भारत का संविधान अनेक दृष्टियों से एक अनुपम संविधान है। भारतीय संविधान में अनेक ऐसे विशिष्ट लक्षण हैं, जो इसे विश्व के अन्य संविधानों से पृथक् पहचान प्रदान करते हैं। Show संविधान के प्रमुख या स्पष्ट दिखाई देने वाले लक्षण संविधान की वे विशेष बातें होती हैं जिनसे उसकी अन्य संविधानों से भिन्नता प्रकट होती हैं। उल्लेखनीय है कि प्रमुख लक्षण का अर्थ आधारिक लक्षण नहीं होता। आधारिक लक्षण, संविधान के वे उपबंध हैं जिनका संशोधन नहीं किया जा सकता, या जिन्हें नष्ट नहीं किया जा सकता, या जिन पर प्रहार नहीं किया जा सकता । आधारिक लक्षणों का संशोधन नहीं किया जा सकता यह सिद्धांत केशवानंद भारती में प्रतिपादित किया गया था और इसका अनुसरण इसके पश्चात् अनेक मामलों में किया गया। भारतीय संविधान की रूपरेखा लिखित एवं विशाल संविधान भारतीय संविधान का निर्माण एक विशेष संविधान सभा के द्वारा किया गया है और इस संविधान की अधिकांश बातें लिखित रूप में है। इस दृष्टिकोण से भारतीय संविधान, अमेरिकी संविधान के समतुल्य है। जबकि ब्रिटेन और इजरायल का संविधान अलिखित है। भारतीय संविधान केवल एक संविधान नहीं है वरन् देश की संवैधानिक और प्रशासनिक पद्धति के महत्वपूर्ण पहलुओं से संबंधित एक विस्तृत वैज्ञानिक संहिता भी है। इसके अतिरिक्त भारतीय संविधान विश्व का सर्वाधिक व्यापक संविधान है। भारत के मूल संविधान में कुल 395 अनुच्छेद थे जो 22भागों में विभाजित थे और इसमें 8 अनुसूचियां थीं। (इनमें पश्चात्वर्ती संशोधनों द्वारा वृद्धि की गई) बहुत-से उपबंधों का निरसन करने के पश्चात् भी इसमें (वर्ष 2013 तक) 444 अनुच्छेद और 12 अनुसूचियां हैं। 1950-1993 के बीच की अवधि में बहुत से अनुच्छेदों का लोप कर दिया गया है। संविधान में 64 अनुच्छेद और 4 अनुसूचियां जोड़ी गई हैं अर्थात् अनुच्छेद 31क-31ग, 35क, 39क, 48क,48क, 51क, 131क, 134क, 189क, 144क,224क, 233क, 239क, 239कक, 239कख, 239ख, 243, 243क से 243 चछ तक, 244क, 257क, 258क, 290क, 300क, 312क, 323क, 323ख, 350क, 350ख, 361ख, 361क, 368क, 371क - 371झ, 372क, 378क, 349क; जबकि अमेरिका के संविधान मेंकेवल 7, कनाडा के संविधान में 147, आस्ट्रेलिया के संविधान में 128 और दक्षिण अफ्रीका के संविधान में 253अनुच्छेद ही हैं। संविधान के इतने विशाल होने के अनेक कारण हैं।
डॉ. अंबेडकर ने ऐसा करने के पक्ष में यह तर्क दिया था कि, भारत के लोग विद्यमान प्रणाली से परिचित हैं।
संसदीय प्रभुता तथा न्यायिक सर्वोच्चता में समन्वय ब्रिटिश संसदीय प्रणाली में संसद को सर्वोच्च तथा प्रभुतासम्पन्न माना गया है। इसकी शक्तियों पर सिद्धांत के रूप में कोई अवरोध नहीं है, क्योंकि वहां पर कोई लिखित संविधान नहीं है। किंतु अमेरिकी प्रणाली में, उच्चतम न्यायालय सर्वोच्च है क्योंकि उसे न्यायिक पुनरीक्षण तथा संविधान के निर्वचन की शक्ति प्रदान की गई है। भारतीय संविधान की एक विशेषता यह है कि संविधान में ब्रिटेन की संसदीय प्रभुसत्ता तथा संयुक्त राज्य अमेरिका की न्यायिक सर्वोच्चता के मध्य का मार्ग अपनाया गया है। ब्रिटेन में व्यवस्थापिका