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ल्यूकेमिया शरीर के रक्त बनाने वाले ऊतकों में होने वाला कैंसर है, जिसमें बोनमेरो और लिम्फेटिक सिस्टम शामिल होते हैं। इसमें असमान्य तरह से ब्लड सेल्स बनने लगते हैं। जो शरीर के लिए जरूरी काम करने वाले अच्छे ब्लड सेल्स को काम नहीं करने देते हैं। इससे शरीर की संक्रमण और बीमारी से लड़ने की शक्ति कम हो जाती है। ल्यूकेमिया कई तरह के होते हैं। जिसमें से कुछ रूप बच्चों में अधिक आम हैं तो कुछ रूप ज्यादातर वयस्कों में होते हैं। बच्चों में ज्यादातर एक्यूट लिंफोब्लास्टिक ल्यूकेमिया ब्लड कैंसर (Acute Lymphoblastic Leukemia) होता है। क्यों होती है ये जानलेवा बीमारीअब तक
ल्यूकेमिया होने के किसी भी सटीक कारणों को नहीं समझा जा सका हैं। लेकिन कुछ विशेषज्ञ ऐसा मानते हैं कि यह बीमारी आनुवंशिक और पर्यावरणीय कारकों के तालमेल से विकसित होती है। बच्चों में ऐसे दिखाई पड़ता है 'ल्यूकेमिया'एनीमिया- ये रोग शरीर में रेड ब्लड सेल्स की कमी के कारण होता है। इससे व्यक्ति को थकान,कमज़ोरी, चक्कर आना, सांस फूलना, सिर दर्द, त्वचा का पीला पड़ना, असामान्य रूप से ठंड लगने जैसे अनुभव होते
हैं। संक्रमण- ल्यूकेमिया से पीड़ित बच्चों में व्हाइट ब्लड सेल्स की मात्रा असमान्य रूप से बढ़ती है लेकिन प्रभावकारी ढ़ंग से काम करना बंद कर देती हैं। जिससे शरीर किसी भी तरह के संक्रमण से लड़ नहीं पाता है। ब्लीडिंग- बच्चों के नाक या मसूड़ों से ब्लीडिंग होना ब्लड कैंसर के लक्षण हो सकते हैं। ऐसा पीड़ित बच्चों में प्लेटलेट्स की मात्रा कम होने से होता है। बच्चे के वजन के साथ इन लक्षण पर भी रखें नजरज्वाइंट पेन- बच्चों में लगातार ज्वाइंज पेन या हड्डियों में दर्द का होना ब्लड कैंसर का संकेत हो सकता है। ऐसा ज्वाइंट में या हड्डियों के पास असमान्य सेल्स बनने के वजह से होता है। सूजन- ल्यूकेमिया से पीड़ित बच्चों में सूजन की समस्या होती है। ये सूजन चेहरे, हाथ-पैर में दिखने के अलावा गर्दन, अंडरआर्म्स, और कॉलरबोन पर गांठ के रूप में दिखाई पड़ता है। वजन कम होना- ल्यूकेमिया के सेल्स लीवर, किडनी और में सूजन पैदा कर देते हैं जिससे भूख न लगन, बेचैनी होना, वजन घटाने जैसे बदलाव दिखने लगते हैं। सर दर्द, खांसी के साथ है ये लक्षण तो हो जाइए सावधानखांसी और सांस लेने में तकलीफ- ल्यूकेमिया के सेल्स छाती के विभिन्न भागों प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं जिसके परिणामस्वरूप मरीज को सांस में तकलीफ, खांसी की समस्या होती है।, सर में दर्द- यदि ल्यूकेमिया के सेल्स दिमाग या स्पाइनल कोर्ड को प्रभावित करते हैं तो पीड़ित बच्चे को सर दर्द, उल्टी, चक्कर आना, कमजोरी, धुंधला दिखना जैसी शिकायत होती है। स्किन रैशेज- बच्चों में ल्यूकेमिया के कुछ मामलों में चेहरे पर छोटे लाल रंग के कई छब्बे दिखने को मिले हैं। कैसे करें ब्लड कैंसर से अपने बच्चे का बचावकुछ
अन्य कैंसर के विपरीत, आहार और व्यायाम जैसे जीवनशैली कारक रक्त कैंसर के विकास के आपके जोखिम पर बहुत कम प्रभाव डालते हैं। हालांकि, एक स्वस्थ जीवन शैली आपके अन्य प्रकार के कैंसर और अन्य बीमारियों के जोखिम को
काफी कम कर सकती है। साथ ही नियमित चेकअप भी इसके जोखिम को कम करने में फायदेमंद होता है। डिस्क्लेमर: यह लेख केवल सामान्य जानकारी के लिए है। यह किसी भी तरह से किसी दवा या इलाज का विकल्प नहीं हो सकता। ज्यादा जानकारी के लिए हमेशा अपने डॉक्टर से संपर्क करें। Navbharat Times News App: देश-दुनिया की खबरें, आपके शहर का हाल, एजुकेशन और बिज़नेस अपडेट्स, फिल्म और खेल की दुनिया की हलचल, वायरल न्यूज़ और धर्म-कर्म... पाएँ हिंदी की ताज़ा खबरें डाउनलोड करें NBT ऐप लेटेस्ट न्यूज़ से अपडेट रहने के लिए NBT फेसबुकपेज लाइक करें बच्चों में ब्लड कैंसर कैसे होता है?अमेरिका में हर साल लगभग 3500- 4000 बच्चों को खून का कैंसर (ल्यूकेमिया) हो जाता है, और भारत में हर साल लगभग 12000 बच्चों में यह बीमारी पाया जाता है। पाए जाते हैं। खून का कैंसर (ल्यूकेमिया), बोन मैरो (हड्डी के अंदर जहां खून बनता है) के ठीक से काम न करने पर होता है।
ब्लड कैंसर होने का मुख्य कारण क्या है?कौन सी रक्त कोशिकाओं का उत्पादन प्रभावित होता है और कैंसर कोशिकाओं का तेजी से गुणा हो रहा है, इनके आधार पर लक्षण उत्पन्न होते हैं। रक्त के थक्के बनने में, प्लेटलेट्स एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। मज्जे के प्रतिस्थापन के कारण, प्लेटलेट उत्पादन प्रभावित होता है। कुछ में, प्लेटलेट के कार्य भी बदल जाते हैं।
क्या खाने से ब्लड कैंसर होता है?4 प्रोसेस्ड मीट : प्रोसेस्ड मीट खाने से कैंसर होता है। मीट को सुरक्षित रखने के लिए जो केमिकल प्रयुक्त होते हैं, उसमें सोडियम का इस्तेमाल होता है। सोडियम से सोडियम नाइट्रेट बनने की वजह से कैंसर फैलता है।
क्या ब्लड कैंसर हमेशा के लिए ठीक हो सकता है?ऐसे रोगियों को अब घबराने की जरूरत नहीं है। बिना बायोप्सी कराए अब रोगी के ब्लड के सैंपल से न केवल कैंसर की स्थिति का पता चल सकता है, बल्कि यह भी पता कर सकते हैं कि बीमारी किस स्टेज तक पहुंच चुकी है। इसके लिए रोगी के ब्लड में कैंसर के डीएनए को आईसोलेट करके उसकी जांच की जाती है।
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