गुप्ता शब्द अधिकतर वनिये लगाते है। गुप्ता के संस्थापक कौन थे वर्णन करें? इसे सुनेंरोकें- गुप्तवंश का संस्थापक था-श्रीगुप्त। 319 से
350 ई. के बीच का वह गुप्तशासक जिसने ‘महाराजाधिराज’ की उपाधि धारण की थी-चन्द्रगुप्त प्रथम। वह साम्राज्य जिसका वास्तविक संस्थापक चन्द्रगुप्त प्रथम था-गुप्त साम्राज्य। गुप्ता और गुप्त में क्या अंतर है? इसे सुनेंरोकेंके संस्थापक चन्द्रगुप्त मौर्य थे जिसने लगभग 137 वर्षों तक शासन किया था जबकि गुप्त वंश (240 ई. -550 ई. ) के संस्थापक श्रीगुप्त था। जिसने लगभग 300 वर्षों तक शासन किया था। इसे सुनेंरोकेंबनिया जाती के गोत्र स्वर्ण,
पोद्दार, मधेशिया, जैन, लोनिया, बरनवाल, कंडवाल, अग्रवाल, जिंदल और केसरवानी यह बनिया जाती के गोत्र हैं. किस वंश का संस्थापक कौन था वर्णन कीजिए? इसे सुनेंरोकेंश्रीगुप्त के बाद घटोत्कच राजा बना। गुप्त वंश का प्रथम महान शासक चंद्रगुप्त प्रथम था। चंद्रगुप्त प्रथम ने लिच्छवी राजकुमारी कुमारदेवी से विवाह किया तथा महाराजाधिराज की उपाधि धारण की। समुद्रगुप्त चंद्रगुप्त प्रथम के बाद 335 ई. गुप्ता कौन सा कास्ट में आता है? इसे सुनेंरोकेंगुप्ता वैश्य (
बनिया ) होते हैं जो सामान्य वर्ग में आते हैं । Gupta जाति का गोत्र क्या है?इसे सुनेंरोकेंब्राह्मण ग्रन्थों से स्पष्ट हो जाता है कि ‘गुप्त’ की उपाधि प्राचीनकाल में बहुधा वैश्य ही धारण करते थे। वस्तुतः गुप्तों का गोत्र ‘धारण’ वैश्यों से सम्बन्धित अग्रवालों का गोत्र था। इस प्रकार गुप्त शासक वैश्य जाति के थे। गुप्ता की जाति क्या है? इसे सुनेंरोकेंगुप्ता भारतीय मूल का एक उपनाम है। कुछ विद्वानों के अनुसार, गुप्ता शब्द की व्युत्पति संस्कृत शब्द गोप से हुआ जिसका अर्थ गाय का पालक होता है। प्राचीन समय मे गाय ही धन सम्पति की प्रतीक थी प्रमुख इतिहासकार आर सी मजुमदार के अनुसार उपनाम गुप्ता भिन्न समयों पर उत्तरी और पूर्वी भारत के विभिन्न समुदायों द्वारा अपनाया गया। बीसा अग्रवाल कौन होते हैं? इसे सुनेंरोकेंबनिया जाति के उपसमूह बनिया में छह उपसमूह हैं- बीसा या वैश्य अग्रवाल, दासा या गाटा अग्रवाल, सरलिया, सरावगी या जैन, माहेश्वरी या शैव और ओसवाल।
गुप्त कौन थे ? गुप्तों की जाति और उत्पत्ति (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});गुप्तों की जाति और उत्पत्ति को लेकर आज भी मतभेद बना हुआ है। कुछ इन्हें वैश्य मानते हैं, तो कुछ क्षत्रिय कुछ ऐसे भी विद्वान् हैं जो गुप्तों को ब्राह्मण मानते हैं।
गुप्तों को शूद्र साबित करने के संबंध में तर्कऐसे विद्वानों में डॉ. काशी प्रसाद जायसवाल एवं बी. जी. गोखले ने उन्हें मौर्यों की ही तरह निम्नकुलोत्पन्न या शूद्र जाति का प्रमाणित करने की चेष्टा की है। डॉ. जायसवाल निम्न तर्कों के आधार पर गुप्तों को शूद्र साबित करते हैं। (क) कौमुदीमहोत्सव नामक गुप्तकालीन नाटक में चन्द्रगुप्त प्रथम (चन्द्रसेन) को 'कारस्कर' बतलाया गया है। और ऐसे नीच जाति के पुरुष को राजगद्दी के अयोग्य माना गया है। इसी नाटक में