भावना का सिद्धांत कौन सा है? - bhaavana ka siddhaant kaun sa hai?

विषयसूची

  • 1 मनोविज्ञान में भावना क्या है?
  • 2 निम्नलिखित में से कौन सा एक भावना है?
  • 3 निम्न में से कौन सा संवेग है?
  • 4 संवेग की विशेषता क्या है?

मनोविज्ञान में भावना क्या है?

इसे सुनेंरोकेंयह सिद्धांत बताता है कि शारीरिक उत्तेजना पहले होती है, और फिर व्यक्ति को इस उत्तेजना के अनुभव को पहचानने और इसे भावना के रूप में लेबल करने के कारण की पहचान करनी चाहिए। एक उत्तेजना एक शारीरिक प्रतिक्रिया की ओर जाता है जिसे तब संज्ञानात्मक रूप से व्याख्या और लेबल किया जाता है जिसके परिणामस्वरूप भावना होती है।

भावना का सिद्धांत क्या है?

इसे सुनेंरोकेंजेम्स-लैंग इमोशन सिद्धांत जेम्स-लैंग की भावना का सिद्धांत विलियम जेम्स और कार्ल लैंग द्वारा स्वतंत्र रूप से प्रस्तावित किया गया था. जेम्स-लैंग के भावना सिद्धांत से पता चलता है कि भावनाओं को घटनाओं के लिए शारीरिक प्रतिक्रियाओं के परिणामस्वरूप होता है.

इसे सुनेंरोकेंसंवेग वस्तुतः ऐसी प्रकिया है, जिसे व्यक्ति उद्दीपक द्वारा अनुभव करता है। संवेदनात्मक अनुभव:- संवेदन चेतन उत्पन्न करने की अत्यंत प्रारम्भिक स्थिति है।

निम्नलिखित में से कौन सा एक भावना है?

इसे सुनेंरोकेंभावना एक मानसिक स्थिति है या आमोद, घृणा, खुशी, क्रोध, आश्चर्य, प्रेम, और भय जैसी भावना जो उस स्थिति के कारण हो सकती है जो किसी व्यक्ति में गुजर रही है।

भावना का सिद्धांत कौन कौन है?

इसे सुनेंरोकेंभावनाओं के सिद्धांत प्रेरणा के प्रमुख सिद्धांतों को तीन मुख्य श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है: शारीरिक, तंत्रिका विज्ञान, और संज्ञानात्मक। शारीरिक सिद्धांतों से पता चलता है कि शरीर के भीतर प्रतिक्रिया भावनाओं के लिए जिम्मेदार है।

निम्न में से कौन सा संवेग है?

इसे सुनेंरोकेंसंवेग मुख्य रूप से दो प्रकार के, मूल संवेग और आत्म-चेतन संवेग हो सकते हैं। मूल संवेग: मूल संवेग भावनाओं का एक समूह है जो आमतौर पर सभी मनुष्यों में प्रकट होती हैं। ये क्रोध, घृणा, खुशी, भय, उदासी और आश्चर्य हैं।

रॉस ने संवेग को कितने प्रकार में बांटा है?

इसे सुनेंरोकेंरॉस ने कहा है- “संवेग अनुभव का रागात्मक पक्ष है जिसका अवबोध हम अंतर्निरीक्षण द्वारा करते हैं।” जेम्स ड्रेवर –“संवेग शरीर कि वह जटिल दशा है जिसमें श्वास, नाड़ी तंत्र, ग्रंथियों, मानसिक स्थिति, उत्तेजना, अवबोध आदि का अनुभूति पर प्रभाव पड़ता है तथा पेशियां निर्दिष्ट व्यवहार करने लगती है।”

संवेग की विशेषता क्या है?

इसे सुनेंरोकेंसंवेग की विशेषताएं सामान्यत: संवेग प्रत्यक्षीकरण का उत्पाद होते हैं। प्रत्येक संवेगात्मक अनुभव के दौरान प्राणी में अनेक शारीरिक परिवर्तन होते है। संवेग किसी स्थूल वस्तु या परिस्थिति के प्रति अभिव्यक्त किए जाते है। प्रत्येक जीवित प्राणी में संवेग होते है।

 

