गुप्ता कितने प्रकार के होते हैं? - gupta kitane prakaar ke hote hain?

गुप्ता शब्द अधिकतर वनिये लगाते है।

  • खंडेलवाल, अग्रवाल, विजयवर्गीय, महावर वनिया, ओसवाल, माहेश्वरी, जायसवाल।
  • अग्रवाल में 18 गोत्र है जैसे गर्ग, बंसल, गोयल, मित्तल, जिंदल, मंगल, कंसल, एरण आदि।
  • इसी प्रकार अन्य वैश्य लोग भी अपना गोत्र या गुप्ता उपनाम प्रयोग में लेते है।
  • गुप्ता के संस्थापक कौन थे वर्णन करें?

    इसे सुनेंरोकें- गुप्तवंश का संस्थापक था-श्रीगुप्त। 319 से 350 ई. के बीच का वह गुप्तशासक जिसने ‘महाराजाधिराज’ की उपाधि धारण की थी-चन्द्रगुप्त प्रथम। वह साम्राज्य जिसका वास्तविक संस्थापक चन्द्रगुप्त प्रथम था-गुप्त साम्राज्य।

    गुप्ता और गुप्त में क्या अंतर है?

    इसे सुनेंरोकेंके संस्थापक चन्द्रगुप्त मौर्य थे जिसने लगभग 137 वर्षों तक शासन किया था जबकि गुप्त वंश (240 ई. -550 ई. ) के संस्थापक श्रीगुप्त था। जिसने लगभग 300 वर्षों तक शासन किया था।

    बनिया में कितनी जात होती है?

    इसे सुनेंरोकेंबनिया जाती के गोत्र स्वर्ण, पोद्दार, मधेशिया, जैन, लोनिया, बरनवाल, कंडवाल, अग्रवाल, जिंदल और केसरवानी यह बनिया जाती के गोत्र हैं.

    किस वंश का संस्थापक कौन था वर्णन कीजिए?

    इसे सुनेंरोकेंश्रीगुप्त के बाद घटोत्कच राजा बना। गुप्त वंश का प्रथम महान शासक चंद्रगुप्त प्रथम था। चंद्रगुप्त प्रथम ने लिच्छवी राजकुमारी कुमारदेवी से विवाह किया तथा महाराजाधिराज की उपाधि धारण की। समुद्रगुप्त चंद्रगुप्त प्रथम के बाद 335 ई.

    गुप्ता कौन सा कास्ट में आता है?

    इसे सुनेंरोकेंगुप्ता वैश्य ( बनिया ) होते हैं जो सामान्य वर्ग में आते हैं ।

    Gupta जाति का गोत्र क्या है?

    इसे सुनेंरोकेंब्राह्मण ग्रन्थों से स्पष्ट हो जाता है कि ‘गुप्त’ की उपाधि प्राचीनकाल में बहुधा वैश्य ही धारण करते थे। वस्तुतः गुप्तों का गोत्र ‘धारण’ वैश्यों से सम्बन्धित अग्रवालों का गोत्र था। इस प्रकार गुप्त शासक वैश्य जाति के थे।

    गुप्ता की जाति क्या है?

    इसे सुनेंरोकेंगुप्ता भारतीय मूल का एक उपनाम है। कुछ विद्वानों के अनुसार, गुप्ता शब्द की व्युत्पति संस्कृत शब्द गोप से हुआ जिसका अर्थ गाय का पालक होता है। प्राचीन समय मे गाय ही धन सम्पति की प्रतीक थी प्रमुख इतिहासकार आर सी मजुमदार के अनुसार उपनाम गुप्ता भिन्न समयों पर उत्तरी और पूर्वी भारत के विभिन्न समुदायों द्वारा अपनाया गया।

    बीसा अग्रवाल कौन होते हैं?

