भारत का तिरंगा सबसे पहले कब फहराया गया? - bhaarat ka tiranga sabase pahale kab phaharaaya gaya?

हाइलाइट्स

  • 1857 को मनाया था पहला स्वतंत्रता संग्राम 

  • पेरिस में भी फहराया गया था ध्वज 

भारत के राष्ट्रीय ध्वज में 1906 से लेकर साल 1947 तक अलग-अलग बदलाव आए हैं. आज जो हमें ध्वज दिखता है वह पहले से वाले काफी अलग है. इसी को लेकर इतिहासकार कपिल कुमार कहते हैं कि भारत के राष्ट्रीय ध्वज का इतिहास बहुत पुराना है. वर्तमान में जो हमारे देश राष्ट्रीय ध्वज है, उससे पहले कई बार ध्वज बदल चुके हैं. अशोक चक्र वाले इस झंडे के राष्ट्रीय ध्वज बनने की कहानी बहुत लंबी है और इस यात्रा में भारत के कई झंडे रह चुके हैं.

1857 को मनाया था पहला स्वतंत्रता संग्राम 

इतिहासकार कपिल बताते हैं कि 1857 को हमने पहला स्वतंत्रता संग्राम मनाया था. उस दौरान सबका अपना-अपना झंडा था, लेकिन पहली बार क्रांतिकारियों ने एक झंडे को अपना झंडा बनाया. वह एक हरे रंग का झंडा था जिसके ऊपर कमल था. आजाद हिंदुस्तान की पहली लड़ाई के लिए यही वो झंडा था जिसे फहराया गया था. 

उन्होंने आगे बताया कि साल 1906 में कोलकाता के पारसी बागान चौक पर तिरंगा फहराया गया था. इस पर हरे पीले और लाल रंग से बनाया गया था. इसके मध्य में वंदे मातरम भी लिख गया था.

पेरिस में फहराया गया ध्वज 

इतिहासकार कपिल बताते हैं कि उसके बाद 1907 में मैडम कामा द्वारा भारतीय क्रांतिकारियों की मौजूदगीमें  पेरिस में यह ध्वज फहराया गया था. इसमें 1906 वाले तिरंगे से कुछ ज्यादा बदलाव नहीं थे,  लेकिन इसमें सबसे ऊपर लाल पट्टी का रंग केसरिया का और कमल के बजाय सात तारे थे जो सप्त ऋषि का प्रतीक थे. इसमें आखरी पट्टे पर सूरज और चांद भी अंकित किए गए थे.

कब आया तीसरा झंडा?

कपिल का कहना है कि साल 1917 में जब राजनीतिक संघर्ष ने एक नया मोड़ लिया तब तीसरा झंडा आया.  कह सकते हैं कि होमरूल आंदोलन की आड़ में तीसरे ध्वज को रूप दिया गया. डॉ. एनी बेसेंट और लोकमान्‍य तिलक ने घरेलू शासन आंदोलन के दौरान इसे फहराया था. इस ध्वज में पांच लाल और चार हरी क्षितिज पट्टियां थीं. इसमें खास तौर पर यूनियन जैक भी मौजूद थे. यानी की प्राचीन परंपरा को दर्शाते हुए  सप्तऋषि, और एकता दिखाने के लिए चांद और तारे मौजूद थे. इस तिरंगे से यह दिखाने की कोशिश की गई कि इससे स्वतंत्रता तो नहीं मिली लेकिन स्वयं शासन का अधिकार जरूर मिला.

इसके बाद कुछ ऐसा रहा राष्ट्रिय ध्वज का सफर

इतिहासकार कपिल बताते हैं कि इसके बाद साल 1921 में जब भारत अंग्रेजो की गुलामी से आजाद होने की कोशिश कर रहा था उस वक्त यह दो रंगों का बना था, जिसमें लाल-हरा मौजूद था. गांधी जी ने सुझाव दिया था कि भारत के शेष समुदाय का प्रतिनिधित्‍व करने के लिए इसमें एक सफेद पट्टी और राष्‍ट्र की प्रगति का संकेत देने के लिए एक चलता हुआ चरखा होना चाहिए. इसलिए इस वक्त इसमें चरखा भी जोड़ा गया. 

