एसटी वालों को कितना परसेंट आरक्षण है? - esatee vaalon ko kitana parasent aarakshan hai?

छत्तीसगढ़ विधानसभा ने राज्य में विभिन्न वर्गों की आबादी के अनुपात में सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में दाखिले में आरक्षण से संबंधित दो संशोधन विधेयक को शुक्रवार को सर्वसम्मति से पारित कर दिया. इसके साथ ही राज्य में आरक्षण का कुल कोटा 76 प्रतिशत हो गया है.

विधानसभा में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने छत्तीसगढ़ लोक सेवा (अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़ा वर्गों के लिए आरक्षण) संशोधन विधेयक, 2022 और छत्तीसगढ़ शैक्षणिक संस्थान (प्रवेश में आरक्षण) संशोधन विधेयक 2022 पेश किया, जिसे पांच घंटे तक चली चर्चा के बाद पारित कर दिया गया.

विधेयकों के अनुसार, राज्य में अनुसूचित जनजाति को 32 प्रतिशत, अन्य पिछड़ा वर्ग को 27 प्रतिशत, अनुसूचित जाति को 13 प्रतिशत और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के लिए 4 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया गया है.

विधेयकों पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए बघेल ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की पिछली सरकार ‘क्वांटिफायबल डेटा आयोग’ का गठन नहीं कर सकीं, जबकि कांग्रेस सरकार ने राज्य में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और ईडब्ल्यूएस (आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग) से संबंधित लोगों के सर्वेक्षण के लिए 2019 में इसका गठन किया था.

बघेल ने कहा कि आयोग ने हाल में अपनी रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंपी हैं, जिसके अनुसार राज्य में ओबीसी की 42.41 प्रतिशत और ईडब्ल्यूएस की 3.48 प्रतिशत आबादी है.

बघेल ने इस दौरान सभी दल के विधायकों से कहा कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलकर इन संशोधन विधेयकों को भारतीय संविधान की नौवीं अनुसूची के तहत सूचीबद्ध करने का अनुरोध करें.

वहीं विपक्ष के नेता नारायण चंदेल और अन्य विपक्षी विधायकों ने कहा कि क्वांटिफायबल डेटा आयोग की रिपोर्ट विधानसभा में पेश नहीं की गई है. उन्होंने कहा कि यदि सरकार का दावा है कि जनसंख्या के अनुपात के आधार पर आरक्षण दिया गया है, तो इस संबंध में कोई विशिष्ट डेटा नहीं है.

भाजपा और अन्य विपक्षी दल के सदस्य अनुसूचित जाति वर्ग के लिए 16 प्रतिशत आरक्षण और ईडब्ल्यूएस के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण से संबंधित संशोधन प्रस्ताव भी लाए.

जवाब में मुख्यमंत्री बघेल ने कहा कि 2011 के बाद देश में जनगणना नहीं हुई है और इसके होने के बाद परिणाम के आधार पर अनुसूचित जाति के आरक्षण में संशोधन किया जा सकता है. मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य के वरिष्ठ मंत्री शुक्रवार रात राज्यपाल अनुसुइया उइके से समय लेंगे और उनसे संशोधन विधेयकों पर अपनी सहमति देने का आग्रह करेंगे.

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने सितंबर में वर्ष 2012 में जारी सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश के लिए आरक्षण को 58 प्रतिशत तक बढ़ाने के आदेश को खारिज कर दिया था. न्यायालय ने कहा था कि 50 प्रतिशत की सीमा से अधिक आरक्षण असंवैधानिक है.

वर्ष 2012 में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षण चार प्रतिशत घटाकर 12 प्रतिशत कर दिया गया था, जबकि अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए आरक्षण 12 प्रतिशत बढ़ाकर 20 से 32 प्रतिशत कर दिया गया था. जबकि अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए आरक्षण 14 प्रतिशत अपरिवर्तित रखा गया था.

आज विधेयकों के पारित होने के बाद मुख्यमंत्री बघेल ने आरक्षण विधेयक को संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल करने के संबंध में भारत सरकार से आवश्यक कदम उठाने के लिए अनुरोध करने से संबंधित शासकीय संकल्प पेश किया.