    इसे सुनेंरोकेंबनिया जाति के उपसमूह बनिया में छह उपसमूह हैं- बीसा या वैश्य अग्रवाल, दासा या गाटा अग्रवाल, सरलिया, सरावगी या जैन, माहेश्वरी या शैव और ओसवाल।

    गुप्त कौन थे ? गुप्तों की जाति और उत्पत्ति  (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});

    गुप्तों की जाति और उत्पत्ति को लेकर आज भी मतभेद बना हुआ है। कुछ इन्हें वैश्य मानते हैंतो कुछ क्षत्रिय कुछ ऐसे भी विद्वान् हैं जो गुप्तों को ब्राह्मण मानते हैं।

    • प्रो. एच.सी. राय चौधरी ने समुद्रगुप्त की पौत्री और वाकाटक नरेश रुद्रसेन द्वितीय की पत्नी प्रभावती के पूना एवं स्थिपुर अभिलेखों के आधार पर गुप्तों को 'धारणगोत्र का सिद्ध करने का प्रयास किया है। उनका कहना है कि वे शुंग सम्राट अग्निमित्र की पत्नी जारिणी के वंशज थे।
    • लेकिन प्रो. गोयल का कहना है कि "किसी रानी के नाम का सम्बन्ध उसके समय से लगभग पाँच सौ वर्ष बाद साम्राज्य स्थापित करने वाले वंश के साथ जोड़ना कदापि तर्कसंगत नहीं कहा जा सकता है।
    • " एलन महोदय गुप्तों को शूद्र मानते हैं। उनका कहना है कि जिस प्रकार चन्द्रगुप्त मौर्य शूद्र था उसी प्रकार गुप्त शासक भी शूद्र थे। एलन का यह तर्क भी अकाट्य नहीं है। आजकल अधिकांश विद्वान चन्द्रगुप्त मौर्य को क्षत्रिय मानते हैं। इस विचार से गुप्त शासक क्षत्रिय हुएन कि शूद्र एलन के अतिरिक्त अन्य दूसरे विद्वान भी गुप्तों को शूद्र जाति का मानते हैं। 

    गुप्तों को शूद्र साबित करने के संबंध में तर्क 

    ऐसे विद्वानों में डॉ. काशी प्रसाद जायसवाल एवं बी. जी. गोखले ने उन्हें मौर्यों की ही तरह निम्नकुलोत्पन्न या शूद्र जाति का प्रमाणित करने की चेष्टा की है। डॉ. जायसवाल निम्न तर्कों के आधार पर गुप्तों को शूद्र साबित करते हैं।

    (क) कौमुदीमहोत्सव नामक गुप्तकालीन नाटक में चन्द्रगुप्त प्रथम (चन्द्रसेन) को 'कारस्करबतलाया गया है। और ऐसे नीच जाति के पुरुष को राजगद्दी के अयोग्य माना गया है। इसी नाटक में यह वर्णित है कि निम्न जाति में उत्पन्न होने के कारण चन्द्रसेन को गद्दी के लिए अयोग्य घोषित किया गया था। 

    (ख) डॉ. जायसवाल का दूसरा तर्क यह है कि कौमुदीमहोत्सव में गुप्तों का वैवाहिक सम्बन्ध लिच्छवियों के साथ स्पष्ट रूप से दिखलाया गया है। चूँकि लिच्छवि मलेच्छ थे अतः गुप्त भी शूद्र जाति के हुए बी. जी. गोखले भी लिच्छवियों को 'व्रात्य क्षत्रियमानते हैं। 

    (ग) डॉ. जायसवाल ने 'धारणगोत्र के आधार पर जिसका उल्लेख हम पहले ही कर चुके हैंगुप्तों को जाट भी माना है। मंजुश्रीमूलकल्प से भी गुप्तों के जाट होने का आभास मिलता है। डॉ. जायसवाल ने नेपाल में शासन कर रहे गुप्त राजाओं के इतिहास के पन्ने भी पलटे हैंजिसमें उन राजाओं को 'अहीरजाति से सम्बन्धित बतलाया गया है। डॉ. शर्मा भी गुप्तों को जाट मानते हैं। उनका कहना है कि 'धारणगोत्र आज भी जाटों के बीच प्रचलित है।

