बिहार में प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा की क्या स्थिति है? - bihaar mein praarambhik baalyaavastha dekhabhaal aur shiksha kee kya sthiti hai?

बिहार में शिक्षा व्यवस्था की स्थिति चिंताजनक: कैसे बदलेगी सीतामढ़ी में प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था की तस्वीर

मेक इन इंडिया, आत्मनिर्भर भारत और डिजिटल इंडिया के दौर में, सरकार शिक्षा क्षेत्र को लगातार अनदेखा कर रही है, जो हर मायनों में इन सभी योजनाओं की बुनियाद है। आज के समय में जिस तरह की शिक्षा व्यवस्था बिहार में है, वह किसी हद तक संतोषजनक नहीं हैं। किसी भी राज्य के विकास में शिक्षा का बहुत बड़ा योगदान होता है। हाल के दशकों में देश के आर्थिक, सामाजिक क्षेत्रों में कई नीतिगत सुधार किये गए है, जिसके फलस्वरुप देश में तेजी से विकास दर बढ़ी है। इन विकास योजनाओं ने अन्य क्षेत्रों के साथ साथ बिहार में शिक्षा व्यवस्था में भी गति प्रदान की है, लेकिन इतने विकास के बाद भी हमारे शिक्षा व्यवस्था की आधारभूत समस्याए दूर नहीं की जा सकी है। सरकार को वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में जरुरी बदलाव लाने की आवश्यकता है, इन बदलावों के तहत सरकार को विशेष रूप से प्रारम्भिक शिक्षा की ओर ध्यान देने की आवश्यकता है ताकि प्रारंभिक शिक्षा से ही बच्चों की नींव को मज़बूत बनाया जा सके।

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प्रारंभिक शिक्षा की नींव मज़बूत करने से ही बच्चे इंजीनियर, मेडिकल, आईएएस, आईपीएस, वैज्ञानिक आदि क्षेत्रों में अपना भविष्य बना सकेंगे। बिहार की निराशाजनक शिक्षा व्यवस्था ही राज्य में बेरोजगारी का सबसे बड़ा कारण है। 

पिछले कई सालों से सरकारें उच्च शिक्षा संस्थानों को बढ़ावा देने के लिए सक्रिय रही हैं। सरकार देश में कई इंजीनियरिंग और मेडिकल कॉलेज और अस्पताल खोलने में जुटी है। सरकार का मानना है कि कॉलेजों की संख्या बढ़ने से ज्यादा से ज्यादा छात्रों को लाभ मिलेगा। लेकिन सवाल यह उठता है की क्या केवल कॉलेजो की संख्या तेजी से बढ़ाने से राज्य में शिक्षा की गुणवत्ता भी बढ़ेगी। इस बात में कोई दो राह नहीं कि सरकार उच्च शिक्षा संस्थानों को बढ़ावा देने के चक्कर में प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा व्यवस्था पर ध्यान देने में नाकाम रही है।

यह बिलकुल ऐसा है, जैसे बुनियाद को मजबूत किए बगैर ही इमारत की ऊपरी मंजिलों को चुन दिया जाए। अगर इन बच्चों की प्राथमिक शिक्षा की नींव ही मजबूत नहीं होगी तो वे उच्च शिक्षा संस्थानों में प्रवेश कैसे ले पायंगे। 

बिहार में शिक्षा की गुणवत्ता का पता इसी बात से चलता है की वहां के स्कूलों में 10वीं कक्षा तक अंग्रेजी नहीं पढ़ाई जाती। अब 10वीं कक्षा तक अंग्रेजी विषय का पाठ्यक्रमों में अनिवार्य न होना कितना हानिकारक हो सकता है इसका अंदाज़ा लगा पाना भी बेहद कठिन है। यह तो केवल छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ करना ही हैं। 

बिहार में शिक्षकों की नियुक्ति औसत से भी कम

बिहार की साक्षरता दर 63 प्रतिशत है। इसका मतलब राज्य में औसतन 63 छात्रों पर केवल एक ही शिक्षक उपलब्ध है। जबकि शिक्षकों की उपलब्धता में राष्ट्रीय औसत दर 40 है यानी प्रत्येक 40 छात्रों को पढ़ाने के लिए एक शिक्षक का होना अनिवार्य है। 

