- भारत के राष्ट्रपति
- The President of India
नेता जी सुभाष चन्द्र बोस महान देशभक्त, क्रांतिकारी और स्वतंत्रता सेनानी
पूरा देश महान स्वतंत्रता सेनानी क्रांतिकारी नेता, सच्चे देशभक्त सुभाष चंद्र बोस की 125 वीं जयंती मना रहा है। स्वतंत्रता आंदोलन में उनके योगदान का कोई सानी नहीं है। वे एक साहसी और स्वतंत्रता के प्रति अति उत्साहित नेता थे। सुभाष चंद्र बोस
श्रीमद्भगवदगीता से गहराई से प्रेरित रहे थे, इसी कारण स्वतंत्रता, समानता, राष्ट्रभक्ति के लिए उनके संघर्ष को भुलाया नहीं जा सकता।
नेता जी के लिए राष्ट्र सर्वोपरि था। मातृभूमि को अंग्रेजों के चंगुल से मुक्त कराने के लिए उन्होंने अपनी सेना ‘‘आजाद हिंद फौज’’ बनाने का रास्ता चुना। राष्ट्रभक्ति एवं स्वतंत्रता का संदेश जन-जन तक पहुंचाने के लिए बर्लिन में फ्री इंडिया सेंटर की स्थापना और आजाद हिंद रेडियो की शुरुआत कर सवतंत्रता आंदोलन को आगे बढ़ाया। इसमें अंग्रेजी, गुजराती, मराठी, बंगाली, पश्तो, तमिल,
फारसी और तेलुगु में प्रसारित समाचार बुलेटिन व स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े कार्यक्रम प्रसारित किए गए। इसी तरह, आजादी प्राप्ति की मुहिम को तेज करने के लिए यूरोप में भारतीय सेना का गठन किया गया। उन्होंने अखिल भारतीय फॉरवर्ड ब्लॉक नामक राजनीतिक इकाई की स्थापना भी की।
सुभाष चंद्र बोस, जिन्हें नेताजी के नाम से जाना जाता है, ने नारा दिया था ‘‘तुम मुझे खून दो-मैं तुम्हें आजादी दूंगा’’ जो आज भी देश के हर नागरिक व युवाओं के दिलों पर अंकित है। यह नारा राष्ट्र के प्रति प्रतिबद्धता, कर्तव्य और जिम्मेदारी
का अहसास कराता है। इसलिए हमें अपनी स्वतंत्रता को मजबूती देने के लिए अपने प्रयासों में दृढ़ रहना होगा, जो महान बलिदानों और प्रयासों से प्राप्त हुई है।
उनका प्रसिद्ध युद्ध नारा ‘‘दिल्ली चलो’’ उनके दृढ़ संकल्प का एक महान संकेतक नारा था। इसी नारे को ध्येय मानकर आजाद हिंद फौज ने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी। उनका विचार था कि हमें अपनी राष्ट्रीय रक्षा को ऐसी मजबूत नीव रखनी चाहिए कि भविष्य में भी हमारी स्वतंत्रता पर कभी भी आंच न आए।
यह हमारे लिए खुशी की बात है कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के
नेतृत्व में भारत एक महाशक्ति के रूप में उभर रहा है। आज हम स्वतंत्रता के 75 वर्ष के रूप में ‘‘आजादी का अमृत महोत्सव’’ मना रहे हैं। इन अमृत महोत्सव के कार्यक्रमों के माध्यम से आज के युवाओं और अपने बच्चों को महान स्वतंत्रता आंदोलनकारी विभूतियों से अवगत कराना होगा और उनमें ‘राष्ट्र पहले’ की भावना पैदा करनी होगी। युवा पीढ़ी को महान स्वतंत्रता सेनानियों की कुर्बानियों की कहानियों के बारे में बताने की जरूरत है कि किस प्रकार से सुभाष चंद्र बोस, अन्य नेताओं व वीर शहीदों ने हमारे स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन
में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
नेताजी, जिनकी जयंती हम हर साल ‘‘पराक्रम दिवस’’ के रूप में मनाते हैं, उन्होंने कहा था ‘‘राष्ट्रवाद मानव जाति के उच्चतम आदर्शों, सत्यम, शिवम, और सुंदरम से प्रेरित हैं। भारत में राष्ट्रवाद ने उन रचनात्मक शक्तियों को जगाया है जो सदियों से हमारे लोगों में निष्क्रिय पड़ी थीं।
सुभाष चंद्र बोस : स्वतंत्रता के महानायक
23 जनवरी 1897 का दिन विश्व इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है। इस दिन स्वतंत्रता आंदोलन के महानायक सुभाषचन्द्र बोस का जन्म कटक के प्रसिद्ध वकील जानकीनाथ तथा प्रभावतीदेवी के यहां हुआ।