    इस तरह उपर्युक्त प्रमाणों के आधार पर कुछ विद्वान गुप्तों को शूद्र जाट या नीच वंश (जाति) में उत्पन्न मानते हैं। परन्तु इन तथ्यों में अधिक दम नहीं है। 

    • कौमुदी महोत्सव के 'कारस्करशब्द के आधार पर चन्द्रसेन को शूद्र नहीं माना जा सकता है। इस नाटक में पक्षपात का बहुत अधिक अंश है। चूँकि इस नाटक की रचना चन्द्रसेन के प्रतिद्वन्द्वी कल्याणवर्मन् के समय में हुई थीअतः सम्भव है कि नाटककार ने अपने राजा का पक्ष लेते हुए चन्द्रसेन को निम्न कुल का दर्शाने का प्रयत्न किया हो ताकि चन्द्रसेन गद्दी का दावेदार नहीं हो सके। 
    • लिच्छवियों को मलेच्छ मानने का कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं है बल्कि अधिकांश प्रमाण यह इंगित करते हैं कि लिच्छवि क्षत्रिय थे। दीर्घनिकाय से यह स्पष्ट हो जाता है कि लिच्छवि क्षत्रिय जाति के थे। पुनः 'धारणशब्द साम्य अपभ्रंश प्रतिफल है और धारण 'धारिदोनों शब्दों के मूलरूप भिन्न हैं। यह भी सम्भव हो सकता है कि विभिन्न जाति वालों के गोत्र समान रहते होंक्योंकि प्राचीन काल में गोत्र निर्धारण बहुधा पुरोहितों के नाम पर हुआ करता था। अतः 'धारणऔर 'धारिकी समानता एक-दूसरे से नहीं की जा सकती है या इस समानता के आधार पर गुप्तों को जाट नहीं माना जा सकता है। उन्हें शूद्र प्रमाणिक करने के लिए भी स्पष्ट प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं। अन्य कई विद्वानजैसेअनंत सदाशिव अल्तेकरएस. के. ए. आयंगरवी.वी. मिराशी इत्यादि गुप्तों को वैश्य मानते हैं। इन लोगों ने अपनी धारणा इन राजाओं की पदवी 'गुप्तोंके आधार पर व्यक्त की है। 
    • ब्राह्मण एवं बौद्ध ग्रन्थों में अनेक ऐसे व्यक्तियोंशासकोंराजपुत्रों का उल्लेख हुआ हैजिनके नामों का अन्त 'गुप्तसे होता है। ब्राह्मण ग्रन्थों से स्पष्ट हो जाता है कि 'गुप्तकी उपाधि प्राचीनकाल में बहुधा वैश्य ही धारण करते थे। वस्तुतः गुप्तों का गोत्र 'धारणवैश्यों से सम्बन्धित अग्रवालों का गोत्र था। इस प्रकार गुप्त शासक वैश्य जाति के थे। परन्तु जैसा प्रो. गोयल ने अपनी पुस्तक में दिखलाया है कि "प्राचीन काल में गुप्त नामान्त व्यक्ति सभी जातियों में पाए जाते थे। " उदाहरणस्वरूप अर्थशास्त्र का लेखक विष्णुगुप्त एवं सुप्रसिद्ध खगोलशास्त्री ब्रह्मगुप्त ब्राह्मण जाति के थे। इसी प्रकार मृच्छकटिक का कुमार गुप्तायक क्षत्रिय था। अतः इस आधार पर ही गुप्तों को वैश्य की श्रेणी में रखना उचित प्रतीत नहीं होता है।

     

