गाय को मिल्क फीवर होना क्या है? Show मिल्क फीवर एक ऐसा रोग है, जो गाय के खून में कैल्शियम का स्तर कम होने पर विकसित होता है। यह रोग आमतौर पर प्रसव के बाद दूध निकालने की प्रक्रिया की शुरुआत में होता है। यह रोग आमतौर पर गाय के ब्यांत के बाद ही होता है, क्योंकि उस समय दूध देने के कारण उसके शरीर में कैल्शियम की कमी हो जाती है। इस बीमारी से गाय शारीरिक रूप से कमजोर हो जाती है और बुखार भी चढ़ जाता है। इस रोग को मिल्क फीवर इसलिए कहा जाता है, क्योंकि यह रोग तब होता है जब पशु दूध देने लग जाता है और इस दौरान कमजोरी के कारण उसे बुखार भी हो जाता है। (और पढ़ें - गाय को पेट में दर्द होने का कारण) मिल्क फीवर होने पर क्या लक्षण होते हैं? शरीर में कैल्शियम की कमी के कारण गाय को शारीरिक रूप से कमजोरी आना और बुखार होना मिल्क फीवर के प्रमुख लक्षण माने जाते हैं। हालांकि, गाय के स्वास्थ्य और उसके अंदरूनी रोगों के अनुसार कुछ अन्य लक्षण भी हो सकते हैं। मिल्क फीवर में होने वाले लक्षण रोग की गंभीरता के अनुसार अलग-अलग हो सकते हैं, जिन्हें रोग के चरण कहा जाता है, जो इस प्रकार हैं - चरण 1 यह रोग की शुरुआती अवस्था है, जिसके लक्षणों में निम्न शामिल हो सकते हैं -
चरण 2 इस अवस्था में रोग थोड़ा सा गंभीर हो जाता है, जिसके लक्षणों में निम्न शामिल है -
चरण 3 यह मिल्क फीवर की सबसे गंभीर अवस्था होती है, जिसमें गाय में निम्न लक्षण देखे जा सकते हैं -
पशु चिकित्सक को कब दिखाना चाहिए? यह रोग ज्यादातर गाय को ब्यांत के बाद होता है, इसलिए इस दौरान गाय के स्वास्थ्य को विशेष रूप से ध्यान में रखना चाहिए। यदि गाय को ऊपरोक्त में से कोई भी लक्षण हो रहा है, तो पशु चिकित्सक से बात कर लेनी चाहिए। मिल्क फीवर क्यों होता है? गाय को मिल्क फीवर होने का मुख्य कारण शरीर में कैल्शियम की कमी होना है। हालांकि, गाय के शरीर में कैल्शियम की कमी होने के कई कारण हो सकते हैं, जिनमें निम्न शामिल हैं -
कुछ गायों में हार्मोन संबंधी समस्याएं भी हो जाती हैं, जिस कारण से उनके शरीर में कैल्शियम की कमी हो जाती है और मिल्क फीवर रोग हो जाता है। उदाहरण के लिए यदि गाय के शरीर में एस्ट्रोजन हार्मोन का स्तर बढ़ जाता है, तो कैल्शियम के स्तर में कमी आने लगती है। कई मामलों में देखा गया है कि गाय को विटामिन डी की कमी होने पर भी रक्त में कैल्शियम का स्तर कम हो जाता है। मिल्क फीवर होने का खतरा कब बढ़ता है? अधिकतर मामलों में ब्यांत के बाद ही गाय को मिल्क फीवर होने का खतरा बढ़ जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि ब्यांत के बाद गाय दूध देने लगती है और परिणामस्वरूप उसके शरीर में कैल्शियम की कमी हो जाती है। इसके अलावा गाय को पाचन संबंधी समस्याएं भी मिल्क फीवर होने का कारण बन सकती हैं। (और पढ़ें - गाय को थनैला रोग का इलाज) मिल्क फीवर होने से बचाव कैसे किया जा सकता है? गाय के स्वास्थ्य को बनाए रखने और दूध उत्पादन में कमी होने से बचाने के लिए गाय का मिल्क फीवर से बचाव रखना भी बेहद जरूरी होता है। मिल्क फीवर से बचाव रखने के लिए कुछ बातों का विशेष रूप से ध्यान रखें। हालांकि, गाय के लिए उचित आहार योजना अधिकतर मामलों में मिल्क फीवर होने से रोकथाम कर सकती है। ब्यांत से पहले कैल्शियम की खुराक एकदम से बंद न करें, ऐसा इसलिए क्योंकि अचानक से कैल्शियम बंद करने से गाय का शरीर अचानक हुए बदलाव में समायोजित नहीं हो पाता है और कैल्शियम की कमी हो जाती है। कैल्शियम सप्लीमेंट्स को रोजाना एक उचित मात्रा में देना भी आवश्यक है। इसके