पति-पत्नी के बीच मतभेद पैदा होने पर अक्सर महिलाओं को ज्यादा समस्याएं आती हैं. यह इसलिए होता है क्योंकि आर्थिक जरूरतों के लिए महिलाएं अमूमन अपने पुरुष साथी पर निर्भर होती हैं. विवाद की स्थिति में उन्हें आर्थिक तंगी से बचाने के लिए कानून में कर्इ प्रावधान किए गए हैं. आइए, इनके बारे में जानते हैं. गुजारा-भत्ता कब इसे दिया जाता है? यदि महिला कमा भी रही है तो भी पति के साथ मतभेद पैदा होने पर उसे गुजारा-भत्ता दिया जाएगा. यह नियम इसलिए बनाया गया है ताकि वह पति की तरह सम्मान के साथ अपना जीवनयापन कर सके. पत्नी के नौकरी न करने पर विवाद की स्थिति में कोर्ट महिला की उम्र, शैक्षिक योग्यता, कमार्इ करने की क्षमता देखते हुए गुजरा-भत्ता तय करता है. इसे भी पढ़ें : इस स्टार्टअप के जरिए घर बैठे लाइव लीजिए डॉक्टर की सलाह यदि बच्चा है : गुजारे-भत्ते में बच्चे का खर्च शामिल नहीं है. उसकी देखरेख के लिए पिता को अलग से पैसे देने पड़ते हैं. अगर महिला भी कमा रही है तो उसे भी अपनी कमार्इ का हिस्सा बच्चे की देखरेख के लिए निकालना पड़ता है. यदि पति दिव्यांग है : पति को केवल तभी गुजारा-भत्ता मिलता है यदि वह शारीरिक रूप से अक्षम है. इसके चलते वह कमा नहीं सकता है और पत्नी कमाती हो. कितना होता है भुगतान? मासिक भुगतान :सुप्रीम कोर्ट ने मासिक गुजारे-भत्ते की सीमा तय की है. यह पति की कुल सैलरी का 25 फीसदी से ज्यादा नहीं हो सकता है. पति की सैलरी में बदलाव होने पर इसे बढ़ाया या घटाया जा सकता है. एकमुश्त निपटान : एकमुश्त निपटान के लिए कोर्इ बेंचमार्क नहीं है. लगता है टैक्स मासिक भुगतान : मासिक/तिमाही आधार पर पति से पत्नी को मिलने वाले गुजारे-भत्ते को आमदनी माना जाता है. यह प्राप्त करने वाले की इनकम के साथ जुड़ेगा. फिर जिस टैक्स ब्रैकेट में करदाता आता है, उसी हिसाब से टैक्स लगेगा. इसका भुगतान करने वाले को कोर्इ टैक्स छूट नहीं मिलती है. इसे भी पढ़ें : साइबर इंश्योरेंस प्लान लेते हुए किन बातों का रखें ध्यान? एकमुश्त निपटान : एकमुश्त गुजारे-भत्ते को कैपिटल रिसीप्ट माना जाता है. लिहाजा, इस पर टैक्स नहीं लगता है. स्त्रीधन क्या है? -शादी में या इसके दौरान महिला को जितने प्रकार के तोहफे मिलते हैं, वे स्त्रीधन में आते हैं. इनमें जेवरात, प्रॉपर्टी, कार, पेंटिग, अप्लायंस, फर्नीचर इत्यादि सभी चीजें शामिल हैं. विवाद की स्थिति में दो गवाहों की मौजूदगी में सभी आइटमों की सूची बनार्इ जाती है. इन पर क्लेम किया जाता है. -ये तोहफे सास-ससुर, दोस्त, नाते-रिश्तेदार और संगे-संबंधी किसी के भी हो सकते हैं. -शादी से पहले और बाद में महिला की कमार्इ भी स्त्रीधन में ही आती है. उसकी कमार्इ से बचत और निवेश भी स्त्रीधन है. क्या महिला का नहीं है -शादी में या इस दौरान पति को पत्नी के माता-पिता से मिले कीमती उपहार जैसे सोने की चेन या अंगूठी इत्यादि पर पुरुष का ही हक है. -यदि पति ने पत्नी के नाम से कोर्इ चल या अचल संपत्ति ली है, लेकिन उसे गिफ्ट के तौर पर नहीं दिया है. -महिला का अपनी कमार्इ से घर पर किया गया खर्च वापस नहीं मांगा जा सकता है. हिन्दी में शेयर बाजार और पर्सनल फाइनेंस पर नियमित अपडेट्स के लिए लाइक करें हमारा फेसबुक पेज. पेज लाइक करने के लिए यहां क्लिक करें हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक मामले की सुनवाई हुई, जिसमें गुजारा भत्ता देने से बचने के लिए एक शख्स गायब हो गया। उसे खोजने के लिए बनी पुलिस टीम भी उसका कुछ पता नहीं लगा पाई। इस दौरान कोर्ट में यह भी पता चला कि 575 से अधिक महिलाओं को अदालत के आदेश के बावजूद एलिमनी नहीं मिली। Show ज्यादातर मामले वाराणसी और प्रयागराज जिलों के हैं। वैसे यह स्थिति कई राज्यों में है। तलाक की चाह में पति एलिमनी पर हामी तो भर देते हैं, लेकिन डाइवोर्स मिलते ही गायब हो जाते हैं। दैनिक भास्कर की वुमन टीम ने ये टटोला कि तलाक के बाद मेंटेनेंस क्लेम करने वाली कितनी महिलाओं को उनका हक मिल पाता है। हक में फैसला, फिर भी न्याय नहीं गुजरात हाईकोर्ट ने मेरे हक में फैसला भी सुनाया, लेकिन मुझे अब तक न्याय नहीं मिला। हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद 14 साल से गुजारा भत्ता पाने के लिए लड़ रही हूं। यह कहना है गुजरात के वडोदरा की कोकिला बेन का। कोकिला बेन इकलौती नहीं हैं, जो गुजारा भत्ता के लिए एड़ियां रगड़ रही हैं। ऐसे ढेरों मामले हैं। क्या कहता है कानून?