    गुप्त राजाओं को क्षत्रिय जाति का प्रमाणित करने का प्रयास 

    अन्य विद्वानों ने गुप्त राजाओं को क्षत्रिय जाति का प्रमाणित करने का प्रयास किया है। इसके प्रतिपादकों में गौरीशंकर हीरानन्द ओझा एवं सुधारक चट्टोपाध्याय जैसे विद्वान प्रसिद्ध हैं। आजकल यह मत बहुत अधिक प्रचलित है। इनका निम्नलिखित तर्क है

    (क) कौमुदीमहोत्सव नाटक में मगध के शासक सुन्दरवर्मन को क्षत्रिय स्वीकार किया गया है। इसी राजा ने चन्द्रसेन को अपना दत्तक पुत्र बनाया था। भारतीय परम्परा के अनुसार ज्यादातर स्वाजातीय को ही दत्तक पुत्र बनाया जाता है। अतः यह सम्भव है कि चन्द्रसेन क्षत्रिय जाति का ही रहा हो। इस दृष्टिकोण से चन्द्रसेन या चन्द्रगुप्त प्रथम क्षत्रिय था अतः गुप्त शासक भी क्षत्रिय ही थे।

    (ख) यद्यपि गुप्त नरेशों ने अपने अभिलेखों में अपनी जाति का उल्लेख नहीं किया है और न ही सामयिक ग्रन्थों में इस पर प्रकाश डाला गया हैपरन्तु परवर्ती गुप्त अभिलेखों से इस विषय की कुछ जानकारी मिलती है। उदाहरणार्थ मगध प्रदेश के एक गुप्तवंशीय राजा महाशिवगुप्त को सिरपुर (रायपुर) अभिलेख में चन्द्रवंशीय क्षत्रिय कहा गया है। पंचोभ (बिहार) ताम्रपत्र-अभिलेख में भी गुप्त नामक उपाधि वाले 6 राजाओं का उल्लेख मिलता है। वे अपने को शैव मतावलम्बी एवं अर्जुन (क्षत्रिय) का वंशज मानते हैं।

    (ग) धारवाड़ (महाराष्ट्र) के गुत्तल नरेश अपने को चन्द्रगुप्त द्वितीय का वंशज मानते हैं। इन्हें सोमवंशी क्षत्रिय बतलाया गया हैं। इस आधार पर गुप्तों को भी क्षत्रिय माना जा सकता है। इसकी पुष्टि मंजुश्रीमूलकल्प से भी होती है।

    (घ) जावा के एक ग्रन्थ तंत्री-कामन्दक में इक्ष्वाकुवंशीय महाराज ऐश्वर्यपाल अपने को समुद्रगुप्त के परिवार से संबंधित बतलाते हैं।

    (ङ) गुप्त शासकों के नागोंलिच्छवियों और वाकाटकों के साथ वैवाहिक सम्बन्धों के आधार पर भी यह कहा जा सकता है कि गुप्त राजा क्षत्रियवंशी थेक्योंकि इन वंशों की क्षत्रियता प्रामाणिक है और ऐसा स्पष्ट है कि उस समय प्रतिलोम विवाह को निन्दनीय समझा जाता था। अतः कोई ऐसा कारण नहीं था कि नाग और लिच्छवि शासक अपनी पुत्रियों का विवाह निम्नकुल में उत्पन्न व्यक्तियों से करते। यद्यपि वाकाटक ब्राह्मण राजकुमार का प्रभावती गुप्त के साथ विवाह होना अनुलोम विवाह का एक ज्वलंत उदाहरण है फिर भी इससे यह स्पष्ट नहीं होता है कि ब्राह्मणवंशीय वाकाटक राजाओं ने क्षत्रियों से भी निम्न गुप्तों के साथ वैवाहिक सम्बन्ध कायम किए। इस प्रकार गुप्तों के साथ वैवाहिक सम्बन्धों के आधार पर भी यह कहा जा सकता है कि गुप्त क्षत्रिय जाति के थे।

