गोपियों ने यह क्यों कहा कि हरि अब राजनीति पढ़ आए हैं? क्या आपको गोपियों के इस कथन का विस्तार समकालीन राजनीति में नज़र आता है, स्पष्ट कीजिए। Show
गोपियों ने ऐसा इसलिए कहा है क्योंकि श्री कृष्ण ने सीधी सरल बातें ना करके रहस्यातमक ढंग से उद्धाव के माध्यम से अपनी बात गोपियों तक पहुचाई है। गोपियों का यह कथन कि हरि अब राजनीति पढ़ आए हैं। कहीं न कहीं आज की भ्रष्ट राजनीति को परिभाषित कर रहा है। इस कथन का विस्तार समकालीन राजनीति में नज़र आ रहा है। जिस तरह से श्री कृष्ण ने अपनी बात सीधे-सीधे न करके घुमा-फिराकर उद्धव के माध्यम से गोपियों के समक्ष रखी है, उसी तरह आज के राजनीतिज्ञ भी अपनी बात को घुमा-फिराकर जनता के समक्ष रखते हैं। दूसरी तरफ यहाँ गोपियों ने राजनीति शब्द को व्यंग के रूप में कहा है। आज के समय में भी राजनीति शब्द का अर्थ व्यंग के रूप में लिया जाता है। Concept: पद्य (Poetry) (Class 10 A) Is there an error in this question or solution? गोपियों ने अपने वाक्चातुर्य के आधार पर ज्ञानी उद्धव को परास्त कर दिया, उनके वाक्चातुर्य की विशेषताएँ लिखिए? सूरदास के भ्रमर गीत। में गोपियाँ श्रीकृष्ण की याद में केवल रोती - तड़पती ही नहीं बल्कि उद्धव को उसका अनुभव कराने के लिए मुस्कराती भी थीं। वे उद्धव और कृष्ण को कोसती थीं और व्यंग्य भी करती थीं। उद्धव को अपने निर्गुण ज्ञान पर बड़ा अभिमान था पर गोपियों ने अपने वाक्चातुर्य के आधार पर उसे परास्त कर दिया था। वे तर्कों, उलाहनों और व्यंग्यपूर्ण उक्तियों से कभी तो अपने हृदय की वेदना को प्रकट करती थीं, कभी रोने लगती थीं उनका वाक्चातुर्य अनूठा था जिसमें निम्नलिखित विशेषताएं प्रमुख थीं- (क) निर्भीकता- गोपियां अपनी बात कहने में पूर्ण रूप से निडर और निर्भीक थीं। वे किसी भी बात को कहने में झिझकती नहीं हैं। योग-साधना को ‘कड़वी ककड़ी’ और ‘व्याधि’ कहना उनकी निर्भीकता का परिचायक है- सुनत जोग लागत है ऐसौ, ज्यौं करुई ककरी। (ख) व्यंग्यात्मकता-गोपियों का वाणी में छिपा हुआ व्यंग्य बहुत प्रभावशाली है। उद्धव को मजाक करते हुए उसे ‘बड़भागी’ कहती हैं क्योंकि श्रीकृष्ण के निकट रह कर भी वह उनके प्रेम से दूर ही रहा- प्रीति-नदी मैं पाऊँ न बोरयौ, दृष्टि न रूप परागी। इक अति चतुर हुते पहिलैं ही, अब गुरु ग्रंथ पढ़ाए। (ग) स्पष्टता-गोपियों को अपनी बात साफ-साफ शब्दों में कहनी आती है। वे बात को यदि घुमा-फिरा कर कहना जानती हैं तो उसे साफ-स्पष्ट रूप में कहना भी उन्हें आता है- अब अपनै मन फेर पाइहैं, चलत जु हुते चुराए। वे साफ-स्पष्ट शब्दों में स्वीकार करती हैं कि वे सोते-जागते केवल श्रीकृष्ण का नाम रटती रहती हैं- मन की मन ही
माँझ रही। (घ) भावुकता और सहृदयता अवधि अधार आस आवन की, तन मन बिथा सही। सहृदयता के कारण ही वे श्रीकृष्ण को अपने जीवन का आधार मानती हैं। वे तो स्वयं को मन-वचन-कर्म से श्री कृष्ण का ही मानती थीं- वास्तव में गोपियां सहृदय और भावुक थीं। समय और परिस्थितियों ने उन्हें चतुर और वाग्विदग्ध बना दिया था। वाक्चातुर्य के आधार पर ही उन्होंने ज्ञानवान् उद्धव को परास्त कर दिया था। 