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The questions posted on the site are solely user generated, Doubtnut has no ownership or control over the nature and content of those questions. Doubtnut is not responsible for any discrepancies concerning the duplicity of content over those questions. एक फूल की चाह Class 9 Hindi summary from Sparsh Lesson 10 with a detailed explanation of the Poem ‘Ek Phool
ki Chah’ along with meanings of difficult words. Given here is the complete explanation of the poem, along with a summary and all the exercises, Questions, and Answers given at the back of the lesson. Class 9 Sparsh Chapter 10 ‘Ek Phool ki Chah’एक फूल की चाह कक्षा 9 स्पर्श भाग 1 पाठ 10यहाँ हम हिंदी कक्षा 9 ”स्पर्श – भाग 1” के काव्य खण्ड पाठ 10 “एक फूल की चाह” के पाठ प्रवेश, पाठ सार, पाठ व्याख्या, कठिन शब्दों के अर्थ, अतिरिक्त प्रश्न और NCERT पुस्तक के अनुसार प्रश्नों के उत्तर इन सभी बारे में जानेंगे – By Shiksha Sambra कवि परिचय कवि – सियारामशरण गुप्त एक फूल की चाह पाठ प्रवेश‘एक फूल की चाह’ गुप्त जी की एक लंबी और प्रसिद्ध कविता है। प्रस्तुत पाठ उसी कविता का एक छोटा सा भाग है। यह पूरी कविता छुआछूत की समस्या पर केंद्रित है। मरने के नज़दीक पहुँची एक ‘अछूत’ कन्या के मन में यह इच्छा जाग उठी कि काश! देवी के चरणों में अर्पित किया हुआ एक फूल लाकर कोई उसे दे
देता। उस कन्या के पिता ने बेटी की इस इच्छा को पूरा करने का बीड़ा उठाया। वह देवी के मंदिर में जा पहुँचा। देवी की आराधना भी की, पर उसके बाद वह देवी के भक्तों की नज़र में खटकने लगा। मानव-मात्र को एकसमान मानने की नसीहत देने वाली देवी के सवर्ण भक्तों ने उस विवश, लाचार, आकांक्षी मगर ‘अछूत’ पिता के साथ कैसा सलूक किया, क्या वह अपनी बेटी को फूल लाकर दे सका? यह हम इस कविता के माध्यम से जानेंगे। Ek Phool Ki Chah Class 9 Video Explanation Top एक फूल की चाह पाठ सार Summaryप्रस्तुत पाठ गुप्त जी की कविता ‘एक फूल की चाह’ का एक छोटा सा भाग है। यह पूरी कविता छुआछूत की समस्या पर केंद्रित है। कवि कहता है कि एक बडे़ स्तर पर फैलने वाली बीमारी बहुत भयानक रूप से फैली हुई थी। उस महामारी ने लोगों के मन में भयानक डर बैठा दिया था। इस कविता का मुख्य पात्र अपनी बेटी जिसका नाम सुखिया था, उसको बार-बार बाहर जाने से रोकता था। लेकिन सुखिया उसकी एक न मानती थी और खेलने के लिए बाहर चली जाती थी। जब भी वह अपनी बेटी को बाहर जाते हुए देखता था तो उसका हृदय डर के मारे काँप उठता था। वह यही सोचता रहता था कि किसी तरह उसकी बेटी उस महामारी के प्रकोप से बच जाए। एक दिन सुखिया के पिता ने पाया कि सुखिया का शरीर बुखार से तप रहा था। उस बच्ची ने अपने पिता से कहा कि वह तो बस देवी माँ के प्रसाद का एक फूल चाहती है ताकि वह ठीक हो जाए। सुखिया के शरीर का अंग-अंग कमजोर हो चूका था। सुखिया का पिता सुखिया की चिंता में इतना डूबा रहता था कि उसे किसी बात का होश ही नहीं रहता था। जो बच्ची