शब्द - विदेशी भाषाओं के अंतर्गत निम्नलिखित विदेशी भाषाओं के शब्द हिन्दी भाषा में प्रयुक्त किए जाते हैं। (ii) अरबी भाषा के शब्द - अक्ल, अजनबी, अजीब, इजाजत, इज्जत, कत्ल, गरीब, अमीर, औरत, मालिक, फकीर, कातिल, गजल, गदर, तबीयत, मरहम, मसीहा, महान, जिद, जिला, गैर, जनून, फरार, फर्ज आदि। (iii) फारसी शब्द - किताब, गुलाब, मदरसा, शादी, जल्दी, आदमी, अंजीर, अंगूर, अंदेशा, अनार, चम्मच, आवारा, ईमानदार, आसमान, उम्मीद, किशमिश, निशान, जोश, नापाक, निगाह, विज्ञान, बच्चा, बदन, बदनाम, प्याला, फरमाइश आदि। (iv) पुर्तगाली शब्द - आया (दाई), आलफिनेटर, (आलपीन), जेंमिला (जंगला), अनानास, पादरी, आलू, तौलिया, तम्बाकू, मालूल आदि। (v) तुर्की शब्द - कालीन, काबू, लाश, तोप, तमगा, उजबक, उर्दू, एलची, कनात, कलगी, कुरता, कुमक, कोरमा, चकमक, चोगा, जुर्रा, बाबा, नाशपाती, बाबा, बुलाक, सौगात, बेगम आदि। (ङ) द्विज (वर्ण संकर) शब्द - दो भाषाओं से बने शब्द 'द्विज' या 'वर्ण संकर' शब्द कहलाते हैं। इन शब्दों के अंतर्गत दो अलग-अलग भाषाओं से मिले-जुले शब्द इस प्रकार हैं। (i) अरबी और फारसी से बने शब्द - आदमकद अलमस्त, किलेदार, गमगीन, खब्बसीर, जिल्दसाजी, तरफदार, नुकसानदेह, गैरजिम्मेदार, फिक्रमंद, बद्दुआ, गुस्लखाना, गलतफहमी, कलईदार, नेकनीयत आदि। (iii) हिन्दी और अरबी से बने शब्द - इमामबाड़ा, कसरती, कानूनिया, जूताखोर, अमलपटूटा, पानीदार, फलदार, बेधड़क, मसखरापन, नोकझोंक आदि। (च) अनुकरणात्मक - ऐसे शब्द जो भौतिक जगत की वस्तुओं के द्वारा की जाने वाली ध्वनियों के आधार पर अनुकरण करते हुए भाषा में इनका प्रयोग किया जाता है तो ऐसे शब्दों को अनुकरणात्मक शब्द कहा जाता है। (द) रूप परिवर्तन या व्याकरणिक अर्थ है और प्रयोग या वाक्य में प्रयोग के आधार पर - शब्दों के स्वरूप में परिवर्तन यह परिवर्तन के आधार पर शब्दों को दो भागों में बाँटा जा सकता है। (क) विकारी शब्द - ऐसे शब्द जो जो विभिन्न कारणों से अपने रूप को परिवर्तित कर लेते हैं या ऐसे शब्दों में विकार पैदा हो जाता है तो इन्हें रूप परिवर्तन करने वाले या विकारी शब्द कहा जाता है। अर्थात विकारी शब्द वे हैं जो लिंङ्ग, वचन, कारक, पुरुष, काल आदि के कारण अपना रूप बदल लेते हैं। विकारी शब्दों के चार प्रकार हैं। (१) संज्ञा - किसी व्यक्ति, वस्तु, प्राणी अथवा भाव के नाम को संज्ञा कहते हैं। अ. व्यक्तिवाचक संज्ञा - किसी विशेष प्राणी, स्थान या वस्तु के नाम को व्यक्तिवाचक संज्ञा कहते हैं। आ. जातिवाचक संज्ञा - जो शब्द किसी साधारण जाति का बोध करवाते हों। जैसे- मानव, पशु, नगर, पुस्तक आदि। (i) समुदाय वाचक (समूह वाचक) - किसी भी समूह को प्रकरण करने वाले शब्द समुदायकवाचक संज्ञा कहलाते हैं। इ. भाववाचक संज्ञा - वे नाम जो किसी गुण, दोष, स्वभाव या दशा आदि भावों को प्रकट करें, उन्हें भाववाचक संज्ञा कहते हैं। लिंग, वचन