सर्वोच्च है और ब्रिटिश पार्लियामेंट द्वारा निर्मित कानून को किसी भी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती। इसके विपरीत अमरीका के संविधान में न्यायपालिका की सर्वोच्चता के सिद्धांत को अपनाया गया है, जिसके तात्पर्य है की न्यायालय संविधान का रक्षक और अभिभावक है। किंतु भारतीय संसद तथा उच्चतम न्यायालय, दोनों अपने-अपने क्षेत्र में सर्वोच्च हैं। जहां उच्चतम न्यायालय संसद द्वारा पारित किसी कानून को संविधान का उल्लंघन करने वाला बताकर संसद के अधिकार से बाहर, अवैध और अमान्य घोषित कर सकता है, वहीँ संसद के कतिपय प्रतिबंधों के अधीन रहते हुए संविधान के अधिकांश भागों में संशोधन कर सकती है। संसदीय शासन प्रणाली भारत का संविधान भारत के लिए संसदीय प्रणाली की शासन व्यवस्था का प्रावधान करता है। हालांकि भारत एक गणराज्य है और उसका अध्यक्ष राष्ट्रपति होता है किंतु यह मान्यता है कि अमरीकी राष्ट्रपति के विपरीत भारतीय राष्ट्रपति कार्यपालिका का केवल नाममात्र का या संवैधानिक अध्यक्ष होता है। वह यथार्थ राजनीतिक कार्यपालिका यानि मंत्रिपरिषद की सहायता तथा उसके परामर्श से ही कार्य करता है। भारत के लोगों की 1919 और 1935 के भारतीय शासन अधिनियमों के अंतर्गत संसदीय शासन का अनुभव था और फिर अध्यक्षीय शासन प्रणाली में इस बात का भी डर था कि कहीं कार्यपालिका अपनी निश्चित पदावधि के कारण निरंकुश न हो जाए। अतः संविधान सभा ने विचार-विमर्श करके यह निर्णय लिया कि भारत के लिए अमरीका के समान अध्यक्षीय शासन प्रणाली के स्थान पर ब्रिटिश मॉडल की संसदीय शासन प्रणाली अपनाना उपयुक्त रहेगा। संसदीय प्रणाली में कार्यपालिका, विधायिका के प्रति उत्तरदायी रहती है तथा उसका विश्वास खो देने पर कायम नहीं रह सकती। किंतु यह कहना समीचीन नहीं होगा कि भारत में ब्रिटिश संसदीय प्रणाली को पूर्णरूपेण अपना लिया गया है। दोनों में अनेक मूलभूत भिन्नताएं हैं। उदाहरण के लिए- ब्रिटेन का संविधान एकात्मक है, जबकि भारतीय संविधान अधिकांशतः संघीय है। वहां वंशानुगत राजा वाला राजतंत्र है, जबकि भारत निर्वाचित राष्ट्रपति वाला गणराज्य है। ब्रिटेन के विपरीत, भारतीय संविधान एक लिखित संविधान है। इसलिए भारत की संसद प्रभुत्वसंपन्न नहीं है तथा इसके द्वारा पारित विधान का न्यायिक पुनरीक्षण हो सकता है। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 74(1) यह निर्दिष्ट करता है कि कार्य संचालन में राष्ट्रपति की सहायता करने तथा उसे परामर्श देने के लिए प्रधानमंत्री के नेतृत्व में एक मंत्रिपरिषद होगी तथा राष्ट्रपति प्रधानमंत्री के परामर्श से ही कार्य करेगा। नम्यता एवं अनम्यता का समन्वय संशोधन की कठिन या सरल प्रक्रिया के आधार पर संविधानों की नम्य अथवा अनम्य कहा जा सकता है। संघीय संविधानों की संशोधन प्रक्रिया कठिन होती है, इसलिए उन्हें सामान्यतया अनम्य श्रेणी में रखा जाता है। अनुच्छेद 368 के अनुसार कुछ विषयों में संशोधन के लिए संसद के समस्त सदस्यों के बहुमत और उपस्थित सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत के अतिरिक्त कम