बिहार में शिक्षकों की कमी से जहां एक तरफ छात्रों को मिलने वाली गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रभावित हो रही है तो वहीं दूसरी तरफ सारी प्रक्रियाएं पूरी करने के बाद भी राज्य के हजारों युवाओं को शिक्षकों की नौकरी नहीं मिल पा रही। क्योंकि बिहार में शिक्षकों के खाली पदों को भरने के लिए भर्ती प्रक्रिया तो निकाली जाती है लेकिन सभी प्रक्रियाओं को पार करने के बाद भी उम्मीदवारों को नौकरी नहीं दी जाती। 

एक आधिकारिक अधिसूचना के अनुसार बिहार के प्रारंभिक स्कूलों में शिक्षकों के करीब 3 लाख पद रिक्त हैं। 

दरअसल, पिछले तीन वर्षों से लगभग 94 हजार प्रारंभिक शिक्षकों की नियुक्ति प्रक्रिया ऐसे ही अधर में अटकी हुई है। शिक्षकों के नियुक्ति में रुकी हुई बहाली को फिर से शुरू करने के मुद्दे को लेकर बिहार के सभी उम्मीदवार सोशल मीडिया के माध्यम से सरकार तक लगातार अपनी बात पहुंचा रहे हैं। 

ग्रेजुएट छात्र है सबसे ज्यादा बेरोजगार 

बिहार में बहाली व नियुक्ति न होने के कारण बेरोजगारी की दर लगातार बढ़ती जा रही है। बेरोजगारी की मार सबसे ज्यादा ग्रेजुएट छात्र ही झेल रहें हैं। 

CMIE (Centre for Monitoring Indian Economy ) की जनवरी-अप्रैल 2021 की रिपोर्ट के अनुसार राज्य के 34.3 फीसदी ग्रेजुएट युवा बेरोजगार हैं।  वहीं, 10वीं-12वीं पास करने वाले 18.5 फीसदी युवाओं के पास रोजगार नहीं है।

सीतामढ़ी जिले में प्राथमिक शिक्षा के हालात चिंताजनक 

बात करे अगर बिहार के सीतामढ़ी जिले की तो यहां स्कूलों में शिक्षकों के पढ़ाने और बच्चों के सीखने का स्तर, गुणवत्ता के लिहाज से बहुत नीचे है। सीतामढ़ी जिले ऐसी शिक्षण व्यवस्था के कारण अभी भी वहां के छात्रों को बेरोजगारी की समस्याओं से जूझना पड़ता है। यदि सरकार द्वारा जिले के प्राथमिक-माध्यमिक शिक्षा पर ध्यान दिया जाता तो वहां के हालात बदलने में देर नहीं लगती।  

सीतामढ़ी में प्राथमिक स्कूल बुनियादी सुविधाओं से जूझ रहे हैं।  यहां अगर कुछ सुविधाएं उपलब्ध भी है तो केवल दिखावे के लिए। आज यह बात किसी से छुपी हुई नहीं है की बुनियादी सुविधाओं के नाम पर बिहार के स्कूल केवल दोपहर का भोजन देने वाले केंद्र बनकर रह गए हैं। इन स्कूलों में शिक्षा के अलावा बाकी सभी कार्य पूरी जिम्मेदारी के साथ किए जाते हैं। बात करे अगर यहां की शिक्षा गुणवत्ता की तो वह भी किसी हद तक सराहनीय नहीं है। 

बिहार में शिक्षा व्यवस्था कैसी है, यह बात तो जगज़ाहिर है लेकिन इसी बीच कुछ महापुरुष ऐसे भी हैं  जो लगातार यह दावा करते हैं कि बिहार में पहले के मुकाबले अभी शिक्षा व्यवस्था में बहुत सुधार हुआ है। 

सुधार अवश्य हुआ है इस बात में कोई दो राह नहीं है लेकिन सवाल यह है कि बिहार में शिक्षा का स्तर देश के बाकी राज्यों के मुकाबले इतना पिछड़ा हुआ क्यों है?