कभी भी एक जगह शांति से नहीं बैठती थी, वही आज इस तरह न टूटने वाली शांति धारण किए चुपचाप पड़ी हुई थी। कवि मंदिर का वर्णन करता हुआ कहता है कि पहाड़ की चोटी के ऊपर एक विशाल मंदिर था। उसके विशाल आँगन में कमल के फूल सूर्य की किरणों में इस तरह शोभा दे रहे थे जिस तरह सूर्य की किरणों में सोने के घड़े चमकते हैं। मंदिर का पूरा आँगन धूप और दीपकों की खुशबू से महक रहा था। मंदिर के अंदर और बाहर माहौल ऐसा लग रहा था जैसे वहाँ कोई उत्सव हो। जब सुखिया का पिता मंदिर गया तो वहाँ मंदिर में भक्तों के झुंड मधुर आवाज़ में एक सुर में भक्ति के साथ देवी माँ की आराधना कर रहे थे। सुखिया के पिता के मुँह से भी देवी माँ की स्तुति निकल गई। पुजारी ने सुखिया के पिता के हाथों से दीप और फूल लिए और देवी की प्रतिमा को अर्पित कर दिया। फिर जब पुजारी ने उसे दोनों हाथों से प्रसाद भरकर दिया तो एक पल को वह ठिठक सा गया। क्योंकि सुखिया का पिता छोटी जाति का था और छोटी जाति के लोगों को मंदिर में आने नहीं दिया जाता था। सुखिया का पिता अपनी कल्पना में ही अपनी बेटी को देवी माँ का प्रसाद दे रहा था। सुखिया का पिता प्रसाद ले कर मंदिर के द्वार तक भी नहीं पहुँच पाया था कि अचानक किसी ने पीछे से आवाज लगाई, “अरे यह अछूत मंदिर के भीतर कैसे आ गया? इसे पकड़ो कही यह भाग न जाए।’ वे कह रहे थे कि सुखिया के पिता ने मंदिर में घुसकर बड़ा भारी अनर्थ कर दिया है और लम्बे समय से बनी मंदिर की पवित्रता को अशुद्ध कर दिया है। इस पर सुखिया के पिता ने कहा कि जब माता ने ही सभी मनुष्यों को बनाया है तो उसके मंदिर में आने से मंदिर अशुद्ध कैसे हो सकता है। यदि वे लोग उसकी अशुद्धता को माता की महिमा से भी ऊँचा मानते हैं तो वे माता के ही सामने माता को नीचा दिखा रहे हैं। लेकिन उसकी बातों का किसी पर कोई असर नहीं हुआ। लोगों ने उसे घेर लिया और उसपर घूँसों और लातों की बरसात करके उसे नीचे गिरा दिया। लोग उसे न्यायलय ले गये। वहाँ उसे सात दिन जेल की सजा सुनाई गई। जेल के वे सात दिन सुखिया के पिता को ऐसे लगे थे जैसे कई सदियाँ बीत गईं हों। उसकी आँखें बिना रुके बरसने के बाद भी बिलकुल नहीं सूखी थीं। जब सुखिया का पिता जेल से छूटा तो उसके पैर उसके घर की ओर नहीं उठ रहे थे। सुखिया के पिता को घर पहुँचने पर जब सुखिया कहीं नहीं मिली तब उसे सुखिया की मौत का पता चला। वह अपनी बच्ची को देखने के लिए सीधा दौड़ता हुआ शमशान पहुँचा जहाँ उसके रिश्तेदारों ने पहले ही उसकी बच्ची का अंतिम संस्कार कर दिया था। अपनी बेटी की बुझी हुई चिता देखकर उसका कलेजा जल उठा। उसकी सुंदर फूल सी कोमल बच्ची अब राख के ढ़ेर में बदल चुकी थी। Top एक फूल की चाह पाठ व्याख्या Explanationउद्वेलित कर अश्रु राशियाँ, शब्दार्थ – व्याख्या – कवि कहता है कि एक बडे़ स्तर पर फैलने वाली बीमारी बहुत भयानक रूप से फैली हुई थी, जिसने लोगों की भावनाओं को ठेस पहुँचाते हुए आँखों से आँसुओं की नदियाँ बहा दी थी। कहने का तात्पर्य यह है कि उस महामारी ने लोगों के मन में भयानक डर बैठा दिया था। कवि कहता है कि उस महामारी के कारण जिन औरतों ने अपनी