अस्तेय का अर्थ क्या होता है? - astey ka arth kya hota hai?

हिन्दी शब्दकोश से अस्तेय शब्द का अर्थ तथा उदाहरण पर्यायवाची एवम् विलोम शब्दों के साथ।

अस्तेय   संज्ञा

१. संज्ञा / निर्जीव / अमूर्त / कार्य

अर्थ : स्तेय या चोरी न करने की क्रिया।

उदाहरण : चोर की अस्तेय की चाह कभी पूरी नहीं हुई।

२. संज्ञा / निर्जीव / अमूर्त / कार्य / शारीरिक कार्य

अर्थ : योग के आठ अंगों में नियम नामक तीसरे अंग के अंतर्गत चोरी न करने का एक व्रत।

उदाहरण : उन्होंने अस्तेय का पालन जीवन भर किया।

चौपाल

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अस्तेय (astey) ka meaning, vilom shabd, paryayvachi aur samanarthi shabd in English. अस्तेय (astey) ka matlab kya hota hai? अस्तेय का मतलब क्या होता है?

अस्तेय शब्द संस्कृत के शब्द ‘स्तेय ‘ के विपरीत अर्थ वाला है | ‘स्तेय’ शब्द का अर्थ ‘चोरी करना’ है | ठीक इसके विपरीत “अस्तेय ” का अर्थ किसी भी रूप में किसी भी प्रकार की चोरी नहीं करने से है | अस्तेय का अर्थ दुसरे का धन या सम्पति का अपने लाभ हेतु चोरी करना या धोखा से प्राप्त नहीं करना है | पतंजलि के योग -सूत्र अंतर्गत अस्तेय एक महत्वपूर्ण यम है | अस्तेय का पालन केवल भौतिक रूप में चोरी नही करने तक सीमित नही है | बल्कि वाणी और विचारों के स्तर पर भी इसका पालन करना होता है | इसका तात्पर्य है कि वाणी में लेखनी में या विचारों में भी चोरी नहीं करनी चाहिए |

अस्तेय की चर्चा सभी सूत्रों, उपनिषद, वेद, महाभारत एवं गीता में वर्णन और उल्लेख मिलता है | पुराणों और सूत्रों में यह संकल्पना है कि यदि चोरी का आचरण किया जाता है या उसका विचार आता है तो यह भी लोभ, मोह, क्रोध, और माया के दिग्भ्र्म के कारण जन्म लेता है | लोभ, मोह, और क्रोध असम्यक कर्म माने जाते है तथा असम्यक कर्म अपने साथ बुरा प्रभाव लेकर आते है | माया का भ्रम मनुष्य को सांसारिक सुखो के लिए आकर्षक पैदा करता है | फिर मनुष्य को किसी भी हद तक जाने के लिए प्रवृत करता है | यहाँ तक कि मनुष्य चोरी जैसा कृत्य भी कर जाता है | विश्व के सभी धर्मों में “अस्तेय ” का पालन मूल शिक्षा के रूप में है | हिन्दू धर्म में अस्तेय का पालन एक प्रमुख नियम तो है ही बौध और जैन धर्म में अस्तेय का पालन भिक्षुओं के लिए कठोर रूप से किया जाना होता है | इसाई धर्म के तहत बाईबल के आठवें कमांडमेंट में भी ” चोरी नहीं करनी चाहिए ” की शिक्षा दी गई है|

भगवान बुध ने तृष्णा को दु:खो एवं दुःख समुदाय का मूल कारण माना है | यह भी माना था कि तृष्णा को दूर कर दु:खो से मुक्ति संभव है | तृष्णा जैसे दुःख का कारण है वैसे ही चोरी करना, धोखा देना या धोखे से किसी चीज की प्राप्ति कर लेने का कारण भी तृष्णा या इच्छा ही है | अस्तेय अर्थात चोरी नहीं करना केवल किसी भौतिक वस्तु की चोरी तक सीमित नहीं है | दुसरो का समय चुराना, दुसरे के घर, वस्त्र, तरक्की से ईर्ष्या करना – अस्तेय के पालन के विरुद्ध है |


