अंतरिम भरण पोषण क्या है एवं इसके उद्देश्य क्या है - antarim bharan poshan kya hai evan isake uddeshy kya hai

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा है कि सीआरपीसी के अध्याय IX के तहत अंतरिम भरण-पोषण देना प्राथमिक उपचार देने जैसा है, जो पत्नी और बच्चों को दर-दर भटकने/खानाबदोशी और उसके परिणामों से बचाता है।

न्यायमूर्ति अनूप चितकारा ने कहा कि,

''अंतरिम भरण पोषण देना प्राथमिक उपचार देने के समान है। दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 का अध्याय IX, आवेदक को भुखमरी से बचाने के लिए संक्षिप्त प्रक्रिया के तहत एक त्वरित उपाय प्रदान करता है और एक परित्यक्त पत्नी या बच्चों को तत्काल कठिनाइयों का सामना करने के लिए भरण-पोषण के माध्यम से उचित राशि प्रदान करता है।''

कोर्ट ने कहा कि, ''विधायिका द्वारा अधिनियमित सामाजिक न्याय के उपायों की नींव भारत के संविधान के अनुच्छेद 15 (3) के तहत है। यह पत्नियों और बच्चों को सुरक्षा प्रदान करने, उन्हें दर-दर भटकने/खानाबदोशी और उसके परिणामों से बचाने के लिए एक जीवंत लोकतंत्र में कल्याणकारी राज्य की अवधारणा को पूरा करता है।''

हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी एक पति की तरफ से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए की है। जिसने एक फैमिली कोर्ट के आदेश को रद्द करने की मांग की थी,चूंकि इस आदेश को सत्र न्यायालय ने भी बरकरार रखा था। फैमिली कोर्ट ने याचिकाकर्ता/पति को निर्देश दिया था कि वह अपनी पत्नी और बच्चों को दो हजार रुपये मासिक अंतरिम भरण-पोषण के तौर पर प्रदान करे।

पत्नी का मामला यह है कि शादी के समय वह विधवा थी और याचिकाकर्ता के समझाने पर वह उससे शादी करने के लिए तैयार हो गई। दूसरी ओर, याचिकाकर्ता पति ने तर्क दिया कि महिला वह लाभ प्राप्त कर रही है, जो विधवाओं को दिया जाता है और उन दोनों के बीच विवाह कभी नहीं हुआ।

भरण-पोषण का आदेश तब दिया गया, जब तीन बच्चों की मां/ पत्नी ने सीआरपीसी की धारा 125 के तहत एक आवेदन दायर किया और आरोप लगाया गया कि याचिकाकर्ता ने अब उसको वित्तीय सहायता प्रदान करना बंद कर दिया है और सारा पैसा शराब पर खर्च कर देता है।

इस विषय पर प्रावधान और प्रासंगिक निर्णयों को ध्यान में रखते हुए, न्यायालय ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 125 के प्रावधान मजिस्ट्रेट को यह अधिकार देते हैं कि वह अंतरिम भरण-पोषण के लिए मासिक भत्ता देने और लंबित रहने के दौरान ऐसी कार्यवाही के खर्चों का भुगतान करने का आदेश दे सके।

हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि,

'' उपरोक्त के अनुसार, न्यायालयों के लिए यह उचित होगा कि जिस व्यक्ति के खिलाफ सीआरपीसी की धारा 125 के तहत आवेदन किया जाता है, उसे यह निर्देश दिया जाए कि वह आवेदन के अंतिम निपटान तक आवेदक को भरण-पोषण के माध्यम से कुछ उचित राशि का भुगतान करे।''

यह भी कहा गया कि हालांकि याचिकाकर्ता द्वारा शादी को चुनौती दी गई है और कहा गया है कि शादी कभी हुई ही नहीं थी,फिर भी, यह सबूत के अधीन है और तत्काल याचिका में, कोर्ट का संबंध अंतरिम भरण-पोषण से है और इससे ज्यादा कुछ नहीं।

इसलिए अदालत का विचार है कि प्रथम दृष्टया यह मामला बनता है कि पत्नी अलग रह रही है और वह आर्थिक रूप से सक्षम नहीं है।

हालांकि, कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया है कि यह आदेश किसी भी पक्ष को कानून के अनुसार सीआरपीसी की धारा 127 के तहत कानूनी उपायों की तलाश करने के लिए प्रतिबंधित नहीं करेगा।