संतानों को खो दिया था, उनके कमजोर पड़ते गले से लगातार दिल को दहला देने वाला ऐसा दर्द निकल रहा था जिसे दबाना बहुत कठिन था। उस कमजोर पड़ चुके दर्द भरे रोने में भी अत्यधिक अशांति फैलाने वाला हाहाकार छिपा हुआ था। बहुत रोकता था सुखिया को, शब्दार्थ – व्याख्या – कवि कहता है कि इस कविता का मुख्य पात्र अपनी बेटी जिसका नाम सुखिया था, उसको बार-बार बाहर जाने से रोकता था। लेकिन सुखिया उसकी एक न मानती थी और खेलने के लिए बाहर चली जाती थी। वह कहता है कि सुखिया का न तो खेलना रुकता था और न ही वह घर के अंदर टिकती थी। जब भी वह अपनी बेटी को बाहर जाते हुए देखता था तो उसका हृदय डर के मारे काँप उठता था। वह यही सोचता रहता था कि किसी तरह उसकी बेटी उस महामारी के प्रकोप से बच जाए। वह किसी तरह इस महामारी की चपेट में न आए। भीतर जो डर रहा छिपाए, शब्दार्थ – Top व्याख्या – कवि कहता है कि सुखिया के पिता को जिस बात का डर था वही हुआ। एक दिन सुखिया के पिता ने पाया कि सुखिया का शरीर बुखार से तप रहा था। कवि कहता है कि उस बच्ची ने बुखार के दर्द में भी अपने पिता से कहा कि उसे किसी का डर नहीं है। उसने अपने पिता से कहा कि वह तो बस देवी माँ के प्रसाद का एक फूल चाहती है ताकि वह ठीक हो जाए। क्रमश: कंठ क्षीण हो आया, शब्दार्थ – व्याख्या – कवि कहता है कि सुखिया का गला इतना कमजोर हो गया था कि उसमें से आवाज़ भी नहीं आ रही थी। उसके शरीर का अंग-अंग कमजोर हो चूका था। उसका पिता किसी चमत्कार की आशा में नए-नए तरीके अपना रहा था परन्तु उसका मन हमेशा चिंता में ही डूबा रहता था। चिंता में डूबे सुखिया के पिता को न तो यह पता चलता था कि कब सुबह हो गई और कब आलस से भरी दोपहर ढल गई। कब सुनहरे बादलों में सूरज डूबा और कब शाम हो गई। कहने का तात्पर्य यह है कि सुखिया का पिता सुखिया की चिंता में इतना डूबा रहता था कि उसे किसी बात का होश ही नहीं रहता था। सभी ओर दिखलाई दी बस, शब्दार्थ – व्याख्या – कवि कहता है कि चारों ओर बस अंधकार ही अंधकार दिखाई दे रहा था जिसे देखकर ऐसा लगता था जैसे कि इतना बड़ा अंधकार उस मासूम बच्ची को निगलने चला आ रहा था। कवि कहता है कि बच्ची के पिता को ऊपर विशाल आकाश में चमकते तारे ऐसे लग रहे थे जैसे जलते हुए अंगारे हों। उनकी चमक से उसकी आँखें झुलस जाती थीं। ऐसा इसलिए होता था क्योंकि बच्ची का पिता उसकी चिंता में सोना भी भूल गया था जिस कारण उसकी आँखे दर्द से झुलस रही थी। देख रहा था जो सुस्थिर हो एक फूल ही दो लाकर। शब्दार्थ – व्याख्या – कवि कहता है कि जो बच्ची कभी भी एक जगह शांति से नहीं बैठती थी, वही आज इस तरह न टूटने वाली शांति धारण किए चुपचाप पड़ी हुई थी। कवि कहता है कि उसका पिता उसे झकझोरकर खुद ही पूछना चाहता था कि उसे देवी माँ के प्रसाद का फूल चाहिए और वह उसे उस फूल को ला कर दे। ऊँचे शैल शिखर के ऊपर शब्दार्थ
– व्याख्या – कवि मंदिर का वर्णन करता हुआ कहता है कि पहाड़ की चोटी के ऊपर एक विशाल मंदिर था। उसके विशाल आँगन में कमल के फूल सूर्य की किरणों में इस तरह शोभा दे रहे थे जिस तरह सूर्य की किरणों में सोने के घड़े चमकते हैं। मंदिर का पूरा आँगन धूप और दीपकों की खुशबू से महक रहा था। मंदिर के अंदर और बाहर माहौल ऐसा लग रहा था जैसे वहाँ कोई उत्सव हो। भक्त वृंद मृदु मधुर
