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World Population Day 2022: दुनियाभर में 11 जुलाई को हर साल विश्व जनसंख्या दिवस (World Population Day) मनाया जाता है. पहले इस दिन जनसंख्या के साथ-साथ इंसान के विकास और प्रगति को सेलिब्रेट किया जाता था. लेकिन अब केवल लोगों को बढ़ती जनसंख्या नियंत्रण और बढ़ती जनसंख्या की खामियां बताते हुए जागरूक किया जाता है. इस बार की वर्ल्ड पॉपुलेशन डे थीम भी इसी पर रखी गई है. कब और कैसे मनाया जाने लगा विश्व जनसंख्या दिवस? जनसंख्या दिवस का महत्व विश्व जनसंख्या दिवस 2022 की थीम सम्बंधित ख़बरेंबता दें कि पिछले साल 2021 में कोरोना वायरस (COVID-19) के चलते विश्व जनसंख्या दिवस 2021 की थीम 'कोविड-19 महामारी का प्रजनन क्षमता पर प्रभाव' थी. यह वैश्विक स्तर पर यौन और प्रजनन स्वास्थ्य और प्रजनन व्यवहार पर कोविड -19 महामारी के प्रभाव के प्रति जागरूक करने के लिए मनाया गया था.
विश्व जनसंख्या दिवस (अंग्रेज़ी: World Population Day) प्रत्येक वर्ष 11 जुलाई को मनाया जाता है। अत्यधिक तेज़ गति से बढ़ती जनसंख्या के प्रति लोगों में जागरूकता लाने के उद्देश्य से ही यह दिवस मनाया जाता है। यह जागरूकता मानव समाज की नई पीढ़ियों को बेहतर जीवन देने का संदेश देती है। बच्चों को बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य, वातावरण सहित अन्य आवश्यक सुविधाएँ भविष्य में देने के लिए छोटे परिवार की महती आवश्यकता निरन्तर बढ़ती जा रही है। प्राकृतिक संसाधनों का समुचित दोहन कर मानव समाज को सर्वश्रेष्ठ बनाए रखने और हर इंसान के भीतर इन्सानियत को बरकरार रखने के लिए यह बहुत ज़रूरी हो गया है कि 'विश्व जनसंख्या दिवस' की महत्ता को समझा जाए। शुरुआत'विश्व जनसंख्या दिवस' वर्ष 1987 से मनाया जा रहा है। 11 जुलाई, 1987 में विश्व की जनसंख्या 5 अरब को पार कर गई थी। तब संयुक्त राष्ट्र ने जनसंख्या वृद्धि को लेकर दुनिया भर में जागरूकता फैलाने के लिए यह दिवस मनाने का निर्णय लिया। तब से इस विशेष दिन को हर साल एक याद और परिवार नियोजन का संकल्प लेने के दिन के रूप में याद किया जाने लगा। हर राष्ट्र में इस दिन का विशेष महत्व है, क्यूँकि आज दुनिया के हर विकासशील और विकसित दोनों तरह के देश जनसंख्या विस्फोट से चिंतित हैं। विकासशील देश अपनी आबादी और जनसंख्या के बीच तालमेल बैठाने में मथ्थापच्ची कर रहे हैं, तो विकसित देश पलायन और रोजगार की चाह में बाहर से आकर रहने वाले शरणार्थियों की वजह से परेशान हैं।[1] जनसंख्या विस्फोटआज विश्व की जनसंख्या लगभग 7 अरब से भी ज़्यादा है। भारत की जनसंख्या लगभग 1 अरब, 21 करोड़, 1 लाख, 93 हज़ार, 422 है।[2] भारत की पिछले दशक की जनसंख्या वृद्धि दर 17.64 प्रतिशत है। विश्व की कुल आबादी का आधा या कहें इससे भी अधिक हिस्सा एशियाई देशों में है। चीन, भारत और अन्य एशियाई देशों में शिक्षा और जागरुकता की कमी की वजह से जनसंख्या विस्फोट के गंभीर खतरे साफ दिखाई देने लगे हैं। स्थिति यह है कि अगर भारत ने अपनी जनसंख्या वृद्धि दर पर रोक नहीं लगाई तो वह 2030 तक दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाला देश बन जाएगा। भारत में