इसी के बीच एक महत्वपूर्ण झंडा और है जिसका जिक्र कहीं पर नहीं है. यह वो झंडा है जो नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने जर्मनी में भारतीय रीजन बनाने के बाद फहराया था. उस तिरंगे में भी ऊपर केसरिया, बीच में सफेद, नीचे हरा और बीच में एक टाइगर मौजूद था. यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण झंडा है.

जब आया तिरंगा में अशोक चक्र 

कपिल आगे कहते हैं, “बहरहाल 1931 में ध्वज को केसरिया, सफेद और हरे रंग के साथ, मध्‍य में गांधी जी के चलते हुए चरखे का साथ मिला. इसके बाद अशोक चक्र का सफर आता है. ये साल 1947 था. जिसमें सावरकर ने चरखे की कमेटी को एक टेलीग्राम भेजा था. उन्होंने कहा था कि तिरंगे के बीच में मध्य में अशोक चक्र होना चाहिए.” 

बता दिन, 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा ने इसे आजाद भारतीय राष्‍ट्रीय ध्‍वज के रूप में अपनाया. इतिहासकार कपिल कहते हैं कि स्‍वतंत्रता मिलने के बाद इसके रंग और उनका महत्‍व बना रहा. अशोक चक्र होने का महत्व यह है कि अशोक चक्र अखंड भारत को परिभाषित करता है. क्योंकि अशोक का साम्राज्य अफगानिस्तान से लेकर नीचे तक मौजूद था तो इसीलिए अशोक चक्र एक बड़े, दिव्य और विशाल भारत का प्रतीक बनता है.

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Republic Day 2022: गणतंत्र दिवस (Republic Day) आ गया है, घर से लेकर बाजार तक हर जगह अब हमारा प्‍यारा तिरंगा झंडा लहराता दिख रहा है। हर देशवासी अपने इस झंडे से जितना प्‍यार करता है, उतना ही इसकी गरिमा बनाए रखने के लिए मेहनत भी करता है। इस झंडे की आन-बान-शान को बनाए रखने के लिए अब तक हजारों सैनिकों ने अपनी कुर्बानी दी है। झंडे के मौजूदा स्‍वरूप को 22 जुलाई 1947 भारतीय संविधान सभा की बैठक के दौरान अपनाया गया, तब से झंडे का यही डिजाइन है।

अभी ऐसा है हमारा प्‍यारा तिरंगा

तिरंगे झंडे में नाम के अनुसार तीन अलग-अलग रंग की पट्टियां दी गई हैं। जिनमें सबसे ऊपर केसरिया रंग की पट्टी है, जो देश की ताकत और साहस को दर्शाती है। वहीं बीच में श्वेत पट्टी धर्म चक्र के साथ शांति और सत्य का संकेत है। नीचे गहरे हरे रंग की पट्टी देश के शुभ, विकास और उर्वरता को दर्शाती है। वहीं झंडे की चौड़ाई और लंबाई का अनुपात 2-3 का होता है। झंडे के बीच में सफेद पट्टी पर नीले रंग का अशोक चक्र होता है, जिसमें 24 तीलियां होती है।

देश का पहला झंडा 7 अगस्‍त 1906 को फहराया गया

आजादी से पहले 7 अगस्‍त 1906 को पारसी बागान चौक, कोलकत्‍ता में पहला ध्‍वज फहराया गया था, जिसे उस समय क्रांतिकारियों ने राष्‍ट्रीय ध्‍वज की संज्ञा दी थी। इस ध्‍वज में हरे, पीले और लाल रंग की पट्टियां थी। हरे रंग की पट्टी पर जहां कमल का फूल था, वहीं बीच में पीले रंग पर वंदेमातरम व लाल रंग पर चांद-सूरज बने थे।