कंठ से शब्दार्थ – व्याख्या – कवि कहता है कि जब सुखिया का पिता मंदिर गया तो वहाँ मंदिर में भक्तों के झुंड मधुर आवाज में एक सुर में भक्ति के साथ देवी माँ की आराधना कर रहे थे। वे एक सुर में गा रहे थे ‘पतित तारिणी पाप हारिणी, माता तेरी जय जय जय।‘ सुखिया के पिता के मुँह से भी देवी माँ की स्तुति निकल गई, ‘पतित तारिणी, तेरी जय जय’। फिर उसे ऐसा लगा कि किसी अनजान शक्ति ने उसे मंदिर के अंदर धकेल दिया। मेरे दीप फूल लेकर वे शब्दार्थ – व्याख्या – कवि कहता है कि पुजारी ने सुखिया के पिता के हाथों से दीप और फूल लिए और देवी की प्रतिमा को अर्पित कर दिया। फिर जब पुजारी ने उसे दोनों हाथों से प्रसाद भरकर दिया तो एक पल को वह ठिठक सा गया। क्योंकि सुखिया का पिता छोटी जाति का था और छोटी जाति के लोगों को मंदिर में आने नहीं दिया जाता था। सुखिया का पिता अपनी कल्पना में ही अपनी बेटी को देवी माँ का प्रसाद दे रहा था। सिंह पौर तक भी आँगन से शब्दार्थ – व्याख्या – कवि कहता है कि अभी सुखिया का पिता प्रसाद ले कर मंदिर के द्वार तक भी नहीं पहुँच पाया था कि अचानक किसी ने पीछे से आवाज लगाई, “अरे ,यह अछूत मंदिर के भीतर कैसे आ गया? इसे पकड़ो कही यह भाग न जाए। ‘ किसी ने कहा कि इस चालाक नीच को तो देखो, कैसे साफ़ कपड़े पहने है, ताकि कोई इसे पहचान न सके। कवि यहाँ यह दर्शाना चाहता है कि निम्न जाति वालों का मंदिर में जाना अच्छा नहीं माना जाता था। पापी ने मंदिर में घुसकर शब्दार्थ – व्याख्या – कवि कहता है कि किसी ने कहा कि मंदिर में आए हुए सभी भक्त सुखिया के पिता को पापी कह रहे थे। वे कह रहे थे कि सुखिया के पिता ने मंदिर में घुसकर बड़ा भारी अनर्थ कर दिया है और लम्बे समय से बनी मंदिर की पवित्रता को अशुद्ध कर दिया है। इस पर सुखिया के पिता ने कहा कि ऐसा कैसे हो सकता था कि माता की महिमा के आगे उसकी अशुद्धता अधिक भारी हो। सुखिया के पिता के कहने का तात्पर्य यह था कि जब माता ने ही सभी मनुष्यों को बनाया है तो उसके मंदिर में आने से मंदिर अशुद्ध कैसे हो सकता है। माँ के भक्त हुए तुम कैसे, शब्दार्थ – मेरे हाथों से प्रसाद भी शब्दार्थ – व्याख्या – कवि कहता है कि जब भक्तों ने सुखिया के पिता की पिटाई की तो उसके हाथों से सारे का सारा प्रसाद बिखर गया। वह दुखी हो गया और सोचने लगा कि उसकी बेटी का भाग्य कितना बुरा है क्योंकि अब उसकी बेटी तक प्रसाद नहीं पहुँचने वाला था। लोग उसे न्यायलय ले गये। वहाँ उसे सात दिन जेल की सजा सुनाई गई। अब सुखिया के पिता को लगने लगा कि अवश्य ही उससे देवी का अपमान हो गया है। तभी उसे सजा मिली है। मैंने स्वीकृत किया दंड वह शब्दार्थ – व्याख्या – कवि कहता है कि सुखिया के पिता ने सिर झुकाकर चुपचाप उस दंड को स्वीकार कर लिया। उसके पास अपनी सफाई में कहने को कुछ नहीं था। इसलिए वह नहीं जानता था कि क्या कहना चाहिए। जेल के वे सात दिन सुखिया के पिता को ऐसे लगे थे जैसे कई सदियाँ बीत गईं हों। उसकी