भारत में किस वर्ष घोर अकाल पड़ा था - bhaarat mein kis varsh ghor akaal pada tha

भारत में अकाल

First Published: December 28, 2020

भारत में किस वर्ष घोर अकाल पड़ा था - bhaarat mein kis varsh ghor akaal pada tha

भारत में अंग्रेजों के वर्चस्व के दौरान एक के बाद एक कई लगातार अकाल पड़े। ईस्ट इंडिया कंपनी के अधीन ब्रिटिश शासन के दौरान भारत को बारह अकालों और चार गंभीर अकाल की तरह संकटों का सामना करना पड़ा। उनमें से सबसे महत्वपूर्ण 1769-70 का बंगाल का महान अकाल था जिससे करोड़ों लोग मारे गए थे। राज्य सरकार ने कोई राहत के उपाय नहीं अपनाए। बल्कि कंपनी के कर्मचारियों ने इस कमी से बहुत लाभ कमाया। 1781-82 के वर्षों में चेन्नई में अत्यधिक संकट की अवधि थी। 1784 में गंभीर अकाल ने पूरे उत्तर भारत को प्रभावित किया। हालांकि चेन्नई अकाल के दौरान, राज्य ने अकाल प्रभावित क्षेत्रों को राहत प्रदान की। वर्ष 1803 के दौरान अवध सहित उत्तर पश्चिमी प्रांतों में अकाल पड़ा। 1833 के गुंटूर अकाल ने काफी लोगों का जीवन खत्म किया। वर्ष 1837 में उत्तरी भारत में भीषण अकाल पड़ा। राहत देने का काम धर्मार्थ जनता के लिए छोड़ दिया गया था। ईस्ट इंडिया कंपनी के तहत अकाल राहत या रोकथाम की किसी भी सामान्य प्रणाली को बनाने के लिए कोई उपाय नहीं अपनाया गया था। हालाँकि प्रांतीय सरकारों और जिलों के अधिकारियों ने स्थितियों को सुधारने की कोशिश की। अकाल पीड़ित क्षेत्रों को राहत प्रदान करने के लिए उन्होंने कई प्रयोग किए, जैसे कि सरकार द्वारा अनाज का भंडारण, जमाखोरी पर जुर्माना, आयात पर रोक, कुओं के लिए ऋण को आगे बढ़ाना आदि।
1860-61 के वर्ष में दिल्ली और आगरा के क्षेत्रों में अकाल पड़ा। इस समय के दौरान ब्रिटिश अधिकारियों ने अकाल के कारणों, क्षेत्र और तीव्रता के बारे में पूछताछ करना आवश्यक समझा और साथ ही संकट से निपटने के उपाय किए। 1865 के अकाल के बाद अकाल ने ओडिशा, चेन्नई, उत्तरी बंगाल और बिहार को प्रभावित किया। इन वर्षों में ओडिशा सबसे अधिक प्रभावित हुआ। ओडिशा में गंभीर अकाल के दौरान, सरकार ने मुक्त व्यापार के सिद्धांतों और मांगों और आपूर्ति के कानून का पालन किया। सरकार ने धर्मार्थ स्वैच्छिक संगठन को राहत देने का काम छोड़ दिया। चूंकि स्वैच्छिक संगठन ​​सरकार की तरह काम नहीं कर सकती थीं, इसलिए वे पर्याप्त राहत नहीं दे सके और परिणामस्वरूप ओडिशा के अकाल ने जीवन का भारी नुकसान किया। ओडिशा के अकाल ने भारतीय अकालों के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ दिया। ओडिशा अकाल की गंभीर आपदा के बाद जॉर्ज कैम्पबेल की अध्यक्षता में एक समिति नियुक्त की गई थी। 1868 में जब उत्तरी और मध्य भारत में भयंकर आपदा हुई, तो सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र राजपुताना और मध्य भारत थे। समिति की सिफारिशों का पालन करने वाली सरकार ने संकट को दूर करने के उपायों को अपनाया। 1876-78 का अकाल 19 वीं सदी की शुरुआत के बाद से शायद सबसे अधिक विपत्ति का अनुभव था। आपदा ने चेन्नई, मुंबई, उत्तर प्रदेश और पंजाब को प्रभावित किया। इस अकाल के कारण व्यापक क्षेत्रों को बंद कर दिया गया था और बड़े रास्ते खेती से बाहर हो गए थे। इस बार भी सरकार ने अकाल से त्रस्त लोगों की मदद के लिए प्रयास नहीं किए। 1880 और 1896 के बीच दो अकाल पड़े। 1896 और 1897 के अकाल के बाद, 1899-1900 में एक और अकाल पड़ा। इस बार भी ब्रिटिश प्रशासन के प्रयास अक्षम थे।
बंगाल का अकाल 1942-43 में पड़ा। 1943 का बंगाल अकाल अंग्रेजों के तहत शायद सबसे खतरनाक आपदा थी। बंगाल के अकाल ने महामारी का रूप धारण कर लिया। अकाल का मूल कारण वर्ष 1938 से बंगाल में हुई फसल विफलताओं की श्रृंखला थी। द्वितीय विश्व युद्ध की स्थितियां बंगाल में भीषण अकाल के लिए जिम्मेदार थीं। व्यापार और खाद्यान्नों की आवाजाही को रोक दिया गया। इतिहासकारों के अनुसार, प्राकृतिक कारणों से बंगाल का अकाल ज्यादातर मानव निर्मित था। अवसरवादियों ने अकाल पैदा करने और इससे भारी मुनाफा कमाने के लिए, द्वितीय विश्व युद्ध की स्थिति का फाइदा उठाया। यहाँ भी, सरकारी राहत अपर्याप्त साबित हुई और भारत सरकार चाहती थी कि प्रांतीय सरकार अकाल राहत का कार्य करे और उसे व्यवस्थित करे। इस प्रकार भारत की ब्रिटिश सरकार ने धीरे-धीरे भारत की अर्थव्यवस्था का शोषण किया। इस प्रकार नियमित अकाल 19 वीं और 20 वीं शताब्दी के दौरान भारत की एक अपरिहार्य विशेषता थी।