भाजपा सदस्यों ने यह कहते हुए संकल्प पर चर्चा में हिस्सा नहीं लिया कि विधेयकों को अभी राज्यपाल की मंजूरी मिलनी बाकी है तो ऐसे संकल्प को विधानसभा में कैसे लाया जा सकता है. बाद में विधानसभा में ध्वनिमत से यह संकल्प पारित कर दिया गया. संकल्प पारित होने के बाद विधानसभा अध्यक्ष ने सदन की कार्यवाही दो जनवरी वर्ष 2023 तक के लिए स्थगित कर दी.

बोम्मई सरकार पर आयोग की रिपोर्ट को लागू करने के लिए एससी/एसटी सांसदों का दबाव था। वाल्मीकि गुरुपीठ के आचार्य प्रसन्नानंद स्वामी भी एसटी आरक्षण सीमा को बढ़ाने को लेकर भूख हड़ताल पर हैं।

एसटी वालों को कितना परसेंट आरक्षण है? - esatee vaalon ko kitana parasent aarakshan hai?

Niteesh Kumarपीटीआई,बेंगलुरुSat, 08 Oct 2022 11:17 AM

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कर्नाटक की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार ने विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले बड़ा कदम उठाया है। राज्य सरकार ने संवैधानिक संशोधन के जरिए राज्य में अनुसूचित जाति और जनजाति (SC/ST) का आरक्षण बढ़ाने का फैसला किया है। सरकार ने यह निर्णय जस्टिस एच. एन. नागमोहन दास आयोग की रिपोर्ट के आधार पर लिया है, जिसने एससी आरक्षण को 15 प्रतिशत से बढ़ाकर 17 प्रतिशत और एसटी के लिए इसे 3% से बढ़ाकर 7% करने की सिफारिश की है।

मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने एक सर्वदलीय बैठक की अध्यक्षता करने के बाद इसकी घोषणा की। बैठक में कांग्रेस और जनता दल (एस) के नेताओं ने भी भाग लिया। उन्होंने कहा कि एससी/एसटी समुदायों को आबादी के आधार पर आरक्षण की लंबे समय से मांग होती रही है। उन्होंने कहा, 'जस्टिस नागमोहन दास आयोग की सिफारिशों पर आज सर्वदलीय बैठक में चर्चा की गई और इसे अनुमति दे दी गई। इससे पहले हमारी पार्टी (भाजपा) के भीतर इस पर चर्चा हुई, जहां एससी/एसटी के कल्याण के लिए अपनी प्रतिबद्धता को बनाए रखने का फैसला लिया गया। शनिवार को कैबिनेट की बैठक बुलाई जाएगी, जहां इस संबंध में औपचारिक निर्णय लिया जाएगा।'

SC/ST सांसदों का सरकार पर था दबाव 
बोम्मई सरकार पर आयोग की रिपोर्ट को लागू करने के लिए एससी/एसटी सांसदों का जबरदस्त दबाव था। साथ ही, वाल्मीकि गुरुपीठ के आचार्य प्रसन्नानंद स्वामी भी एसटी आरक्षण सीमा को बढ़ाने ने की मांग को लेकर भूख हड़ताल पर हैं। विपक्षी दल, खासकर कांग्रेस राज्य सरकार पर कदम उठाने में देरी को लेकर हमलावर रही है। आयोग ने जुलाई 2020 में सरकार को अपनी सिफारिशें दी थीं। हालांकि, आरक्षण के संबंध में सुप्रीम कोर्ट के कुछ फैसलों के बाद, राज्य सरकार ने कानून और संविधान के अनुसार सिफारिशों को लागू करने के लिए जस्टिस सुभाष बी. आदि की अध्यक्षता में समिति का गठन किया था, जिसने बाद में अपनी रिपोर्ट भी सौंप दी थी।