यह वर्णित है कि निम्न जाति में उत्पन्न होने के कारण चन्द्रसेन को गद्दी के लिए अयोग्य घोषित किया गया था। (ख) डॉ. जायसवाल का दूसरा तर्क यह है कि कौमुदीमहोत्सव में गुप्तों का वैवाहिक सम्बन्ध लिच्छवियों के साथ स्पष्ट रूप से दिखलाया गया है। चूँकि लिच्छवि मलेच्छ थे अतः गुप्त भी शूद्र जाति के हुए बी. जी. गोखले भी लिच्छवियों को 'व्रात्य क्षत्रिय' मानते हैं। (ग) डॉ. जायसवाल ने 'धारण' गोत्र के आधार पर जिसका उल्लेख हम पहले ही कर चुके हैं, गुप्तों को जाट भी माना है। मंजुश्रीमूलकल्प से भी गुप्तों के जाट होने का आभास मिलता है। डॉ. जायसवाल ने नेपाल में शासन कर रहे गुप्त राजाओं के इतिहास के पन्ने भी पलटे हैं, जिसमें उन राजाओं को 'अहीर' जाति से सम्बन्धित बतलाया गया है। डॉ. शर्मा भी गुप्तों को जाट मानते हैं। उनका कहना है कि 'धारण' गोत्र आज भी जाटों के बीच प्रचलित है। इस तरह उपर्युक्त प्रमाणों के आधार पर कुछ विद्वान गुप्तों को शूद्र जाट या नीच वंश (जाति) में उत्पन्न मानते हैं। परन्तु इन तथ्यों में अधिक दम नहीं है।
गुप्त राजाओं को क्षत्रिय जाति का प्रमाणित करने का प्रयासअन्य विद्वानों ने गुप्त राजाओं को क्षत्रिय जाति का प्रमाणित करने का प्रयास किया है। इसके प्रतिपादकों में गौरीशंकर हीरानन्द ओझा एवं सुधारक चट्टोपाध्याय जैसे विद्वान प्रसिद्ध हैं। आजकल यह मत बहुत अधिक प्रचलित है। इनका निम्नलिखित तर्क है (क) कौमुदीमहोत्सव नाटक में मगध के शासक सुन्दरवर्मन को क्षत्रिय स्वीकार किया गया है। इसी राजा ने चन्द्रसेन को अपना दत्तक पुत्र बनाया था। भारतीय परम्परा के अनुसार ज्यादातर स्वाजातीय को ही दत्तक पुत्र बनाया जाता है। अतः यह सम्भव है कि चन्द्रसेन क्षत्रिय जाति का ही रहा हो। इस दृष्टिकोण से चन्द्रसेन या चन्द्रगुप्त प्रथम क्षत्रिय था अतः गुप्त शासक भी क्षत्रिय ही थे। (ख) यद्यपि गुप्त नरेशों ने अपने अभिलेखों में अपनी जाति का उल्लेख नहीं किया है और न ही सामयिक ग्रन्थों में इस पर प्रकाश डाला गया है; परन्तु परवर्ती गुप्त अभिलेखों से इस विषय की कुछ जानकारी मिलती है। उदाहरणार्थ मगध प्रदेश के एक गुप्तवंशीय राजा महाशिवगुप्त को सिरपुर (रायपुर) अभिलेख में चन्द्रवंशीय क्षत्रिय कहा गया है। पंचोभ (बिहार) ताम्रपत्र-अभिलेख में भी गुप्त नामक उपाधि वाले 6 राजाओं का उल्लेख मिलता है। वे अपने को शैव मतावलम्बी एवं अर्जुन (क्षत्रिय) का वंशज मानते हैं। (ग) धारवाड़ (महाराष्ट्र) के गुत्तल नरेश अपने को चन्द्रगुप्त द्वितीय का वंशज मानते हैं। इन्हें सोमवंशी क्षत्रिय बतलाया गया हैं। इस आधार पर गुप्तों को भी क्षत्रिय माना जा सकता है। इसकी पुष्टि मंजुश्रीमूलकल्प से भी होती है। (घ) जावा के एक ग्रन्थ तंत्री-कामन्दक में इक्ष्वाकुवंशीय महाराज ऐश्वर्यपाल अपने को समुद्रगुप्त के परिवार से संबंधित बतलाते हैं। (ङ) गुप्त शासकों के नागों, लिच्छवियों और वाकाटकों के साथ वैवाहिक सम्बन्धों के आधार पर भी यह कहा जा सकता है कि गुप्त राजा क्षत्रियवंशी थे, क्योंकि इन वंशों