एवं कारक के कारण रूप परिवर्तन - हिन्दी में संज्ञा, लिंग, वचन एवं कारक द्वारा अपना रूप परिवर्तन करती है। अतः ये विकारी शब्दों में आती है। कारक के कारण विकार - वाक्य में अन्य शब्दों से सम्बन्ध पता लगता है। (२) सर्वनाम - संज्ञा के स्थान पर प्रयुक्त होने वाले शब्द सर्वनाम कहलाते हैं। सर्वनाम के सात भेद होते हैं। टीप - संज्ञा की तरह सर्वनामों का रूपान्तर पुरुष, वाचक और कारक की दृष्टि से है। इसमें लिंग भेद नहीं होता है। (३) विशेषण - संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बताने वाले शब्द विशेषण कहलाते हैं। विशेषण के भी चार प्रकार हैं- 1. गुणवाचक विशेषण - संज्ञा के गुण रंग, दशा, काल, स्थान, आकार का ज्ञान कराये। (आ) संख्यावाचक विशेषण - संज्ञा की संख्या सम्बन्धी विशेषता बताने शब्द। (इ) परिमाणवाचक विशेषण - नाप-तौल की विशेषता बताने वाले शब्द। (ई) सार्वनामिक विशेषण - जो शब्द संज्ञा से पहले प्रयुक्त होकर विशेषण का काम करते हों। (४) क्रिया - जिस शब्द में किसी काम का करना या होना पाया जाए उसे क्रिया कहते हैं। क्रिया के दो भेद हैं। (अ) सकर्मक क्रिया - जहाँ क्रिया का फल कर्म पर पड़े वहाँ सकर्मक क्रिया होती है। (आ) अकर्मक क्रिया - जहाँ क्रिया का फल कर्ता पर पड़े। (ख) अविकारी शब्द - ऐसे शब्द जिनका स्वरूप किसी भी स्थिति में नहीं बदलता वह ज्यों के त्यों प्रयुक्त होते हैं, ऐसे शब्दों को अविकारी शब्द कहा जाता है। अविकारी शब्दों के भी चार प्रकार हैं। (१) क्रिया विशेषण - क्रिया की विशेषता बताने वाले अविकारी शब्द क्रिया विशेष कहलाते हैं। (२) समुच्चय बोधक अव्यय - दो शब्दों, वाक्यांशों अथवा वाक्यों को मिलाने वाले अविकारी शब्द समुच्चय बोधक शब्द कहलाते हैं। (३) सम्बन्धबोधक - वे अविकारी शब्द हैं, जो संज्ञा या सर्वनाम शब्दों के साथ आकर उनका सम्बन्ध वाक्य के अन्य शब्दों के साथ बताते हैं। (४) विस्मयादिबोधक अव्यय - हर्ष, शोक, आश्चर्य, घृणा, क्रोध आदि मनोभावों या संवेगों को प्रकट करने वाले अविकारी शब्द विस्मयादिबोधक शब्द कहलाते हैं। हिन्दी भाषा के इतिहास से संबंधित इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए।। हिन्दी भाषा के इतिहास से संबंधित इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए।। ध्वनि एवं वर्णमाला से संबंधित इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए।। ध्वनि, वर्णमाला एवं भाषा से संबंधित इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए।। ध्वनि, वर्णमाला एवं भाषा से संबंधित इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए।। I Hope the above information will be useful and important. other resources Click for related information Watch video for related information
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