आँखें बिना रुके बरसने के बाद भी बिलकुल नहीं सूखी थीं। दंड भोगकर जब मैं छूटा, शब्दार्थ – व्याख्या – कवि कहता है कि जब सुखिया का पिता जेल से छूटा तो उसके पैर उसके घर की ओर नहीं उठ रहे थे। उसे ऐसा लग रहा था जैसे डर से भरे हुए उसके शरीर को कोई धकेल कर उसके घर की ओर ले जा रहा था। जब वह घर पहुँचा तो हमेशा की तरह उसकी बेटी दौड़कर उससे मिलने नहीं आई। न ही वह उसे कहीं खेल में उलझी हुई दिखाई दी। उसे देखने मरघट को ही शब्दार्थ – व्याख्या – कवि कहता है कि सुखिया के पिता को घर पहुँचने पर जब सुखिया कहीं नहीं मिली तब उसे सुखिया की मौत का पता चला। वह अपनी बच्ची को देखने के लिए सीधा दौड़ता हुआ शमशान पहुँचा जहाँ उसके रिश्तेदारों ने पहले ही उसकी बच्ची का अंतिम संस्कार कर दिया था। अपनी बेटी की बुझी हुई चिता देखकर उसका कलेजा जल उठा। उसकी सुंदर फूल सी कोमल बच्ची अब राख के ढ़ेर में बदल चुकी थी। अंतिम बार गोद में बेटी, व्याख्या – कवि कहता है कि सुखिया का पिता सुखिया के लिए दुःख मनाता हुआ रोने लगा। उसे अफसोस हो रहा था कि वह अपनी बेटी को अंतिम बार गोदी में न ले सका। उसे इस बात का भी बहुत दुःख हो रहा था कि उसकी बेटी ने उससे केवल माता के मंदिर का एक फूल लाने को कहा था वह अपनी बेटी को वह देवी का प्रसाद भी न दे सका। Top See Video Explanation of Chapter 10 Ek Phool ki Chah Class एक फूल की चाह प्रश्न उत्तर (Question Answers)निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए उत्तर – मेरा हृदय काँप उठता था, (ii) पर्वत की चोटी पर स्थित मंदिर की अनुपम शोभा। उत्तर -ऊँचे शैल शिखर के ऊपर (iii) पुजारी से प्रसाद/पूफल पाने पर सुखिया के पिता की मनःस्थिति। उत्तर – भूल गया उसका लेना झट, (iv) पिता की वेदना और उसका पश्चाताप। उत्तर – अंतिम बार गोद में बेटी, (ख) बीमार बच्ची ने क्या इच्छा प्रकट की? उत्तर – बीमार बच्ची ने अपने पिता के सामने इच्छा प्रकट की कि उसे देवी माँ के प्रसाद का फूल चाहिए। (ग) सुखिया के पिता पर कौन सा आरोप लगाकर उसे दंडित किया गया? उत्तर – सुखिया के पिता पर मंदिर को अशुद्ध करने का आरोप लगाया गया। वह अछूत जाति का था इसलिए उसे मंदिर में प्रवेश का अधिकार नहीं था। दंड स्वरूप सुखिया के पिता को सात दिन जेल में रहने की सजा दी गई। (घ) जेल से छूटने के बाद सुखिया के पिता ने बच्ची को किस रूप में पाया? उत्तर – जेल से छूटने के बाद सुखिया के पिता को उसकी बच्ची कहीं नहीं दिखी तो उसके रिश्तेदारों से उसे पता चला कि उसकी बच्ची मर चुकी है और उसका अंतिम संस्कार किया जा चूका है। परन्तु जब वह शमशान पहुँचा तो उसे उसकी बच्ची राख के ढ़ेर के रूप में मिली। (ड़) इस कविता का केंद्रीय भाव अपने शब्दों में लिखिए। उत्तर – इस कविता में छुआछूत की प्रथा के बारे में बताया गया है। इस कविता का मुख्य पात्र एक अछूत है। उसकी बेटी एक महामारी की चपेट में आ जाती है। बेटी को ठीक करने के लिए वह मंदिर जाता है ताकि देवी माँ के प्रसाद का फूल ले आये। मंदिर में भक्त लोग उसकी जमकर धुनाई करते हैं। क्योंकि वह अछूत हो कर भी मंदिर में आया थस। फिर