से कम आधे राज्यों के विधानमंडलों का अनुसमर्थन भी आवश्यक है, जैसे-राष्ट्रपति के निर्वाचन की विधि, संघ और इकाइयों के बीच शक्ति विभाजन, राज्यों के संसद में प्रतिनिधि, आदि। संशोधन की उपर्युक्त प्रणाली निश्चित रूप से कठोर है, लेकिन कुछ विषयों में संसद के साधारण बहुमत से ही संशोधन हो जाता है। उदाहरणस्वरूप- नवीन राज्यों के निर्माण, वर्तमान राज्यों के पुनर्गठन और भारतीय नागरिकता संबंधी प्रावधानों में परिवर्तन आदि कार्य संसद साधारण बहुमत से कर सकती है। इस प्रकार भारतीय संविधान नम्यता एवं अनम्यता का अद्भुत सम्मिश्रण है। भारतीय संविधान न तो ब्रिटिश संविधान की भांति नम्य है और न ही अमेरिकी संविधान की भांति अत्यधिक अनम्य। पिछले 50 वर्षों के दौरान संविधान में 100 संशोधन किये जा चुके हैं जो कि संविधान की पर्याप्त लोचशीलता को स्पष्ट करते हैं। विश्व के प्रमुख संविधानों का प्रभाव संविधान निर्माताओं ने संविधान निर्माण से पूर्व विश्व के प्रमुख संविधानों का विश्लेषण किया और उनकी अच्छाइयों की संविधान में समाविष्ट किया। भारतीय संविधान अधिकांशतः ब्रिटिश संविधान से प्रभावित है। प्रभावित होना स्वाभाविक भी है क्योंकि भारतीय जनता को लगभग दो सौ-वर्षों तक ब्रिटिश प्रणाली के अनुभवों से गुजरना पड़ा। ब्रिटिश संविधान से संसदीय शासन प्रणाली, संसदीय प्रक्रिया, संसदीय विशेषाधिकार, विधि निर्माण प्रणाली और एकल नागरिकता को संविधान में समाविष्ट किया गया है। भारतीय संविधान अमेरिकी संविधान से भी कम प्रभावित नहीं है क्योंकि अमेरिकी संविधान के कई मुख्य तत्वों को भारतीय संविधान में स्थान दिया गया है, जैसे- न्यायिक पुनर्विलोकन, मौलिक अधिकार, राष्ट्राध्यक्ष का निर्वाचन, संघात्मक शासन-व्यवस्था, सर्वोच्च एवं उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों को हटाने की प्रक्रिया। संविधान में नीति-निदेशक तत्वों का विचार आयरलैंड के संविधान से लिया गया है। इसके अतिरिक्त राष्ट्रपति द्वारा राज्यसभा सदस्यों का मनोनयन और राष्ट्रपति की निर्वाचन प्रणाली भी आयरिश संविधान से प्रेरित है। संघीय शासन प्रणालीकनाडा के संविधान से ली गयी है। गणतांत्रिक व्यवस्था की आधारशिला फ्रांसीसी संविधान के आधार स्तंभ पर रखी गयी है, जबकि आपातकालीन उपबंधजर्मन संविधान से उद्धृत हैं। मूल संविधान में तो केवल मौलिक अधिकारों की ही व्यवस्था की गई थी, लेकिन 42वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 1976 के द्वारा मूल संविधान में एक नया भाग 4क जोड़ दिया गया है और उसमे नागरिकों के मूल कर्तव्यों का उल्लेख किया गया है। रूसी संविधान मूल कर्तव्यों का प्रेरणा स्रोत है। संविधान में संशोधन की प्रक्रिया को दक्षिण अफ्रीका के संविधान से समाविष्ट किया गया है। भारतीय संविधान पर विश्व के संविधानों का प्रभाव लक्षण देश विधि का शासन, संसदीय शासन, एकल नागरिकता, विधि-निर्माण प्रक्रिया ब्रिटेन संघ तथा राज्यों के बीच शक्तियों का विभाजन, राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियां, अल्पसंख्यक वर्गों के हितों की रक्षा, उच्चतम न्यायालय के निचले स्तर के न्यायालयों पर नियंत्रण, केंद्रीय शासन का राज्य के शासन में हस्तक्षेप, व्यवस्थापिका के दो सदन। 