इसके अलावा आप यह भी जानेंगे कि पहली ब्यात की भैंस गाभिन होने पर कितने तक की बेची जा सकती है। अगर आप डेयरी उद्योग से जुड़े हों या आपकी भैंस हाल ही के दिनों में ब्याई है तो यह लेख आपके लिए है। कटड़ी को तैयार कैसे करें इस सवाल का जवाब जानने के लिए लेख को अंत तक पढ़ें।
किस तरह करें कटड़ी तैयार
देश के अधिकतर हिस्सों में भैंस के दूध की मांग बहुत अधिक रहती है। इसलिए ज्यादातर पशुपालक एक ब्याई हुई भैंस ही खरीदना पसंद करते हैं। लेकिन भैंस की कटड़ी की देखभाल ठीक से नहीं करते। ऐसा इसलिए क्योंकि कटड़ी से उन्हें तत्काल आर्थिक लाभ नहीं होता। लेकिन पशुपालक अगर जरा सूझबूझ से काम ले तो वह कटड़ी को तैयार कर कुछ ही समय में एक से डेढ़ लाख रुपए कमा सकते हैं।
भैंस का दूध पिलाएं
भैंस के ब्याने के बाद अक्सर कटड़ी को रखते समय पशुपालक भाई उन्हें भैंस का दूध पीने नहीं देते, जिसकी वजह से कटड़ी का शरीर कमजोर रह जाता है और आगे चलकर भैंस गर्भधारण नहीं कर पाती। पशुपालक भाइयों को यह गलती बिल्कुल भी नहीं करनी है। बल्कि उन्हें भैंस के बच्चे को तीन माह तक रोजाना उसकी मां का दूध ही पिलाना है। इससे पशु पूरी तरह स्वस्थ रहेगा और जल्दी गाभिन हो सकेगा।
पशु को छोड़ें खुला
अमूमन सभी पशुपालन से जुड़े लोग भैंस की कटड़ी को हमेशा बांध कर रखते हैं। जिसकी वजह से कटड़ी तनाव में रहती है और उसका शारीरिक विकास सही तरह से नहीं होता। इसलिए पशु को जितनी देर हो सके खुले में छोड़ दें, हो सकें तो उनके लिए एक बाड़े का निर्माण कराएं ताकि वह आसानी से घूम सकें। ऐसा करने से पशु का शारीरिक विकास सही तरह से होगा और वह गर्भ धारण करने के लिए तैयार हो जाएगा।
मालिश और चारा जरूरी
इंसान की तरह ही भैंस की कटड़ी को भी अपने शुरुआती सालों में अधिक देखरेख की जरूरत होती है। इसमें पशुपालक भाइयों को सही मात्रा में चारा तो देना ही चाहिए। इसके अलावा पशु की समय – समय पर मालिश भी करनी चाहिए। ऐसा करने से भैंस का बच्चा तंदुरुस्त होगा और शारीरिक रूप से स्वस्थ होगा।
शेड का निर्माण
भैंस के कटड़ी को मौसम की मार से बचाए रखना भी बहुत जरूरी है। इसके लिए पशुपालक भाई उनके शेड का निर्माण सही तरह से कराएं। शेड में हवा की आवा जाही सही तरह से हो और उसमें पानी एवं चारे का इंतजाम भी हो। इसके अलावा शेड की सफाई भी समय – समय पर करते रहें।
टीकाकरण करवाएं
भैंस की कटड़े को पैदा होने के बाद कई तरह के रोग हो सकते हैं। ऐसे में कटड़ी को इन रोगों से बचाने के लिए टीकाकरण जरूर करवाएं। टीकाकरण से जुड़ी किसी भी जानकारी के लिए अपने आस पास के डॉक्टर से संपर्क करें। डॉक्टर से ऑनलाइन संपर्क करने के लिए आप हमारी एनिमॉल ऐप डाउनलोड कर सकते हैं। इस ऐप के डाउनलोड करने का लिंक हम आपको नीचे देंगे।
पहली ब्यात की भैंस की कीमत
अगर आप कटड़ी को भैंस बनने तक का समय देते हैं और उसका प्रसव हो जाता है। ऐसे में भैंस की दूध की मात्रा के हिसाब से भैंस की कीमत तय हो सकती है। अगर भैंस 15 से 20 लीटर दूध देती है तो उसकी कीमत 1.5 लाख से लेकर 1.75 हजार रुपए तक हो सकती है। वहीं अगर दूध कम होगा तो कीमत भी कम रहेगी।
हमें उम्मीद है कि कटड़ी की देखरेख की जानकारी आपको अच्छी लगी होगी। अगर आप इसी तरह के लेख पढ़ना चाहते हैं या भैंस खरीदना और बेचना चाहते हैं तो आप हमारी ऐनिमॉल ऐप डाउनलोड कर सकते हैं। ऐप के जरिए आप पशु चिकित्सक से भी सहायता ले सकते हैं। ऐप डाउनलोड करने के लिए इस
पशु पालकों कोदय्री फार्मिंग से पूरा लाभ उठाने के लिए नवजात बछडियों की उचित देखभाल व पालन-पोषण करके उनकी मृत्यु डर घटना आवश्यक है| नवजात बछडियों को स्वत रखने तथा उनकी मृत्यु डर कम करने के लिए हमें निम्नलिखित तरीके अपनाने चाहिए:- 1.गाय अथवा भैंस के ब्याने के तुरन्त बाद बच्चे के नाक व मुंह से श्लैष्मा व झिल्ली को साफ कर देना चाहिए जिससे बच्चे के शरीर में रक्त का संचार सुचारू रूप से हो सके|
