भारत के लोग रॉलेट ऐक्ट के विरोध में क्यों थे? - bhaarat ke log rolet aikt ke virodh mein kyon the?

भारत के लोग रॉलेट एक्ट के विरोध में क्यों थे ?


भारत के लोग रॉलेट एक्ट के विरोध इसलिए थे -

  1. यह एक काला कानून था
  2. इस कानून के अंतर्गत किसी को भी बिना सुनवाई के लंबे समय तक जेल में डाला जा सकता था
  3. यह प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान ही भारतीय जनता को नियंत्रण में करने के लिए लाया गया था
  4. इसका विरोध भारत की आम जनता ने किया ।


इस अध्याय में दी गई भारत माता की छवि और अध्याय 1 में दी गई जर्मेनिया की छवि की तुलना कीजिए।


भारत माता की पहली छवि रबिंद्रनाथ टैगोर द्वारा 1905 में बनाई गई थी। इस तस्वीर में भारत माता को एक सन्यासिनी के रुप में दर्शाया गया है। वह शांत, गंभीर, दैवी और आध्यात्मिक गुणों से परिपूर्ण दिखाई देती है। आगे चल कर जब इस छवि को बड़े पैमाने पर तस्वीरों में उतारा जाने लगा और विभिन्न कलाकार यह तस्वीर बनाने लगे तो भारत माता की छवि विविध रूप ग्रहण करती गई। इस मातृ छवि के प्रति श्रद्धा को राष्ट्रवाद में आस्था का प्रतीक माना जाने लगा।
दूसरी तरफ, जर्मनी के कलाकार फिलिप वेट ने 1848 में जर्मेनिया का चित्र बनाया जो कि जर्मनी राष्ट्र के एक महिला कृति के रूप में पहचान अंकित करता है, इसमें जर्मेनिया बलूत वृक्ष के पत्तों का मुकुट पहनती है क्योंकि बलूत वीरता का प्रतीक है। जर्मेनिया के चित्र को सूती झण्डे पर बनाया गया है।

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निम्नलिखित पर अख़बार के लिए रिपोर्ट लिखें:- 
जलियाँवाला बाग़ हत्याकांड   


जलियाँवाला बाग़ हत्याकांड
13 अप्रैल, 1919

आज मुझे अपने शहर में घटित हुई एक दर्दनाक हत्याकांड के बारे में आपको बताते हुए बहुत दु:ख हो रहा है आज हमारे शहर में बहुत से गाँव वाले वार्षिक बैसाखी मेले में शामिल होने के लिए जालियाँवाला बाग में जमा हुए थे।अधिकतर तो सरकार द्वारा लागू किए गए दमनकारी कानून का विरोध प्रकट करने के लिए एकत्रित हुए। यह बाग चारों तरफ से बंद है। शहर से बाहर होने के कारण वहाँ जुटे लोगों को यह पता नहीं था कि इलाके में मार्शल लॉ लागू किया जा चुका है। जनरल डायर हथियारबंद सैनिकों के साथ वहाँ पहुंचा और जाते ही उसने मैदान से बाहर निकलने के सभी रास्तों को बंद कर दिया। इसके बाद उसके सिपाहियों ने भीड़ पर अंधाधुंध गोलियाँ चला दीं। सैकड़ों लोग मारे गए। बाद में उसने बताया कि वह सत्यग्रहिओं की ज़हन में दहशत और विस्मय का भाव पैदा करके 'एक नैतिक प्रभाव' उत्पन्न करना चाहता था।

मैं आपसे निवेदन करता हूँ कि आप इस समाचार को अपने समाचार पत्र में प्रमुखता से छापकर भारतीय जनता के दुख में भागीदार बनें और निर्दयी गोरी सरकार के दमन के खिलाफ विश्व जनमत तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएँ। 

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कल्पना कीजिए कि आप सिविल नाफ़रमानी आंदोलन में हिस्सा लेने वाली महिला हैं। बताइए कि इस अनुभव का आपके जीवन में क्या अर्थ होता।


सिविल नाफ़रमानी आंदोलन में हिस्सा लेने वाली महिला के जीवन में इस अनुभव का अर्थ निम्नलिखित मायने रखता है-
(i) महिला पर्दा प्रथा का त्याग करके संघर्ष करने के लिए घर से बाहर आती।

(ii) समाजिक बुराईयों जैसे नशा, दहेज, भ्रूण हत्या के विरुद्ध आंदोलनों का नेतृत्व करती।

(iii) सामाजिक अन्याय के प्रतीक कानूनों का उल्लंघन कर अपनी शक्ति का परिचय देती।

(iv) राष्ट्रीय सेवा में बढ़-चढ़कर भाग लेती।

(v) घर के चूल्हे-चौके से बाहर निकलकर समाज सेवा की बीड़ा उठाती।

(vi) किसी भी सामाजिक अत्याचार के खिलाफ एक सशक्त आवाज बन जाती।

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1921 में असहयोग आंदोलन में शामिल होने वाले सभी सामाजिक समूहों की सूची बनाइए। इसके बाद उनमें से किन्हीं तीन को चुन कर उनकी आशाओं और संघर्षों के बारे में लिखते हुए दर्शाइए कि वे आंदोलन में शामिल क्यों हुए ?


