भारत हिन्दू राष्ट्र कैसे बन सकता है - bhaarat hindoo raashtr kaise ban sakata hai

दूसरे हिंदुत्ववादी नेताओं का कहना है कि मुसलमानों और ईसाइयों को नौकरी और पैसे का झाँसा देकर अपना धर्म प्रसार करने की अनुमति नहीं मिलेगी. वास्तव में कम-से-कम नौ भारतीय राज्यों ने धर्मांतरण विरोधी क़ानून पारित किए हैं, जिनकी वजह से ज़बरदस्ती या लालच देकर धर्म परिवर्तन कराना दंडनीय अपराध हो गया है. वहीं ईसाई और मुसलमान धर्म प्रचारक कहते हैं उनका काम करना मुश्किल हो गया है, अगर कोई धर्म परिवर्तन करके हिंदू बनता है तो शासन-प्रशासन का रवैया अलग होता है.

सावरकर के हिंदुत्व के विचार में वे लोग शामिल नहीं हैं जिनके पूर्वज भारत के बाहर से आए थे. ज़ाहिर है, सावरकर साफ़ लिखते हैं कि इस धरती पर मुसलमानों और ईसाइयों का उतना अधिकार नहीं है, जितना हिंदुओं का है, क्योंकि "भारत हिंदुओं की पुण्यभूमि है, मुसलमानों और ईसाइयों की नहीं." ये दोनों भारत के दो सबसे महत्त्वपूर्ण अल्पसंख्यक समुदाय हैं. सावरकर के हिंदू राष्ट्र में उनकी क्या जगह होगी ये स्पष्ट रूप से नहीं बताया गया है, लेकिन इस सोच के साथ बराबरी के अधिकार कैसे मिल सकते हैं?

मुसलमानों और ईसाइयों को नज़दीक लाने के लिए आरएसएस के पास एक मज़बूत कार्यक्रम है. आरएसएस में मुस्लिम आउटरीच के कर्ताधर्ता हैं इंद्रेश कुमार. वे पहले बीबीसी से बातचीत कर चुके हैं लेकिन इस बार उनसे मुलाकात की बीबीसी की कोशिश नाकाम रही, लेकिन प्रोफेसर सिन्हा इस बात से निराश हैं कि इस कार्यक्रम की सफलता सीमित रही है. वे कहते हैं, पहुँच बनाने की या हाथ आगे बढ़ाने की ज़िम्मेदारी अब भारतीय मुसलमानों की है.“मैं मानता हूँ कि हमने उनकी (मुसलमान) ओर हाथ बढ़ाया और हमारा नज़रिया इस बारे में खुला है. उनकी तरफ़ से भी ये कोशिश होनी चाहिए. अपना ही हाथ आगे बढ़ाए रखना एक किस्म का तुष्टीकरण है. आपको अपनी कमियों के बारे में बताना होगा और अपने भीतर उग्रपंथी तत्वों को क़ाबू में करना समुदाय का काम है.”

दूसरी तरफ़, मुसलमानों को डर है कि 'हिंदू बहुसंख्यक' शासन में उन्हें एक खाँचे में डालकर अलग-थलग कर दिया जाएगा और उनके साथ दूसरे दर्जे के नागरिकों की तरह सलूक किया जाएगा. वे पहले से महसूस करते हैं कि वे राजनीतिक अलगाव झेल रहे हैं. उनका डर, हिंदुत्ववादी नेताओं के जब-तब आने वाले बयानों से पैदा होता है. तेज़-तर्रार बीजेपी नेता और आरएसएस के सक्रिय सदस्य विनय कटियार ने एक बार कहा था:

"मुसलमानों को भारत में नहीं रहना चाहिए. धर्म के आधार पर उन्होंने देश का विभाजन किया था. तो वे यहाँ क्यों हैं? उन्हें उनका हिस्सा दिया जा चुका है. वे बांग्लादेश चले जाएँ या पाकिस्तान. उन्हें भारत में रहने का कोई हक़ नहीं."

ज़मीनी सच्चाई ये है कि अगर आप मुसलमानों के एक समूह में बैठेंगे तो उनके भीतर की घबराहट का एहसास आपको हो जाएगा. वे 15वीं सदी के स्पेन के इतिहास को याद करते हैं जब 800 साल तक स्पेन पर राज करनेवाले मुसलमानों को कैथोलिक सेनाओं ने हरा दिया था और दो विकल्प दिए थे, या तो देश छोड़ कर चले जाएं या ईसाई बन जाएं. जिन्होंने मज़हब बदलने से मना किया उन्हें ख़त्म कर दिया गया.

लेकिन प्रोफ़ेसर जफ्रेलॉट नहीं मानते हैं कि उस किस्म का विनाश, भारत में संभव होगा. वो कहते हैं:

"मुसलमानों को नेस्तनाबूद करना स्पष्ट रूप से किसी के भी एजेंडे में नहीं है. ये व्यवहारिक हो भी नहीं सकता. व्यवहारिक लक्ष्य है मुसलमानों को पूरी तरह अलग-थलग कर देना."