बच्चों की जन्म दरभारत में हर एक मिनट में 25 बच्चे पैदा होते हैं। यह आंकड़ा उन बच्चों का है, जो अस्पतालों में जन्म लेते हैं। अभी इसमें गांवों और कस्बों के घरों में पैदा होने वाले बच्चों की संख्या नहीं जुड़ी है। एक मिनट में 25 बच्चों का जन्म यह साफ करता है कि आज चाहे भारत में कितनी भी प्रगति हुई हो या भारत शिक्षित होने का दावा करे, किंतु यह भी एक सच्चाई है कि अब भी देश के लोगों में जागरुकता नाम मात्र की ही आई है। जागरुकता के नाम पर भारत में कई कार्यक्रम चलाए गए- 'हम दो हमारे दो' का नारा लगाया गया, लेकिन लोग 'हम दो हमारे दो' का बोर्ड तो दीवार पर लगा देख लेते हैं, लेकिन घर जाकर उसे बिल्कुल भूल जाते हैं और तीसरे की तैयारी में जुट जाते हैं। भारत में ग़रीबी, शिक्षा की कमी और बेरोजगारी ऐसे अहम कारक हैं, जिनकी वजह से जनसंख्या का यह विस्फोट प्रतिदिन होता जा रहा है। आज जनसंख्या विस्फोट का आतंक इस कदर छा चुका है कि 'हम दो हमारे दो' का नारा भी अब असफल सा हो गया है। इसलिए भारत सरकार ने नया नारा दिया है- "छोटा परिवार, संपूर्ण परिवार"। छोटे परिवार के कई फायदे हैं- बच्चों को अच्छी परवरिश मिलती है, अच्छी शिक्षा से एक बच्चा दो बच्चों के बराबर कमा सकता है, बच्चे और माँ का स्वास्थ्य हमेशा अच्छा रहता है, जिससे दवाइयों का अतिरिक्त खर्चा बचता है। यह ऐसे फायदे हैं, जो एक छोटे परिवार में होते हैं।[1] जनसंख्या की स्थितिसम्पूर्ण विश्व में चीन को अपनी 1.3 अरब जनसंख्या के चलते विश्व में प्रथम स्थान हासिल है। वहीं दूसरी ओर भारत भी अपनी 1.2 अरब जनसंख्या के साथ विश्व में दूसरे नंबर पर है। विशेषज्ञों ने चिंता जताई है कि अगर भारत की जनसंख्या इसी दर से बढ़ती रही तो 2030 तक उसे विश्व में प्रथम स्थान हासिल हो जायेगा। अभी हाल के जनसंख्या परिणामों के अनुसार भारत की आबादी 120 करोड़ से अधिक है, जो अमेरिका, इंडोनेशिया, ब्राजील, पाकिस्तान और बांग्लादेश की कुल जनंसख्या से ज्यादा है। ध्यान देने योग्य है कि भारत के कई राज्य विकास में भले ही पीछे हों, परन्तु उनकी जनसंख्या विश्व के कई देशो की जनसंख्या से अधिक है, जैसे- तमिलनाडु की जनसंख्या फ़्रांस की जनसंख्या से अधिक है तो वहीं ओडिशा अर्जेंटीना से आगे है। मध्य प्रदेश की जनसंख्या थाईलैंड से ज्यादा है तो महाराष्ट्र मेक्सिको के बराबर आ रहा है। उत्तर प्रदेश ने ब्राजील को पीछे छोड़ा है तो राजस्थान ने इटली को पछाड़ा है। गुजरात ने दक्षिण अफ्रीका को और पश्चिम बंगाल ने वियतनाम को पीछे छोड़ा है। यही नहीं भारत के छोटे-छोटे राज्यों, जैसे- झारखण्ड, उत्तराखण्ड, केरल, आसाम ने भी कई देशों, जैसे- उगांडा, ऑस्ट्रिया, कनाडा, उज़्बेकिस्तान को बहुत पीछे छोड़ दिया है। अपनी इस उपलब्धि के साथ यह कह सकते है कि भारत में जनसंख्या के आधार पर विश्व के कई देश बसते है। परन्तु यह भी सच है कि भारत के पास विश्व का मात्र 2.4 प्रतिशत क्षेत्र है, परिणामतः संसाधनों के मामले में हम कहीं ज़्यादा पीछे है, जिससे चिंतित होकर एक बार पूर्व ग्रामीण मंत्री रघुवंश प्रसाद ने यहाँ तक कह दिया था कि- "भले ही क्षेत्र और संसाधन के मामले में अमेरिका हमसे आगे हो, परन्तु जनसंख्या के कारण कई अमेरिका भारत में मौजूद है।"