असहयोग आंदोलन में भाग लेने वाले विभिन्न सामाजिक समूहों की सूची:

(i) शहरों का मध्यम वर्ग
(ii) बागान मजदूर
(iii) विद्यार्थी और अध्यापकगण
(iv) ग्रामीण क्षेत्रों के किसान और वन्य प्रदेशों के आदिवासी 
(v) सौदागर और व्यापारीगण 
(vi) बुनकर और अन्य कारीगर
(vii) मुस्लिम खिलाफत कमेटी के सदस्य
(viii) अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ता

तीन समूहों के लोग और उनकी आशाएँ व संघर्ष :

(i) शहरों का मध्यम वर्ग: इसमें मुख्य रूप से छात्र, शिक्षक और वकील शामिल थे। असहयोग आंदोलन और बहिष्कार से जुड़ने का आह्वान करते हुए उन्होंने उत्साहपूर्वक जवाब दिया। उन्होंने आंदोलन को विदेशी वर्चस्व से स्वतंत्रता के मार्ग के रूप में देखा। उदाहरण के लिए, खादी कपड़ा अक्सर बड़े पैमाने पर बनने वाले कपड़ों की तुलना में अधिक महंगा था और गरीब लोग इसे खरीदने का जोखिम नहीं उठा सकते थे।

(ii) ग्रामीण क्षेत्रों के किसान और वन्य प्रदेशों के आदिवासी: कई स्थानों पर, किसान असहयोग आंदोलन में शामिल हुए। यह आंदोलन मुख्य रूप से तालुकदारों और जमींदारों के खिलाफ था। स्वराज के द्वारा वे समझ गए कि उन्हें किसी भी कर का भुगतान करने की ज़रूरत नहीं होगी और यह भूमि पुनर्वितरित की जाएगी। किसान आंदोलन अक्सर हिंसक हो गया और किसानों को बुलेट और पुलिस क्रूरता का सामना करना पड़ा।

(iii) बागान मजदूर: बागान कार्यकर्ता भी गांधीजी के नेतृत्व में आंदोलन में शामिल हुए। बागानी मज़दूरों के लिए आजादी का अर्थ यह था कि वे उन चारदीवारियों से जब चाहे आ जा सकते हैं जिनमें उनको बंद करके रखा गया था। उनके लिए आज़ादी का अर्थ था कि वह अपने गाँवों से संपर्क कर पाएँगे।1859 के इंग्लैंड इमीग्रेशन एक्ट के तहत बागानों में काम करने वाले मज़दूरों को बिना इज़ाज़त बागान से बाहर जाने की छूट नहीं होती थी और यह छूट उन्हें विरले ही कभी मिलती थी। जब उन्होंने असहयोग आंदोलन के बारे में सुना तो हज़ारों मजदूर अपने अधिकारियों की अवहेलना करने लगे। उन्होंने बागान छोड़ दिए और अपने घर को चल दिए। उनको लगता था कि अब गांधी राजा आ रहा है इसीलिए अब तो प्रत्येक को गॉंव में ज़मीन मिल जाएगी।

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नमक यात्रा की चर्चा करते हुए स्पष्ट करें कि यह उपनिवेशवाद के ख़िलाफ़ प्रतिरोध का एक असरदार प्रतीक था।  


देश को एकजुट करने के लिए महात्मा गांधी को नमक एक शक्तिशाली प्रतीक लगा।

(i) 31 जनवरी 1930 को गांधीजी ने वायसराय इरविन को एक ख़त लिखा। खत में उन्होंने 11 मांगों का उल्लेख किया था।

(ii) इनमें से कुछ सामान्य माँगे थी जबकि कुछ माँगे उद्योगपतियों से लेकर किसानों तक विभिन्न तबकों से जुड़ी हुई थी।

(iii) गाँधीजी इन मांगों के द्वारा समाज के सभी वर्गों को अपने आंदोलन में शामिल करना चाहते थे ताकि सभी उसके अभियान में शामिल हो सकें।

(iv) इनमें सबसे महत्वपूर्ण माँग नमक कर को खत्म करने के बारे में थीं। क्योंकि नमक का प्रयोग गरीब,अमीर सभी करते थे।

(v) इसलिए नमक पर करें तथा उसके उत्पादन पर सरकारी इजारेदारी को महात्मा गांधी ने ब्रिटिश शासन का सबसे दमनकारी पहलू बताया था।

इरविन झुकने को तैयार नहीं थे। फलस्वरूप, महात्मा गांधी ने अपने 78 विश्वस्त वॉलन्टियरों के साथ नमक यात्रा शुरू कर दी। यह यात्रा साबरमती आश्रम से गुजरात के दांडिया नमक कस्बे में जाकर खत्म होनी थी।

इन सभी आधार पर नमक यात्रा उपनिवेशवाद के ख़िलाफ़ प्रतिरोध का एक असरदार प्रतीक था। क्योंकि यह भारतीय जनता के राष्ट्रव्यापी समर्थन को इकट्ठा कर सकता था। इसने सविनय आंदोलन की शुरुआत की।

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