फ़्रांसीसी प्रोफ़ेसर की दलील है कि अगर मुसलमान, अपना धर्म बनाए रखते हैं या ईसाई, ईसाई बने रहते हैं तो पब्लिक स्फ़ीयर में वे ख़तरा मोल लेते हैं. "तो, अगर वे समर्पण कर दें, अपनी पहचान छोड़ दें, मुसलमान के तौर पर अपना सार्वजनिक प्रदर्शन छोड़ दें तो उनके पास डरने की कोई वजह नहीं होगी. वे दूसरे दर्जे के नागरिक के तौर पर रहने को बाध्य कर दिए जाएँगे, शिक्षा और रोजगार में हिंदुओं से प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम नही रह पाएँगे."

प्रोफ़ेसर जफ्रेलॉट आगे कहते हैं, "अगर हिंदू राष्ट्र की स्थापना से आपका आशय अल्पसंख्यकों को वास्तव में दूसरे दर्जे का नागरिक बना देना है तब ये सारे अभियान बेशक समझ में आते है क्योंकि उनके ज़रिए आप उन्हें इतना असहाय बना देते है कि उन्हें अपने इलाक़ों से बाहर निकलने में डर लगेगा, आस-पड़ोस में जाने में डर लगेगा. वे शिक्षा छोड़ देंगे, जॉब मार्केट से दूर हो जाएँगे, हाउसिंग मार्केट से दूर हो जाएँगे और एक लिहाज़ से आप सचमुच एक हिंदू राष्ट्र में होंगे"

लेकिन वो ये भी कहते हैं कि बीजेपी को मुसलमानों की ज़रूरत है. "संघ परिवार को एक 'अन्य' की ज़रूरत है. वो अन्य मुसलमान हैं. वो हारा हुआ हो सकता है लेकिन उसे हिंदू समुदाय पर मंडराते ख़तरे की तरह दिखते रहना चाहिए."

प्रोफ़ेसर अग्रवाल सहमत हैं. फिर भी, उनका दावा है कि "हिंदुत्ववादी ताकतों को तथाकथित चरमपंथी मुसलमान नेताओं से ध्रुवीकरण करने में मदद मिल रही है, ऐसे मुसलमान जो हिंदुत्व का विरोध करते दिखते हैं लेकिन अगर आप ठीक से देखें तो वे असल में उनकी मदद ही कर रहे हैं."

लेकिन प्रधानमंत्री ने हमेशा 'सबका साथ, सबका विकास' का नारा दिया है. राकेश सिन्हा कहते हैं कि मोदी सरकार की अनगिनत स्कीमों से मुसलमान सहित सभी समुदायों को फ़ायदा हो रहा है. इन सरकारी योजनाओं में कोई भेदभाव नहीं है.

कपिल मिश्रा इस नज़रिए को खारिज करते हैं कि संघ परिवार एक हिंदू बहुसंख्यक शासन लाने पर आमादा है. उनका दावा है कि हिंदू बहुसंख्यक हिन्दू समाज भारत में सबसे ज़्यादा सहिष्णु और सेक्युलर है. "पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान को देखिए. वहाँ हिंदू बहुसंख्यक नहीं हैं इसीलिए वे सहिष्णु और सेक्युलर नहीं हैं. मुझे लगता है कि चिंता इस बात की होनी चाहिए कि हिंदू बहुसंख्यकों का ज़रा भी नुकसान न हो. उनकी सुरक्षा की जानी चाहिए." प्रोफ़ेसर सिन्हा भी इस बात पर ज़ोर देते हैं कि भारतीय संविधान की धर्मनिरपेक्ष प्रकृति का अधिकांश श्रेय हिंदू बहुसंख्यक आबादी के सहिष्णु स्वभाव को जाता है.

भारत हिंदू राष्ट्र घोषित कब होगा?

माघ मेला 2023 के दौरान आयोजित होने वाले 'धर्म संसद' में इसे पेश किया जाएगा। इस वर्ष फरवरी में आयोजित हुए माघ मेले के दौरान भारत को अपने स्वयं के संविधान के साथ एक 'हिंदू राष्ट्र' बनाने के लिए धर्म संसद में एक प्रस्ताव पारित किया गया था।

भारत हिंदू राष्ट्र घोषित क्यों नहीं हुआ?

कुछ हिंदुत्ववादी नेताओं ने माँग की है कि भारत को तत्काल प्रभाव से हिंदू राष्ट्र घोषित कर दिया जाए. लेकिन अन्य लोग मानते हैं कि भारत को औपचारिक ऐलान की ज़रूरत नहीं है. वे एक सेक्युलर राज्य से, एक हिंदू राष्ट्र के रूप में भारत की तब्दीली देखते हैं.

पूरे विश्व में कितने हिंदू राष्ट्र है?

1. विश्‍व में भारत, नेपाल और मॉरीशस में हिन्दू बहुसंख्यक हैं

हिंदू राष्ट्र घोषित कौन सा देश है?

नेपाल को हिंदू राष्ट्र घोषित करने की मांग का समर्थन करते हुए सरकार के पर्यटन और संस्कृति मंत्री प्रेम एली ने कहा कि ज्यादातर लोग इसके समर्थन में हैं।