    गुप्त राजाओं को ब्राह्मण जाति का प्रमाणित करने का प्रयास 

    • प्रो. गोयल उपरोक्त वर्णित तर्कों को मानने से इन्कार कर देते हैं। उनका कहना है कि यद्यपि अभिलेखों में क्षत्रिय शासकों के गुप्तों से सम्बन्ध का जिक्र मिलता हैपरन्तु इससे यह सिद्ध नहीं होता है कि गुप्त भी क्षत्रिय ही थे। उसी प्रकार गुप्तों की विवाह संधियों से सिर्फ इतना ही निष्कर्ष निकलता है कि गुप्त क्षत्रिय से निम्न वर्ग के नहीं थे। इससे उनके वैश्य या शूद्र होने की सम्भावना तो बिल्कुल ही समाप्त हो जाती हैपरन्तु उनके ब्राह्मण होने की सम्भावना बढ़ जाती है। 
    • अतः प्रो. गोयल का कहना है कि गुप्त शासक ब्राह्मण जाति के थे। उनका कहना है कि स्कन्द पुराण में धर्मारण्य प्रदेश (पूर्वी उत्तर प्रदेशमिर्जापुर) में रहने वाले धारण गोत्रीय ब्राह्मणों का उल्लेख मिलता है। चूँकि गुप्त भी पूर्वी उत्तर प्रदेश के रहने वाले थे एवं उनका गोत्र 'धारणथाअतः वे ब्राह्मण थे। 
    • इस सन्दर्भ में दूसरा महत्त्वपूर्ण प्रमाण यह है कि किसी प्रारम्भिक गुप्त शासक ने कदम्ब नरेश काकुत्स्थ वर्मा की पुत्री से विवाह किया था। इसकी जानकारी शान्ति वर्मा (कदम्ब राजा) के तालगुण्ड-अभिलेख से मिलती है। 
    • चूँकि कदम्ब ब्राह्मण जाति के थेअतः उन्होंने ब्राह्मणों के ही साथ अपनी पुत्री का विवाह किया होगा। गुप्त शासकों ने अपनी पुत्रियों का विवाह ब्राह्मणों के साथ किया था। जैसे चन्द्रगुप्त द्वितीय की पुत्री प्रभावती गुप्त का विवाह वाकाटक राजा रुद्रसेन द्वितीय से हुआ था। वालादित्य एवं भानुगुप्त ने भी अपनी बहनों का विवाह ब्राह्मण से किया था। इससे स्पष्ट हो जाता है कि गुप्त शासक ब्राह्मण जाति के थे।

    इस प्रकार हम देखते हैं कि विभिन्न विद्वानों द्वारा उपलब्ध प्रमाणों को अपने-अपने ढंग से व्यवहार में लाया गया है। अपने-अपने तर्कों के आधार पर किसी न किसी तरह से समाज के चारों वर्णों के साथ गुप्तों का सम्बन्ध जोड़ने का प्रयास किया है। अतः इस सम्बन्ध में एक ठोस निष्कर्ष पर पहुँचना मुश्किल है।

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    ब्राह्मण ग्रन्थों से स्पष्ट हो जाता है कि 'गुप्त' की उपाधि प्राचीनकाल में बहुधा वैश्य ही धारण करते थे। वस्तुतः गुप्तों का गोत्र 'धारण' वैश्यों से सम्बन्धित अग्रवालों का गोत्र था। इस प्रकार गुप्त शासक वैश्य जाति के थे।

    Gupta को क्या कहते हैं?

    गुप्ता भारतीय मूल का एक उपनाम है। कुछ विद्वानों के अनुसार, गुप्ता शब्द की व्युत्पति संस्कृत शब्द गोप्त्री से हुआ जिसका अर्थ सैन्य गर्वनर होता है। प्रमुख इतिहासकार आर सी मजुमदार के अनुसार उपनाम गुप्ता भिन्न समयों पर उत्तरी और पूर्वी भारत के विभिन्न समुदायों द्वारा अपनाया गया।

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