पिछले कई दशकों से भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि का महत्वपूर्ण स्थान बना हुआ है। Show
भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि का महत्व1. राष्ट्रीय आय में कृषि का हिस्साभारत की राष्ट्रीय आय में कृषि का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। 1950-51 में सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) में कृषि का हिस्सा 56.5 प्रतिशत था। जैसे-जैसे विकास की प्रक्रिया तेज हुई, द्वितीयक तथा तृतीयक क्षेत्रों के विकास के कारण कृषि का हिस्सा लगातार कम होता गया और यह 2011-12 में 13.3 प्रतिशत निम्न स्तर पर पहुंच गया। अगर हम विकसित देशों को देखे तो राष्ट्रीय आय में हिस्सा बहुत ही कम है। जैसे अमेरिका तथा इंग्लैण्ड में राष्ट्रीय आय में कृषि का हिस्सा केवल 2 प्रतिशत है। फ्रांस में यह अनुपात 7 प्रतिशत तथा आस्ट्रेलिया में 6 प्रतिशत है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि जैसे - जैसे कोई देश विकास करता है, राष्ट्रीय आय में कृषि का हिस्सा कम होता जाता है। 2. रोजगार की दृष्टि से कृषि का महत्वअल्प विकसित या विकासशील देशों में कृषि की इतनी अधिक प्रधानता होती है कि कार्यकारी जनसंख्या का बहुत अधिक भाग रोजगार के लिए इस पर आश्रित होता है। उदाहरणार्थ यह मिश्र में 42 प्रतिशत, बांग्लादेश में 50 प्रतिशत, इण्डोनेशिया में 52 प्रतिशत व चीन में 68 प्रतिशत है। 1951 में कार्यकारी जनसंख्या का लगभग 70 प्रतिशत कृषि एवं सम्बद्ध क्रियाओं में कार्यरत था, वही 2001 में यह हिस्सा गिरकर 59 प्रतिशत हो गया। अर्थात् 2001 में कृषि में 23.5 करोड़ व्यक्तियों को रोजगार प्राप्त है। 2005-06 में कृषि में श्रमशक्ति का 57 प्रतिशत रोजगार प्राप्त करता है तथा सकल घरेलू उत्पाद में कृषि क्षेत्र का हिस्सा 2005-06 में 21. 7 प्रतिशत थी। इसका अर्थ हुआ कि कृषि का प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद गैर कृषि व्यवसाय में काम करने वाले श्रमिकों की तुलना में केवल पाँचवाँ भाग है और इसमें लगातार गिरावट होती जा रही है। कृषि तथा गैर कृषि व्यवसाय में काम करने वाले श्रमिकों की औसत आय में अन्तर बढ़ता चला जा रहा है। 3.बढ़ती जनसंख्या के लिए खाद्यान्नों की पूर्तिभारत जैसे विकासशील देशों में जनसंख्या का दबाव बहुत अधिक है। जनसंख्या में तेज वृद्धि के साथ-साथ खाद्यान्नों की माॅग में भी वृद्धि होती है। इसलिए यह जरूरी हो जाता है कि जनसंख्या में वृद्धि के साथ-साथ खाद्यान्नों की उत्पादन तथा उत्पादकता भी बढ़ती रहें। भारत में खाद्यान्नों की मांग 2004-05 में 207 मिलियन टन तथा ग्यारहवीं योजना के अंतिम वर्ष 2011-12 में 235.4 मिलियन टन से बढ़कर 2020-21 में 280.6 मिलियन टन हो जाने की सम्भावना है। इस माॅग को पूरा करने के लिए खाद्यान्नों के उत्पादन को 2 प्रतिशत वृद्धि होना आवश्यक है। भारत के सामने चुनौती का अन्दाज इस बात से लगा सकते है कि हाल के दस वर्षो में (1997-98-2006-07 के बीच) खाद्यान्नों के उत्पादन में मात्र 0.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। 4.औद्योगिक विकास के लिए कृषि का महत्वभारत में औद्योगिक विकास के लिए कृषि का बहुत अधिक महत्व है, क्योंकि हमारे कुछ उद्योगों को कच्चा माल कृषि से ही प्राप्त होता है। इन उद्योगों में सूती वस्त्र, चीनी, वनस्पति तथा बागान उद्योग तथा जूट उद्योग प्रमुख है। औद्योगिक क्षेत्र में लगें हुए लोगों को खाद्यान्न भी कृषि क्षेत्र से ही प्राप्त होता है। ग्रामीण क्षेत्र औद्योगिक क्षेत्र द्वारा निर्मित वस्तुओं का बाजार होता है। अतः कृषि क्षेत्र का विकास होने पर औद्योगिक क्षेत्र का भी विकास होता है। लेकिन कुछ वर्षो से उद्योगों के लिए कृषि के महत्व में कमी आयी है, क्योंकि अनेक ऐसे उद्योग विकसित हो गये है जो कृषि पर निर्भर नही है जैसे इस्पात उद्योग, लौह उद्योग, रसायन उद्योग, मशीनी औजार तथा अन्य इन्जीनियरिंग उद्योग, विभाग निर्माण, सूचना तकनालाजी इत्यादि। इसके बावजूद कृषि द्वारा चीनी, चाय, सूती वस्त्र और पटसन वनस्पति तेल, खाद्य पदार्थो, साबुन तथा अन्य कृषि पर आधारित उद्योगों के लिए कच्चा माल उपलब्ध कराया जाता है। 