की क्षत्रियता प्रामाणिक है और ऐसा स्पष्ट है कि उस समय प्रतिलोम विवाह को निन्दनीय समझा जाता था। अतः कोई ऐसा कारण नहीं था कि नाग और लिच्छवि शासक अपनी पुत्रियों का विवाह निम्नकुल में उत्पन्न व्यक्तियों से करते। यद्यपि वाकाटक ब्राह्मण राजकुमार का प्रभावती गुप्त के साथ विवाह होना अनुलोम विवाह का एक ज्वलंत उदाहरण है फिर भी इससे यह स्पष्ट नहीं होता है कि ब्राह्मणवंशीय वाकाटक राजाओं ने क्षत्रियों से भी निम्न गुप्तों के साथ वैवाहिक सम्बन्ध कायम किए। इस प्रकार गुप्तों के साथ वैवाहिक सम्बन्धों के आधार पर भी यह कहा जा सकता है कि गुप्त क्षत्रिय जाति के थे। गुप्त राजाओं को ब्राह्मण जाति का प्रमाणित करने का प्रयास
इस प्रकार हम देखते हैं कि विभिन्न विद्वानों द्वारा उपलब्ध प्रमाणों को अपने-अपने ढंग से व्यवहार में लाया गया है। अपने-अपने तर्कों के आधार पर किसी न किसी तरह से समाज के चारों वर्णों के साथ गुप्तों का सम्बन्ध जोड़ने का प्रयास किया है। अतः इस सम्बन्ध में एक ठोस निष्कर्ष पर पहुँचना मुश्किल है। Also Read... गुप्त कालीन इतिहास के साधन गुप्त कौन थे ? गुप्तों की जाति और उत्पत्ति गुप्तों का मूल निवास स्थान गुप्त वंश का उदय समुद्रगुप्त की विजय और साम्राज्य का संगठन समुद्रगुप्त की शासन प्रणाली |समुद्रगुप्त का मूल्यांकन समुद्रगुप्त के बाद गुप्त वंश का इतिहास -रामगुप्त चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य चन्द्रगुप्त द्वितीय का शासन प्रबन्ध चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य का मूल्यांकन फाहियान ( 399-411 ई.) का विवरण फाहियान के अनुसार की भारत की सामाजिक आर्थिक एवं धार्मिक दशा कुमारगुप्त ( 415 से 455 ई. तक ) स्कन्दगुप्त विक्रमादित्य ( 455-467 ई. लगभग ) पुरुगुप्त | कुमारगुप्त द्वितीय | बुद्धगुप्त | अंतिम गुप्त शासक गुप्त साम्राज्य के पतन के कारण गुप्ता गोत्र क्या है?ब्राह्मण ग्रन्थों से स्पष्ट हो जाता है कि 'गुप्त' की उपाधि प्राचीनकाल में बहुधा वैश्य ही धारण करते थे। वस्तुतः गुप्तों का गोत्र 'धारण' वैश्यों से सम्बन्धित अग्रवालों का गोत्र था। इस प्रकार गुप्त शासक वैश्य जाति के थे।
Gupta को क्या कहते हैं?गुप्ता भारतीय मूल का एक उपनाम है। कुछ विद्वानों के अनुसार, गुप्ता शब्द की व्युत्पति संस्कृत शब्द गोप्त्री से हुआ जिसका अर्थ सैन्य गर्वनर होता है। प्रमुख इतिहासकार आर सी मजुमदार के अनुसार उपनाम गुप्ता भिन्न समयों पर उत्तरी और पूर्वी भारत के विभिन्न समुदायों द्वारा अपनाया गया।
वेश में कौन कौन सी जाति आती है?इसी तरह मड़ैया, कुलु/गोराई, सुंडी, वीयार, वेश बनिया एवं एकादश बनिया, ग्वाला (मुस्लिम), जदुपतिया गोसाई, गिरि संन्यासी, अतित या अतिथ, परथा, बनिया (रॉकी एवं बियाहूत कलवार, जयसवाल, जैशवार, कमलापुरी, वैश्य, बनिया, माहुरी, बैस्य, बंगी वैश्य, वर्णवाल, गधबनिक/ गधबनिया /ओमर /उमर वैश्य /वर्णवाल/गंधबनिया / गंधबनिक/ ओमर/उमर वैश्य/ ...
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