भावना मूड , स्वभाव , व्यक्तित्व ,जज्बात और प्रेरणा से संबंधित है । अंग्रेजी शब्द 'Emotion' की उत्पति फ्रेंच शब्द  Emouvoir से हुई है। यह लैटिन शब्द Emovere पर आधारित है जहां e-( ex - का प्रकार ) का अर्थ है ' बाहर ' और Movere का अर्थ है ' चलना ' , संबंधित शब्द  ' प्रेरणा ' की उत्पति भी Movere से हुई है । भावना और भावना के परिणामों के बीच संबंधित अंतर मुख्य व्यवहार और भावनात्मक अभिव्यक्ति है। अपनी भावनात्मक स्थिति के परिणामस्वरूप अक्सर लोग कई तरह की अभिव्यक्तियां करते हैं ।

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Source: Inc.Magazine

जैसे खुशी , गम , आशा , निराशा , आवेश ,रोना, लड़ना या घृणा करना वगेरह । अंग्रेजी में भावना के लिए इमोशन्स ( Emotions) का प्रयोग करते हैं। यदि कोई बिना संबंधित अभिव्यक्ति के भावना प्रकट करे तो हम मान सकते हैं की भावनाओं के लिए अभिव्यक्ति की आवश्यकता नहीं है। स्नायुविज्ञान ( न्यूरोसाइंटिफीक) शोध से पता चलता है कि ' मैजिक क्वार्टर सेकंड ' के दौरान भावनात्मक प्रतिक्रिया बनने से पहले विचार को जाना जा सकता है । उस पल में व्यक्ति भावना को नियंत्रित कर सकता है। भावना संबंधी कुछ सिद्धांत निम्न हैं - साथ ही अगर आप भी इस पात्रता परीक्षा में शामिल होने जा रहे हैं और इसमें सफल होकर शिक्षक बनने के अपने सपने को साकार करना चाहते हैं, तो आपको तुरंत इसकी बेहतर तैयारी के लिए सफलता द्वारा चलाए जा रहे CTET टीचिंग चैंपियन बैच- Join Now से जुड़ जाना चाहिए।

संज्ञानात्मक सिद्धांत

संज्ञानात्मक क्रिया किसी भावना को उत्पन्न करने के लिए आवश्यक है। रिचर्ड लॉरेंस के अनुसार भावना किसी चीज के बारे में जानबूझ कर पैदा होती है।

 

इस प्रकार की संज्ञानात्मक क्रिया चेतन या अवचेतन हो सकती हैं तथा वैचारिक प्रक्रिया का रूप ले सकती है या नहीं भी ले सकती है । यहां लॉरेंस का एक प्रभाव शाली सिद्धांत है, कि भावना एक बाधा है जो निम्न क्रम में उत्पन होती है - 
1) संज्ञानात्मक मूल्यांकन - व्यक्ति उस घटना का तर्कपूर्ण आकलन करता है जो भावना को इंगित करती है। 
2) शारीरिक बदलाव - संज्ञानात्मक प्रतिक्रियाओं के फलस्वरूप जैविक बदलाव होते हैं , जैसे दिल की धड़कन का बढना या पिटयूटरी एड्रिलिन की प्रतिक्रिया ।
3) क्रिया - व्यक्ति भावना को अनुभव करता है और प्रतिक्रिया चुनता है । उदाहरण के लिए - कार्तिक एक कुत्ते को देखता है । (1) कार्तिक जब कुत्ते को देखता है , तो उसे डर लगता है । (2) उसका दिल जोर से धड़कने लगता है। एड्रिलिन का रक्त में प्रवाह तेज हो जाता है। (3) कार्तिक चिल्लाता है और भाग जाता है । लॉरेंस  कहते है कि भावनाओं की गुणवत्ता और तीव्रता को संज्ञानात्मक प्रतिक्रियाओं द्वारा नियंत्रित किया जाता है। ये प्रतिक्रियाएं बचाव की रणनीति बनाती हैं जो व्यक्ति और उसके वातावरण के बदलाव के अनुसार भावनात्मक होती है।

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दैहिक सिद्धांत

भावनाओं के दैहिक सिद्धांत के अनुसार , शरीर भावनाओं के प्रति आवश्यक निर्णय की बजाए सीधे प्रतिक्रिया करता है। इस तरह के सिद्धांतो का पहला आधुनिक संस्करण 1880 में विलियम जेम्स ने प्रस्तुत किया। 20वी सदी में इस सिद्धांत ने समर्थन खो दिया, लेकिन हाल ही में जॉन कचिओप्पो , एंटोनियो दमासियो , जोसेफ ई लीदु और रॉबर्ट ई जेजोंक जैसे शोधकर्ताओं के कोशिकाविज्ञानी ( Neurological) प्रमाणों के फलस्वरूप इसने फिर से लोकप्रियता हासिल कर ली है।