यदि बिहार में शिक्षा व्यवस्था पर खर्च होने वाले बजट को देखा जाए तो इससे यह पता चलता है की सरकार ने अपनी तरफ से वहां की शिक्षा व्यवस्था को सुधारने के लिए प्रयास किए हैं। लेकिन जमीनी स्तर पर इसका कोई फ़ायदा होता नहीं दिख रहा। 

राज्य में अधिकतर शिक्षक अयोग्य

बिहार में अक्सर शिक्षक अपनी मानदेय को बढ़ाने तथा अन्य मांगो को पूरा कराने के लिए धरना प्रदर्शन करते हैं। 2015 से अभी तक शिक्षकसंघ और बहुत से शिक्षक आंदोलन कर रहें हैं। लेकिन क्या अभी तक शिक्षक संघ ने बिहार में शिक्षा व्यवस्था की गुणवत्ता को सुधारने के लिए कोई आंदोलन किया है। बिहार में शिक्षा व्यवस्था की दुर्दशा किसी से छिपी नहीं है तो क्या किसी शिक्षक ने इसके खिलाफ धरना प्रदर्शन किया है अभी तक। 

बिहार में लगभग आधे से भी ज्यादा शिक्षक बच्चों को शिक्षा देने के लिए अयोग्य हैं। वे शिक्षक जिनके ऊपर कई नौनिहालों का भविष्य निर्भर करता है वह किसी भी स्कूल में नियुक्ति के लायक ही नहीं हैं। बिहार में एक तरफ जहां शिक्षा व्यवस्था के लिए सरकार बजट बढ़ाती है और हर साल एक नया स्कूल खोलती है वहीं दूसरी तरफ धांधलेबाजी से अयोग्य शिक्षकों की भर्ती भी करती है। 

एक आधिकारिक रिपोर्ट के अनुसार, सेकंडरी लेवल पर 45 प्रतिशत शिक्षक पेशेवर तौर पर शिक्षक पद के लिए योग्य नहीं हैं। और वहीं दूसरी तरफ हायर सेकंडरी लेवल पर 60 प्रतिशत शिक्षक RTE के मनकों पर खरे नहीं उतर पाए। 

ऐसे में सवाल ये उठता है कि ऐसे अयोग्य शिक्षकों से बच्चे क्या सीखेंगे। साफतौर पर ऐसे शिक्षकों की बहाली करके उन बच्चों के उज्जवल भविष्य के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। इसके अलावा यह भी देखा गया है की जो शिक्षक योग्य है वे भी अक्सर स्कूलों में अनुपस्थित ही होते हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार बिहार के लगभग 28% शिक्षक हर रोज़ अनुपस्थित रहते हैं। वे केवल ख़ास मौके पर ही स्कूल में उपस्थित होते हैं। 

सरकारी स्कूलों की दशा बेहद खराब 

बिहार में सरकारी स्कूलों की व्यवस्था पर तो सवाल खड़े हो ही रहे हैं लेकिन सबसे अधिक सवालों के घेरे में वहां के शिक्षकों की भूमिका है। सरकारी स्कूलों में जब उच्च अधिकारियों का दौरा होता है तब अधिकतर शिक्षक अनुपस्थित पाए जाते है। जो शिक्षक उस समय उपलब्ध होते है वो भी अकसर लापरवाही करते नजर आते है। अभी हाल ही में बिहार के एक सरकारी स्कूल में दौरे के दौरान उच्च अधिकारियों ने पाया की स्कूल में कुछ शिक्षक अनुपस्थित थे और उनमे से 2 शिक्षक कक्षा के बाहर कुर्सी लगाकर अपने फ़ोन में व्यस्त नजर आए। 

एक तरफ तो सभी नियोजित शिक्षक समान काम के बदले समान वेतन की मांग करते हैं, वहीं दूसरी तरफ नियुक्ति के बाद अपने काम में ऐसी लापरवाही करते नजर आते हैं।  