उसे दंड के रूप में सात दिन की जेल हो जाती है क्योंकि एक अछूत होने के नाते वह मंदिर को अशुद्ध करने का दोषी पाया जाता है। जब वह जेल से छूटता है तो पाता है कि उसकी बेटी स्वर्ग सिधार चुकी है और उसका अंतिम संस्कार भी हो चुका है। एक सामाजिक कुरीति के कारण एक व्यक्ति को इतना भी अधिकार नहीं मिलता है कि वह अपनी बीमार बच्ची की एक छोटी सी इच्छा पूरी कर सके। बदले में उसे जो मिलता है वह है प्रताड़ना और घोर दुख। निम्नलिखित पंक्तियों का आश्य स्पष्ट करते हुए उनका अर्थ सौंदर्य बताइए (क) अविश्रांत बरसा करके भी आँखें तनिक नहीं रीतीं उत्तर – उसकी आँखों से लगातार आँसू बरसने के बावजूद अभी भी आँखे सूखी हो गई थीं। यह पंक्ति शोक की चरम सीमा को दर्शाती है। कहा जाता है कि कोई कभी कभी इतना रो लेता है कि उसकी अश्रुधारा तक सूख जाती है। (ख) बुझी पड़ी थी चिता वहाँ पर छाती धधक उठी मेरी उत्तर – उधर चिता बुझ चुकी थी, इधर सुखिया के पिता की छाती जल रही थी। यहाँ एक पिता का दुःख दर्शाया गया है जो अंतिम बार भी अपनी बेटी को न देख सका। (ग) हाय! वही चुपचाप पड़ी थी अटल शांति सी धारण कर उत्तर – जो बच्ची कभी भी एक जगह स्थिर नहीं बैठती थी, आज वही चुपचाप पत्थर की भाँति पड़ी हुई थी। यहाँ बच्चीको महामारी से ग्रस्त दर्शाया गया है। (घ) पापी ने मंदिर में घुसकर किया अनर्थ बड़ा भारी उत्तर – सुखिया के पिता को मंदिर में देखकर एक भक्त कहता है कि इस पापी ने मंदिर में प्रवेश करके बहुत बड़ा अनर्थ कर दिया, मंदिर को अपवित्र कर दिया। क्योंकि वह अछूत था और अछूत को मंदिर में आने का कोई अधिकार नहीं दिया गया था। Top Check out – Class 9 Hindi Sparsh and Sanchayan Book Chapter-wise Explanation
एक फूल की चाह कविता का संदेश क्या है?इस कविता में कवि ने संदेश दिया है कि हमें जाति-पात तथा धार्मिक भेदभाव के स्थान पर मनुष्यता को महत्व देना चाहिए। उसके अनुसार सभी मनुष्य भाई-भाई हैं कोई बढ़ा और कोई छोटा नहीं है।
एक फूल की चाह से हमें क्या शिक्षा मिलती है?मित्र इस कविता से हमें शिक्षा मिलती है कि हमें धर्म, जाति और रंग आदि के आधार पर किसी के साथ भेदभाव नहीं करना चाहिए। ईश्वर ने सबको समान बनाया है। अतः हमें सबके साथ समानता का व्यवहार करना चाहिए।
कविता में कवि ने क्या संदेश दिया है?कवि ने इस कविता के माध्यम से संदेश देना चाहा है कि पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं। यानी स्वतंत्रता सबसे अच्छी है। स्वतंत्र रहकर ही अपने सपने और अरमान पूरे किए जा सकते हैं। पराधीनता में सारी इच्छाएँ खत्म हो जाती हैं।
एक फूल की चाह कविता में कवि समाज को क्या संदेश देना चाहते हैं उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए?प्रस्तुत कविता के माध्यम से कवि ने यह संदेश देने की कोशिश की है कि सामाजिक विकास के लिए जाति के आधार पर किसी भी तरह का भेदभाव नहीं होना चाहिए। भारतीय संविधान के धारा-17 के अंतर्गत भी छुआछूत को ग़ैरकानूनी माना गया है। देश का संविधान प्रत्येक नागरिक को समान अधिकार देता है।
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