720 Views संकलित पदों को ध्यान में रखते हुए सूर के भ्रमरगीत की मुख्य विशेषताएँ बताइए? सूरदास के द्वारा रचित ‘भ्रमरगीत’ हिंदी-साहित्य के सबसे अधिक भावपूर्ण उलाहनों के रूप में प्रकट किया जाने वाला काव्य है। यह काव्य मानव हृदय की सरस और मार्मिक अभिव्यक्ति है। इसमें प्रेम का सच्चा, भव्य और सात्विक पक्ष प्रस्तुत हुआ है। कवि ने कृष्ण और गोपियों के हृदय की गहराइयों को अनेक ढंगों से परखा है। संकलित पदों के आधार पर भ्रमरगीत की मुख्य विशेषताएं निन्नलिखित हैं- 1. गोपियों का एकनिष्ठ प्रेम-गोपियों के हृदय में श्रीकृष्ण के प्रति एकनिष्ठ गहरा प्रेम था। वे उन्हें पलभर भी भुला नहीं पाती थीं। उन्हें लगता था कि श्रीकृष्ण ही उनके जीवन के आधार थे जिनके बिना वे पलभर जीवित नहीं रह सकती थीं। वे तो उनके लिए हारिल पक्षी की लकड़ी के समान थे जो उन्हें जीने के लिए मानसिक सहारा देने वाले थे। हमारैं हरि हारिल की लकरी। गोपियां तो सोते-जागते श्रीकृष्ण की ओर अपना ध्यान लगाए रहती थीं। उन्हें लगता था कि उनका हृदय तो उनके पास था ही नहीं। उसे तो श्रीकृष्ण चुरा कर ले गए थे। इसलिए वे अपने मन को योग की तरफ लगा ही नहीं सकती थी। 2. वियोग शृंगार- गोपियां हर समय श्रीकृष्ण के वियोग में तड़पती रहती थीं। वे उनकी सुंदर छवि को अपने मन से दूर कर ही नहीं पाती थीं। श्रीकृष्ण मथुरा चले गए थे पर गोपियां तो रात-दिन उन्हीं की यादों में डूब कर उन्हें ही रटती रहती थीं- वे अपने हृदय की वियोग पीड़ा को अपने मन में ही छिपा कर रखना चाहती थीं। वे अपनी पीड़ा को दूसरों के सामने कहना भी नहीं चाहती थीं। उन्हें पूरा विश्वास था कि वे कभी-न-कभी अवश्य वापिस आएंगे। उन्होंने श्रीकृष्ण के प्रेम के कारण अपने जीवन में मर्यादाओं की भी परवाह नहीं की थी। 3. व्यंग्यात्मकता-गोपियां चाहे श्रीकृष्ण से प्रेम करती थीं पर उन्हें सदा यही लगता था कि श्रीकृष्ण ने उनसे चालाकी की थी; उन्हें धोखा दिया था। वे मधुरा में रहकर उनसे चालाकियां कर रहे थे; राजनीति के खेल से उन्हें मूर्ख बना रहे थे। इसलिए व्यंग्य करते हुए वे कहती हैं- हरि हैं राजनीति पढ़ि आए। उद्धव पर व्यंग्य करते हुए उसे ‘बड़भागी’ कहती हैं जो प्रेम के स्वरूप श्रीकृष्ण के निकट रह कर भी प्रेम से दूर रहा। उसने कभी प्रेम की नदी में अपने पैर तक डुबोने का प्रयत्न नहीं किया। वे श्रीकृष्ण को बड़ी बुद्धि वाला मानती हैं जिन्होंने उन्हें योग का पाठ भिजवाया था। 4. स्पष्टवादिता- गोपियां समय-समय पर अपनी स्पष्टवादिता से प्रभावित करती हैं। वे योग-साधना को ‘व्याधि’ कहती हैं जिसके बारे में कभी देखा या सुना ही न गया हो। योग तो केवल उनके लिए ही उपयोगी हो सकता था जिन के मन में चकरी हो; जो अस्थिर और चंचल हों। 5. भावुकता- गोपियां स्वभाव से ही भावुक और सरल हृदय वाली थीं। उन्होंने श्रीकृष्ण से प्रेम किया था और उसी प्रेम में डूबी रहना चाहती थीं। वे उसी प्रेम में मर-मिटना चाहती थीं जिस प्रकार चींटी गुड से चिपट जाती है तो वह भी उससे अलग न हो कर अपना जीवन ही गवा देना चाहती है। भावुक होने के कारण ही वे योग के संदेशों को सुनकर दुःखी हो जाती हैं। अधिक भावुकता ही उनकी पीड़ा का बड़ा कारण बनती है। 6. सहज ज्ञान- गोपियां चाहे गाँव में रहती थीं पर उन्हें अपने वातावरण और समाज का पूरा ज्ञान था। वे जानती थीं कि राजा के अपनी प्रजा के लिए क्या कर्त्तव्य थे और उसे क्या करना चाहिए था- ते क्यौं अनीति करैं आपुन, जे और अनीति छुड़ाए। 7. संगीतात्मकता- सूरदास के भ्रमरगीत संगीतमय हैं। कवि ने विभिन्न राग-रागिनियों को ध्यान में रखकर भ्रमरगीतों की रचना की है। उन सब में गेयता है जिस कारण सूरदास के भ्रमर गीतों का साहित्य में बहुत ऊँचा स्थान हैं। 1066 Views गोपियों ने उद्धव के सामने तरह-तरह के तर्क दिए हैं, आप अपनी कल्पना से और तर्क दीजिए। गोपियां श्रीकृष्ण से अपार प्रेम करती थीं। उन्हें लगता था कि श्रीकृष्ण के बिना वे रह ही नहीं सकती थीं। जब श्रीकृष्ण ने उद्धव के द्वारा उन्हें योग-साधना का उपदेश भिजवा दिया था तब गोपियों का विरही मन इसे सहन नहीं कर पाया था और उन्होंने उद्धव के सामने तरह-तरह के तर्क दिए थे। 