अधिकतर स्कूलों में पीने का साफ पानी व शौचालय उपलब्ध नहीं 

केवल बिहार में ही नहीं बल्कि भारत के लगभग हर राज्य में सरकार स्कूलों का यही हाल हैं। सरकारी में अकसर बच्चों को बुनियादी सुविधाओं के अभाव से जूझना पड़ता है।  UNICEF (United Nations International Children’s Emergency Fund) की रिपोर्ट के मुताबिक, 78,000 से ज़्यादा स्कूलों वाले राज्य बिहार के अधिकतर सरकारी स्कूलों में पीने का साफ पानी और शौचालय उपलब्ध नहीं है।

वहीं बहुत से स्कूलों में दीवार व छत सुरक्षित नहीं है। साथ ही लगभग 20,000 स्कूलों में बच्चों के लिए प्ले-ग्राउंड उपलब्ध नहीं है। बिहार में शिक्षा व्यवस्था तभी सुधरेगी जब वहां के स्कूल बुनियादी सुविधाओं से सशक्त होंगे। 

बिहार में शिक्षा व्यवस्था में नक़ल भी है एक बड़ी समस्या 

बिहार में शिक्षा व्यवस्था बेहतर ना होने के कारण अक्सर यहां के छात्रों को नक़ल का सहारा लेते देखा गया है। बिहार परीक्षा में नक़ल करके पास होना एक आम बात है। हर साल बिहार में लाखों बच्चे नक़ल का सहारा लेकर पास होते हैं, तो वही कुछ बच्चों के परिवार वाले अपने बच्चों को पास कराने के लिए घूसखोरी का भी सहारा लेते है। 

पिछले वर्ष कोरोना महामारी के बीच बिहार में बोर्ड परीक्षा आयोजित की गई थी। इस परीक्षा के लिए प्रशासन ने कई कड़े दिशा-निर्देश जारी किए थे। साथ ही किसी भी नकल से बचाव के लिए पुख्ता इंतजाम किए गए थे। जिसके तहत सीसीटीवी कैमरे और मोबाइल जैमर्स आदि का इंतजाम किया गया था। इसके अलावा छात्रों को परीक्षा हॉल में घुसने से पहले चेकिंग करवाना अनिवार्य था। बावजूद इसके बिहार में पहले दिन की ही बोर्ड परीक्षा में लगभग 50 छात्रों को नक़ल करते पाया गया। 

इस दौरान छात्रों के नकल के सबसे ज्यादा मामले नालंदा जिले से आए। जहां परीक्षा के दौरान 12 छात्र नकल करते हुए पकड़े गए। इन सभी छात्रों को परीक्षा से बाहर कर दिया गया। इसके अलावा पटना,रोहतास, भोजपुर, मुंगेर, चंपारन जिले से भी नकल के मामले सामने आए थे।

टॉपर्स घोटाले के लिए भी बिहार में शिक्षा व्यवस्था ही जिम्मेदार 

यह कहना बिलकुल गलत नहीं होगा की बिहार में स्कूल नहीं बल्कि फर्जी टॉपर्स की फैक्ट्री चलाई जाती है। जहां अच्छी खासी रकम देकर आप बोर्ड परीक्षा में मनचाहा रैंक प्राप्त कर सकते हैं।  वैसे अगर देखा जाए तो टॉपर्स घोटालों के लिए भी बिहार की शिक्षा व्यवस्था ही जिम्मेदार है क्योंकि जबतक बच्चों को प्राथमिक शिक्षा की स्थिति नहीं सुधरेगी तब तक अभिभावकों को अपने बच्चों को पास कराने के लिए इन घोटालो का ही सहारा लेना पड़ेगा। 

टॉपर्स घोटालों में जितना बिहार की शिक्षा व्यवस्था जिम्मेदार है उतना ही दोष उन बच्चों के अभिभावकों का भी है। अभिभावक कभी ध्यान नहीं देते की वो जिस स्कूल में अपने बच्चों को भेज रहें हैं वहां की स्थिति कैसी है। यदि अभिभावक भी अपने बच्चों की शिक्षा पर ध्यान से तो शायद स्थिति कुछ हद तक बेहतर हो सकती है। 