- 2.बच्चे की नाभि को ऊपर से 1/2 इंच छोडकर किसी साफ कैंची से काट देना चाहिए तथा उस पर टिंचर आयोडीन लगानी चाहिए|
- 3.जन्म के 2 घंटे के अन्दर बच्चे को माँ का पहला दूध (खीस) अवश्य पिलाना चाहिए| खीस एक प्रकार का गढा दूध होता है जिसमें साधारण दूध की अपेक्षा विटामिन्स, खनिज तथा प्रोटीन्स की मात्रा अधिक होती है| इसमें रोग निरोधक पदार्थ जिन्हें एन्टीवाडीज कहते हैं भी प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं|एन्तिबडीज नवजात बच्चे को रोग ग्रस्त होने से बचाती है|खीस में दस्तावर गुण भी होते हैं जिससे नवजात बच्चे की आंतों में जन्म से पहले का जमा मल (म्युकोनियम) बाहर निकल जाता है तथा उसका पेट साफ हो जाता है| खीस को बच्चे के पैदा होने के 4-5 दिन तक नियमित अंतराल पर अपने शरीर के बजन के दसवें भाग के बराबर पिलाना चाहिए| अधिक मात्र में खीस पिलाने से बच्चे को दस्त लग सकते हैं|
- 4.यदि किसी कारणवश (जैसे माँ की अकस्मात् मृत्यु अथवा माँ का अचानक बीमार पड़ जाना आदि) खीस उपलब्ध न हो तो किसी और पशु की खीस को प्रयोग किया जा सकता है| और यदि खिन और भी यह उपलब्ध न हो तो नवजात बच्चे को निम्नलिखित मिश्रण दिन में 3-4 बार दिया जा सकता है| 300 मि.ली. पानी को उबाल कर ठंडा करके उसमें एक अंडा फेंट लें| इसमें 600 मि.ली.साधारण दूध व आधा चमच अंडी का तेल मिलाएं| फिर इस मिश्रण में एक चम्मच फिश लिवर ओयल तथा 80मि.ग्रा.औरियोमायसीन पाउडर मिलाएं| इस मिश्रण को देने से बच्चे को कुछ लाभ हो सकता है लेकिन फिर भी यह प्राकृतिक खीस की तुलना नहीं कर सकता क्योंकि प्राकृतिक खीस में पाई जाने वाली एंटीबाड़ीज नवजात बच्चे को रोग से लड़ने की क्षमता प्रदान करती है| खीस पीने के दो घंटे के अन्दर बच्चा म्युकोनियम (पहला मल) निकाल देता है लेकिन ऐसा न होने पर बच्चे को एक चम्मच सोडियम बाईकार्बोनेट को एक लीटर गुनगुने पानी में घोल कर एनीमा दिया जा सकता है|
- 5.कई बार नवजात बच्चे में जन्म से ही मल द्वार नहीं होता इसे एंट्रेसिया एनाई कहते हैं| यह एक जन्म जात बिमारी है तथा इसके कारण बच्चा मल विसर्जन नहीं कर सकता और वह बाद में मृत्यु का शिकार हो जाता हैं| इस बीमारी को एक छोटी सी शल्य क्रिया द्वारा ठीक किया जा सकता है| मल द्वार के स्थान पर एक +के आकार का चीर दिया जाता है तथा शल्य क्रिया द्वारा मल द्वार म्ब्नाक्र उसको मलाशय (रेक्टम) से जोड़ दिया जात है जिससे बच्चा मल विसर्जन करने लगता है| यह कार्य पशुपालक को स्वयं न करके नजदीकी पशु चिकित्सालय में करना चाहिए क्योंकि कई बार इसमें जटिलतायें पैदा हो जाती है|
- 6.कभी-कभी बच्छियों में जन्म से ही चार थनों के अलावा अतिरिक्त संख्या में थन पाए जाते है| अतिरिक्त थनों को जन्म के कुछ दिन बाद जीवाणु रहित की हुई कैंची से काट कर निकाल देना चाहिए| इस क्रिया में सामान्यत: खून नहीं निकलता| अतिरिक्त थनों को न काटने से बच्छी के गाय बनने पर उससे दूध निकालते समय कठिनाई होती है|
- 7.यदि पशु पालक बच्चे को माँ से अलग रखकर पालने की पद्यति को अपनाना चाहता है तो उसे बच्चे को शुरू से ही बर्तन में दूध पीना सिखाना चाहिए तथा उसे मन से जन्म से ही अलग कर देना चाहिए|इस पद्यति में बहुत सफाई तथा सावधानियों की आवश्यकता होती है जिनके बिना बच्चों में अनेक बिमारियों के होने की सम्भावना बढ़ जाती है|
- 8.नवजात बच्चों को बड़े पशुओं से अलग एक बड़े में रखना चाहिए ताकि उन्हें चोट लगने का खतरा न रहे| इसके अतिरिक्त उनका सर्दी व गर्मीं से भी पूरा बचाव रखना आवश्यक है|