बोम्मई ने कहा कि दोनों रिपोर्ट का अध्ययन करने के बाद, सरकार कानून और संविधान से संबंधित किसी भी मामले पर कोई भी निर्णय लेने से पहले सभी को विश्वास में लेना चाहती थी, इसलिए सर्वदलीय बैठक बुलाई गई। वर्तमान में, कर्नाटक OBC के लिए 32 प्रतिशत, SC के लिए 15 प्रतिशत और ST के लिए तीन प्रतिशत यानि कि कुल 50 प्रतिशत आरक्षण प्रदान करता है। अब नौंवी अनुसूची के माध्यम ही एससी/ एसीटी कोटा बढ़ाने का एकमात्र जरिया हो सकता है।
 
50% आरक्षण की सीमा कई राज्यों में हुई पार
सर्वदलीय बैठक में विपक्ष के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया, एक अन्य पूर्व मुख्यमंत्री और जद (एस) नेता एचडी कुमारस्वामी भी शामिल हुए। यह देखते हुए कि अगर आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक होता है तो अदालतें आपत्ति जताएंगी। कानून मंत्री जे सी मधुस्वामी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का निर्णय है कि राज्यों में आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए, लेकिन कुछ राज्यों ने इस सीमा को भी पार कर लिया है। विशेष परिस्थितियों में ऐसा करने का प्रावधान मौजूद है। उन्होंने कहा, 'हम इसे 9वीं अनुसूची के तहत पेश करेंगे, क्योंकि इसमें न्यायिक छूट है। तमिलनाडु ने नौंवी अनुसूची के तहत ही आरक्षण की ऊपरी सीमा को 69 प्रतिशत कर दिया। हम संविधान में संशोधन के लिए केंद्र सरकार से सिफारिश करेंगे।'

मंत्री ने स्वीकार किया कि एससी/एसटी कोटा बढ़ाने और 50 प्रतिशत से अधिक करने से कुछ हद तक सामान्य वर्ग की जगह खत्म हो जाएगी। इस फैसले को कुछ लोग राजनीतिक चश्मे से भी देख रहे हैं क्योंकि करीब 6 महीने में विधानसभा चुनाव होने हैं। सिद्धारमैया ने केंद्र से अपील की है कि अगर वह वास्तव में इन समुदायों की परवाह करता है, तो राज्य की सिफारिश के बाद एससी/ एसटी के लिए कोटा वृद्धि को प्रभावी करने के लिए एक अध्यादेश जारी करे।

भारत में एससी एसटी आरक्षण कितना है?

कानूनन देश में आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से ज्यादा नहीं हो सकती है. अभी देश में 49.5 फीसदी आरक्षण है. ओबीसी को 27%, अनुसूचित जातियों (एससी) को 15% और अनुसूचित जनजातियों (एसटी) को 7.5% आरक्षण की व्यवस्था है. इनके अलावा आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग के लोगों को 10% आरक्षण दिया जाता है.

बिहार में किस जाति का कितना आरक्षण है?

वर्तमान समय में बिहार में आरक्षण की जो स्थिति है, उसके अनुसार अनुसूचित जाति को 16 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति को 1 प्रतिशत, अत्यंत पिछड़ा वर्ग को 18 प्रतिशत और पिछड़ा वर्ग को 12 प्रतिशत का आरक्षण दिया जा रहा है।

आरक्षण के बारे में संविधान में क्या लिखा है?

आर्थिक आधार पर आरक्षण को ना अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति में कौन होगा, इसकी परिभाषा संविधान के अनुच्छेद 341 और 342 में दी गई है। संविधान का अनुच्छेद 16 (4) नागरिकों के पिछड़े वर्गों के हित में आरक्षण की अनुमति देता है और अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के बारे में विशेष रूप से उल्लेख नहीं करता है।

भारत में SC ST OBC की जनसंख्या कितनी है?

भारत में 24.39 करोड़ परिवार में रहते है। उनमें से 17.91 करोड़ परिवार ग्रामीण इलाकों में रहते है। अनुसूचित जाति-जनजाति के 3.86 करोड़ परिवार, यानी 21.53 प्रतिशत ग्रामीण भारत में रहते है।