उनके पिता ने अंगरेजों के दमनचक्र के विरोध में 'रायबहादुर' की उपाधि लौटा दी। इससे सुभाष के मन में अंगरेजों के प्रति कटुता ने घर कर लिया।
अब सुभाष अंगरेजों को भारत से खदेड़ने व भारत को स्वतंत्र
कराने का आत्मसंकल्प ले, चल पड़े राष्ट्रकर्म की राह पर।
आईसीएस की परीक्षा में उत्तीर्ण होने के बाद सुभाष ने आईसीएस से इस्तीफा दिया। इस बात पर उनके पिता ने उनका मनोबल बढ़ाते हुए कहा- 'जब तुमने देशसेवा का व्रत ले ही लिया है, तो कभी इस पथ से विचलित मत होना।'
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सुभाष चंद्र बोस भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक ऐसा अध्याय लिख गए, जिसमें नए-नए पन्ने जुड़ते रहे
भारतीय नेतृत्व को वैश्विक पहचान दिलाने का श्रेय नेताजी सुभाष चंद्र बोस को ही जाता है। सुभाष चंद्र बोस का स्वतंत्रता के लिए संघर्ष भारत ही नहीं बल्कि तीसरी दुनिया के तमाम देशों के लिए प्रेरक साबित हुआ।
[ प्रहलाद सिंह पटेल ]: नेताजी सुभाष चंद्र बोस की कहानी संघर्ष की कहानी है। यह एक ऐसे युवा की कहानी है, जो अपनी भुजाओं की ताकत से जमीन को चीरने का माद्दा रखता है। जो आसमान में सुराख करने की बात कहता है। जो अपनी मंजिलें अपने पुरुषार्थ से हासिल करने को आतुर रहता हो। जिसे कुछ भी मुफ्त में मंजूर नहीं हो। अगर आजादी भी चाहता है तो अपना खून देकर। नेताजी की एक आवाज पर हजारों लोगों ने अपने प्राण न्योछावर कर दिए। अंग्रेजों के खिलाफ देखते ही देखते उन्होंने पूरी एक फौज खड़ी कर दी। उनके कंठ से निकला नारा ‘जय हिंद’ आज भी देश के हर नागरिक की जुबान पर रहता है। नेताजी का जन्म कटक में हुआ। बंगाल में उनकी कॉलेज की पढ़ाई हुई।
आइसीएस अफसर के रूप में मिली सुविधा की जिंदगी पसंद नहीं थी
आइसीएस अफसर बनकर उन्होंने अपनी काबिलियत का लोहा अपने दुश्मनों को भी मनवा दिया, लेकिन उन्हें अफसरी से मिली सुविधा की जिंदगी पसंद नहीं थी। वह तो योद्धा थे, जिन्हें स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई लड़नी थी। उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन को न सिर्फ तहे दिल से अंगीकार किया, बल्कि ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा’ का नारा देकर खुद आजादी की प्रेरणा बन गए। वह इसी हुंकार के साथ पूरे देश को जगाने में लग गए। उनके विचारों और व्यक्तित्व में ऐसा करिश्मा था कि जो भी सुनता, वह उनका हो जाता। उनकी लोकप्रियता आसमान चूमने लगी और वह जन-जन के नेताजी हो गए।
नेताजी ने जन-जन में आजादी के संघर्ष की अलख जगा दी
भारत माता से उन्हें इतना लगाव था कि गुलामी की जंजीरों में बंधा देश उन्हें चैन से रहने नहीं देता था। देशप्रेम की वजह से उन्हें देश की सीमाओं के पार भी लोग पसंद करने लगे। बड़े-बड़े देशों के राष्ट्राध्यक्ष उनके साथ जुड़ने लगे। इसके बाद नेताजी ने देश के बाहर भी आजादी के संघर्ष की अलख जगा दी। उन्होंने देश के दुश्मनों का सामना करने के लिए आजाद हिंद फौज के रूप में एक नई ताकत खड़ी कर दी। उन्होंने एक नए हौसले के साथ ‘दिल्ली चलो’ का नारा दिया और हिंदुस्तान को आजाद कराने के लिए कूच कर दिया। उनकी 60 हजार की फौज में से करीब 26 हजार जवानों ने अपने प्राण देश की आजादी के लिए न्योछावर कर दिए। इसकी अंतिम परिणति अंग्रेजों के भारत छोड़कर भागने में हुई।
नेताजी ने कभी भी गांधी जी के लिए अपमान की भाषा नहीं बोली