अलावा गाय को कब और कितनी मात्रा में कैल्शियम की खुराक देनी है और कितने दिन तक देनी है इस बारे में पशुचिकित्सक से बात कर लेनी चाहिए। (और पढ़ें - गाय को खुरपका-मुंहपका रोग के लक्षण) मिल्क फीवर की जांच कैसे करें? मिल्क फीवर का परीक्षण करने के लिए सबसे पहले गाय को महसूस हो रहे लक्षणों की जांच की जाती है और मालिक से उसके स्वास्थ्य संबंधी पिछली जानकारी ली जाती है। पशु चिकित्सक मालिक से गाय द्वारा पिछले कुछ दिनों में खाया गया आहार और रोगों की जांच करते हैं। यदि गाय हाल ही में ब्याई है तो पशु चिकित्सक उसके ब्याने से पहले और बाद में उसे क्या-क्या खिलाया गया है आदि के बारे में भी पूछ सकते हैं। इन सभी सवालों के जवाब, गाय को हो रहे लक्षणों और कुछ अन्य टेस्टों के रिजल्ट के आधार पर ही पशु चिकित्सक मिल्क फीवर की पुष्टि करते हैं। (और पढ़ें - गाय को अफारा होने का कारण) मिल्क फीवर का इलाज कैसे करें? मिल्क फीवर का इलाज मुख्य रूप से रोग की गंभीरता, गाय के स्वास्थ्य और अंदरूनी कारणों के अनुसार किया जाता है। मिल्क फीवर के इलाज में आमतौर पर गाय को नसों द्वारा कैल्शियम सप्लीमेंट्स के इंजेक्शन दिए जाते हैं, कुछ मामलों में ये इंजेक्शन मांसपेशियों में भी लगाए जा सकते हैं। कुछ मामलो में इंजेक्शन लगाने से पहले एक न्यूमैटिक पंप (Pneumatic pump) की मदद से गाय के थनों में हवा का एक विशेष दबाव बनाया जाता है। इससे थनों में मौजूद कैल्शियम रक्त में मिल जाता है और कैल्शियम का स्तर बढ़ जाता है। पशु चिकित्सक गाय को थोड़े पानी में गुड़ व नींबू के रस मिलाकर देते हैं, जिससे उनके कैल्शियम स्तर में कुछ सुधार किया जा सकता है। इसके अलावा पशु चिकित्सक गाय को मिल्क फीवर के कारण हो रहे कुछ लक्षणों के अनुसार भी दवाएं दे सकते हैं। उदाहरण के तौर पर गाय को बुखार और कब्ज जैसे लक्षणों को नियंत्रित करने के लिए कुछ दवाएं दी जा सकती हैं। गाय को बुखार आने पर क्या खिलाना चाहिए?पशुओं को बुखार आने पर
पशु को अधिक से अधिक ताजा पानी पीने को देना चाहिए। मीठा सोडा (सोडियम बाइकार्बोनेट) 15 ग्राम, नौसादर 15 ग्राम, सैलीसिलिक एसिड 15 ग्राम, 500 मिली. पोटैशियम नाइट्रेट, 30 ग्राम चिरायता का महीन चूर्ण और गुड़ 100 ग्राम लगभग 200 ग्राम पानी में घोल कर गाय या भैंस को 8 से 10 घंटे के अंतर पर पिलाना चाहिए।
तुरंत बुखार कैसे उतारे?आराम है सबसे ज़रूरी आपको जैसे ही हल्का सा बुखार महसूस होने लगे, फौरन जो भी काम कर रहे हैं उसे रोकें क्योंकि आपको सिर्फ और सिर्फ आराम की ज़रूरत है। ... . ठंडे पानी की पट्टियां ठंडे पानी में कपड़े को डुबोकर माथे पर रखने से बुखार जल्दी उतरता है। ... . खूब पानी पिएं ... . हल्के कपड़े पहनें ... . कमरे को ज़्यादा गर्म न रखें. गाय चारा नहीं खा रही है क्या करें?अगर आपकी गाय या भैंस को भूख कम लग रही है, तो उसे लीवर टॉनिक दें। इसे 50 मिलीग्राम दें। साथ ही जो पशु कम चारा खा रहा है उसे पाचक पाउडर दें। आप अपने पशु को एक मिक्सर बना कर भी दें, इसमें आप 200 ग्राम काला जीरी डालें और उसमें 50 ग्राम हींग मिलाएं।
पशुओं की भूख कैसे बढ़ाएं?पहला तरीका है कि पशु को कौड़ तुम्मे हर रोज़ खिलायें या फिर यदि कौड़ तुम्मे आपको ना मिले तो आप कौड़ तुम्मे का चूर्ण पशुओं को कुछ दिन खिलायें। इससे पशु के मिहदे में पाचन क्रिया सही हो जायेगी जिससे पशु को भूख भी लगेगी और पशु भरपेट हरा चारा खाएगा और बाद में इसे हजम भी करेगा जिससे पशु के दूध उत्पादन में भी वृद्धि होगी।
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