[3] स्वास्थ्य सेवा पर असरदेश की बढ़ती जनसंख्या से स्वास्थ्य सेवा भगवान भरोसे ही है, अगर ऐसा माना जाय तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। एक तरफ जहाँ चिकित्सा-पर्यटन को बढ़ावा देने की बात की जाती है तो वहीं देश का दूसरा पक्ष कुछ और ही बयान करता है, जिसका अंदाज़ा आये दिन देश के विभिन्न भागों से आये राजधानी दिल्ली के सरकारी अस्पतालों के आगे जमा भीड़ को देखकर लगाया जा सकता है, जहाँ एक छोटी बीमारी की इलाज के लिए ग्रामीण इलाके के लोगों को दिल्ली स्थित एम्स आना पड़ता है। भारत की स्वास्थ्य सेवा के प्रति जनसंख्या नियंत्रण पर लापरवाही की तस्वीर से अंदाज़ा लगाया जा सकता है। आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में शहरों की अपेक्षा मृत्यु-दर ज्यादा है। एक आकड़े के मुताबिक़ आजादी के इतने वर्षों के बाद भी इलाज़ के अभाव में प्रसव काल में 1000 मे 110 महिलाये दम तोड़ देती हैं। ध्यान देने योग्य है कि यूएनएफपीए के कार्यकारी निदेशक ने प्रसव स्वास्थ्य सेवा पर चिंतित होते हुए कहा है कि- "विश्व भर में प्रतिदिन लगभग 800 से अधिक महिलाये प्रसव के समय दम तोड़ देती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की अगर माने तो प्रसव के समय दम तोड़ने वाली महिलाओ में 99 प्रतिशत महिलाये विकाशसील देशों से सम्बंधित हैं, जबकि प्रायः उन्हें बचाया जा सकता है।" सीआईए के आकड़ों के अनुरूप शिशु मृत्यु-दर सबसे कम मोनैको देश में है, जहाँ 1.8 बच्चे ही काल-ग्रसित होते हैं। वहीं भारत में स्थिति बिलकुल उल्टी है। भारत में आज भी एक हजार बच्चों में से 46 बच्चे काल के शिकार हो जाते हैं और 40 प्रतिशत से अधिक बच्चे कुपोषण के शिकार हो जाते हैं।[3] शिशु मृत्यु दरबच्चों को जन्म देने वाली माँ के शरीर से जब बार-बार जन्म लेते बच्चों के रूप में प्राणिक तत्व बाहर निकलता है, तब वह क्रमश: अधिक कमज़ोर बच्चों को जन्म देने को विवश होती है। ये कमज़ोर बच्चे अगर एक वर्ष की उम्र तक नहीं बच पाते, तो हमारी शिशु मृत्यु दर बढ़ जाती है। शिशु मृत्यु दर फिलहाल छत्तीसगढ़ में 70 प्रतिशत प्रति हजार जीवित जन्म है, जो कि ग्रामीण क्षेत्र में, जहाँ जन्म दर अधिक है और शिक्षा का स्तर कम है, 85 है, तथा शहरों में 51 है। शिशु को जन्म देते हुए कमज़ोर माता की मृत्यु भी हो सकती है। यहाँ अधिकतर प्रसव घरों में अप्रशिक्षित दाई के द्वारा होता रहा है, जहाँ भावी माता की आकस्मिक परिचर्या, रक्तदान, शल्य चिकित्सा की कोई व्यवस्था नहीं होती। आज भी छग में 14 लाख ग्रामीण परिवार ग़रीबी रेखा के नीचे जीते हैं, ऐसे में माता की खुराक में तथा अधिक बच्चों वाले परिवार में खानपान की अपर्याप्तता तो बनी ही रहती है।[4] रोजी-रोजगार पर प्रभावएक बच्चे के जन्म के पीछे एक महिला को कम से कम तीन माह की रोजी गंवानी होती है। जितने अधिक बच्चे होंगे, उतनी ही यह अवधि बढ़ती जायेगी। जनसंख्या बढ़ने से रोजगार के ऊपर दबाव और भी बढ़ेगा। देखा जाता है कि बेरोजगारों की पंजी में 8 लाख नाम दर्ज है, जबकि विगत वर्ष भर में मुश्किल से 6-7 हजार लोगों को रोजगार मिल पाया है। ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार के अवसर घटने पर लोग शहरों की ओर पलायन करते हैं। शहरों में एकाएक बढ़ी जनसंख्या के आवास की व्यवस्था संभव न होने से लोग झोंपड़-पट्टियों में या मलिन बस्तियाँ बना कर जैसे तैसे आवास करने लगते हैं। इससे मानव गरिमा को ठेस पहुँचती है और मानव अधिकारों का हनन होता है। अस्वास्थ्यकर परिस्थितियों के कारण लोगों में बीमारी फैलती है। बच्चों को शिक्षा व सही परवरिश नहीं मिल पाती। दिन-प्रतिदिन बढ़ती हुई जनसंख्या से मानव के खाने-पीने की वस्तुओं पर भी असर पड़ा है और रोजगार के अवसर सीमित हो गए हैं। प्राकृतिक संसाधनों का दोहनअमेरिका के डेली न्यूज में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार जानवरों की प्रजातियों में 30 प्रतिशत तक की गिरावट आई है, क्योंकि मानव ने अधिक से अधिक प्राकृतिक संसाधनों का दोहन शुरू कर दिया है। लगातार की जा वनों की कटाई से वृक्षों की संख्या में कमी हो रही है। साथ ही साथ पेयजल की समस्या भी मानव की सामने सिर उठाये खड़ी है। इस रिपोर्ट में यहाँ तक कहा गया है कि अगर मानव द्वारा प्राकृतिक संसाधनों का दोहन इसी प्रकार होता रहा और जनसंख्या में वृद्धि इसी रफ़्तार से बढ़ती रही तो वर्ष 2030 तक मानव को पृथ्वी जैसे दो ग्रहों की आवश्यकता और पड़ेगी। परिवार नियोजन कार्यक्रमविश्व की बेतहासा बढ़ती हुई जनसंख्या को रोकने में 'परिवार नियोजन कार्यक्रम' कारगर और अनुकरणीय पहल है। भारतीय प्राचीनतम मान्यताओं में बच्चों को ईश्वर की कृपा का स्वरूप माना जाता है, किन्तु वैज्ञानिक अविष्कारों और विज्ञान के बढ़ते प्रभाव से आज का आम व्यक्ति भी यह जानने और समझने लगा है कि बच्चों के जन्म को नियंत्रित किया जा सकता है। बच्चों के जन्म को नियंत्रित करने के लिए स्वास्थ्य विभाग द्वारा कई प्रकार के साधन नि:शुल्क उपलब्ध कराए जाते हैं। परिवार नियोजन के लिए उपलब्ध साधन उपयोग के आधार पर मुख्यत: दो प्रकार के होते हैं- स्थायी एवं अस्थायी। परिवार नियोजन के स्थायी साधन में महिला एवं पुरुष नसबंदी सबसे कारगर और उपयुक्त मानी जाती है। एन.एस.व्ही, बिना चीरा के पुरुष नसबंदी है। यह एक सरल एवं सुरक्षित विधि है, जिसमें उन नसों के दोनों सिरों को काटकर बांध दिया जाता है, जिससे शुक्राणुओं का प्रवाह होता है। ऐसा करने से शुक्राणुओं का प्रवाह वृषण से रूक जाता है और गर्भधारण नहीं होता। बिना चीरे के नसबंदी के लिए ऐसे व्यक्ति पात्र होते हैं, जिनका परिवार पूरा हो चुका हो, अर्थात् जिन्हें और बच्चों की चाह न हो। इसके लिए स्थाई गर्भ निरोधक साधन अपनाने वाले दम्पत्ति उपयुक्त माने जाते हैं।[2] इसी प्रकार महिलाओं द्वारा भी नसबंदी कराकर स्थायी रूप से परिवार नियोजन कराया जा सकता है। महिला नसबंदी के लिए भी आधुनिकतम विधियों का उपयोग कर इसे कारगर और कष्टरहित बनाया गया है। महिला नसबंदी वर्तमान में तीन प्रकार से की जाती है। चिकित्सकों के अनुसार सैलिपिंगो प्लास्टि, टयूबोक्टोमी एवं लाइगेशन पद्धति से महिलाओं की नसबंदी की जाती है। महिलाओं को नसबंदी के दौरान चिकित्सीय परामर्श तथा समय-समय पर महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ता द्वारा दिए जाने वाले परामर्श को ध्यानपूर्वक अपनाना होगा। चिकित्सकों के अनुसार बिना चीरे के पुरुष नसबंदी के कई लाभ हैं। इसे नानस्टिच वैसेक्टोमी (एन.