साल 2016 में बिहार में टॉपर्स घोटाले का एक बहुत बड़ा मामला सामने आया। इसमें बिहार की एक छात्रा ने बोर्ड परीक्षा में टॉप किया था। हाजीपुर की रहने वाली इस छात्रा ने आर्ट्स स्ट्रीम में टॉप किया था लेकिन जब उससे एक पत्रकार ने पूछताछ की तो उसे अपने सब्जेक्ट के नाम तक ठीक से याद नहीं थे। ये मामला सामने आने पर बोर्ड ने हर संभव सफाई देने की कोशिश की साथ ही उस छात्रा का दोबारा रिव्यू टेस्ट लिया गया। जिसमें उस टॉपपर छात्रा ने एक भी सवाल का सही जवाब नहीं दिया। पूछताछ में उस छात्रा ने बताया की उसकी कॉपी किसी और ने लिखी थी। 

इस मामले की जांच के बाद कई सफेदपोश और बोर्ड के उच्च अधिकारियों पर गाज गिरी थी। और बिहार में फर्जी टॉपर्स का सबसे बड़ा घोटाला सामने आया था। 

बिहार में शिक्षा व्यवस्था: बिहार में लड़कियों की शिक्षा में चुनौतियाँ 

बिहार में भी बाकी कई पिछड़े राज्यों की तरह लड़कियों की शिक्षा को महत्ता नहीं दी जाती। लड़कियों को केवल घर ही संभालना है इसी सोच के साथ उनके हाथों से किताबें छीनकर उन्हें घर के काम पर लगा दिया जाता है। 

हालांकि बदलते समय के साथ कुछ परिवार ऐसे भी हैं जो अपनी लड़की को पढ़ना चाहते हैं और वे इसी उद्देश्य से उन्हें स्कूल भी भेजते हैं। लेकिन कई बार स्कूल गावों और कस्बों से दूर होने के कारण उन्हें कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है। और उनकी सुरक्षा का ख़याल रखते हुए ना चाहते हुए भी अभिभावकों को अपनी बच्ची की पढ़ाई रोकनी पड़ती है। 

इसके अलावा गावों और कस्बों में एकाध जो सरकारी स्कूल मौजूद हैं वहां भी लड़कियों के लिए बाथरूम की सुविधा उपलब्ध नहीं होती और स्कूल प्रशासन उन्हें बाहर जाने की हिदायत देने है, जो की उनकी सुरक्षा के लिए बहुत खतरनाक साबित हो सकता है। ये भी एक कारण है जिससे अभिभावक और खुद छात्रा भी स्कूल नहीं जाना चाहते। 

बिहार सरकार की योजनाएं 

बिहार में शिक्षा व्यवस्था में सुधार लाने के लिए सरकार द्वारा छात्रों के लिए शुरू की गई कुछ महत्वपूर्ण योजनाएं: 

बिहार में प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा की क्या स्थिति है? - bihaar mein praarambhik baalyaavastha dekhabhaal aur shiksha kee kya sthiti hai?

  • मुख्यमंत्री पोशाक योजना-कक्षा 1 से 2 तक के लिए 600 रुपये, कक्षा 3 से 5 तक के लिए 700 रुपये, कक्षा 6 से 8 तक के लिए 1000 रुपये।
  • बिहार शताब्दी मुख्यमंत्री बालिका पोशाक योजना-कक्षा 9 से 12 तक की छात्राओं के लिए 1,500 रुपये
  • मुख्यमंत्री किशोरी स्वास्थ्य कार्यक्रम-कक्षा 9 से 12 तक के लिए 300 रुपये
  • मुख्यमंत्री छात्रवृत्ति योजना-कक्षा 1 से 4 तक के लिए 600 रुपये,  कक्षा 5 से 6 तक के लिए 1000 रुपये, कक्षा 7 से 10 तक के लिए 1,800 रुपये।
  • मुख्यमंत्री बालक/बालिका साइकिल योजना-3,000 रुपये।
  • मुख्यमंत्री विद्यार्थी प्रोत्साहन योजना (10वीं में प्रथम श्रेणी, सामान्य तथा अल्पसंख्यक वर्ग)-10,000 रुपये
  • मुख्यमंत्री बालिका प्रोत्साहन योजना (10वीं में प्रथम श्रेणी, सामान्य तथा पिछड़ा वर्ग-2)-10,000 रुपये
  • मुख्यमंत्री बालिका (इंटर) प्रोत्साहन योजना-10,000 रुपये।
  • बिहार स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड योजना