विज्ञापन

Recent Current Affairs
  • Global Wage Report 2022-2023 जारी की गई
  • Global Report on Health Equity for Persons with Disabilities जारी की गई
  • 6 दिसंबर : महापरिनिर्वाण दिवस (Mahaparinirvana Divas)
  • RBI ने रिटेल CBDC लॉन्च किया
  • Australia-India Centre for Energy (AICE) क्या है?

विज्ञापन

'मैंने देखा...लोग घास और सांप खा रहे थे'

2 अप्रैल 2015

भारत में किस वर्ष घोर अकाल पड़ा था - bhaarat mein kis varsh ghor akaal pada tha

इमेज स्रोत, BBC World Service

वर्ष 1943 में जब द्वितीय विश्वयुद्ध अपने चरम पर था, तब बंगाल में भारी अकाल पड़ा था जिसमें लाखों लोग मारे गए थे.

प्रोफ़ेसर रफ़ीकुल इस्लाम तब 10 साल के थे और ढाका में रहते थे. वह कहते हैं, "जब भी मैं उन दिनों के बारे में सोचता हूं, मैं खो जाता हूं. वर्ष 1943 में बंगालियों को जिस आपदा का सामना करना पड़ा, वह विश्व के इतिहास की सबसे बड़ी आपदाओं में से एक है."

बीबीसी के कार्यक्रम विटनेस के लिए फ़रहाना हैदर ने मानवीय इतिहास की सबसे बड़ी त्रासदियों में से एक बंगाल में पड़े भीषण अकाल के बारे में प्रोफ़ेसर रफ़ीकुल इस्लाम से बात की.

पढ़ें विस्तार से

प्रोफ़ेसर इस्लाम को अब भी याद है कि परेशान लोग खाने की तलाश में मारे-मारे फिरते थे.

वे बताते हैं, "लोग भूखे मर रहे थे क्योंकि ग्रामीण भारत में खाने-पीने की चीज़ें उपलब्ध नहीं थीं. इसलिए लोग कोलकाता, ढाका जैसे बड़े शहरों में खाने और आश्रय की तलाश में पहुंचने लगे. लेकिन वहां न खाना था, न रहने की जगह. उन्हें रहने की जगह सिर्फ़ कूड़ेदानों के पास ही मिल रही थी, जहां उन्हें कुत्ते-बिल्लियों से संघर्ष करना पड़ता था ताकि कुछ खाने को मिल जाए."

वो कहते हैं, "कोलकाता, ढाका की सड़कें कंकालों से भर गई थीं. इंसानी ढांचे जो कई दिन से भूखे थे और सिर्फ़ मरने के लिए ही बंगाल के कस्बों और शहरों में पहुंचे थे."

बंगाल का अकाल जापान के बर्मा पर कब्ज़ा कर लेने के बाद ही आया था. भारत पर काबिज़ अंग्रेज़ सरकार ने देश के अन्य क्षेत्रों से सूखा प्रभावित हिस्से तक अनाज पहुंचने पर रोक लगा दी थी.

इसका उद्देश्य एक तो इसे विरोधियों के हाथों में पड़ने से रोकना था और दूसरा यह कि स्थानीय लोगों को ठीक से खाना मिले.