एस.व्ही.टी.) भी कहते है। इस विधि मे किसी प्रकार का चीरा या टांका नहीं लगाया जाता, केवल सरसों के दाने के बराबर छेद कर नसबंदी किया जाता है। इस पूरी प्रक्रिया में 5 से 10 मिनट तक का समय लगता है और आधा घंटे पश्चात् संबंधित व्यक्ति अपने घर वापस जा सकता है। यह एक सुरक्षित विधि है और इससे मनुष्य की कामेच्छा में कोई कमी नहीं होती तथा किसी प्रकार की शारीरिक शिथिलता भी नहीं आती। बिना चीरे की नसबंदी कराने वाले दंपत्ति को लगभग तीन माह के लिए कोई भी अस्थायी गर्भ निरोधक साधन का उपयोग करना चाहिए। तीन माह बाद वीर्य परीक्षण कराने के पश्चात् शुक्राणुहीनता की स्थिति में अस्थायी साधन बंद कर देना चाहिए। परिवार नियोजन के अस्थायी साधन के रूप में मुख्य रूप से कॉपरटी, कण्डोम, गर्भ निरोधक गोलियाँ आदि साधनों का उपयोग किया जा सकता है। वर्तमान में परिवार नियोजन के कई साधन बाज़ार में प्रचलित हैं, किन्तु किसी भी साधन के उपयोग से पहले चिकित्सीय जांच करा लेना ज्यादा फायदेमंद साबित होता हैं। इन साधनों का उपयोग कर दो बच्चों के बीच में पर्याप्त अवधि का अंतर सुनिश्चित किया जा सकता है। 'विश्व जनसंख्या दिवस' के अवसर पर हर दम्पत्ति को जनसंख्या स्थिरीकरण के लिए अपने योगदान पर विचार करना होगा। जनसंख्या विस्फोट को रोकने के लिए आवश्यकतानुसार परिवार नियोजन के साधनों को अपनाकर मानव समाज के उत्तरोत्तर विकास में अपनी सहभागिता सुनिश्चित करनी होगी। मनुष्य को जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं के साथ ही साथ सर्वांगीण विकास के अवसर उपलब्ध हों, इसके लिए जनसंख्या स्थिरीकरण आवश्यक है।[2] जनसंख्या एक वरदानभारत की बढ़ती हुई जनसंख्या का एक दूसरा पहलू भी है। चिंता की बजाय यह आने वाले समय में वरदान भी बन सकती है। अगर हम पूंजीपतियों की मानें तो आने वाले समय में खपत की बहुलता के चलते भारत विश्व का सबसे बड़ा बाज़ार होगा। परिणामतः विश्व के बड़े-बड़े उद्योगपतियों की नजर भारत पर होगी। जिसकी शुरुआत वैश्वीकरण के नाम पर हो चुकी है। उदाहरणार्थ- ऑटोमोबाईल, शीतपेय जैसी कंपनियाँ भारत के हर नागरिक तक अपनी पहुँच बनाने को बेकरार है तो वहीं भारतीय बाज़ारों में मोबाईल कंपनियों की बाढ़-सी आ गयी है। और तो और भारतीय त्योहारों का भी पूंजीकरण कर समय-समय पर बाज़ार लोक लुभावने तरीके निकालकर उन्हें आकर्षित करने का प्रयास करता है। आर्थिक सुधार के नाम पर प्रत्यक्ष विदेशी निवेश जैसे भारत-सरकार विश्व के लिए हर संभव रास्ता खोलना चाह रही है। इतना ही नहीं दुनिया के बड़े-बड़े व्यापारी आज भारत में आना चाहते हैं। गुजरात इसका प्रमुख उदाहरण है। ध्यान देने योग्य है कि गुजरात सरकार कई विदेशी कंपनियों के साथ समझौते कर अपने यहाँ उनकी पूंजी निवेश कराकर विकास में भारत के सभी राज्यों से आगे है। इतना ही नहीं अगर हम एक गैर सरकारी संगठन के आकड़ों की मानें तो आने वाले समय में भारत में नवयुवकों, नवदम्पत्तियों की बहुलता होगी, जिसके चलते ये बाज़ार का केंद्र बिदु होंगे और इन्हें ध्यान में रखकर