390 Views उद्धव ज्ञानी थे, नीति की बातें जानते थे; गोपियों के पास ऐसी कौन-सी शक्ति थी जो उनके वाक्चातुर्य में मुखरित हो उठी? किसी भी मनुष्य के पास सबसे बड़ी शक्ति उसके मन की होती है; मन में उत्पन्न प्रेम के भाव और सत्य की होती है। गोपियां श्रीकृष्ण से प्रेम करती थीं। उन्होंने अपने प्रेम के लिए सभी प्रकार की मान-मर्यादाओं की परवाह करनी छोड़ दी थी। जब उन्हें उद्धव के द्वारा श्रीकृष्ण का योग-साधना का संदेश दिया गया तो उन्हें अपने प्रेम पर लगी ठेस का अनुभव हुआ। उन्हें वह झेलना पड़ा था जिस की उन्होंने कभी उम्मीद भी नहीं की थी। उनके विश्वास को गहरा झटका लगा था जिस कारण उनकी आहत भावनाएं फूट पड़ी थीं। उद्धव चाहे ज्ञानी थे, नीति की बातें जानते थे पर वे गोपियों के हृदय में छिपे प्रेम, विश्वास और आत्मिक बल का सामना नहीं कर पाए थे। गोपियों के वाक्चातुर्य के सामने किसी भी प्रकार टिक नहीं पाए थे। 347 Views गोपियों ने यह क्यों कहा कि हरि अब राजनीति पढ़ आए हैं? क्या आपको गोपियों के इस कथन का विस्तार समकालीन राजनीति में नज़र आता है, स्पष्ट कीजिए।गोपियों ने सोच-विचार कर ही यह कहा था कि अब हीर राजनीति पढ़ गए थे। राजनीति मनुष्य को दोहरी चालें चलना सिखाती है। श्रीकृष्ण गोपियों से प्रेम करते थे और प्रेम सदा सीधी राह पर चलता है। जब वे मधुरा चले गए थे तो उन्होंने गोपियों को योग का संदेश उद्धव के माध्यम से भिजवा दिया था। कृष्ण के इस दोहरे आचरण के कारण ही गोपियों को कहना पड़ा था कि हरि अब राजनीति पढ़ आए हैं। गोपियों का यह कथन आज की राजनीति में साफ -साफ दिखाई देता है। नेता जनता से कुछ कहते हैं और स्वयं कुछ और करते हैं। वे धर्म और राजनीति, अपराध और राजनीति, शिक्षा और राजनीति, अर्थव्यवस्था और राजनीति आदि सभी क्षेत्रों में दोहरी चालें चलते हैं और जनता को मूर्ख बनाकर अपने स्वार्थ सिद्ध करते हैं। उनकी करनी-कथनी में सदा अंतर दिखाई देता है। 333 Views गोपियों को ऐसा क्यों लगा कि श्री कृष्ण ने राजनीति पढ़ ली है?| उत्तर श्री कृष्ण द्वारा भेजे गए योग के संदेश को सुनकर गोपियों को लगने लगा है कि वे उन्हें भूल गए है। वे पहले तो हर व्यक्ति को अन्याय से बचाते थे, अब वे उन पर ही अन्याय कर रहे है। वे तो पहले ही बहुत चतुर थे। अब तो उन्होने राजनीति को भी पढ़ लिया है, जिससे उनकी बुद्धि बहुत बढ़ गई है।
गोपियों ने यह क्यों कहा कि हरि अब राजनीति पढ़ आए हैं क्या आपको गोपियों के इस कथन का विस्तार?गोपियों का यह कथन कि हरि अब राजनीति पढ़ आए हैं। कहीं न कहीं आज की भ्रष्ट राजनीति को परिभाषित कर रहा है। इस कथन का विस्तार समकालीन राजनीति में नज़र आ रहा है।
2 गोपियों ने ऐसा क्यों कहा कि कृष्ण ने राजनीति पढ़ ली है उन्हें कृष्ण में कुशल राजनीतिज्ञ के कौन से गुण दिखाई दिए?गोपियाँ विरह में श्री कृष्ण के वापिस आने की लम्बी प्रतीक्षा <br> करती हैं परन्तु उनकी जगह उनका दूत आता है जो कि कृष्ण से दूर ले जाने वाला योग-संदेश <br> लाता है तो उन्हें इसमें कृष्ण की एक चाल नज़र आती है। वे इसे अपने साथ छल समझने <br> लगती हैं। इसीलिए उन्होंने आरोप लगाया कि “हरि हैं राजनीति पढ़ि आए।
गोपियों के अनुसार श्रीकृष्ण ने कौन सा शास्त्र पढ़ लिया है?Shri Krishna ने क्यों चुराए थे गोपियों के वस्त्र | Gopi Vastra Haran | Prashant mukund prabhu - YouTube.
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