प्रोफ़ेसर इस्लाम कहते हैं, "यह प्राकृतिक आपदा नहीं थी, यह मानवनिर्मित आपदा थी. ग्रामीण इलाकों में खाद्य पदार्थ सिर्फ़ इसलिए नहीं थे क्योंकि फ़सल बर्बाद हो गई थी बल्कि इसलिए भी क्योंकि अनाज को एक जगह से दूसरी जगह नहीं जाने दिया जा रहा था. उन्हें डर था कि यह जापानियों के हाथों में न पड़ जाएं."

वो कहते हैं, "मुझे लगता है कि यह फ़ैसला मित्र राष्ट्रों के नेतृत्व का था. कोलकाता में सेना के लिए खाद्य पदार्थों का अतिरिक्त स्टॉक था. लेकिन ग्रामीण इलाकों में खाने को कुछ भी नहीं था. और किसी को इसकी परवाह भी नहीं थी."

हड्डियों के ढांचे

प्रोफ़ेसर इस्लाम कहते हैं, "मैं राहत कर्मियों के एक छोटे से दल के साथियों के साथ हल्दी नदी पर स्थित टेरेपेकिया बाज़ार पहुंचा. वहां मैंने निर्वस्त्र, करीब-करीब कंकाल बन चुके करीब 500 महिला-पुरुषों को देखा."

वो कहते हैं, "उनमें से कुछ आने-जाने वालों से भीख मांग रहे थे तो कुछ कोने में पड़े थे, अपनी मौत का इंतज़ार करते. उनमें सांस लेने की शक्ति भी नहीं बची थी और दुर्भाग्य से मैंने आठ लोगों को अंतिम सांसे लेते देखा. इससे मैं अंदर तक हिल गया."

जंग की वजह से कीमतें आसमान छू रही थीं और जापानी आक्रमण को लेकर अनिश्चितता की वजह से शहरी इलाकों में जमाखोरी हो रही थी.

इसके फलस्वरूप देहात में चीज़ें बेहद महंगी हो गईं और जब लोग मरने लगे तो भारी संख्या में शहरों की ओर इस उम्मीद में पलायन होने लगा कि वहां राहत दी जा रही होगी.

प्रोफ़ेसर इस्लाम कहते हैं, "त्रासदी यह है कि कस्बों, शहरों में रहने वाले लोगों की उन बदकिस्मत लोगों से ज़रा भी सहानुभूति नहीं थी. इनमें से ज़्यादातर लोग उन्हीं सड़कों, शहरों में रह गए, वह कभी वापस गांव नहीं लौटे. गांव का ढांचा ही बर्बाद हो गया और बंगाल कभी भी उससे उबर नहीं पाया."

प्रोफ़ेसर इस्लाम के अनुसार उन्हें एक अकाल पीड़ित ने बताया, "मैं अपने भाई-बहनों में सबसे बड़ा था और जिंदा रहने के लिए दिहाड़ी मज़दूरी किया करता था. मैंने अपने पिता को गांव में छोड़ा और भाई-बहनों को कोलकाता ले आया. उनके पास बस आटा था. हम हर उस जगह जाते जहां खाना बंट रहा होता."

अकाल पीडि़त ने बताया, "उस दौरान मैंने बहुत-कुछ देखा. लोग घास और सांप तक खा रहे थे. मेरी दो बहनों उस दौरान मारी गईं."

'सबसे ख़ुश इंसान'

बर्मा पर जापानी कब्ज़े से भारत में भारी दहशत फैल गई. बड़ी संख्या में नागरिक और सैनिक सीमापार कर भारत आ गए.

प्रोफ़ेसर इस्लाम बताते हैं, "मेरे पिता रेलवे में डॉक्टर थे और ढाका आने से पहले हम लालमुनि हाट में रहते थे जो बड़ा रेलवे जंक्शन था और जिसे गेटवे ऑफ़ असम कहा जाता था. वहां हमने बड़ी संख्या में शरणार्थियों को देखा. सैकड़ों-हज़ारों शरणार्थी उस रास्ते बर्मा से भारत आ रहे थे. मैंने उस दौरान एंबुलेंस, ट्रेन, सैन्य अस्पतालों में युद्ध के नुक़सान को भी देखा."

बंगाल तब खाद्य पदार्थ आयात किया करता था जिसमें बर्मा के चावल शामिल थे लेकिन जापान के कब्ज़ा करने के बाद वह रुक गया.

उसी समय ब्रितानी शासकों ने भी बंगाल के तट को अलग-थलग करने की नीति पर अमल शुरू कर दिया ताकि जापान की बढ़त को रोका जा सके.