क्या बिहार में शिक्षा व्यवस्था का विकास संभव है ?

ज़ाहिर है ‘प्रोडिकल साइंस’ नाम का कोई साइंस इस विश्व में नहीं लेकिन बिहार में 2005 के बाद शिक्षा के क्षेत्र में सबसे चर्चित शब्द यही रहा है। अगर बात करे की क्या बिहार में शिक्षा का विकास संभव है। तो इसका जवाब है हां, बिलकुल संभव है। 

बिहार में शिक्षा का विकास करने के लिए सबसे पहले सरकार द्वारा एक जांच कमिटी का निर्माण होना चाहिए। यह जांच कमिटी समय समय पर नियुक्ति किए गए शिक्षकों के योग्यता की जांच करेगी। और यदि यदि वे योग्य नहीं पाए जाते तो उन्हें एक महीने का नोटिस दिया जाय ताकि वे स्वयं को योग्य साबित कर सकें। यदि इसके बाद भी वे योग्य साबित नहीं होते है तो उन्हें तुरंत बर्खास्त कर सके। इससे विद्यालयों में केवल योग्य शिक्षकों की नियुक्ति ही की जाएगी। साथ ही साथ यह कमिटी इस बात का भी पूरा ध्यान रखेगी की ये शिक्षक प्रतिदिन विद्यालयों में उपलब्ध रहते हैं या नहीं। और ये अपने काम में कोई लापरवाही तो नहीं करते आदि। 

इसके अलावा स्कूल प्रशासन को भी सख्त हिदायत दी जाए की वे हर महीने एक रिपोर्ट इस कमिटी को सौंपे जिसमे इन बच्चों की प्रगति विस्तार में बताई गई हो। इसी सम्बन्ध में इस कमिटी को यह भी छूट दी जाए की कभी भी यह कमिटी किसी भी स्कूल में जाकर वहां की शिक्षा व्यवस्था के बारे में तथा शिक्षकों के बारे में छात्रों से पूछताछ कर सकें। इन चरणों का पालन करके बहुत हद तक विद्यालयस्तर की शिक्षा व्यवस्था में सुधार होगा। 

बिहार शिक्षा व्यवस्था में सुधार के लिए हिन्दराइज फाउंडेशन की पहल

हिन्दराइज फाउंडेशन के संस्थापक श्री नरेंद्र कुमार जी का मानना है की बिहार में प्राथमिक शिक्षा में सुधार करके ही बिहार की शिक्षा व्यवस्था में सकारात्मक बदलाव लाया जा सकता है। बिहार में गरीब परिवारों के बच्चों के लिए शिक्षा सुलभ बनाने के लिए निरंतर प्रयास कर रहे हैं। हिन्द राइज फाउंडेशन द्वारा हर पिछड़े गांव और कस्बो में पाठशाला नाम से कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इस कार्यक्रम के अंतर्गत गरीब परिवारों के बच्चों को मुफ्त शिक्षा, किताबे, स्टेशनरी के सामान के साथ साथ खाना भी प्रदान किया जाता है।

निष्कर्ष 

‘बिहार में शिक्षा व्यवस्था’ एक चिंतनीय विषय हो चला है। पूरे भारत में बिहार की शिक्षा-व्यवस्था को भ्रष्टाचार का पर्याय समझा जाने लगा है। एक तरफ जहां बिहार पहले नालंदा और विक्रमशिला जैसे महान विश्वविद्यालय के लिए जाना जाता था। आज वह सिर्फ खराब शिक्षा व्यवस्था और घोटालों के लिए जाना जाता है। बिहार की गिरती शिक्षा व्यवस्था और लगातार प्रकाश में आते टॉपर्स घोटालों ने बिहार की छवि को बहुत खराब किया है। 