किसी के श्रम की चोरी करना भी अस्तेय के विरुद्ध है | आप किसी से काम कराते है अर्थात बेगारी कराते है लेकिन बदले में उसे कोई पारिश्रमिक नहीं देते है तो यह भी अस्तेय के नियम के विरुध्द है | संसाधन की चोरी करना भी अस्तेय के सिद्धांत के विरुद्ध है | प्रकृति द्वारा प्रदत्त संसाधनो पर सभी का समान हक़ है | संसाधन यथा – जल, वायु, खनिज, वन इत्यादि प्रकृति की अनमोल देन है जो मनुष्य को प्राप्त है | इन संसाधनों पर हक़ न केवल वर्तमान पीढ़ी का बल्कि आने वाले पीढ़ी का भी है | लेकिन हम सभी इन संसाधनों का अंधाधुन दोहन करते जा रहे है | यह भी अस्तेय के नियम के विरुद्ध है | क्योकि हम भी उनके संसाधनों को चुरा रहे है | हम जाने – अनजाने में पानी का अपव्यय, उर्जा का, खाद्य पदार्थो को खूब बर्बाद कर रहे है | हम इन्हें बचाने या संरक्षित करने का भी प्रयास नहीं करते | हममें से अधिकांश तो समझ भी नहीं पाते कि ऐसा करने में कोई बुराई या अस्तेय के नियम का भी उल्लंघन होता है |

सबसे बड़ा सवाल है कि आखिर अस्तेय के नियम का उल्लंघन बढ़ता क्यों जा रहा है | सर्वप्रथम कारण तो भौतिकवादी सुख के प्रति समाज में बढ़ता आकर्षण है | समाज में अध्यात्मिकता या सरलता का महत्व ख़त्म सा हो रहा है | समाज में नैतिक मूल्यों का पतन हुआ है | साध्य की प्राप्ति के लिए साधन की शुद्धता का ध्यान नहीं रहा है | साध्य की प्राप्ति हेतु वर्त्तमान में किसी भी साधन का प्रयोग होने लगा है | मनुष्य के पुरुषार्थ में कमी के कारण लोग चोरी या ‘शॉर्ट -कट मेथड’ अपनाने लगे है | अब सवाल है की सामान्य जीवन में अस्तेय के नियम का पालन कैसा किया जाय | इसमें सबसे प्रमुख है ‘मद्धमपदिपदा ’ का नियम | इसे ही ‘मध्यम मार्ग’ भी कहा जाता है | भौतिकवाद एवं अध्यात्म के मध्य रहने से जीवन में समतुल्य एवं सामंजस्य बना रहेगा | दूसरा है पुरुषार्थ का नियम | पुरुषार्थ के चार प्रमुख अंग है – धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष | शास्त्रों में ही परिश्रम एवं मेहनत से धन कमाने पर जोर दिया गया है | यह भी समझाना है की ख़ुशी बाहर की दुनिया या किसी वस्तु में नहीं बल्कि हमारे स्वयं के भीतर है | साथ ही हमें जीवन में उदार होना चाहिए तथा जहां तक संभव हो सामान्य जीवन में जो भी पार लगे निर्धन एवं असहायों को कुछ दान भी देना चाहिए | महर्षि पतंजलि ने योगसूत्र में लिखा –" अस्तेय प्रतिष्ठयम सर्वरा रत्नु प्रस्थानम " अर्थात जब अस्तेय प्रतिष्ठित होता है , तब सभी रत्न या धन उस व्यक्ति की ओर प्रस्थान करते है |

अस्तेय का सही अर्थ क्या है?

अस्तेय का अर्थ है चोरी न करना।

अस्तेय और अपरिग्रह का क्या संबंध है?

अर्थात् अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह ये पाँच यम हैं। 'अहिंसा' का मतलब है- किसी भी समय किसी भी प्राणी या जीव की हिंसा ( हत्या या कष्ट) नहीं करनी चाहिए। न केवल प्राणियों Page 2 की हत्या का त्याग करना चाहिए बल्कि प्राणियों के प्रति किसी भी प्रकार की क्रूरता, कठोरता और निर्दयता का त्याग कर देना चाहिए।

असते का मतलब क्या होता है?

वर्ष 2016-17 में असमीया तथा कोंकणी भाषा के माध्यम से बैंकिंग हिंदी सिखाने हेतु पुस्तकें तैयार की गईं।

अस्तेय का क्या अर्थ है क चोरी न करना ख चोरी करना ग सत्य घ हिंसा?

कहानियों को बनाकर यम और नियम को अपने शब्दों में संक्षेप में प्रस्तुत करने में । मुक्त बेसिक शिक्षा - भारतीय ज्ञान परम्परा कक्षा टिप्पणी Page 2 कक्षा टिप्पणी यम को पाँच मुख्य विशेषताओं में विभाजित किया गया हैय वे हैं – अहिंसा, सत्य, अस्तेय, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य ।

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