दूसरा झंडा पेरिस में फहराया गया

देश का दूसरा झंडा पेरिस में फहराया गया था, हालांकि इसके समय को लेकर इतिहासकारों में मतभेद है। कुछ का कहना है कि क्रांतिकारी मैडम कामा और उनके साथियों द्वारा यह झंडा 1907 में फहराया गया था, वहीं कुछ का कहना है कि यह घटना 1905 में हुई थी। यह ध्‍वज भी रंग में पहले जैसा ही था, लेकिन डिजाइन में थोड़ा बदलाव किया गया था। इसमें ऊपर की पट्टी पर केवल एक कमल और सात तारे थे, जो सप्‍तऋषि तारे को दर्शाते हैं। यह झंडा बर्लिन में हुए समाजवादी सम्‍मेलन में भी प्रदर्शित किया गया था।

बीसेंट और तिलक ने फहराया तीसरा झंडा

देश का तीसरा झंडा घरेलू शासन आंदोलन के दौरान डॉ एनी बीसेंट और लोकमान्‍य तिलक ने 1917 में फहराया था। इस झंडे में 5 लाल और 4 हरी क्षैतिज पट्टियां थी। इसमें भी सप्‍तऋषि के अभिविन्‍यास में इस पर बने सात सितारे थे, वहीं बांई और ऊपरी किनारे पर यूनियन जैक था, एक कोने में सफेद अर्धचंद्र और सितारा भी था।

अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी में फहरा चौथा झंडा

आंध्र प्रदेश में एक युवक ने अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सत्र में चौथा ध्वज फहराया था। जिसे बाद में उसने गांधी जी को सौंप दिया। यह कार्यक्रम साल 1921 में विजयवाड़ा में किया गया था। यह झंडा लाल और हरे रंग में बना था, जिसमें देश के दो प्रमुख समुदायों अर्थात हिन्‍दू और मुस्लिम का प्रतिनिधित्‍व दिया गया था। झंडे को देखने के बाद गांधी जी के सुझाव पर इसमें शेष समुदाय का प्रतिनिधित्‍व करने के लिए सफेद पट्टी और एक चलता हुआ चरखा जोड़ा गया।

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सन् 1931 में मिला पांचवा झंडा

पांचवे झंडे को पहली बार राष्‍ट्रीय ध्‍वज के रूप में अपनाने के लिए एक प्रस्‍ताव पारित किया गया। यह झंडा अभी वाले झंडे से थोड़ा ही अलग था, इसमें अशोक चक्र की जगह चरखा था, बाकि रंग और उसका अनुपात समान था। इस ध्‍वज को साल 1931 में लाया गया था।

छठां झंडा तिरंगा

तिरंगा को 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा ने स्‍वतंत्र भारतीय राष्‍ट्रीय ध्‍वज के रूप में अपनाया। इसमें सिर्फ एक बदलाव किया गया, चरखे की जगह धर्म चक्र अशोक को रखा गया। तब से आज तक हमारे प्‍यारे तिरंगे का स्‍वरूप वही है। जिस पर सभी देशवासी गर्व करते हैं।

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सबसे पहले तिरंगा कब फहराया?

इसे पहली बार 15 अगस्त 1947 को फहराया गया था। तिरंगे का पहला रंग केसरिया जो देश की ताकत और साहस का प्रतीक है। वहीं सफेद शांति और सच्चाई का और हरा रंग समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। बीच में लगे नीले रंग के आशोक चक्र की 24 तीलियां ये बताती हैं कि जीवन गतिशील है।

सबसे पहले भारत का झंडा कब और कहां फहराया गया?

पहला ध्वज : 1906 इस ध्वज को 7 अगस्त, 1906 को 'बंगाल विभाजन' के विरोध में पारसी बागान चौक (ग्रीन पार्क) कलकत्ता में फहराया गया था. यह हरे, पीले और लाल रंग की क्षैतिज पट्टियों से बना था. ऊपर की ओर लगी हरी पट्टी में सफेद रंग के आठ अधखिले कमल के फूल थे और नीचे की लाल पट्टी में सूरज और चांद बने हुए थे.