पति भी मांग सकते हैं कमाऊ पत्नी से गुजारा भत्ता उन्होंने बताया कि देश में महिला और पुरुष के लिए अलग-अलग कानून नहीं है। हिंदू मैरिज एक्ट-1955 की धारा 24 और 25 के तहत प्रावधान है कि पति-पत्नी दोनों एक-दूसरे से गुजारा भत्ता मांग सकते हैं। महिला वकील और नर्स को देना पड़ा मुआवजा दूसरा मामला दिल्ली के एलएनजेपी अस्पताल की चीफ नर्स दीपिका (बदला हुआ नाम) का था। दीपिका ने तलाक के लिए अर्जी दी तो पति अदालत में मुआवजे की मांग करने लगा। दीपिका को भी अपने पति को मेंटनेंस देना पड़ा था। एलिमनी लेने में कहां फंसता है पेंच? वहीं ऐसे लोगों की संख्या भी कम नहीं है, जो तलाक प्रक्रिया शुरू होते ही अपनी प्रॉपर्टी अपने रिश्तेदारों के नाम कर देते हैं, ताकि उन्हें पत्नी को हिस्सा न देना पड़े। ऐसे मामलों में अगर पत्नी कोर्ट में ये साबित कर देती है कि ये प्रॉपर्टी बाद में ट्रांसफर की गई है तो अदालत उसमें से महिला को हिस्सा दिलाती है। महिलाएं ऐसे ले सकती हैं अपना हक खर्च नहीं देने पर पति के खिलाफ अरेस्ट वारंट जारी किया जाता है। पति की गिरफ्तारी भी हो सकती है। फिर भी भत्ता न दिए जाने पर अदालत कुर्की वारंट जारी करती है, जिसके तहत व्यक्ति की संपत्ति बेचकर महिला को मुआवजा दिया जाता है। अगर पति खर्च भी नहीं दे रहा है और अदालत में पेश भी नहीं हो रहा है तो उसे भगोड़ा घोषित कर दिया जाता है। मुआवजा राशि कम कराने को सुप्रीम कोर्ट पहुंचते हैं पति तीन माह 13 दिन का खाना-पीना देता है पति अगर निकाह के वक्त मेहर में खास रकम तय नहीं हुई थी तो पति को तीन माह 13 दिन के खाने-पीने का खर्च देना होता है। मेहर किसी भी महिला का हक होता है, लेकिन महिला चाहे तो मेहर की रकम माफ भी कर सकती है। क्या पति को भी गुजारा भत्ता मिल सकता है?पति भी मांग सकते हैं कमाऊ पत्नी से गुजारा भत्ता
उन्होंने बताया कि देश में महिला और पुरुष के लिए अलग-अलग कानून नहीं है। हिंदू मैरिज एक्ट-1955 की धारा 24 और 25 के तहत प्रावधान है कि पति-पत्नी दोनों एक-दूसरे से गुजारा भत्ता मांग सकते हैं।
भारत में तलाक में गुजारा भत्ता क्या है?Separation गुजारा भत्ता
यह गुजारा भत्ता उस स्थिति में मिलता है जब तलाक नहीं हुआ हो और पति-पत्नी अलग रह रहे हों. ऐसी स्थिति में यदि कोई खुद का भरण-पोषण करने में समर्थ ना हो तो सेपरेशन गुजारा भत्ता देना आवश्यक होता है. अगर दंपति में सुलह हो जाती है तो गुजारा भत्ता देना बंद हो जाता है.
पत्नी तलाक न दे तो क्या करे?यूं तो कानून कहता है कि तलाक पति-पत्नी दोनों की रजामंदी से ही हो सकता है। लेकिन जब एक पक्ष अड़ा हो और दूसरा पक्ष दोबारा साथ रहने का मन भी बनाना नहीं चाहे तब बड़ी समस्या पैदा हो जाती है। ऐसे में सुप्रीम को्रट के पास संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत मिली सर्वव्यापी शक्तियों के इस्तेमाल का विकल्प होता है।
केस 125 क्या है?धारा 125 CrPC के तहत वयस्क बेटे या बेटी भरण-पोषण की माँग नहीं कर सकतेः हाईकोर्ट हाल ही में, जम्मू और कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि एक वयस्क बेटे या बेटी को केंद्रीय सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण पोषण के हक़दार नहीं है।
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