1935 का भारत सरकार अधिनियम संविधान के सभी सामाजिक नीतियों के संदर्भ में निदेशक तत्वों का उपबंध। स्विट्ज़रलैंड प्रस्तावना, मौलिक अधिकार, स्वतंत्र न्यायपालिका, न्यायिक पुनरीक्षण, सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की पदमुक्ति, राष्ट्रपति कार्यपालिका का प्रमुख और उप-प्रधानमंत्री उच्च सदन का पदेन अधिकारी संयुक्त राज्य अमेरिका मौलिक कर्तव्य, प्रस्तावना में न्यायिक आदर्श भूतपूर्व सोवियत संघ राज्य के नीति निदेशक तत्व, राष्ट्रपति का निर्वाचन, उच्च सदन में सदस्यों का नामांकन आयरलैंड गणतंत्र व्यवस्था, स्वतंत्रता, समानता एवं बंधुत्व का सिद्धांत फ़्रांस सशक्त केंद्र के साथ संघीय व्यवस्था, शक्तियों का वितरण तथा अवशिष्ट शक्तियों का केंद्र की हस्तांतरण, राज्यों में राज्यपाल की केंद्र द्वारा नियुक्ति कनाडा समवर्ती सूची, व्यापार एवं वाणिज्य संबंधी प्रावधान आस्ट्रेलिया आपातकालीन उपबंध जर्मनी (वाइमर संविधान) और 1985 का भारत सरकार अधिनियम संविधान संशोधन प्रावधान, उच्च सदन के सदस्यों का निर्वाचन दक्षिण अफ्रीका विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया जापानभारती संविधान की प्रस्तावना क्या है एवं प्रस्तावना के प्रमुख लक्षणों को स्पष्ट कीजिए Political science project file topic ekatmak samvidhan ke lakshan class 11in hindi Miriam संविधान के प्रमुख लक्षण कौन कौन से हैं?भारतीय संविधान के मुख्य लक्षण. भारतीय संविधान की रूपरेखा. लिखित एवं विशाल. संसदीय प्रभुता तथा न्यायिक सर्वोच्चता में समन्वय. संसदीय शासन प्रणाली. नम्यता एवं अनम्यता का समन्वय. विश्व के प्रमुख संविधानों का प्रभाव. संविधान की पांच प्रमुख विशेषताएं कौन कौन सी हैं?प्रश्न 6.. (1) लिखित तथा निर्मित संविधान -. (2) विस्तृत तथा व्यापक -. (4) सम्पूर्ण प्रभुत्वसम्पन्न राज्य की स्थापना -. (5) गणतन्त्रात्मक शासन प्रणाली की स्थापना -. (6) संघात्मक शासन की स्थापना -. (7) संघात्मक होते हुए भी एकात्मक -. (8) धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना -. संविधान की चार प्रमुख विशेषताएं क्या क्या है?भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषताएं. लिखित एवं निर्मित संविधान. विश्व का सबसे बड़ा संविधान. संविधान की प्रस्तावना. भारतीय संविधान में विभिन्न संविधानों का समावेश. कठोर एवं लचीलापन का संविधान में समन्वय. संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न राज्य. लोकतंत्रात्मक गणराज्य. सरकार का संसदीय रूप. भारतीय संविधान की सबसे बड़ी विशेषता क्या है?भारत के हर नागरिक को मौलिक अधिकार देना संविधान की सबसे बड़ी विशेषता है. मौलिक अधिकार वह अधिकार है, जो हर नागरिक को हासिल है. इनका हनन नहीं किया जा सकता है. अगर सरकार के किसी कदम से किसी नागरिक के मौलिक अधिकार का हनन होता है, तो सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया जा सकता है.
|