इसी के तहत याचिका खारिज कर दी गई।

केस का शीर्षक- सुभाष चंद बनाम कृष्णा देवी

आदेश/निर्णय डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भरण-पोषण के दावे पर मजिस्ट्रेट द्वारा पत्नी को अंतरिम राहत देने के आदेश पर हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया है और कहा है कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 में मजिस्ट्रेट को अपना भरण-पोषण करने में अक्षम माता-पिता, पत्नी व बच्चों को प्रतिमाह अंतरिम भरण-पोषण देने का आदेश देने का अधिकार है। यह आदेश अर्जी पर नोटिस के 60 दिन के भीतर दिया जाएगा।

कोर्ट ने कहा कि यह उपबंध 24 सितंबर 2001 से इस लिए लागू किया गया है ताकि भरण-पोषण पाने के लिए कोर्ट के फैसले का लंबे समय तक इंतजार न करना पड़े। अपना भरण-पोषण कर पाने में असमर्थ पत्नी या माता-पिता आदि आश्रितों को तत्काल राहत दी जा सके। ताकि उन्हें आर्थिक कठिनाइयों से न गुजरना पड़े। कोर्ट ने अंतरिम भरण-पोषण के आदेश की वैधता के खिलाफ याचिका की पोषणीयता पर आपत्ति पर विचार करते हुए दिया है।

यह आदेश न्यायमूर्ति डा वाईके श्रीवास्तव ने मिथिलेश मौर्या की याचिका पर दिया है। याची की पत्नी द्रुमलता मौर्या ने भरण-पोषण का दावा आजमगढ़ में दाखिल किया। परिवार न्यायालय ने अंतरिम भरण-पोषण देने का आदेश दिया। जिसे यह कहते हुए चुनौती दी गई कि अंतरिम भरण-पोषण आदेश नहीं दिया जा सकता। कोर्ट ने परिवार न्यायालय के आदेश को वैध करार देते हुए याचिका खारिज कर दी है।

अंतरिम भरण पोषण का आदेश देना वैध : हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भरण पोषण के दावे पर मजिस्ट्रेट की ओर से पत्नी को अंतरिम राहत देने के आदेश पर हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया...

Newswrapहिन्दुस्तान टीम,प्रयागराजFri, 12 Feb 2021 09:50 PM

प्रयागराज। विधि संवाददाता

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भरण पोषण के दावे पर मजिस्ट्रेट की ओर से पत्नी को अंतरिम राहत देने के आदेश पर हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया है। अदालत ने कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 में मजिस्ट्रेट को भरण पोषण करने में अक्षम माता-पिता, पत्नी व बच्चों को प्रतिमाह अंतरिम भरण पोषण देने का आदेश देने का अधिकार है। यह आदेश अर्जी पर नोटिस के 60 दिन के भीतर आदेश दिया जाएगा।

कोर्ट ने कहा कि यह प्रावधान 24 सितंबर 2001 से इसलिए लागू किया गया है ताकि भरण पोषण पाने के लिए कोर्ट के फैसले का लंबे समय तक इंतजार न करना पड़े। अपना भरण पोषण कर पाने में असमर्थ पत्नी आदि को तत्काल राहत दी जा सके ताकि उन्हें आर्थिक कठिनाइयों से न गुजरना पड़े। कोर्ट ने अंतरिम भरण पोषण के आदेश की वैधता के खिलाफ याचिका की पोषणीयता पर आपत्ति पर विचार करते हुए दिया है।

यह आदेश न्यायमूर्ति डॉ वाईके श्रीवास्तव ने मिथिलेश मौर्या की याचिका पर दिया है। याची की पत्नी द्रुमलता मौर्या ने आजमगढ़ में भरण पोषण का दावा दाखिल किया।उस पर परिवार न्यायालय ने अंतरिम भरण पोषण देने का आदेश दिया। इस आदेश को यह कहते हुए चुनौती दी गयी कि अंतरिम भरण पोषण का आदेश नहीं दिया जा सकता। कोर्ट ने परिवार न्यायालय के आदेश को वैध करार देते हुए याचिका खारिज कर दी है।

अंतरिम भरण पोषण क्या है एवं इसके उद्देश्य क्या है - antarim bharan poshan kya hai evan isake uddeshy kya hai