जेम्स - लैंग सिद्धांत 

जेम्स - लैंग सिद्धांत बताता है कि शारीरिक परिवर्तनों से होने वाले अनुभवों के कारण बड़े पैमाने पर भावनाओं की अनुभूति होती है ।इस सिद्धांत और इसके तथ्यों के अनुसार , परिस्थिति के बदलने से शारीरिक बदलाव होता है । जैसे कि जेम्स कहते है कि शारीरिक बदलाव होने की अवधारणा ही भावना है। जेम्स दावा करते है कि   ' हमे उदासी अनुभव होती हैं क्यों कि हम रोते है, लड़ाई के समय क्रोधित होते हैं , कांपने के कारण डरते हैं, और ऐसा भी हो सकता है कि माफी मांगते हुए , क्रोध या डर के समय हम न रोये , न लड़े या न कांपे । इस सिद्धांत को प्रयोगों द्वारा साबित किया गया है, जिसमें शरीर की स्थितियों में बदलाव ला कर वांछित भावना प्राप्त की जाती है। इस प्रकार के प्रयोगों को चिकित्सा में भी प्रयुक्त किया गया है । जैसे लाफ्टर थेरेपी , डांस थेरेपी आदि।

न्यूरोबायोलॉजिकल सिद्धांत

मस्तिष्क संरचना की तंत्रिकाओं की मैपिंग से मिली जानकारी से , मानव भावनाओं की न्यूरोबायोलॉजिकल व्याख्या यह है कि भावना एक प्रिय या अप्रिय स्थिति है जो स्तनधारी के मस्तिष्क में पैदा होती है। यदि इसकी सरीसृपों से तुलना की जाएं तो भावनाओं का विकास , सामान्य हड्डियों वाले जंतु का स्तनधारी के रूप में बदलने के समान होगा , जिनमें न्यूरोकेमिकल ( जैसे डोपामाइन , नोराड्रेनेलिन और सेरोटोनिन ) में मस्तिष्क की गतिविधि  के स्तर के अनुसार उतार - चढ़ाव आता है, जो कि शरीर के हिलने - डुलने , मनोभावों तथा मुद्राओं में परिलक्षित होता है। उधारण प्यार की भावना को स्तनधारी के मस्तिष्क के पेलियोसर्किट की अभीव्यक्ति माना जाता है जिससे देखभाल , भोजन कराने और सौंदर्य जैसी भावनाओं का बोध होता है।

भावना का सिद्धांत क्या है?

1) संज्ञानात्मक मूल्यांकन - व्यक्ति उस घटना का तर्कपूर्ण आकलन करता है जो भावना को इंगित करती है। 2) शारीरिक बदलाव - संज्ञानात्मक प्रतिक्रियाओं के फलस्वरूप जैविक बदलाव होते हैं , जैसे दिल की धड़कन का बढना या पिटयूटरी एड्रिलिन की प्रतिक्रिया । 3) क्रिया - व्यक्ति भावना को अनुभव करता है और प्रतिक्रिया चुनता है ।

भावना कितने प्रकार के होते हैं?

भावनाओं का वर्गीकरण (प्रकार).
प्राथमिक या बुनियादी भावनाएँ प्राथमिक भावनाओं को मूल भावनाओं के रूप में भी जाना जाता है, और वे भावनाएं हैं जो हम एक उत्तेजना के जवाब में अनुभव करते हैं। ... .
माध्यमिक भावनाएं ... .
सकारात्मक भावनाएं ... .
नकारात्मक भावनाएं ... .
अस्पष्ट भावनाएँ ... .
स्थिर भावनाएँ ... .
सामाजिक भावनाएं ... .
वाद्य भावनाएँ.

मनोविज्ञान में भावना क्या है?

मनोविज्ञान में, भावनाओं की विषय से संबंधित अध्ययन और मानवों में मानसिक विकारों के उपचार में जांच की जाती है। मनोविज्ञान भावनाओं को मानसिक प्रकियाएं मानते हुए उनकी एक वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य से जांच करता है और अंतर्निहित शारीरिक और स्नायविक प्रक्रियाओं का पता लगाता है।

भावना का क्या महत्व है?

भावनाओं का महत्त्व :- भावना – एक ऐसा शब्द जिसका अर्थ इन्सान के जज्बातों और हालातों के अनुसार बदलता रहता है। भावनाएं ही हैं जो इन्सान को एक दुसरे से जोड़ कर रखती हैं। भावनाएं ही हैं जिससे भगवान की प्राप्ति की जा सकती है। इन्सान के द्वारा किये गए कर्म तब तक बेकार हैं जब तक उसके साथ सही भावना न जुडी हो।

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