वस्तुओं का निर्माण किया जायेगा। भारत में सेवा-क्षेत्र सस्ता होने के कारण यहाँ पर प्रतिष्ठित कपनियों ने अपने-अपने कॉल सेंटर स्थापित किये हैं, जिससे लाखों लोगों को रोजगार उपलब्ध है। भारत अलग-अलग संस्कृतियों, भाषाओं और विविधता भरे विषयों वाला बाज़ार है। बाज़ार की यह विविधता ही वैश्वीकरण के दौर में मनोरंजन कंपनियों को स्थानीय भाषाओं और संस्कृति के हिसाब से वस्तुओं को बेचने का मौका देती है। बहरहाल दोनों पक्षों को ध्यान में रखकर जनसंख्या में हो रही बेतहासा वृद्धि के चलते सरकार को कुछ ठोस कदम उठाने चाहिए, जिससे कि जनसख्या विस्फोट के कारण हम किसी भयानक तस्वीर से रूबरू होने ना हो पाएँ। इसके साथ-साथ भारत सरकार को प्राथमिक शिक्षा के अलावा कौशल-विकास एवं अनुसंधान-केन्द्रित शिक्षा पर और अधिक ध्यान देने की ज़रूरत है, जिससे कि भारत में नए-नए आविष्कार और अनुसंधान को बढ़ावा मिले। क्योंकि जितने अधिक परिवार शिक्षित एवं जागरूक होंगे, उतनी ही शिशु मृत्युर और प्रसव के समय होने वाली महिलाओं की मौत की सम्भावनायें भी कम होंगी। जागरूकता को लेकर भारत सरकार का "पल्स-पोलियो उन्मूलन" का अभियान सराहनीय एवं अनुकरणीय है। ध्यान देने योग्य है कि 'विश्व स्वास्थ्य संगठन' ने भारत को पल्स-पोलियो जैसी गंभीर बीमारी से मुक्त घोषित किया है। इसी तर्ज़ पर सरकार को और अधिक प्रयास सभी क्षेत्रों में करने चाहिए, चाहे वह ग़रीबी-उन्मूलन हो, शिक्षा हो अथवा स्वास्थ्य, जिससे 'विश्व जनसंख्या दिवस' का भारत में सही उद्देश्य और अधिक बढ़ जाये।[3] पन्ने की प्रगति अवस्था
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँसंबंधित लेख
पहला जनसंख्या दिवस कब मनाया गया?इस विशेष दिन को मनाने के लिए 1989 में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की परिषद ने जनसंख्या के मुद्दे पर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का ध्यान आकर्षित करने के लिए हर साल 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस के रूप में नामित किया. इस तरह 11 जुलाई 1990 पहला विश्व जनसंख्या (World Population Day) दिवस बना.
जनसंख्या दिवस 2022 की थीम क्या है?बात अगर साल 2022 की थीम की करें, तो इस साल विश्व जनसंख्या दिवस की थीम '8 बिलियन की दुनिया: सभी के लिए एक लचीले भविष्य की ओर-अवसरों का दोहन और सभी के लिए अधिकार और विकल्प सुनिश्चित करना' है।
भारत में जनसंख्या नियंत्रण दिवस कब मनाया जाता है?हर साल 11 जुलाई को ये दिन मनाया जाता है. आइए जानें इसका इतिहास, महत्व और इस साल का थीम. हर साल 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस (World Population Day 2022) मनाया जाता है. इस दिन को जनसंख्या नियंत्रण के उद्देश्य से मनाया जाता है.
विश्व जनसंख्या कब मनाया जाता है?हर साल 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस मनाया जाता है. ये सिलसिला 1990 से चल रहा है. साल 1989 में यूनाइटेड नेशंस डेवलपमेंट प्रोग्राम (1989) की गवर्निंग काउंसिल ने 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस के तौर पर मनाने का फ़ैसला किया.
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