सुभाष चंद्र बोस ने हमेशा अपनी इस सोच को जिया और दूसरों को जीने के लिए प्रेरित भी किया कि ‘सफलता हमेशा असफलता के स्तंभ पर खड़ी होती है।’ नेताजी को बार-बार असफलताएं मिलीं, मगर उन्होंने उन असफलताओं को अपने संघर्ष से विजयगाथा में परिवर्तित कर दिया। नगर निगम की राजनीति हो, आम कांग्रेसी से कांग्रेस अध्यक्ष बनने तक का सफर हो, फॉरवर्ड ब्लॉक की स्थापना हो या फिर आजाद हिंद फौज का संघर्ष, वह हर कसौटी पर महारथी बनकर उभरे। सुभाष चंद्र बोस ने महात्मा गांधी का नेतृत्व माना, मगर विडंबना देखिए कि खुद गांधी जी ही उनके कांग्रेस छोड़ने की वजह बन गए, लेकिन दोनों नेताओं में हमेशा एक-दूसरे के प्रति सम्मान बना रहा। नेताजी ने कभी भी गांधी जी के लिए अपमान की भाषा नहीं बोली।
नेताजी ने ‘आजाद हिंद फौज’ का गठन किया और 1943 में आजाद सरकार भी बना ली
नेताजी दो-दो बार कांग्रेस अध्यक्ष निर्वाचित हुए, मगर पहले अध्यक्ष का पद छोड़ा, फिर कांग्रेस ही छोड़ दी। इसके बाद वह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक ऐसा अध्याय लिख गए, जिसमें नए पन्ने जुड़ते रहे। वर्ष 1939 और उसके बाद जब कांग्रेसी और कम्युनिस्ट देश की आजादी के बारे में अपना रुख साफ नहीं कर पा रहे थे, तब सुभाष चंद्र बोस आजादी का सपना लेकर दुनिया के कई शासनाध्यक्षों से मिल चुके थे। उन्होंने ‘आजाद हिंद फौज’ का गठन ही नहीं किया, बल्कि 21 अक्टूबर, 1943 को आजाद सरकार भी बना ली। जर्मनी, इटली, जापान, आयरलैंड, चीन, कोरिया, फिलीपींस समेत नौ देशों की मान्यता भी इस सरकार को मिल गई।
भारत की आजादी में सुभाष चंद्र बोस का बड़ा योगदान था
भारत की आजादी के समय ब्रिटेन के प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली थे। वह 1956 में कलकत्ता आए थे। उस समय उनके मेजबान जस्टिस पीबी चक्रवर्ती ने उनसे यह जानने की कोशिश की थी कि ऐसी कौन-सी बात थी जिस वजह से अंग्रेजों ने भारत को आजादी देना स्वीकार कर लिया था? जवाब में एटली ने कहा था कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज की बढ़ती सैन्य गतिविधियों के कारण ब्रिटिश राजसत्ता के प्रति भारतीय सेना और नौसेना में वफादारी घट रही थी। यह एक प्रमुख कारण था। इससे पता चलता है कि भारत की आजादी में सुभाष चंद्र बोस का कितना बड़ा योगदान था। इसी कारण वह देश भर में लोकप्रिय हैं।
सुभाष चंद्र बोस की कई भाषाओं पर मजबूत पकड़ थी
सुभाष चंद्र बोस की अंग्रेजी, हिंदी, बांग्ला, तमिल, तेलुगु, गुजराती और पश्तो भाषाओं पर मजबूत पकड़ थी। आजार्द ंहद फौज में वह इन भाषाओं के माध्यम से पूरे देश की जनता से संवाद करते रहे और संदेश भी देते रहे। नेताजी का अपने सहयोगियों के लिए संदेश था-‘सफलता का दिन दूर हो सकता है, लेकिन उसका आना अनिवार्य है।’ वह कहा करते थे कि जिस व्यक्ति के अंदर ‘सनक’ नहीं होती, वह कभी महान नहीं बन सकता। गीता का पाठ करना उन्होंने कभी नहीं छोड़ा।
नेताजी का स्वतंत्रता के लिए संघर्ष भारत ही नहीं, बल्कि तीसरी दुनिया के लिए प्रेरक साबित हुआ
नेताजी भारत में रहकर 11 बार कैद हुए, मगर उन्होंने कैद से छूटने का ‘हुनर’ भी दिखाया और दुनिया के तमाम शीर्ष नेताओं से मिलकर अपना उद्देश्य पाने की ‘सनक’ भी दिखाई। भारतीय नेतृत्व को वैश्विक पहचान दिलाने का श्रेय सुभाष चंद्र बोस को ही जाता है। सुभाष चंद्र बोस का स्वतंत्रता के लिए संघर्ष भारत ही नहीं, बल्कि तीसरी दुनिया के तमाम देशों के लिए प्रेरक साबित हुआ। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद अगले 15 वर्षों में तीन दर्जन एशियाई देशों में आजादी के तराने गाए गए। यह उन्हें वैश्विक स्तर पर ‘आजादी का नायक’ स्थापित करता है।
( लेखक केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन राज्य मंत्री हैं )
Edited By: Bhupendra Singh