केवल छात्रों को ही फर्जी डिग्री नहीं दी जा रही बल्कि इसके अलावा बिहार में अधिकतर शिक्षकों की बहाली भी इन फर्जी डिग्री के आधार पर हुई है। डिग्री दिखाओ और नौकरी पाओ का प्रचलन में बहुत आम है। इसका परिणाम यह हुआ कि कई बी.एड. कालेजों में डिग्री बेचने का धंधा शुरु हो गया है और आज भी खूब फलफूल रहा है।  हिन्दराइज फाउंडेशन बिहार में शिक्षा व्यवस्था के सुधार के लिए लगातार प्रयास कर रहा है। जमीनी स्तर पर हमने अपने इस मिशन की शुरुआत कर दी है जिसके तहत हम गावों और कस्बों में जाकर वहां के गरीब बच्चों को शिक्षा प्रदान करने के लिए “पाठशाला” नाम से एक कार्यक्रम आयोजित करते है। इस कार्यक्रम के तहत हम गरीब परिवारों के बच्चों को शिक्षा प्रदान करने के साथ साथ उन्हें भोजन भी देते हैं। हमारा संगठन हिन्दराइज, बिहार के बच्चो एवं अभिभावकों को बिहार की शिक्षा व्यवस्था के सुधार के लिए प्रोत्साहित करता है। इसके साथ ही हम आपके सुझावों पर स्कूलो में शिक्षकों की कमी को पूरा करने तथा बच्चो की शिक्षा मे सुधार को सुनिश्चित कराने जैसे जरुरी मुद्दों को सरकार के सामने रखते रहेंगे।

बिहार में प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा की वर्तमान स्थिति क्या है?

बिहार की साक्षरता दर 63 प्रतिशत है। इसका मतलब राज्य में औसतन 63 छात्रों पर केवल एक ही शिक्षक उपलब्ध है। जबकि शिक्षकों की उपलब्धता में राष्ट्रीय औसत दर 40 है यानी प्रत्येक 40 छात्रों को पढ़ाने के लिए एक शिक्षक का होना अनिवार्य है।

बिहार में शिक्षा की क्या स्थिति है?

बिहार में पिछले दशक में साक्षरता वृद्धि की दर 17 फीसदी बढ़कर 63.8 प्रतिशत हो गई है फिर भी यह देश के अन्य राज्यों से कम है। सूबे में 99 फीसदी से अधिक बच्चों का स्कूलों में दाखिला हो चुका है। साक्षरता और शिक्षा के बीच बुनियादी फर्क को समझना होगा। बच्चों के लिए क्वालिटी एजुकेशन जरूरी है।

प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा की आवश्यकता और उद्देश्य क्या है व्याख्या करें?

व्यापक प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा का उद्देश्य जन्म से छह वर्ष की आयु तक के बच्चों की समग्र रूप से वृद्धि, विकास और उनके शिक्षण को प्रोत्साहित करना है। “देखभाल” का अर्थ है बच्चों के लिए एक देखरेख पूर्ण और सुरक्षित परिवेश उपलब्ध कराते हुए उसके स्वास्थय, साफ – सफाई और पोषण पर ध्यान देना।

बिहार में बाल्यावस्था शिक्षा की चुनौतियां क्या है?

बिहार में पहले से ही शिक्षा विभाग के सामने कई बड़ी चुनौतियां हैं, जिनमें प्रमुख तौर पर सरकारी स्कूलों की व्यवस्था ठीक करना, सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की व्यवस्था करना, शिक्षक छात्र अनुपात सही करना, कॉलेजों में आधारभूत संरचना बेहतर करना, रिसर्च और अन्य गतिविधियां बढ़ाने की चुनौती पहले से ही बिहार सरकार के सामने है.