5. अन्र्तराष्ट्रीय व्यापार के क्षेत्र में कृषि का महत्वअन्र्तराष्ट्रीय व्यापार के क्षेत्र में भी कृषि का बहुत अधिक महत्व है। बहुत अधिक समय तक तीन कृषि वस्तुओं (चाय, पटसन तथा सूती वस्त्र) का निर्यात आय में हिस्सा 50 प्रतिशत से अधिक रहा। यदि हम अन्य कृषि वस्तुओं जैसे काफी, तम्बाकू, काजू, वनस्पति तेल, चीनी इत्यादि को भी शामिल कर लिया जाय तो यह 70 से 75 प्रतिशत तक पहुॅच जाता है। कृषि पर इतनी अधिक निर्भरता भारत के अल्पविकास को दर्शाती है। पिछले दो दशकों के दौरान निर्यात के विविधीकरण के कारण कुल निर्यात में कृषि का हिस्सा कम हुआ है और यह 2010-11 में कम होकर 9.9 प्रतिशत हो गया है। 1991 में अर्थव्यवस्था के उदारीकरण के पश्चात कृषि आयात में वृद्धि हुई है और इसमें खाद्य तेलों का विशेष योगदान है। 6. पूंजी निर्माण में सहयोगजैसा कि आप जानते है कि आर्थिक विकास के लिए पूंजी निर्माण बहुत अधिक आवश्यक है। भारत में कृषि क्षेत्र अर्थव्यवस्था का एक बड़ा क्षेत्र है। अतः पूंजी निर्माण में इसका सहयोग आवश्यक है। यदि यह क्षेत्र ऐसा कर पाने में असफल होगा तो इससे आर्थिक विकास की प्रक्रिया अवरूद्ध होगी। 7. गरीबी निवारण में भूमिकाभारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि का हिस्सा अब सकल घरेलू उत्पाद का 15 प्रतिशत से भी कम है। तथा अभी भी आधे से अधिक श्रमशक्ति कृषि क्षेत्र में कार्यरत है। इसके अलावा एक आम आदमी अपनी आय का एक बड़ा भाग भोजन पर खर्च करता है। क्योंकि कृषि कम आय वाले व निर्धन व्यक्तियों का जीवन आधार है तथा खाद्य सुरक्षा का मुख्य अस्त्र है, इसलिए गरीबी निवारण में इसकी भूमिका स्वतः सिद्ध है। सन्दर्भ -
भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि का क्या महत्व है?कृषि क्षेत्र भारतीय अर्थव्यवस्था का आधारभूत स्तंभ है। यह क्षेत्र न केवल भारत की जीडीपी में लगभग 15% का योगदान करता है बल्कि भारत की लगभग आधी जनसंख्या रोज़गार के लिये कृषि क्षेत्र पर ही निर्भर है। यह क्षेत्र द्वितीयक उद्योगों के लिये प्राथमिक उत्पाद भी उपलब्ध करवाता है।
भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि का कितना प्रतिशत योगदान है?देश की 1.26 अरब आबादी की खाद्य सुरक्षा कृषि पर निर्भर है। जैसा कि हम जानते हैं कि भारत एक कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था है। इसकी लगभग 55 % जनसंख्या इस क्षेत्र में कार्यरत है। कृषि का भारतीय अर्थव्यस्था के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 14 % योगदान है।
भारतीय कृषि की क्या विशेषताएं हैं तथा भारतीय अर्थव्यवस्था में इसका क्या महत्व है?भारतीय कृषि का सर्वाधिक महत्व रोजगार की दृष्टि से माना जाता है। क्योंकि देश की 67% जनसंख्या कृषि कार्य में प्रत्यक्ष रूप में संलग्न है। यदि कृषि क्षेत्र में रोजगार युक्त लोगों का विभाजन करें तो ज्ञात होता है कि कृषक, कृषि श्रमिक, दैनिक श्रमिक, परिवहन में संलग्न लोग आदि बड़ी मात्रा में कृषि से रोजगार प्राप्त कर रहे हैं।
कृषि को भारतीय अर्थव्यवस्था का आधार क्यों माना गया है?Solution : (i) कृषि को भारतीय अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार इसलिए कहा गया है, क्योंकि 67% जनसंख्या प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में कृषि पर निर्भर है। <br> (ii) इस उद्योगों को कच्चा माल मिलता है। <br> (ii) कृषि उत्पादों का निर्यात करके भारत विदेशी मुद्रा अर्जित करता है। <br> (iv) राष्ट्रीय आय में इसका योगदान 29% है।
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