इसी समय, 1943 के पूरे साल भारत से ब्रिटेन और ब्रितानी फौजों को खाद्य सामग्री भेजा जाना जारी रहा. आमतौर पर इस बात पर सहमति है कि 1943 का बंगाल अकाल गलत नीतियों और लापरवाही का नतीजा था.

ब्रितानी इतिहासकारों के अनुमानों के अनुसार इसमें 15 लाख लोग मारे गए थे जबकि भारतीय इतिहासकार यह संख्या 60 लाख तक बताते हैं.

प्रोफ़ेसर इस्लाम कहते हैं कि जो बच गए उनका हिसाब रखा जाना भी ज़रूरी है. वो कहते हैं, "एक किस्सा मुझे अब भी याद है जब हमने एक परिवार की मदद करने की कोशिश की थी. पति-पत्नी और दो बच्चे रोज़ शाम हमारे दरवाज़े पर आ जाया करते और मेरी मां थोड़ा भात और दाल उनके लिए बचा लिया करती. हमने उस परिवार को ज़िंदा रखा."

वो बताते हैं, "फिर एक दिन वह हमसे विदा लेने आए. वह गांव वापस लौट रहे थे. उस दिन मेरी मां दुनिया की सबसे ख़ुश महिला थी क्योंकि वह कम से कम एक परिवार को ज़िंदा रखने में कामयाब रही थी."

'लिखूं कैसे?'

यह एक ऐसी भयावह मानवीय त्रासदी है जिससे कम ही याद किया जाता है. द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान बंगाल के अकाल में ब्रितानी राज में सबसे ज़्यादा लोग मारे गए थे.

प्रोफ़ेसर इस्लाम कहते हैं, "साल 1943 के अकाल के दौरान मैंने जो कुछ देखा वह मेरी यादों में इतना साफ़-साफ़ दर्ज है कि मैं उसे कभी भूल ही नहीं सकता."

वो कहते हैं, "कई बार लोग मुझसे पूछते हैं कि आप अपनी आत्मकथा क्यों नहीं लिखते. सच कहूं तो मैं कैसे उस तकलीफ़, मानवीय त्रासदी को बयां कर पाऊंगा जो मैंने उस कमउम्र में देखी थी? मैं उसे लिख कैसे पाऊंगा?"

बंगाल के अकाल के दौरान हुए अनुभवों का प्रोफ़ेसर इस्लाम पर क्या असर पड़ा?

वो कहते हैं, "इंसान को बगैर किसी वजह या अपराध के इस तकलीफ़ का सामना क्यों करना पड़ा? और इंसान इतना क्रूर कैसे हो गया कि उनकी मदद नहीं की. इंसान को भगवान की सबसे शानदार रचना कहा जाता है लेकिन मेरे हिसाब से अकाल या युद्ध के दौरान यह भगवान की सबसे बुरी रचना बन गया था."

प्रोफ़ेसर इस्लाम कहते हैं, "उस दौरान हम जानवर बन गए थे."

(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक और ट्विटर पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)

भारत में सबसे बड़ा अकाल कब पड़ा था?

Solution : वर्ष 1943 में जब द्वितीय विश्वयुद्ध अपने चरम पर था, तब बंगाल में भारी अकाल पड़ा था जिसमें लाखों लोग मारे गए थे.

अकाल वर्ष किसका नाम था?

बंगाल का प्रथम अकाल जो 1770 में हुआ उसमें अनुमानतः लगभग 10 मिलियन लोगों की मृत्यु हुई थी, जो उस समय के बंगाल की आबादी का एक तिहाई था। अन्य उल्लेखनीय अकालों में सम्मिलित हैं 1876-78 का बड़ा अकाल जिसमें 6.1 मिलियन से 10.3 मिलियन लोगों की मौत हुई व भारतीय अकाल 1899-1900 का जिससे 1.25 से 10 मिलियन व्यक्तियों की मौत हुई।

दक्षिण भारत में अकाल कब पड़ा था?

1876-1878 का भीषण अकाल ( 1876-1878 का दक्षिणी भारत का अकाल या 1877 का मद्रास अकाल ) क्राउन शासन के तहत भारत में पड़ने वाला एक अकाल था

1943 में बंगाल का अकाल क्यों पड़ा?

बर्मा पर जापान के कब्जे के बाद वहां से चावल का आयात रुक गया था और ब्रिटिश शासन ने अपने सैनिकों और युद्ध में लगे अन्य लोगों के लिए चावल की जमाखोरी कर ली थी, जिसकी वजह से 1943 में बंगाल में आए सूखे में तीस लाख से अधिक लोग मारे गए थे।